28/06/2024
मैं एक आम आदमी हूं।
कभी कैब ड्राइवर के रूप में बैठे-बैठे मर जाता हूं, क्योंकि लापरवारी के लबादे में लिपटी एयरपोर्ट की छत मेरे ऊपर गिर जाती है।
कभी राह चलते प्रचार का होर्डिंग बोर्ड गिरने से मारा जाता हूं।
कभी ट्रेन मैं बैठे-बैठे सरिया मेरे सीने से पार हो जाता है, तो कभी मिडिल बर्थ गिरने से मेरी मौत हो जाती है।
इन सब से भी बच गया तो ट्रेन हादसे में मेरी जान चली जाती है। कभी पुल गिरने से मारा जाता हूं, कभी इमारत।
मैं कोई जिंदा शरीर नहीं, बल्कि संख्या भर हूं। क्योंकि इस देश के हादसों में मौत सिर्फ पहली होती है,बाकी सब सरकार के लिए संख्या होते हैं। मृतकों की संख्या बढ़कर इतनी हुई वाली हेडलाइन हूं मैं। मैं वहीं हूं जिसकी मौत का जिम्मेदार आज तक नहीं मिला, जांच रिपोर्ट के नाम पर किसी सरकारी तहखाने की फाइल में धूल फांकने वाला लाल स्याही से लिखा नाम हूं मैं।
मैं मरा तो कीमत लगा दी जाएगी। 10 लाख, 20 में मेरी जिंदगी तोल दी जाएगी। हमारी नहीं, उनकी सरकार की गलती है,ये बात बोल दी जाएगी।