स्त्रीrang

स्त्रीrang शब्द अनंत,
यात्रा जीवनपर्यंत
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उम्र का मौसम बदलने लगा हैतो मन की अलमारी लगाने बैठ गईसबसे ऊपर हैंगर में टंगे मिले कुछ सपने, जो अब पुराने पड़ चुके हैं,सो...
26/12/2024

उम्र का मौसम बदलने लगा है
तो मन की अलमारी लगाने बैठ गई
सबसे ऊपर हैंगर में
टंगे मिले कुछ सपने,
जो अब पुराने पड़ चुके हैं,
सोचा या तो किसी को दे दिए जाएं
या ठीक-ठाक करके एक बार दोबारा
ट्राई करके देखें जाएं
क्या पता इस उम्र में भी फिट हो जाएं,
लेकिन फिर एक डर भी तो है,
कहीं अब आऊटडेटिड लगे तो,
लेकिन देखती हूं अल्टर और डाई करवा के...
एक रैक में कुछ धूल जमे रिश्ते
तहाए पड़े हैं कागज़ों में लिपटे,
जब बनाए तब लगा था
हमेशा चलेंगें , लेकिन जल्दी ही
बेरंग हो गए , कई उधड़ गए ,
कुछ बड़े हो गए हैं ,
कुछ आज भी छोटे लगते हैं !
एक दो रिश्ते तो कोई राह चलता दे गया था,
मन नहीं था रखने का ,
लेकिन वाकई , वही खूब चल रहे हैं आज भी,
पहले से ज्यादा चमक ,विश्वास और अपनापन..
मालूम है ?
जब ये नए थे ,
तब इतने चमकदार नहीं थे,
इनकी चमक वक्त के साथ बढ़ी है,
कुछेक महंगे वादे पड़े हैं लाकर में,
कुछ तो वक्त जरूरत पर बेच दिए,
कुछ आज भी पहन कर इठलाती हूं,
कुछ यादें पड़ी हैं
चोर लाकर वाली सुनहरी डिबिया में ,
माँ के आँचल की खुशबू,
स्कूल की आधी छुट्टी में
टिफिन से निकले आलू के परांठे
बहन की ठिटोली,
पहली तनख्वाह,
मेरी विदा पर गिरे पिता के आँसू,
सबकी खुशबू आज भी जस की तस..
भूल से कुछ अपने, पराए वाली रैक में
और कुछ पराए , अपने वाली में रख दिए थे,
वापिस सही से रखा उन्हें ,
वरना क्या पता जरूरत पड़ने पर
सही से पहचान न पाती और
उठाकर बरतने में गल्ती कर देती..
खैर मन की अलमारी बुहारते में
इतने रंग,
इतने धागे,
इतने सेफ्टिपिन,
इतने पैबंद निकले
कि लगता है जैसे
मन की अलमारी
इन्हीं सब के वजन से भारी होकर
अस्त-व्यस्त सी पड़ी थी,
ये सब आँसुओं में प्रवाहित कर दिए...
अब जंच रही है ,
मेरे मन की अलमारी !

स्त्रीrang -सुजाता Akb
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इस जन्म में अंततः मुरझाने से पहले मेरा मन है किसी सुबह ऐसे उगूं जैसे उगता है पहली बारिश बाद बरसों से सूखे पड़े गमले से क...
25/12/2024

इस जन्म में अंततः मुरझाने से पहले
मेरा मन है किसी सुबह ऐसे उगूं
जैसे उगता है पहली बारिश बाद
बरसों से सूखे पड़े गमले से
किसी अंजान पौधे का अंकुर.

जैसे उगता है पिछले दिन से हारा
थककर पूरी रात का सोया सूरज .

जैसे उगता है अट्ठारह बरस के लड़के के सिर में चाँदी सा चमकता पहला सफेद बाल.

जैसे उगता है बंद पड़े मकान की
दरार के भीतर से एक कोमल पीपल.

जैसे उगता है किसी दुधमुंहें बच्चे का
नन्हे चावल सा पहला दाँत.

जैैसे उगता है माँ के हाथों बीच
नाचती सलाईयों पर झूलते
स्वेटर पर सुर्ख गुलाब का फूल.

जैसे उगता है मछली के पेट में
एक ताजा मुलायम रेशमी काँटा.

जैसे उगता है पहली क्लास के बच्चे की
ड्राईंग की कापी में
भूरे पहाड़ों के पीछे से झाँकता
वैक्स कलर का चटख पीला चाँद.

जैसे उगता है दराज में रखे
मुड़े तुड़े कागज में सुस्त पड़ी कविता से
एक ताजातरीन चुस्त विचार.

जैसे उगता है बरसों बाद मिले प्रेमियों के बीच लज्जाया सा शोर मचाता मौन.

जैसे उगता है तीसरे पहर
रसोई निपटाकर सोई माँ के सपने में
अपने बचपन में बोया सपना .

जैसे उगता है हारे गए युद्ध में
जमीन पर पड़े मृत सैनिकों के बीच से
जीत को आखिरी साँस सहेजकर भाला फेंकता रण बाँकुरा .

या फिर
हो सके तो किसी रोज वैसे ही उगूं
जैसे उगा था बरसों बाद
मेरी हथेलियों पर तुम्हारी हथेलियों का
वही चिरपरिचित स्पर्श.

देह छोड़ किसी रोज़
हम सभी ऐसे ही उगेंगें....

स्त्रीrang -सुजाता Akb Image Internet

उससे मिलकर जानाकि जान का जाना क्या होता हैसाहिल की रेत परएक नाम लिख लहरों में छिपाना क्या होता हैघनी अंंधेरी स्याह रात म...
23/12/2024

उससे मिलकर जाना
कि जान का जाना
क्या होता है

साहिल की रेत पर
एक नाम लिख
लहरों में छिपाना
क्या होता है

घनी अंंधेरी स्याह रात में
एक जुगनू दिख जाना
क्या होता है

चुप्पियों भरी एक लंबी उम्र को
कहानियां किस्से सुनाना
क्या होता है

रोते हुए बच्चे के हाथ
मनचाहा खिलौना थमाना
क्या होता है

उससे मिलकर जाना
कि जान का जाना
क्या होता है...
..और उससे मिलकर ही तो जाना कि
प्यार क्या होता है
यार क्या होता है
इकरार क्या होता है
व्यवहार क्या होता है....


स्त्रीrang -सुजाता
Akb
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हरबार काटी जाती हैं अपनी जमीन से,हरबार नई जमीन पर अपनी पहचान बोती हैं,भरकर आँचल में उम्मीदों के बीज स्त्रियां अपनी धरती ...
23/12/2024

हरबार काटी जाती हैं अपनी जमीन से,
हरबार नई जमीन पर अपनी पहचान बोती हैं,
भरकर आँचल में उम्मीदों के बीज
स्त्रियां अपनी धरती
अपना आसमान बोती हैं.

जन्म से लेकर मरण तक देखकर
अपने हिस्से की धूप का बँटवारा
सूरज की नई पौध छाँटकर
रौशनी भरे आयाम बोती हैं.

बारिश धूप की बाट न जोहती
नई पीढ़ी की छाँव की खातिर
अपनी किस्मत की फसल सींचती खुद ही अपना किसान होती हैं.

हार के आगे मंद न पड़ती
छल मिले तो कुंद न होती
धीरज का बस दामन थामे
सिर पर कई तूफान ढोती हैं,

हम स्त्रियां अपनी धरती
अपना आसमान बोती हैं....
स्त्रीrang -सुजाता चित्र अनु प्रिया Akb #किसानदिवस

22/12/2024

सुजाता गुप्ता जी की मर्म स्पर्शी कविता

वो स्त्री जिसने
जन्म से मरण तक
ठिठुरन से जलन तक
अब्र से कब्र तक
जब्र से सब्र तक
सवेरे से रात तक
चलती-उखड़ती साँस तक
घटते-बढ़ते रक्तचाप तक
देह को मरोड़ते ताप तक
नींद से लेकर जाग तक
हँसी से ऊंचे विलाप तक
चुप्पियों से ऊंची नाक तक
जन्मदिन से ब्याह तक
अपने पराए से निभाह तक

22/12/2024

धन्यवाद Pushpa Kanyal ji..कविता के इस खूबसूरत प्रस्तुतिकरण के लिए...

अपनी उम्रदराज मां को देखकर,
क्या सोचा है तुमने कभी,
कि वो भी कालेज में टाईट कुर्ती
और स्लैक्स पहन कर जाया करती थी।

तुम सोच नहीं सकते कि
तुम्हारी माँ जब अपने घर के आँगन में
छमछम कर चहकती हुई ऊधम मचाती
दौड़ा करती तो घर का कोना-कोना
उस आवाज़ से गुलज़ार हो उठता था

तुम नहीं सोच सकते कि
'ट्विस्ट' डांस वाली प्रतियोगिता में,
जीते थे उन्होंने अनेकों बार प्रथम पुरुस्कार।

तुम यह भी सोच नहीं सकते कि
किशोरावस्था में वो जब भी कभी
अपने गीले बालों को तौलिए में लपेटे
छत पर फैली गुनगुनी धूप में सुखाने जाया करती,
तो न जाने कितनी ही पतंगें
आसमान में कटने लगा करती थी।

क्या सोचा है तुमने कभी कि
अट्ठारह बरस की मां ने
तुम्हारे बीस बरस के पिता को
जब वरमाला पहनाई तो मारे लाज से
दुहरी होकर गठरी बन, उन्होंने अपने वर को
नज़र उठाकर भी नहीं देखा था।

तुमने तो ये भी नहीं सोचा होगा कि
तुम्हारे आने की दस्तक देती उस
प्रसव पीड़ा के उठने पर अस्पताल जाने से पहले
उन्होंने माँग कर बेसन की खट्टी सब्जी खाई थी।

तुम सोच सकते हो क्या कि कभी,
अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि
'तुम्हें ही ' मानकर ,
अपनी सारी शैक्षणिक डिग्रियां
जिस संदूक के अखबार के कागज़ के नीचे रख
एकबार तालाबंद की थी, उस संदूक की चाबी
आजतक उन्होंने नहीं ढूंढी।

और तुम उनके झुर्रीदार कांपते हाथों, क्षीण याद्दाश्त, मद्धम नजर और झुकी कमर को देख,
उनसे कतराकर ,
खुद पर इतराते हो ?
ये बरसों का सफर है !
तुम सोच सकते भी नहीं !

(जैसे मोबाइल में हुई कुछ प्राब्लम पूछने पर चुटकियों में सुलझाता मेरा बेटा नहीं सोच सकता कि उसकी मां ने अपने कालेज के दिनों में तब प्रसिद्ध कंप्यूटर गेम 'प्रिंस आफ पर्शिया' के सारे लैवल क्लीयर कर प्रिंसैस को हासिल किया था ! और भी बहुत कुछ ऐसा है जो आने वाली पीढ़ियां बीती पीढ़ियों के विषय में शायद कभी सोच नहीं पाएंगीं !)

त‌ो जब भी खुद के रुतबे पर जब कभी गुरूर होने लगे
तब देखना अपनी मां की कोई बरसों बरस पुरानी फोटो और उतरना उनकी आंखों की गहराई में, पढ़ना उनके चेहरे की लिखावट, निहारना उनके व्यक्तित्व की खिलावट, तौलना उनके हौसलों की सुगबुगाहट।
तुम पाओगे कि आज तुम उनका दस प्रतिशत भी नहीं हो।

*हर मां को समर्पित 🙏🏻
- सुजाता स्त्रीrang Video Credits Kanyal Mam Akb Entertainment

ये सारे लड़के वालों को साड़ी में ही फोटो चाहिए होती थी हमेशा से ही तो हमारी बारी में भी मम्मी साड़ी और मुझे लेकर फोटो स्...
21/12/2024

ये सारे लड़के वालों को साड़ी में ही फोटो चाहिए होती थी हमेशा से ही तो हमारी बारी में भी मम्मी साड़ी और मुझे लेकर फोटो स्टूडियो में गई .
साड़ी का चुनाव भी जरा सोच समझ कर ही करना था कि कहीं भरे बदन की लड़की मोटी न दिखे।
मम्मी ने जब साड़ी पहनानी शुरू की तो सच कहूं कि ऐसा लगा जैसे चारों तरफ से अंजान बंधनों ने मुझे जकड़ लिया है और मैं उनसे छूटने का असफल प्रयास करती मम्मी पर ही झल्लाने लगी थी।
गुस्से में मैंने कभी इधर से पल्लू खोंसती मम्मी का हाथ झटका तो कभी उधर से । लगभग एक घंटा मुंह बना-बना कर मैंने बड़ी मुश्किल से साड़ी बंधवाई।
ये अलग बात है कि गुस्सा तो किसी और ही बात का था....
पहली बार साड़ी पहनते मुझे अच्छा तो बिल्कुल नहीं लगा था लेकिन तब क्या मालूम था कि अब आगे के जीवन का पूरा सफर साड़ी में ही कटने वाला है।
फिर वो समय‌ भी आया कि जब साड़ी बांधने में चंद सैकेंड्स ही लगने लगे थे।
स्कूल की जाब थी और साड़ी कंपल्सरी थी तो लगभग 22 वर्ष केवल साड़ी ही पहनी।
अब जब से जाब छोड़ी तब से केवल किसी खास मौके पर ही साड़ी पहनती हूं।
बाकि पहली बार साड़ी पहनने का एक्सपीरियंस कुछ इतना अच्छा था नहीं मेरा या यूं कहिए कि किन्हीं अंजान लड़के वालों को साड़ी में अपनी फोटो भेजना मुझे नागवार गुजरा था...

पता नहीं!
Saree pics - very first and recent !
आपका क्या अनुभव रहा पहली बार साड़ी पहनने का , कमेंट कीजिएगा और साड़ी वाली फोटो भी भेजें।
स्त्रीrang -सुजाता Akb Entertainment
#विश्वसाडीदिवस

21/12/2024

Sita Ram Diwan Chand के छोले भटूरे में कौन सी खास बात है 🤔 आपने खाए हों तो प्लीज बताइए...

Akb Entertainment

लड़कियां भी बैठती हैं,क्लास की सबसे पिछली वाली बैंचों परवे भी करती हैं मनमर्ज़ियां,कमाती हैं तमगे,शैतान, नटखट, शरारती और...
21/12/2024

लड़कियां भी बैठती हैं,
क्लास की सबसे पिछली वाली बैंचों पर
वे भी करती हैं मनमर्ज़ियां,
कमाती हैं तमगे,
शैतान, नटखट, शरारती और
पढ़ाई में कमज़ोर होने के.

बीच लैक्चर के, छुपकर
खाती है वे भी चुराए हुए
टिफिन से खाना,
और खेलती हैं
राजा-वजीर वाली पर्चियां.

वे भी लिखती हैं कापियों के पीछे पहला अक्षर उसके नाम का , जो प्यार करता है उसकी
सबसे पक्की सहेली से.

वे भी पल्ले नहीं डालती ,
एक भी सूत्र गणित का,
कि कहीं ज़हन के बैकग्राउंड में बजते किसी फिल्मी गीत का सुर गड़बड़ा न जाए.

वे भी लेती हैं फिरकी
आँखों ही आँखों में,
क्लास के उन शर्मीले लड़कों की जो टीचर के किसी सवाल
के जवाब में हाथ उठाने से भी डरते हैं.

'मे आई कमिन' में ई की मात्रा
को लंबा खींचकर कनखियों से क्लास को देखकर मुस्कुराती हैं वे भी.

लड़कियाँ भी बनाती हैं
पेज फाड़कर हवाई जहाज,
और उड़ा देती हैं सबसे ज्यादा
उबाऊ और पकाऊ टीचरों पर .

वे भी फेयरवेल वाले दिन पाती हैं हिदायतें टीचरों की,
"भगवान ही जाने, तुम्हारा क्या होगा ?"

यकीन मानो, वही लड़कियां,
एक दिन नाम कमाकर,
दुरुस्त करती हैं समाज की
वे सारी अव्यवस्थाएं,
जो झेली थी उन्होंने कभी
चुपचाप रहकर

स्त्रीrang - सुजाता Akb Entertainment
चित्र साभार #न्यूज़18

20/12/2024

जो पढ़ना जानती थी,
वे प्रेमपत्रों से ठगी गई,
जो नहीं जानती थी
वे एक जोड़ी झुमकों से.
चटोरपन की मारी
एक प्लेट चाऊमिन से,
तेरे हाथों में स्वाद है '
सुनकर ठगी गई वे सारी
जो पढ़कर भी पकड़ नहीं पाई
इतिहास का सबसे बड़ा झूठ.
प्रेम में केवल ईश्वर को साक्षी मानने वाली
एक चुराई अलसाई दोपहरी में मिले
एक चुटकी सिंदूर से ठगी गई.
ठगी की मारी ये सारी की सारी
तबतक खिली रही जबतक
प्रेम का वृक्ष ठूंठ हो उनकी देह के साथ नहीं जला.

स्त्रीrang -सुजाता
Akb Entertainment
Video Credits Rj Armaan Saanjh1947

मेकअप or फेकअप ?सोशल- मीडिया पर before makeup और after makeup की फोटोज़, वीडियोज़ में अंतर दिखाकर यह जताने की कोशिश की ज...
20/12/2024

मेकअप or फेकअप ?
सोशल- मीडिया पर before makeup और after makeup की फोटोज़, वीडियोज़ में अंतर दिखाकर यह जताने की कोशिश की जाती है कि देखिए मेकअप से पहले ये चेहरा कितना बदसूरत था और हमारी सर्विस लेने के बाद गजब का खूबसूरत हो गया।
मेकअप यानि कि श्रृंगार जो सदियों से हर स्त्री को खूबसूरत दिखने की चाह में किया जाने वाला एक ईमानदार प्रयास रहा था , बीते चार पांच वर्षों से अब एक नए ही बेईमान किस्म के मकाम पर पहुंच गया है जिसमें मेकअप की भारी भरकम परतों के पीछे एक अच्छी खासी पर्सनेलिटी की लगभग हत्या सी ही कर दी जाती है।
इक्कीसवीं सदी की स्त्रियां एक ओर जहां समानता के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ रही हैं वहीं दूसरी ओर वे अपने स्वयं के चेहरे को लेकर ही शर्मिंदगी के अहसास से दुहरी हुई जा रही हैं और जो कि अब इस प्रकार के फेकओवर का सहारा लेने को विवश हैं।
मात्र बिंदी , काजल और लिपस्टिक से श्रृंगार कर स्वयं को आईने में देख कर लजा जाने वाली हमारी पीढ़ी मेकअप के नाम पर लगाए जाने वाले इन एक्सपैंसिव थिन लेयर्ड मास्क्स को देख कर हैरान हैं कि आईना भी न जाने कितने ही अनगिनत सवाल मन ही मन में दबा लेता होगा और शायद वो भी स्त्रियों के आत्मसम्मान, स्वाभिमान और व्यक्तित्व की पहचान को धूल-धूसरित होते देख पानी पानी होता होगा।
प्लीज यार , मेकअप करो
फेकअप नहीं..
और वैसे पता नहीं हम इन मेकओवर parlor वालियों को उनके सोशल मीडिया हैंडल्स पर अपने मेकअप की Before After की वीडियो-इमेज लगाने की इजाजत दे भी कैसे देते हैं ?
सवाल उठता है कि जब उतना भारी भरकम मेकओवर का पैकेज देकर भी बिना मेकअप की फोटो शेयर ही करनी ठहरी तो मेकअप ही क्यों कराया ?

पार्लर वालियों से तो उल्टा अपनी फोटो लगाने का चार्ज हमें ही करना चाहिए कि वो अपना प्रचार कर रही है मुफ्त में।

हिम्मत हो तो जाओ और जिन पार्लर्स ने आपकी before/after फोटो लगाकर अपना प्रचार किया है उनसे अपना माडलिंग का चार्ज लेकर दिखाओ ,
पुरुष समाज से तो बाद में ही लड़ लेना।

*वो चेहरा जो before में है वही आपकी पहचान है ,
वो चेहरा जो after में है वो तो केवल पार्लर वाली का बिजनेस है।

और मेकअप करना ही है तो
अपने इरादों का मेकअप करिए
अपने वादों का मेकअप करिए
अपने स्वाभिमान का मेकअप करिए
अपने आत्मसम्मान का मेकअप करिए।
स्त्रीrang - सुजाता Akb Entertainment Image AI

सुंदरता और नारी ये दोनों ही शब्द एक दूसरे के पर्याय माने जाते हैं. नारी को केवल नारी मान कर कभी कोई व्याख्या नहीं की जात...
19/12/2024

सुंदरता और नारी ये दोनों ही शब्द एक दूसरे के पर्याय माने जाते हैं.

नारी को केवल नारी मान कर कभी कोई व्याख्या नहीं की जाती. बल्कि उसका सुंदर या असुंदर होना उसकी व्याख्या करने का पैमाना माना जाता है.

परंतु नारी तो स्वंय केवल नारी ही है. कहीं न कहीं जब उसके सुंदर और असुंदर होने पर व्याख्याएं की जाती हैं तो वो भीतर तक आहत अवश्य ही होती होगी. फिर चाहे उसे सुंदर कहा गया हो या असुंदर.

हर नारी सुंदर दिखे बिना सुंदर कहलवाना चाहती है.

वह चाहती है कि उसके व्यक्तित्व को केवल बाहरी सुंदरता के आधार पर न आंका जाए..

उसे उसके सुंदर या असुंदर होने के पार जाकर देखा और समझा जाए..

और अगर वह ऐसा चाहती है तो उसका ऐसा चाहना गलत भी नहीं.. क्योंकि सुंदर और असुंदर होने का पैमाना तो वक्त और परिस्थितियों के हिसाब से बदलता रहता है..

जैसे कि चीन में जहां चपटी नाक सुंदरता का पैमाना है लेकिन भारत में चपटी नाक वाला असुंदर समझा जाता है. अफ्रीका में चौड़े होंठ सुंदर माने जाते हैं जबकि भारत में नहीं. सुना है कि अफ्रीकी महिलाएं अपने होंठों को चौड़ा करने के लिये होंठों पर पत्थर कर लटका लेती हैं. लेकिन अफ्रीका में सुंदरता का ये पैमाना और किसी भी देश में लागू नहीं होता , हर जगह पतले होंठ ही सुंदर माने जाते हैं.

साल 1990 तक हिंदी सिनेमा में सुंदरता का पैमाना एक भरी पूरी देह को माना जाता था. तो सभी के लिए बस वैसा दिखना ही सुंदरता का पैमाना बन गया. परंतु फिर 1995 के बाद से पतली दुबली नायिकाएं सिनेमा के पर्दे पर दिखाई देनी शुरू हुई तो पहले सुंदर दिखने वाली भरी पूरी देह असुंदरता की श्रेणी में आ गई. और दुबली पतली देह को सुंदरता का नया पैमाना मान लिया गया, जो कि पहले असुंदरता की श्रेणी में आता था.

फैशन बदल जाते हैं, सौंदर्य बदल जाता है। हमारी सांस्कृतिक और सामाजिक व्याख्याएं बदल जाती हैं.

तो सुंदर असुंदर होने का ये पैमाना जो लगातार बदलता रहता है उसे एक नारी की व्याख्या करने के लिए क्यों इस्तेमाल किया जाता है ?

नारी केवल नारी है, सुंदर या असुंदर नहीं.

वो है बस वही काफी है.

क्योंकि हर नारी सुंदर दिखे बिना सुंदर लगना चाहती है..

तो यदि कभी किसी नारी से मिलना हो तो सुंदरता के पार जाकर मिलना..यही वो चाहती भी है‌ और सुंदरता के हर पैमाने के बाहर ही वो रहती भी है।

किसी भी ब्यूटी कांटेस्ट में रनरअप और विनर दोनों ही सुंदर हैं। और सच मायने में जो प्रतियोगिता तक नहीं पहुंच पाती वे इन से भी अधिक सुंदर हैं।

(प्रेरणा ओशो)
स्त्रीrang - सुजाता Akb Entertainment
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साड़ी की प्लीट्स तहाकर हाथों से क्रीज़ बनाते हैं बेटे भी बेटी जैसे माँ के कंधे पर पल्लू सेट करवाते हैं .हारी-बीमारी में ...
15/12/2024

साड़ी की प्लीट्स तहाकर
हाथों से क्रीज़ बनाते हैं
बेटे भी बेटी जैसे
माँ के कंधे पर पल्लू
सेट करवाते हैं .

हारी-बीमारी में माँ की
कच्ची-पक्की आढ़ी-तिरछी
बड़े ही चाव से रोटियां सिंकवाते हैं,
बेटे भी बेटी जैसे
दाल में छौंका लगाते हैं.

दुनिया जहान की भीड़-भाड़ में
माँ का हाथ पकड़
सड़क पार करवाते हैं
बेटे भी बेटी जैसे
माँ की चूड़ियों संग बिंदी का
मैच मिलवाते हैं.

आधी-अधूरी साईकिल सीख
कैंची-पैदल चलते चलाते
मां को पीछे बिठा सैर करवाते हैं
बेटे भी बेटी जैसे
मां का हमसाया बन जाते हैं.

कभी पढ़ाई तो कभी
रोजगार की खातिर
प्यारी मां से दूर हो जाते हैं
बेटे भी बेटी जैसे फिर
याद आ खूब सताते हैं .

गलबहियां कर रूठी मां से
मान-मनौव्वल को
आँख में आँसू भर लाते हैं
बेटे भी बेटी जैसे
माँ की प्यारी 'गुड़िया' कहलाते हैं.

मां के ही जैसे
नाक-नक्श लिए
उन सी ही सब पर
ममता लुटाते हैं
मां के बाद उनकी जगह ले
बेटे भी बहनों पर प्यार बरसाते हैं.

कि.....
गुल-ओ-जन्नत की तमाम महक
लिए फिरते हो तुम जो ये
ऐ इत्र-फरोश,
मेरी मां के आंचल सा महकता कोई इत्र हो तो ज़रा देना...

स्त्रीrang - सुजाता Mother's Image Credits Akb

वो स्त्री जिसनेजन्म से मरण तकठिठुरन से जलन तकअब्र से कब्र तकजब्र से सब्र तकसवेरे से रात तकचलती-उखड़ती साँस तकघटते-बढ़ते ...
13/12/2024

वो स्त्री जिसने
जन्म से मरण तक
ठिठुरन से जलन तक
अब्र से कब्र तक
जब्र से सब्र तक
सवेरे से रात तक
चलती-उखड़ती साँस तक
घटते-बढ़ते रक्तचाप तक
देह को मरोड़ते ताप तक
नींद से लेकर जाग तक
हँसी से ऊंचे विलाप तक
चुप्पियों से ऊंची नाक तक
जन्मदिन से ब्याह तक
अपने पराए से निभाह तक
धूएं से लेकर धक्कड़ तक,
आठ की उम्र से पिचहत्तर तक
रोज़ खाना पकाया,
हर आए गए को दिल से
पेटभर खिलाया
वो अन्नपूर्णा,
आखिरी दिनों में असहाय
बिस्तर पर पड़ी
भला कागज की पुड़िया में
नमक-मिर्च बाँधे
सिरहाने क्यों रखा करती है ?

असल में वो,
'मुझे भूख लगी है!'
कहने की 'शर्मिंदगी' से बचा करती है!

स्त्रीrang -सुजाता
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नामुमकिन है शहर का गांव होनापिता की जेब सादिलदार होनामां के आंचल सीछांव होनाबहन की डांट सा दुलार होनाभाई के साथ सा सिपहस...
12/12/2024

नामुमकिन है शहर का
गांव होना
पिता की जेब सा
दिलदार होना
मां के आंचल सी
छांव होना

बहन की डांट सा
दुलार होना
भाई के साथ सा
सिपहसालार होना।
मुहल्ले की भीड़ सा
गुलज़ार होना।

नामुमकिन है
शहर का गांव होना।
फ्लैट की बालकनी में
सपरिवार होना....

स्त्रीrang - सुजाता Akb
Image Anu Priya

जस्टिस इज़ ड्यू !इंसाफ बाकि है।बेंगलुरु के  ए.आई. इंजीनियर अतुल सुभाष ने अपने घर पर आत्म हत्या कर ली है जिसके बाद पूरा द...
11/12/2024

जस्टिस इज़ ड्यू !
इंसाफ बाकि है।
बेंगलुरु के ए.आई. इंजीनियर अतुल सुभाष ने अपने घर पर आत्म हत्या कर ली है जिसके बाद पूरा देश अचानक सकते में आ गया है और आए भी क्यों न क्योंकि अतुल सुभाष ने सु-साईड से पहले 24 पेज का एक सु-साइड नोट लिखा और 90 मिनट का एक वीडियो बनाया है जिसमें उसने अपनी पत्नी और उसके परिजनों पर हैरेसमेंट और उसके खिलाफ झूठे मामले दर्ज करने का आरोप लगाया है...
वीडियो में अतुल ने विस्तार से जितनी बातें बताई हैं वे सुनकर रौंगटे खड़े हो जाते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार कहा था कि '498 एक लीगल टैररिज्म हो गया है!'
और इस घटना के बाद यह एक बार फिर से साबित हो गया है।

कोर्ट में केवल एक पक्ष के प्रति बायस्ड होकर सुनवाई होते रहने का यह कोई पहला केस नहीं है क्योंकि जब बात महिला उत्पीड़न की आती है तो लीगल सिस्टम के साथ साथ पूरा देश समाज बगैर दूसरे पक्ष का सच‌ सुने केवल उसी महिला के पक्ष में एकतरफा राय बना लेता है जो कानूनी तौर पर तो गलत है ही लेकिन सामाजिक तौर पर उससे भी अधिक बड़े अपराध की श्रेणी में आता है।

अतुल सुभाष भी इसी महिलाओं के प्रति एकतरफा सहानुभूति रखने वाले सिस्टम का शिकार हो गए जो एक बेहद डराने वाली बात है।
अतुल के भीतर पसरी घुटन और दर्द का अंदाजा उनकी अंतिम इच्छा से लगाया जा सकता है कि -

'मेरे मरे हुए शरीर के आसपास मेरी पत्नी और उसके परिवार का कोई नहीं आना चाहिए।'

'मेरा अस्थि विसर्जन तब तक नहीं होना चाहिए जब तक मेरे हैरेसर को पनिशमेंट नहीं मिलता है। अगर इतने सारे इविडेंस और ये सब होने के बाद भी जज , कोर्ट मेरे हैरेसर को पनिश्मेंट नहीं देती है और उनको बरी कर देती है तो मेरी अस्थियों को वहीं कोर्ट के बाहर किसी गटर में बहा देना चाहिए ताकि मैं ये जान जाऊं और हमेशा हमेशा के लिए ये लैसन सीख जाऊं कि इस देश में क्या वैल्यू है एक लाईफ की ।'

महिलाओं की दशा- दिशा सुधारने ,उनपर हुए अत्याचारों पर कलम चलाते मैंने बहुत कुछ लिखा लेकिन आज एक मर्द के दर्द की ऐसी इंतेहा देख कर हृदय‌ छलनी हो गया है।
यदि जीवन से भरपूर एक नौजवान पुरुष को सिस्टम के सामने अपने आपको , अपने परिवार को निर्दोष साबित करने के लिए अपनी जान देनी पड़ती है तो यह हमारी कानून व्यवस्था के लिए बेहद शर्मनाक बात है।
हम किस ओर जा रहे हैं यह सोचना होगा।
और जब हम अधिकारों में समानता की बात करते हैं तो हमें न्याय मिलने में समानता के अधिकार को केवल महिलाओं के लिए ही नहीं बल्कि पुरुषों के लिए भी जोड़ कर देखना होगा।
क्योंकि केवल अतुल ही नहीं अपने आसपास ऐसी और भी कई कहानियां अब तक‌ देखी सुनी हैं हम सभी ने...
हमारे आसपास भी है ऐसे पुरुष जो कई बार ऐसी हैरेसमेंट का शिकार हुए हैं और आज‌तक चुप हैं ।
कितने ही पुरुष ऐसे भी हैं जिन्होंने ऐसे नोट लिखकर फाड़ दिए और आज भी अपने परिवार की ख़ातिर खुद को भुलाकर सब सहते हैं और एक शब्द नहीं कहते हैं ।

बस जिक्र नहीं किया जा सकता.... फिलहाल!

स्त्रीrang -सुजाता
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चलते -चलते यूं ही कोई मिल गया था ....एक कलाकार के लिए कला के प्रति संजीदगी और ठहराव क्या मायने रखता है यह अपने सहज एवं स...
11/12/2024

चलते -चलते यूं ही कोई मिल गया था ....
एक कलाकार के लिए कला के प्रति संजीदगी और ठहराव क्या मायने रखता है यह अपने सहज एवं सशक्त अभिनय से भारतीय सिनेमा को नई ऊँचाइयों पर ले जाने वाली ट्रैजेडी क्वीन मीना कुमारी जी से अधिक कौन समझा सकता है.

याद आ रहा है मेरा पसंदीदा गीत 'चलते चलते यूंही कोई मिल गया था.'

जीवन के इस लंबे सफर में चलते चलते हम सभी को कभी न कभी ,कोई न कोई एक ऐसा अजनबी ज़रूर मिलता है, जो बस मिलते ही, पहली ही नज़र में हमारी पूरी जिंदगी बन जाता है और बहुत बार फिर ऐसा भी होता है कि एक दिन ये अजनबी बिन कारण बताए, हमें छोड़कर अचानक हमारी दुनिया से चला जाता है और फिर हम उसके इंतजार मे हर पल बेचैन रहकर उसकी वापसी की राह देखते रहते हैं मन में विश्वास लिए कि वो शायद कभी तो फिर से वापिस अवश्य आ ही जाएगा.

अक्सर यहां पीड़ा एक दूसरी भी होती है कि उस अजनबी ने हमसे लौट आने का कोई वादा तो नहीं किया होता परंतु हम बस अपने दिल में बसे उसके प्रेम और उसपर विश्वास को आधार बनाकर उसका इंतजार करने लगते हैं.

ऐसे ही एक अजनबी के मोह में बंधी मीना कुमारी उसके इंतज़ार में इस गीत के ज़रिए अपनी उम्मीदों का दीया जलाए बैठी हैं.. जो हमें एक प्रेमिका के दिल में उठते इंतज़ार के दर्द और उम्मीद के बीच के द्वंद को बहुत खूबसूरती से बयां करता हैं.

'चलते चलते यूं ही कोई मिल गया था...' पाकीजा फिल्म का ये गीत आज भी लोगों के जुबान से नहीं उतरता. इस गीत को और भी खूबसूरत बनाया था बेपनाह हुस्न और बेहतरीन अदायगी की मलिका मीना कुमारी ने.

1971 की फ़िल्म पाकीजा का ये गीत ‘चलते-चलते’ ग़ुलाम मोहम्मद के संगीत पर कैफ़ी आज़मी ने लिखा है और इसे लता मंगेशकर ने अपने स्वर से सजाया है।
ये गीत हमेशा से ही मेरे पसंदीदा नग़्मों में से एक रहा है, और मैं अक्सर इसे गुनगुनाती रहती हूं.

इस गीत में मीना कुमारी की खूबसूरती और चेहरे के हाव-भाव हमारी देह से हमारा हृदय ही निकाल कर ले जाते हैं. मुजरे के स्टाइल में फ़िल्माया गया यह गीत जिसके बोल और पायल की झंकार पर मन बरबस ही झंकृत होने लगता है.

मीना कुमारी को नृत्य की देवी कहना ही उचित होगा क्योंकि शायद वही एक ऐसी अदाकारा हैं जिनके चेहरे का हर एक भाव तक नृत्य करता प्रतीत होता है .
'चलते चलते यूँ ही कोई मिल गया था
सरे राह चलते चलते
वहीँ थम के रह गयी है,
मेरी रात ढलते-ढलते.'

पहली नज़र का ये प्रेम जिस पर रात ही क्या दिल भी ठहर जाता है. कोई राह चलते यूं अचानक ऐसे मिल गया हो कि आज उसके इंतज़ार में प्रेमिका की ही तरह रात भी ढलने को कतई तैयार नहीं है क्योंकि दिल कहता है कि वो अजनबी प्रेमी दिल की पुकार सुन आएगा तो अवश्य ही !
पूरे गीत में प्रेमिका की नजरें दरवाजे पर ही लगी रहती हैं और दिल की धड़कन बाहर से आती हर आहट पर घटती-बढ़ती रहती है.

'जो कही गई ना मुझसे, वो ज़माना कह रहा है
के फ़साना बन गयी है, मेरी बात चलते चलते !'
प्रेमिका अपने प्यार की जिस बात को किसी से कहना नही चाह रही और सबसे छुपाना चाह रही है, वो बात उसका चेहरा देखकर हर कोई आसानी से पढ़ कर आपस में उसके चर्चे कर रहा है. क्योंकि ये कहा जाता हे कि प्रेम छिपाए नही छिपता और किसी भी प्यार करने वाले के चेहरे पर इसकी रौनक अलग ही दिखती है.

'शब-ए-इंतज़ार आखिर,
कभी होगी मुख़्तसर भी
ये चिराग बुझ रहे हैं,
मेरे साथ जलते जलते
यूँ ही कोई मिल…'
अपने अजनबी प्रेमी का इंतज़ार करती प्रेमिका को पूरा विश्वास है कि उसके इंतज़ार की लंबी रात ख़त्म जरूर होगी. और केवल ये चिराग ही नहीं बल्कि इंतज़ार करते करती प्रेमिका खुद भी भीतर से कहीं न कहीं अपने प्रेमी के विरह में तिल तिल कर जलती खत्म हो रही है.

वैसे इस गीत वाली प्रेमिका का इंतज़ार सुखद रहा था. अंत में उनका वो अजनबी उनके विश्वास पर खरा उतरा और चिराग बुझने से पहले अपने प्रेम का वादा निभाने चला आया. परंतु कुछ बदनसीब प्रेमी ऐसे भी हैं जिनके जीवन में आज भी एक अंतहीन, काली ,शबे-इंतजार पसरी हुई है.
ईश्वर से प्रार्थना है कि ऐसी इंतजार भरी रातें किसी भी प्रेमी के जीवन में बाकी न रहें !

पूरी उम्र परेशानियों से जूझती मीना कुमारी अपने अंतिम समय लीवर की गंभीर बीमारी से लड़ते 31 मार्च 1972 को मात्र 38 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह गई।
शायद किसी और जन्म में
शायद कोई और कहीं
उनका इंतजार कर रहा होगा ,
चलते -चलते ।
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वो जाना चाहता था,तो उसे जाने दिया।न वजह पूछीन एक बार फिर सेसोचने को कहाऔर न फिर कभी लौटने के इरादे को लेकरउसका मन टटोला,...
10/12/2024

वो जाना चाहता था,
तो उसे जाने दिया।

न वजह पूछी
न एक बार फिर से
सोचने को कहा
और न फिर कभी
लौटने के इरादे को लेकर
उसका मन टटोला,

बगैर किसी आस के
बगैर किसी उम्मीद के
उसे जाने दिया ।

अपनी सोच से,
यादों की खोज से
सुनहरे ख्वाब से
अपनेपन के अहसास से
बातों की मिठास से
वादों के हिसाब से,
जीवन की किताब से
मिटा कर जाने दिया।

क्योंकि उसने जाना चाहा
और उसकी चाहना ही तो
मायने रखती
चली आई सदा से
तो जाने दिया।

उसके जाने से
रीत जाएगा जीवन
उसके जाने से
भीग जाएगा
उदास मन
फिर भी जाने दिया।

उसके जाने के बाद
रातें मर जाएंगी
दिन डूब जाएंगे
घड़ी की याद्दाश्त
चली जाएगी
समय के नाम पर
बचेगा केवल शून्य,
बावजूद इसके
जाने दिया!

किसी से सलाह
मशविरा नहीं लिया
बिना मन मैला किए
बस
धड़कनों को काबू रख
उसे जाने दिया ।

वह जाकर रहेगा
लगा ही था
जो सच हुआ
तो जाने दिया।

एक वही तो था सदा से
उसके सिवा कोई और कभी
आ नहीं पाएगा
यह जानते हुए भी
उसे जाने दिया।

न जाने क्यों दिल को
तसल्ली है कि
ठीक ही किया जो
उसे जाने दिया
आखिर उसकी
अपनी दुनिया में
मेरे सिवा भी तो
लाखों खुशियां
हजारों गम हैं,

तो मलाल क्या
बस जी पक्का कर
उसे जाने दिया।

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