14/01/2024
बुद्धिमत्ता की बातें करना अलग स्थिति है, और वास्तव में बुद्धिमान होना अलग स्थिति है। दोनों में बहुत अंतर है।
"बुद्धिमत्ता की बातें तो प्रायः बड़ी उम्र के लोग करते हैं। क्योंकि उन्होंने 60/70 वर्ष तक जीवन में बहुत ठोकरें खाई हैं। बहुत दुख झेले हैं। उनके अनुभव से जो बातें निकलती हैं, वे बुद्धिमत्ता की होती हैं।"
बुद्धिमत्ता की बातें करने वाले दूसरे लोग वे होते हैं, "जिनको छोटी उम्र में ही अनेक आपत्तियां झेलनी पड़ी हों। जैसे किसी की माता की मृत्यु हो गई, किसी के पिता की मृत्यु हो गई। कहीं पर माता-पिता का टकराव होने से उनका संबंध विच्छेद अर्थात तलाक हो गया, उनके बच्चों को भी बहुत से कष्ट बचपन में ही भोगने पड़ जाते हैं। जिससे वे छोटी उम्र में बुद्धिमान बन जाते हैं, और वे भी अपने अनुभव के आधार पर बुद्धिमत्ता की बातें करते हैं।"
और बुद्धिमत्ता की बातें करने वाले "तीसरे लोग, वे बच्चे हैं जिन्होंने स्वयं तो बचपन में कोई विशेष दुख नहीं भोगे, परंतु उनके माता-पिता और दादा दादी आदि ने उन्हें कुछ बातें सिखा दी," और कहा, कि "तुम इन बातों को रट लो, याद कर लो, फिर मंच पर सुनाना।" उन छोटे बच्चों ने भी बड़ों के कहने पर कुछ बुद्धिमत्ता की बातें रट लीं, और मंच पर सुना दीं। इस प्रकार से तीन तरह के लोग बुद्धिमत्ता की बातें करते हैं।
"परंतु इन तीनों में से पहले प्रकार के लोग, जो बुढ़ापे में बुद्धिमत्ता की बात करते हैं, उनका तो जीवन चला गया। वे, बातें तो बहुत अच्छी करते हैं, परंतु शरीर में शक्ति सामर्थ्य के घट जाने से बुद्धिमत्ता पूर्ण बातों पर आचरण उतना नहीं कर पाते।"
दूसरे लोग, "जिन बच्चों ने बचपन में ही बहुत दुख भोगे, वे भी बुद्धिमत्ता की बहुत बातें करते हैं, और काफी मात्रा में वे उन पर आचरण भी करते हैं, क्योंकि उनके शरीर में अभी काफी शक्ति बची हुई होती है। इसलिए उनकी प्रगति कुछ अच्छी होती है।"
परंतु तीसरे प्रकार के लोग, "जो छोटे बच्चे होते हैं, जिन्हें अपने जीवन का कोई विशेष अनुभव नहीं होता, वे माता-पिता और दादा दादी आदि के कहने पर बुद्धिमत्ता की बातें रट कर मंच पर सुना देते हैं। बचपन में तो वे, वैसा कर लेते हैं, परंतु जवानी के आने पर वे अब रटी रटाई बातों पर आचरण नहीं कर पाते। इसलिए वे भी कोई अधिक बुद्धिमान नहीं कहलाते। और उन बातों से कोई लाभ विशेष भी नहीं ले पाते।"
सारी बात को कहने का सार यह है, कि "चाहे आप ऊपर बताए तीनों में से किसी भी वर्ग के व्यक्ति हों, आप बुद्धिमत्ता की केवल बातें ही न करें, बल्कि उन पर आचरण भी करें। तभी जीवन सफल होगा, अन्यथा नहीं।