विक्रम सिंह चौहान vikey Thkur

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विक्रम सिंह चौहान vikey Thkur सामाजिक कार्यकर्ता

14/07/2021

🥰🥰🥰🥰

अभिनव लोकतांत्रिक पार्टी का बहुत-बहुत आभार जिसने मुझे इस काबिल समझा इस पद के काबिल समझा 🙏🙏🙏
09/07/2021

अभिनव लोकतांत्रिक पार्टी का बहुत-बहुत आभार जिसने मुझे इस काबिल समझा इस पद के काबिल समझा 🙏🙏🙏

बहुत बहुत आभार

बहुत बहुत आभार
04/07/2021

बहुत बहुत आभार

राम राम दोस्तो क्या यह घटना बीदासर की है अगर ह तो अब तक सब चुप क्यों है  लापरवाह विधुत विभाग
26/06/2021

राम राम दोस्तो क्या यह घटना बीदासर की है
अगर ह तो अब तक सब चुप क्यों है
लापरवाह विधुत विभाग

होल सेल रेट में उपलब्द
16/06/2021

होल सेल रेट में उपलब्द

🙏🙏आप सभी को वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप सिंह जी की जन्म जयंती पर हार्दिक शुभकामनाएंदृढ़ निश्चय स्वाभिमानी लोहा पुरुष जिन्...
13/06/2021

🙏🙏आप सभी को वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप सिंह जी की जन्म जयंती पर हार्दिक शुभकामनाएं
दृढ़ निश्चय स्वाभिमानी लोहा पुरुष जिन्होंने कभी हार नहीं मानी हर भारतीय का गौरव हर इंसान का स्वाभिमान है महाराणा प्रताप सिंह जी
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉

11/06/2021

अटल बिहारी वाजपेई जी की कविता

🚩जय श्री राम🚩🙏🏻🙏🏻जुड़े मेरे फेसबुक और YouTube channel से https://youtube.com/channel/UCTR-bg7urvvtGYb8pbbR25A      🙏🏻फेस...
11/06/2021

🚩जय श्री राम🚩
🙏🏻🙏🏻
जुड़े मेरे फेसबुक और YouTube channel से
https://youtube.com/channel/UCTR-bg7urvvtGYb8pbbR25A

🙏🏻फेसबुक पेज लिंक 🙏🏻
https://www.facebook.com/विक्रम-सिंह-चौहान-vikey-Thkur-1681998925183208/

आप का साथ ही हमारा विकास ह
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

श्री महाराणा प्रताप एकता मंच संगठन सुरत गुजरात💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐सभी हिंदू भाइयों से निवेदन है कि एकता रखें एकता में .....

06/06/2021

हिंदू ह्रदय सम्राट अटल बिहारी वाजपेई जी जिनके द्वारा लिखी गई कविता हिन्दू एक बार जरूर सुने
🙏🙏🙏
मैं तो समाज का थाती हु
में तो समाज का हु सेवक
🙏🙏🙏🙏

05/06/2021

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, बार बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुट्ठी उसकी खाली हर एक बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

04/06/2021

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, बार बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुट्ठी उसकी खाली हर एक बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

04/06/2021

जय श्री राम

04/06/2021

जय श्री राम

03/06/2021

मां

G.n. Is ko aik bar padna aap sab
07/06/2020

G.n. Is ko aik bar padna aap sab

07/06/2020

Subh ratare

01/09/2018

जय माता जी की सब को

*जय माता जी जय श्री राम* 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏श्री महाराणा प्रताप ऐकता मंच                    सूरत ...................🙏................
13/08/2018

*जय माता जी जय श्री राम*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

श्री महाराणा प्रताप ऐकता मंच
सूरत ...................🙏...................

*आज वीर दुर्गादास सिंह राठौड़*
जी का अवतरण दिवस है नमन है उन महान योद्धाओं को जिन्होंने अपनी मातृभूमि को ही सबसे बड़ा समझा
और हंसते हंसते अपनी मातृभूमि के लिए बलिदान दिया और निस्वार्थ से मातृभूमि की रक्षा की

*दुर्गा दास राठौड़*
🗡🗡🗡🗡🗡🗡🗡

13 अगस्त 1638 – 22
नवम्बर 1718
भारत के मारवाड़ क्षेत्र के राठौड़ राजवंश के एक मंत्री थे। वे महाराजा जसवंत सिंह के निधन के बाद कुँवर अजित सिंह के सरांक्षक बने। उन्होंने मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब को भी चुनौती दी और कई बार ओरंग़ज़ब को युद्ध में पीछे हटने ओर संधि के लिए मजबूर किया और कई बार युद्ध में हराया।

दुर्गादास, मारवाड़ शासक महाराजा जसवंत सिंह के मंत्री आसकरण राठौड़ के पुत्र
अतः दुर्गादास का पालन-पोषण लुनावा नामक गाँव में हुआ। इनका जन्म सालवाॅ कल्ला में हुआ था।

सुचना प्रकोष्ट
सूरत गुजरात

*जय माता जी* 🙏🚩
*जय राजपुताना🙏* 🚩
*जय हिंदू सम्राट* 🙏🚩

*जय माता जी जय श्री राम जय* *भारत* 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩 *श्री महाराणा प्रताप एकता मंच*                  🚩 *सूरत* 🚩 *यह दुनिया के मा...
01/08/2018

*जय माता जी जय श्री राम जय* *भारत*
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

*श्री महाराणा प्रताप एकता मंच*
🚩 *सूरत* 🚩

*यह दुनिया के माथे की बिंदिया आई लव माय इंडिया*

🚩यह संगीत आज मैंने सुना और जो गाया ह यह दुनिया के माथे की बिंदिया आई लव माय *इंडिया* इसका क्या अर्थ है यह मैंने अपने विचारों से प्रकट किया है उसका अर्थ कि भारत दुनिया के माथे की बिंदिया है सब दुनिया से ऊपर है भारत हिंदुस्तान क्यों है ऊपर क्योंकि इस हिंदुस्तान का इतिहास रहा है बलिदान रहा है संस्कृति रही है देवी देवता हैं जिस पर हर हिंदुस्तानी गर्व करता है हिंदुस्तान में रहने वाला हर नागरिक गर्व करता किंतु आज मैं देखता हूं कि जो हिंदुस्तान संस्कृति से जाना पहचाना है उसी की संस्कृति आज हम मिटा रहे हैं उसका इतिहास हम मिटा रहे हैं

*हिंदुस्तान में* उन महान पुरुषों से लेकर बप्पा रावल राणा सांगा पोरस चाणक्य पृथ्वीराज चौहान और महाराणा प्रताप तक और उससे आगे चाहे वो हिंदुस्तान और पाकिस्तान का करगिल युद्ध भी क्यों ना हो जिसमें 527 हिंदुस्तान के लाल शहीद हुए थे किंतु हिंदुस्तान का मान-सम्मान नीचे नहीं गिरने दिया उन्होंने

तो आज हम लोगों में से क्या जलन हो गई है जो आए दिन सोशल मीडिया पर अपनी संस्कृति का खिलवाड़ करते हैं आए दिन अपनी मां बहनों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल करते हैं आए दिन अपने पूर्वजों की तस्वीरें आए दिन अपने गुरुओं की अपने भगवान की अभद्र टिप्पणियां करते हैं सोशल मीडिया पर आखिर क्यों अपनी संस्कृति को हम लोग उछल रहे हैं कि अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं जिस मिट्टी का इतिहास रहा हो दुनिया को सबक सिखाने का उसका मान सम्मान हम आज हम नीचा कर रहे हैं

*आज से सो 200 साल पहले* जब कोई स्त्री घर से बाहर निकलती थी तो सामने मिलने वाले मर्दों की गर्दन भी सम्मान से उठती थी उनका मन सोचता होगा कि धन्य है मेरी संस्कृति जिसमें देवी जैसी औरतें हैं जिनको अपनी संस्कृति सबसे प्यारी है चाहे उसके लिए वह अपना बलिदान ही क्यों ना दे दे किंतु आज का समय ऐसा हो गया संस्कृति क्या है उसका कोई मतलब नहीं रहा स्त्रियां ऐसे ऐसे कपड़े पहनकर निकलती हैं बाहर जिससे मर्दों का सर शर्म से झुकता भी है और शर्मनाक काम भी होते हैं

*भांड बॉलीवुड* जिसने आज हिंदुस्तान को उस चौखट पर खड़ा किया है जिस में आए दिन उन्हीं की बदौलत से देश में क्राइम हो रहे हैं देश में गैंग रेप हो रहे हैं क्योंकि उन लोगों ने भारत की संस्कृति इस तरह से दर्शाया है किसी भी भारतीय नागरिक को शर्म आ जाए इन लोगों ने भारत की संस्कृति को इस तरह से छिन्न भिन्न किया है जिसमें हिंदुस्तान के इतिहास मान-सम्मान संस्कृति से कोई लेना देना नहीं है

*और हमारे भारत के प्रिय प्रधानमंत्री कहते हैं डिजिटल* इंडिया अरे महोदय सबसे पहले भारत को वही भारत बनाइए जिसमें संस्कृति हुआ करती थी मान हुआ करता था एकता होती थी हर इंसान का सम्मान होता हर इंसान एक दूसरे काम आता था और लोग अपनी संस्कृति पर गौरवान्वित हुआ करते थे

मेरे कहने का अर्थ सिर्फ इतना ही है कि हिंदुस्तान की संस्कृति को मत खो आज विदेश हमारी सीख ले रहा है हमारी संस्कृति को पकड़ रहा है पर हम उसे संस्कृति को छोड़ रहे हैं हाथ जोड़कर विनती है आप लोगों से ऐसा ना करें

*मैं किसी में भेदभाव नहीं करता क्योंकि यह मेरे पूर्वजों का इतिहास रहा है*

*अगर मेरी बात आपको बुरी लगी हो तो मुझे क्षमा कर दें किंतु मुझसे रहा नहीं गया यह लिखने पर*

*मेरी भावना से लिखा गया यह मैसेज हर जगह पर फैलाना*

विक्रम सिंह चौहान
सूचना प्रकोष्ठ
7818049118

*जय माताजी* 🚩🙏
*जय श्री राम* 🚩🙏
**जय भारत* 🚩🙏

*जय माता जी जय श्री राम जय राजपूताना* 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏*एक ऐसे राजनीतिक राजपूत शासक जिन्होंने राजनीति में एक अच्छा मुकाम हासिल क...
16/07/2018

*जय माता जी जय श्री राम जय राजपूताना*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

*एक ऐसे राजनीतिक राजपूत शासक जिन्होंने राजनीति में एक अच्छा मुकाम हासिल किया*

*महाराजा करणी सिंह*
(21 अप्रैल 1924 - 6 सितंबर 1988) भी डॉ. करणी सिंह के नाम से भी जाना जाता हैं, 1950 में बीकानेर राज्य के आखिरी महाराजा के लिए महाराजा का आधिकारिक पद धारण करने के लिए, आधिकारिक तौर पर 1971 तक, जब गुप्त बटुआ और सभी शाही खिताब भारत गणराज्य द्वारा समाप्त कर दिए गए थे। वह एक राजनीतिज्ञ भी थे, जो 1952 से 1977 तक 25 साल तक लोकसभा के सांसद के रूप में सेवा की, जिन्होंने हर बार 100000 वोटों से जीत की प्राप्ति की किंतु एक चुनाव में सिर्फ 98000 वोट आने की वजह से राजनीति से सन्यास ले लिया बल्कि 98000 हजार वोटों से भी उनकी जीत हुई थी

उनको लगता था की जनता का प्रेम उनके प्रति कम हो गया है इसलिए उन्होंने राजनीति से सन्यास ले लिया

*और एक है आज के नेता जो सिर्फ वोटों के लिए मरते हैं*

जीवनसाथी
सुशीला कुमारी (वि॰ त्रुटि: अमान्य समय।)
जन्म
21 अप्रैल 1924
बीकानेर, बीकानेर प्रांत, ब्रिटिश भारत
मृत्यु
6 सितम्बर 1988 (उम्र 64)
बीकानेर हाउस, नई दिल्ली, भारत

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

21 अप्रैल 1924 को बीकानेर के रियासत में राजकुमार करणी सिंह के रूप में पैदा हुए, सिंह की पहली स्कूली शिक्षा वही हुई, जिसके बाद उन्होंने सेंट स्टीफंस कॉलेज , दिल्ली और सेंट जेवियर्स कॉलेज , बॉम्बे में पढ़ाई की थी, जहां उन्होंने बीए से इतिहास और राजनीति विज्ञान में किया।

कैरियर संपादित करें
उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में सक्रिय सेवा देखी, अपने दादा के साथ मध्य पूर्व में सेवा, बी एच बी जनरल सर गंगा सिंह , बीकानेर के 23 महाराजा 1950 में प्रिंस करनी अपने पिता, एचएच लेफ्टिनेंट-जनरल महाराजा सर सादुल सिंह से सफल हुए।

1952 में, युवा महाराज करणी सिंह को स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में बीकानेर लोकसभा क्षेत्र से भारत के लोकसभा (निचले सदन) में संसद सदस्य चुना गया, विभिन्न मंत्रालयों की कई परामर्शदात्री समितियों में सेवा कर रही है और 1977 तक वे सांसद रहे।

1964 में उन्हें बॉम्बे यूनिवर्सिटी से डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी की डिग्री प्राप्त हुई थी, उनके सिद्धांत के लिए बीकानेर शाही परिवार का केंद्रीय अधिकार (1465-1949) के साथ संबंध था।

वह राजस्थानी भाषा के प्रबल समर्थक थे और भारतीय संविधान के 14 वें कार्यक्रम में शामिल करने के लिए तर्क दिया था।

साथ ही साथ कई खेलों में, उनके हितों में फोटोग्राफी और पेंटिंग शामिल थी।

1980 में महाराजा करणी सिंह ने अपनी पिछली ओलंपिक खेलों में भाग लिया, और 4 सितंबर 1988 को उनका निधन हो गया।

*विक्रम सिंह चौहान*
*महाराणा प्रताप एकता मंच सूरत*
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*हालात को देखो*जिन जिन भाइयों ने नरपत सिंह की मदद की है उन सभी का आभार व्यक्त करता हूं जरूर देखिए सच्चाई क्या है क्योंकि...
11/07/2018

*हालात को देखो*
जिन जिन भाइयों ने नरपत सिंह की मदद की है उन सभी का आभार व्यक्त करता हूं जरूर देखिए सच्चाई क्या है क्योंकि इंसान हाथ कब फैलाता है जब इंसान को जरूरत होती है मजबूर हो जाता है तब ही हो हाथ फैलाता है मैं इस टीवी चैनल का भी बहुत-बहुत आभार व्यक्त करता हूं सभी लोगों तक यह बात पहुंचाई आप सभी से निवेदन है जितनी हो सके उनकी हेल्प जरुर करें और सरकार ने भी कदम उठाए हैं अगर इस परिवार का इलाज संभव हो गया तो यह मान जाएंगे कि संसार में इंसानियत वह इंसानों में भगवान बसने वाली बात जरूर होगी इतने दिन बात उजागर नहीं थी लेकिन अब हुई है तो जरूर इनको फायदा मिलेगा आप सभी का jay rajputana jay mata ji

03/07/2018

🙏 *जय माता जी सभी को* 🙏
*पृथ्वीराज चौहान सिंह जी के इतिहास की कुछ जानकारी*
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

चौहान वंश के हिंदू क्षत्रिय राजा
पृथ्वीराज चौहान ( ( सुनें)) (संस्कृत: भारतेश्वरः पृथ्वीराजः Prithviraj Chavhan) (सन् 1178-1192) चौहान वंश के हिंदू क्षत्रिय राजा थे, जो उत्तर भारत में १२ वीं सदी के उत्तरार्ध में अजमेर (अजयमेरु ) और दिल्ली पर राज्य करते थे। वे भारतेश्वर, पृथ्वीराजतृतीय, हिन्दूसम्राट्, सपादलक्षेश्वर, राय पिथौरा इत्यादि नाम से प्रसिद्ध हैं। भारत के अन्तिम हिन्दूराजा के रूप में प्रसिद्ध पृथ्वीराज १२३५ विक्रम संवत्सर में पंद्रह वर्ष (१५) की आयु में राज्य सिंहासन पर आरूढ हुए। पृथ्वीराज की तेरह रानीयाँ थी। उन में से संयोगिता प्रसिद्धतम मानी जाती है। पृथ्वीराज ने दिग्विजय अभियान में ११७७ वर्ष में भादानक देशीय को, ११८२ वर्ष में जेजाकभुक्ति शासक को और ११८३ वर्ष में चालुक्य वंशीय शासक को पराजित किया। इन्हीं वर्षों में भारत के उत्तरभाग में घोरी (ग़ोरी) नामक गौमांस भक्षण करने वाला योद्धा अपने शासन और धर्म के विस्तार की कामना से अनेक जनपदों को छल से या बल से पराजित कर रहा था। उसकी शासन विस्तार की और धर्म विस्तार की नीत के फलस्वरूप ११७५ वर्ष से पृथ्वीराज का घोरी के साथ सङ्घर्ष आरंभ हुआ।
भारतेश्वर [1] पृथ्वीराज
अन्तिमहिन्दुराजरूप में प्रसिद्ध पृथ्वीराज

अजयमेरु के दुर्ग में स्थित पृथ्वीराजतृतीय की प्रतिमा
अधिकार
काल
११७८-११९२
राज्याभिषेक
११७८
पूर्वज
सोमेश्वर चौहान
उत्तराधिकारी
हरिराज चौहान
परिवार
पिता
सोमेश्वर चौहान
माता
कर्पूरदेवी
पुत्र
गोविन्द चौहान
राज्ञीयां
जम्भावती पडिहारी
पंवारी इच्छनी
दाहिया
जालन्धरी
गूजरी
बडगूजरी
यादवी पद्मावती
यादवी शशिव्रता
कछवाही
पुडीरनी
शशिव्रता
इन्द्रावती
संयोगिता गाहडवाल
सन्तान
हरिराज, पृथा
वंश
चौहानवंश
जन्म
१२/३/१२२० भारतीयपञ्चाङ्ग के अनुसार,
१/६/११६३ आङ्ग्लपञ्चाङ्ग के अनुसार
पाटण, गुजरातराज्य
मृत्यु
११/१/१२४९ भारतीयपञ्चाङ्ग के अनुसार,
11 मार्च 1192 (उम्र 28) आङ्ग्लपञ्चाङ्ग के अनुसार
अजयमेरु (अजमेर), राजस्थानराज्य
धर्म
हिन्दुधर्म
उसके पश्चात् अनेक लघु और मध्यम युद्ध पृथ्वीराज के और घोरी के मध्य हुए।विभिन्न ग्रन्थों में जो युद्ध सङ्ख्याएं मिलती है, वे सङ्ख्या ७, १७, २१ और २८ हैं। सभी युद्धों में पृथ्वीराज ने घोरी को बन्दी बनाया और उसको छोड़ दिया। परन्तु अन्तिम बार नरायन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज की पराजय के पश्चात् घोरी ने पृथ्वीराज को बन्दी बनाया और कुछ दिनों तक 'इस्लाम्'-धर्म का अङ्गीकार करवाने का प्रयास करता रहा। उस प्रयोस में पृथ्वीराज को शारीरक पीडाएँ दी गई। शरीरिक यातना देने के समय घोरी ने पृथ्वीराज को अन्धा कर दिया। अन्ध पृथ्वीराज ने शब्दवेध बाण से घोरी की हत्या करके अपनी पराजय का प्रतिशोध लेना चाहा। परन्तु देशद्रोह के कारण उनकी वो योजना भी विफल हो गई। एवं जब पृथ्वीराज के निश्चय को परिवर्तित करने में घोरी अक्षम हुआ, तब उसने अन्ध पृथ्वीराज की हत्या कर दी।

एक एव सुहृद्धर्मो निधनेऽप्यनुयाति यः।
शरीरेण समं नाशं सर्वम् अन्यद्धि गच्छति॥ ८.१७॥ मनुस्मृतिः

अर्थात्, धर्म ही ऐसा मित्र है, जो मरणोत्तर भी साथ चलता है। अन्य सभी वस्तुएं शरीर के साथ ही नष्ट हो जाती हैं। इतिहासविद् डॉ. बिन्ध्यनाथ चौहान के मत अनुसार पृथ्वीराज ने उक्त श्लोक का अन्तिम समय पर्यन्त आचरण किया।
बाल्यकाल और परिवार
१२२० विक्रम संवत्सर ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष की द्वादशी (१२/३/१२२०) तिथि को तदनुसार ग्रेगोरियन पंचाग के ११६३ जून-मास के प्रथम (१/६/११६३) दिनाङ्क को गुजरात राज्य के पाटण पत्तन में पृथ्वीराज का जन्म हुआ[2]पृथ्वीराज विजय महाकाव्य में ये उल्लेख मिलता है।
{{cquote|ज्येष्ठत्वं चरितार्थतामथ नयन-मासान्तरापेक्षया,
ज्येष्ठस्य प्रथयन्परन्तपकया ग्रीष्मस्य भीष्मां स्थितिम्।
द्वादश्यास्तिथि मुख्यतामुपदेशन्भोनोः प्रतापोन्नतिं,
तन्वन्गोत्रगुरोर्निजेन नृपतेर्यज्ञो सुतो जन्मना॥ [3]
तब पाटण पत्तन अण्हिलपाटण के नाम से प्रसिद्ध था। तथा पाटण न केवल महानगर था, अपि तु गुजरात राज्य की राजधानी भी था। पृथ्वीराज के पिता सोमेश्वर, माता कर्पूरदेवी थे। पृथ्वीराज के अनुज का नाम हरिराज, छोटी बहन का नाम पृथा था। पृथ्वीराज की तेरह रानीयाँ थी। पृथ्वीराज का एक पुत्र था, जिसका नाम गोविन्द था।
इतिहास में वर्णन मिलता है कि, पुत्र के जन्म के पश्चात् पिता सोमेश्वर अपने पुत्र का भविष्यफल बताने के लिए राजपुरोहितों को निवेदन करते हैं। उसके पश्चात् बालक का भाग्यफल देख कर राजपुरोहितों ने "पृथ्वीराज" नामकरण किया। पृथ्वीराज विजय महाकाव्य में नामकरण का उल्लेख प्राप्त है -
{{cquote|पृथ्वीं पवित्रतान्नेतुं राजशब्दं कृतार्थताम्।
चतुर्वर्णधनं नाम पृथ्वीराज इति व्यधात्॥ ३०॥ [4]
पृथ्वी को पवित्र करने के लिए और "राज" शब्द को सार्थक बनाने के लिए इस राजकुमार का नामकरण "पृथ्वीराज" किया गया है। 'पृथ्वीराज रासो' काव्य में भी नामकरण का वर्णन करते हुए चन्द्रबदाई लिखते हैं –

यह लहै द्रव्य पर हरै भूमि।
सुख लहै अंग जब होई झूमि॥

पृथ्वीराज नामक बालक महाराजाओं के छत्र अपने बल से हर लेगा। सिंहासन की शोभा को बढाएगा अर्थात् कलियुग में पृथ्वी में सूर्य के समान देदीप्यमान होगा।
कुमारपाल के शासन में चालुक्यों के प्रासाद में जन्मा पृथ्वीराज बाल्यावस्था से ही वैभवपूर्ण वातावरण में बड़ा हुआ। वैभव सम्पन्न प्रासाद में पृथ्वीराज के परितः (चारों ओर) परिचायिकाओं का बाहुल्य था। दुष्ट ग्रहों से बालक की रक्षा करने के लिए परिचायिकाएं भी विभिन्न मार्गों का अवलम्बन करती थीं। पृथ्वीराज विजय महाकाव्य में महाकवि जयानक द्वारा ये वर्णन प्राप्त है।
दशावतार मुद्रित कण्ठाभरण (कण्ठ का आभूषण) और दुष्टग्रहो से रक्षा के लिए व्याघ्रनख से निर्मित आभरण परिचायिकाओंने बालक को पहनाया था (व्याघ्र के नख को धारण करना मङ्गल मानते है। अतः राजस्थान में परम्परागत रूप से व्याघ्र के नख को सुवर्ण के आभरण में पहनते थे।)।
बालक के कृष्ण केश और मधुकर वाणी मन को मोहित करते थे। सुन्दर ललाट पर किया गया तिलक बालक के सौन्दर्य में और वृद्धि कर रहा था। उज्जवल दन्त हीरक जैसे आभायुक्त थे। नेत्र में किया गया अञ्जन आकर्षण बढाता था। घुटनों द्वारा जब बालक यहाँ वहाँ घुमता था, तब उसके वस्त्र धूलिकामय होते थे। खेलते हुए पुत्र को देख कर माता कर्पूरदेवी अपने पुत्र का कपोल चुम्बति थी।

मनिगन कंठला कंठ मद्धि, केहरि नख सोहन्त
घूंघर वारे चिहूर रुचिर बानी मन मोहन्त
केसर समुंडि शुभभाल छवि दशन जोति हीरा हरन।
नह तलप इक्क थह खिन रहत, हुलस हुलसि उठि उठि गिरत॥
रज रंज्जित अंजित नयन घुंटन डोलत भूमि।
लेत बलैया मात लखि भरि कपोल मुख चूमि॥

इस प्रकार अण्हिलपाटण के सहस्रलिङ्ग सरोवर और अलङ्कृत सोपानकूप के मध्य में स्थित राजप्रासाद के विशाल भूभाग में पृथ्वीराज का बाल्य काल व्यतीत हुआ।
अभ्यास
चालुक्य वंश के प्रासाद से जब सोमेश्वर अजमेरु (अजमेर) गए, तब उनके साथ उनकी पत्नी कर्पूरदेवी, दो पुत्र पृथ्वीराज और हरिराज थे। १२२६ विक्रम संवत्सर में [5]गुजरात राज्य से जब सोमेश्वर अजमेरू प्रदेश में स्थानान्तरित हुए, तब पृथ्वीराज की आयु पांच वर्ष थी। पृथ्वीराज का अध्ययन अजयमेरु प्रासाद में और विग्रहराज द्वारा स्थापित सरस्वती कण्ठाभरण विद्यापीठ में (वर्तमान में वो विद्यापीठ 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा' नामक 'मस्जिद्' है) हुआ। प्रासाद और विद्यापीठ के प्राङ्गण में युद्धकला और शस्त्र विद्या का ज्ञान पृथ्वीराज ने प्राप्त किया। यद्यपि आदिकाल से ही शाकम्भरी के चौहान वंश स्रामाज्य की राजभाषा संस्कृतम् थी, तथापि अन्य भाषाओं में भी वाग्व्यवहार होता था। परन्तु संस्कृत आदिकाल से शाकम्भरी की राजभाषा थी ये प्राप्त शिलालेखों से ज्ञात होता है। विग्रहराज द्वारा और उनके राजकवि द्वारा रचित ग्रन्थों से भी अपने संस्कृत ज्ञान का प्रदर्शन किया है। विग्रहराज के राजकवि सोमदेव ने 'ललितविग्रहराजः' नामक नाटक की रचना की थी। उस नाटक में उन्होंने प्रचलित छः भाषाओं का कुशलता से उपयोग किया। शिला लेखों के विस्तृत अध्ययन से पता चलता है कि, चौहान वंश के काल में मुख्यतया छः भाषाएँ प्रचलित थीं। वे इस प्रकार हैं - संस्कृत, प्राकृत, मागधी, पैशाची, शौरसेनी और अपभ्रंश भाषा[6][7][8]।
पृथ्वीराज विजय में उल्लेख है कि, पृथ्वीराज चौहान छओं भाषा में निपुण थे [9][10]। छः भाषाओं के अतिरिक्त पृथ्वीराज ने मीमांसा, वेदान्त, गणित, पुराण, इतिहास, सैन्य विज्ञान और चिकित्सा शास्त्र का भी ज्ञान प्राप्त किया था। वह सङ्गीत कला और चित्र कला में भी प्रवीण थे [11][12]। पृथ्वीराज रासो काव्य में उल्लेख है कि, धनुर्विद्या में पारंगत पृथ्वीराज शब्दभेदी बाण को चलाने में भी सक्षम थे। पृथ्वीराज अश्व नियन्त्रण विद्या और गज नियन्त्रण विद्या में विचक्षण थे।[13]। इस प्रकार विविध विद्याओं के अर्जन करते हुए पृथ्वीराज तरुणावस्था को प्राप्त हुए।
सोमेश्वर की मृत्यु और पृथ्वीराज का राज्याभिषेक
सोमेश्वर का अन्तिम शिलालेख आंवल्दा से प्राप्त होता है। वो शिलालेख १२३४ विक्रम संवत्सर भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी (४/६/१२३४) को शुक्रवार के दिन, तदनुसार ग्रेगोरियन गणना में १८ अगस्त ११७८ को वह शिलालेख प्रस्थापित किया गया। उसी वर्ष में पृथ्वीराज का प्रथम शिलालेख बडल्या से प्राप्त होता है। १२३५ विक्रम संवत्सर चैत्र मास की शुक्ल चतुर्थी, तदनुसार १४ मार्च ११७९ को वो शिलालेख प्रस्थापित हुआ था। सोमेश्वर के निधन के पश्चात् पृथ्वीराज का राज्याभिषेक हुआ।
पृथ्वीराज रासो काव्य में उल्लेख है कि,

मृगशिरा नक्षत्र व सिद्धयोग में कुमार पृथ्वीराज, राजा पृथ्वीराज बने।

शुभ मुहूर्त में पृथ्वीराज स्वर्ण सिंहासन पर आरूढ हुए। ब्राह्मणों ने वेदमन्त्र गान के साथ उनका राजतिलक किया। पृथ्वीराज के राज्याभिषेक के अवसर पर प्रासाद की शोभा आह्लादक थी। सभी सामन्तों द्वारा जय घोष हुआ और राजधानी में शोभा यात्रा हुई। शोभा यात्रा में हाथी पर आरूढ पृथ्वीराज के ऊपर नगर जनों ने पुष्प वर्षा की। सभी पृथ्वीराज की दीर्घायुष्य की प्रार्थना कर रहे थे। १२३५ विक्रम संवत्सर में पृथ्वीराज पंद्रह वर्ष (१५) के हुए थे। अतः माता कर्पूरदेवी ही अल्पवयस्क पृथ्वीराज की संरक्षिका के रूप में राज्यकार्य का वहन करती थीं।
शासन व्यवस्था
पृथ्वीराज की शासन व्यवस्था का वर्णन विभिन्न ग्रन्थों में प्राप्त होता है।[14]
सेनापति
१. स्कन्द – ये गुजरात राज्य के नागर ब्राह्मण थे। वे सेनापति के साथ साथ साम्राज्य के दण्डनायक भी थे।
२. भुन्नेकम्मल्ल – कर्पूरदेवी के चाचा थे।
३. उदयराज
४. उदग – मेडता प्रदेश के सामन्त थे।
५. कतिया – वीकमपुर के मण्डलेश्वर थे।
६. गोविन्द – कुत्रचित् उल्लेख मिलता है कि, ये नरायन के द्वितीययुद्ध में मुहम्मद घोरी द्वारा मारे गए। परन्तु जम्मू से प्राप्त एक शिलालेख में उल्लिखित है कि, प्रदेश के नरसिंह नामक राजकुमार ने इनकी हत्या की थी।[15]
७. गोपालसिंह चौहान – देदरवा-प्रान्त के सामन्त थे।
मन्त्री
१. पं. पद्मनाभ - इनकी अध्यक्षता में अन्य मन्त्री भी थे। पृथ्वीराज विजय महाकाव्य के लेखक जयानक, विद्यापति गौड, वाशीश्वर जनार्दन, विश्वरूप और रामभट्ट। रामभट्ट ही चन्दबरदायी नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्होंने ही पृथ्वीराज रासो काव्य की रचना की थी।
२. प्रतापसिंह (इसने पृथ्वीराज के साथ द्रोह किया था। पृथ्वीराज को जब घोरी (ग़ोरी) द्वारा अन्धा किया गया था, तब प्रतापसिंह के साथ मिल कर पृथ्वीराज घोरी को बाण से मारना चाहते थे। परन्तु इस प्रतापसिंह ने घोरी को पृथ्वीराज की योजना बता दी।)
३. रामदेव
४. सोमेश्वर
सेना
पृथ्वीराज की सेना में अश्व सेना का महत्त्व अधिक था। परन्तु हस्ति (हाथी) सेना और पदाति सैनिकों की भी मुख्य भूमिका रहती थी। पृथ्वीराज जब राजा बने, तब आरम्भिक काल में उनकी सेना में ७०,००० अश्वारोही सैनिक थे। जैसे जैसे सैन्याभियान में पृथ्वीराज की विजय होती गई, वैसे वैसे सेना में भी वृद्धि होती गई। नरायन युद्ध में पृथ्वीराज की सेना में २,००,००० अश्वारोही सैनिक, पाँच सौ गज, अनेक पदाति सैनिक थे[16]। फरिश्ता नाम लेखक के अनुसार पृथ्वीराज की सेना में २ लाख अश्वारोही सैनिक और तीन सहस्र गज थे[17]। डॉ॰ शर्मा फरिश्ता द्वारा उद्धृत संख्या का समर्थन करते हैं[18]।
रानियाँ
क्रम
पृथ्वीराज की वय
रानीओं के नाम

११
जम्भावती पडिहारी

१२
पंवारी इच्छनी

१३
दाहिया

१४
जालन्धरी

१५
गूजरी

१६
बडगूजरी

१७
यादवी पद्मावती

१८
यादवी शशिव्रता

१८
कछवाही
१०
२०
पुडीरनी
११
२१
शशिव्रता
१२
२२
इन्द्रावती
१३
३६
संयोगिता गाहडवाल

कहा गए मोमबत्ती गैंग ,तख्ती लेकर घूमने वाली बॉलीवुड की हिरोइन ,डिजायनर मीडिया और कथाकथित सेकुलर नेता जो आज मंदसौर में 7 ...
30/06/2018

कहा गए मोमबत्ती गैंग ,तख्ती लेकर घूमने वाली बॉलीवुड की हिरोइन ,डिजायनर मीडिया और कथाकथित सेकुलर नेता जो आज मंदसौर में 7 साल की छोटी बच्ची के साथ दुष्कर्म करने वाले और उसे जिंदगी और मौत के बीच के छोड़ने वाले दरिंदे के खिलाफ इसलिए चुप है क्योंकि वो मुसलमान है??

मंदसौर - मौ. इरफ़ान ने ७ साल की हिन्दू बच्ची का रेप करने के बाद उसका मर्डर करने की कोशिस की

बच्ची ज़िन्दगी और मौत के बीच इंदौर के अस्पताल में लड़ाई लड़ रही हैं

👇आसिफा को अंतरराष्ट्रीय न्यूज़ बनाने वाले सिर्फ इसलिए चुप है क्यों कि नाम इरफान है यही कोई हिन्दू नाम होता तो अब तक सारी दुनिया को पता हो जाता ।

👇कहाँ गए बॉलीवुड के भांड,
👇कहाँ गया रविस, अभिसार, बरखा, राजदीप, विनोद दुआ ।
डूब के मर जाओ जो कहता है
हिंदू मुस्लिम भाई है।।
यह हिंदूओं की कायरता का ही परिणाम है
अगर यह कोई मुसलम होती तो पूरे
देश में हलचल मचा दी जाती है।।
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30/06/2018

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