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Fame and defamation doesn't matter ..always doing best for community and people  is matter of living with simplicity ......
18/12/2022

Fame and defamation doesn't matter ..
always doing best for community and people is matter of living with simplicity .....

Proud of you Sir..

शानदार ..



21/11/2016

मोदी जी, जनता त्राही माम कर रही है
आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी,

सादर नमस्कार। मैं राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में अरावली पर्वतमाला के बीच स्थित एक छोटे से गांव में रहती हूं, जहां न बिजली की व्यवस्था है और ना ही पीने के पानी की व्यवस्था है। मेरा नाम मंगली है। मेरी उम्र 65 वर्ष है, मैं विधवा हूं, मुझे हर माह सरकार की ओर से 750 रूपए पेंशन के रूप से मिलते है, इनसे मुझे भरण पोषण में मदद मिलती है। 4 बेटियां है, जो अपने-अपने ससुराल रहती है। एक बेटा है जो आपके गुजरात के राजकोट शहर में एक छात्रावास में रसोई बनाने का काम करता है।

छोटी-छोटी पहाड़ियों के बीच आधा बीघा जमीन है मोदी जी, इस जमीन के टूकड़े में केवल मक्के की फसल हो पाती है। इन्द्रदेव का आर्शीवाद रहे तो आधा बोरी मक्का हो पाता है। अन्दर की बात बता दूं - पानी की कमी है गांव में। बहुत दूर नदी के पास छोटा सा गड्ढ़ा खोदकर पानी लाती हूं। हांड़ी में राब बना कर खा पी लेती हूं। पानी व मक्के के दाणे प्रकृति से मिल जाते है पर कमबखत लूण (नमक) कहां से लाउं। नमक के लिए तो रूपए चाहिए न। और नोट आपने बंद कर दिए। जीना मुश्किल कर दिया है आपने। इतने बूरे दिन कभी नहीं देखे मोदी जी।

पहला दिन --- मैं बुढ़िया 750 रूपए से अपना खर्च चला लेती हूं। पिछले माह मैंनें बैंक से 1000 रूपए निकवाए थे। बैंक वाले बाबूजी ने 500-500 रूपए के दो नोट दिए थे। ये रूपए निकलवाने में बहुत दिक्कत आई, घर से 28 किलोमीटर दूर स्थित बैंक जाना पड़ा, वहां सुबह से शाम तक लाइन में खड़ी रही, तब जाकर नम्बर आया।
मैंनें 500 रूपए खुल्ले भी नहीं करवाए थे कि 8 नवम्बर 2016 को आपने 500-500 के नोट बंद कर दिए है और 500 व 2000 के नए नोट चालू कर दिए। मेरे सुनने में आया है कि नोटबंदी की तैयारी पिछले 6 माह से चल रही थी। इसकी खबर किसी को नहीं थी, सारी तैयारियां अंदर ही अंदर चल रही थी। अन्दर की बात थी तो हम तक तो पहुंचने का सवाल ही नहीं है। मैंनें नोट बंद होने की बात 12 नवम्बर 2016 को सुनी। लोगों से मालूम पड़ा कि 500-500 के नोट बैंक में जमा करवाकर नए नोट ले सकते है।

दूसरा दिन ---- मैं फिर 28 किलोमीटर दूर स्थित बैंक गई, वहां महिला-पुरूषों की बहुत बड़ी लाइन लगी हुई थी। मैं भी लाइन में खड़ी हुई। शाम होते-होते मेरा नम्बर आया, बैंक वाला बोला-आईडी दो। मैंनें बैंक पास बुक दी। तो वो बोला कि काला फोटो (मतदाता पहचान पत्र) या आधार कार्ड दो। मैंनें कहा रे भाई बैंक पास बुक में मेरा नाम है, फोटो है और फिर मेरा तो खाता भी तुम्हारे ही बैंक में है। पर वो करमजला नहीं माना। बोला कि कोई भी पहचान पत्र लाओगी तब ही नोट बदलूंगा। मुझे बैंक से बाहर निकाल दिया गया। अंधेरा हो चुका था। इस कस्बे में मेरी एक रिश्तेदार का मकान है मैंनें उसके वहां शरण ली।

तीसरा दिन ---- सुबह 7.30 की बस से मैं अपने घर गई। आधार कार्ड लेकर मैं फिर बैंक के बाहर आई। फोटोकॉपी करवाकर लाइन में लगी। लाइन बहुत लम्बी थी। दोपहर की 3 बज चुकी थी। लोग सुबह 5 बजे से ही कतार लगाकर खड़े थे। मुझे बताया गया था कि बैंक में सुबह 8 बजे से रात 8.30 बजे तक काम होगा। पर बैंक का दरवाजा तो एक घंटे बाद यानि शाम 4 बजे ही बंद हो गया। मैं इस आस में लाइन में खड़ी रही कि बैंक फिर खुलेगा और रात 8 बजे से पहले-पहले तो मेरा भी नम्बर आ ही जाएगा। मेरे जैसी कई औरतें कतार में खड़ी रही। रात 8 बजे तक भगदड़ मच गई। सिक्यूरिटी गार्ड ने हमें घर जाने को कह दिया। जबकि बैंक के कर्मचारी बैंक अंदर ही थे। पता नहीं सब क्या कर रहे थे अन्दर। आपके अन्दर क्या चल रहा है और बैंक के अंदर क्या चल रहा है, हमें तो मालूम ही नहीं हो पाता। सिक्यूरिटी गार्ड ने बोल दिया - घर जाओ। अब रात में मैं कहां जाउं। फिर से उसी रिश्तेदार के वहां रात बिताई।

चौथा दिन ---- अगले दिन सुबह 5 बजे ही मैं बैंक के बाहर आ गई। वहां देखा - 100-50 लोग अलाव ताप रहे थे। अपने आईडी पुफ्र की कॉपी को जमीन पर रखकर उसके उपर पत्थर रखकर कतार बना रखी थी। मुझे रोना आ गया। लेकिन मजबूरी थी, नमक, मिर्च, तेल के लिए रूपए चाहिए थे। फिर कोटे (राशन की दूकान) पर गेहूं व केरोसिन भी आ गया था। दोपहर की तीन बज चुकी थी, मैं अभी भी कतार में लगी थी। दो घंटे से मेरे आगे 15-20 लोग थे, एक भी कम नहीं पड़ा। पता नहीं अंदर क्या चल रहा था। आपके कार्यकर्ताओं ने तीन बार चाय पीला दी। दो-तीन गिलास पानी भी पीला दिया था। अब मुझे बहुत तेजी से पेशाब आ रहा था, मैं बैंक के पीछे की ओर की गली में गई वहां झाड़ियों के पीछे पेशाब कर आई। आते वक्त मैंनें देखा कि गली में सेठ लोगों की भीड़ थी वे कतार में खड़े थे। बारी-बारी से बैंक की खिड़की के पास जा रहे थे, खिड़की से एक हाथ बाहर आ रहा था जो नोटों की गड्डियां पकड़ा रहा था। अब मुझे समझ आया कि अन्दर क्या चल रहा है। मैंनें कतार में लग कर लोगों को यह बात बताई। लोगों ने हंगामा शुरू कर दिया। बैंक कर्मचारी घबरा गए। बैंक के पीछे वाली गली में खड़े सेठ भाग गए। अब हमारी कतार आगे बढ़ने लगी। तभी 4 बज गई। बैंक के दरवाजे बंद हो गए। मेरा नम्बर आज भी नहीं आया।

पांचवा दिन ---- आज लाइन में मेरे जैसी सैकड़ों महिलाएं है। मेरे गांव के भी बहुत सारे लोग लाइन में लगे है। ज्यादातर लोग मजदूरी करने वाले है। पता चला है कस्बे के सेठ ने इन्हें 4500-4500 रूपए दिए है बदलवाने के लिए। ये लोग अपने आधार कार्ड की प्रति के साथ रूपए लेकर खड़े है। कमली, छगनी, धूलकी ने बताया है कि सेठ बदले में इनको 500 रूपए देगा। मैं चार दिन लाइन में लगी। अभी तक 500-500 के दो नोट नहीं बदवा पाई हूं। सुबह 5 बजे से रात 8 बजे तक लोग लाइनों में लगे। एक भी अमीर मुझे लाइन में नहीं दिखा।

आपका फैसला बहुत अच्छा है। देश के हित में है। (आपके लोगों के डर के मारे मैं कह रही हूं)

खैर . . .बड़े-बड़े लोग बैंक के पीछे खड़े है चोरों की तरह। बैंक के पीछे की खिड़की की तरफ कुत्ते की तरह लपक रहे है। नोटबंदी के आपके फैसले से कालाधन रखने वालों की हालात पतली हो गई है। पर मोदी जी इस फैसले से हम आम जनता के सबसे बुरे दिन आ गए है।

कुछ करिए हमारे लिए . . . कुछ करिए हमारे लिए . . .
त्राही माम . . . त्राही माम . . .

आपकी शुभचिंतक
राजस्थान के अरावली क्षेत्र से आदिवासी समुदाय की मंगली

30/10/2016

दलितों पर अत्याचार नहीं करेंगे स्वीकार

कोशीथल - डॉ. भीमराव अम्बेड़कर अधिकार मंच की ओर से सामुदायिक भवन में सभा का आयोजन किया गया। इस दौरान निर्णय लिया गया कि क्षेत्र में होने वाले दलित अत्याचारों की घटनाओं को अब स्वीकार नहीं किया जाएगा। दलित अत्याचारों के विरूद्ध मंच पूरजोर आवाज उठाएगा और पीड़ित को न्याय दिलवाने के लिए कार्य करेगा। इस अवसर पर मंच के अध्यक्ष जयप्रकाश अठवाल ने कहा कि दलित अत्याचार की घटनाओं की रोकथाम को लेकर भी मंच द्वारा क्षेत्र में कार्य किया जाएगा।

सभा को सम्बोधित करते हुए दलित आदिवासी एवं घुमन्तु अधिकार अभियान राजस्थान के संयोजक लखन सालवी ने कहा कि राजनीतिक व आर्थिक हितों को साधने व दलितों के सामाजिक विकास को रोकने के लिए उन पर अत्याचार होते रहे है। दलित समुदाय बरसों से भेदभाव व सामाजिक बहिष्कार का दंश झेलते रहे है लेकिन अब यह वर्ग जागरूक हुआ है। डॉ. भीमराव अम्बेड़कर द्वारा रचित संविधान में प्रदत्त शक्तियों का उपयोग यह वर्ग करने लगा है। संवैधानिक हकों का उपयोग कर दलितों का आर्थिक व सामाजिक विकास हो रहा है जो गैर दलितों को पच नहीं रहा है इसलिए आज के समय में भी दलितों पर अत्याचार किए जा रहे है। उन्होंने कहा कि हमें एकजूट होकर इनका सामना करने की आवश्यकता है।

कार्यालय का किया उद्घाटन

सभा के बाद मंच से जुड़े सैकड़ों कार्यकर्ता रैली के रूप में बसस्टेण्ड़ पहुंचे। जहां अम्बा लाल खटीक व अतिथियों ने फीता काटकर डॉ. भीमराव अम्बेडकर अधिकार मंच के कार्यालय का उद्घाटन किया गया। इस दौरान बशीर मोहम्मद, गोवर्धन लाल सालवी, प्यार चन्द सालवी, रतन लाल खटीक, रमेश रेगर, चांद मोहम्मद शाह, रामदेव कालबेलिया, अमर चंद बंजारा, पीरू गाड़ियालौहार सहित मंच से जुड़े सैकड़ों युवा कार्यकर्ता मौजूद थे।

07/06/2016

ग्राउंड दलित रिपोर्ट-11
"दलितों के बेवाण पर बवाल"
(बड़ा महुआ-भीलवाड़ा)
शायद आजादी शब्द ही दलितों के नसीब मे नही है। आजादी के बरसों बाद भी दलितों को संविधान मे प्रदत्त अधिकारो के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ती है। भीलवाड़ा जिला मुख्यालय से 22 km दूर स्थित बडामहुआ गांव है। जहा 9 सितम्बर 2011 को बेवाण को लेकर विवाद शुरू हुआ। जो मई 2012 को जिला कलेक्टर की पहल पर सिर्फ औपचारिक रूप से समाप्त हुआ। विवाद तो समाप्त हो गया था लेकिन जातीय नफरत, भेदभाव लोगो के दिमाग मे आज भी उसी तरह से कायम है। लगातार पिछले 4 वर्ष की भांति इस बार भी वहां के रेगर समाज द्वारा जलझूलनी एकादशी पर अपने आराध्य बाबा रामदेव का बेवाण निकाला जाना था। चूंकि दलित समाज द्वारा बेवाण निकाले जाने के कारण पहले भी गांव मे काफी विवाद हुआ। रेगर समाज को गांव द्वारा 1 साल तक बहिष्कृत रखा गया। जिस कारण रेगर समाज को रोजमर्रा के जीवन के लिए के काम मे आने वाली दैनिक घरेलू वस्तु को भी 10 km दूर से लाना पड़ता था। यह विवाद 2011 मे हुआ लेकिन जब रेगर समाज द्वारा जलझूलनी एकादशी 2015 मे जिला कलेक्टर द्वारा दिए गए तय समय एवम् रास्ते पर बेवाण निकाला जा रहा था। रेगर समाज के बेवाण का समय रात्रि 8 से 10 तक का है, वही गांव वालो के बेवाण का समय शाम 6 से 8 बजे तक का है । दोनो बेवाण के रास्ते बिल्कुल अलग-अलग है। दोनो बेवाण के घाट भी अलग अलग है । आपसी टकराव भी संभव नही है।। जब समय अलग-अलग रास्ते अलग-अलग फिर विवाद केसा ?लेकिन उनकी मानसिकता मे ही विवाद घुसा भरा है। वे विवाद से ही दलितों की अक्ल ठिकाने लगाना चाहते। इसलिए तो उन्होंने ढीकोला को जलाया, डांगावास मे संहार किया। अब बड़ामहुआ मे भी वे यही करना चाहते थे। यदि ढीकोला,डांगावास और बडामहुआ के उपद्रवियों का सही से पता लगाया जाय तो सब एक ही दबंगाई जाति से है।
जिन्हें विवाद खड़ा करना है वे किसी भी बहाने या बिना बहाने भी विवाद खड़ा कर सकते है । गांव वालो का बेवाण अपने समय मे शुरू हुआ और रात्रि 8 बजे बस स्टैंड पहुंचा। बस स्टैंड पहुचने के बाद इन्हें (ग्रामीणों) गाते-नाचते हुए यहा 8:30 बज गयी। इधर रेगर समाज के बेवाण अपने तय समय मे शुरू हुआ। जिला प्रशासन द्वारा शांति व्यवस्था को संभालने हेतु भेजे गए तहसीलदार, गिरदावर एवम् पटवारी के कहने पर यानि की रेगर समाज के पास लिखित आदेश को ध्यान मे रखते हुए रेगर समाज का बेवाण 8 बजे शुरू हुआ। बेवाण अपने तय रास्ते से होते हुए 8:45 बजे बस स्टैंड पहुंचा। बस स्टैंड आने के बाद रेगर समाज का बेवाण अपने तय स्थान घाट पहुचने लगा, तभी उसी दौरान ग्रामीणों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी । हालात को देखते हुए पुलिस ने मोर्चा संभाला और ग्रामीण और रेगर समाज के बीच दीवार बन गयी । शुरुआत मे महज 30 पुलिसकर्मी होने से पुलिस ग्रामीणों को काबु नही कर पायी, जब एडिशनल एसपी अपने जाब्ते के सहित पहुंचे, तब जाकर पुलिस ग्रामीणों को काबू कर पायी । पत्थरबाजी मे तहसीलदार, पटवारी एवम् गिरदावर सहित 5 पुलिसकर्मी घायल हो गए। दबंगाई यही नही रुके । कानून को अपने हाथ मे लिया और प्रशासनिक अधिकारी की गाड़ी को आग के हवाले कर दिया । यदि वो एक प्रशासनिक अधिकारी की गाड़ी जला सकते है तो फिर दलितों को क्यों नही जला सकते थे। दलितों की बस्ती और दलितों को जलाने मे भी वे कभी नही चूकते। ये तो हम शुक्रगुजार है उन प्रशासन का जिसकी बदौलत डांगावास की पुनरावर्ती होने से बच गए वरना बड़ामहुआ भी डांगावास मे बदल चुका होता। यंहा ठीक डांगावास की तरह माहोल बनाया गया था। एक पूर्व सुनियोजित योजना थी इन लोगो की। पुलिस कार्यवाही के दौरान बरामद पेट्रोल, केरोसिन एवम् डीजल से भरी केने इस बात की गवाही दे रही थी की ग्रामीण डांगावास की पुनरावर्ती की तैयारी मे थे| डांगावास और बड़ामहुआ मे यही बड़ा फर्क था की डांगावास मे पुलिस को पता होने के बावजूद भी पुलिस वहां नही पहुंची और यंहा पुलिस ने समय पर आकर एक बड़ा हादसा होने से बचाया। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश मे ऐसी घटनाओ का होना हमारे लोकतंत्र पर धब्बा है। आजाद भारत मे आज भी ऐसी घटनाये रोजाना हो रही है जहा सिर्फ जातीय भेदभाव पर आधारित नफरत एक बड़ी अमानवीय घटना का रूप ले रही है.
लेखक- राधेश्याम रेगर (9529281047)
(दलितों के अधिकारों के लिए संघर्षरत)

07/06/2016

ग्राउण्ड दलित रिपोर्ट-10

गांव-इकरन (भरतपुर)
ठाकुरों के डर से दलितो ने छोडा गांव ! .....................................................
ठाकुर का लडका दलित लडकी को ले भागे, उसके साथ दुर्व्यवहार करे, उसके साथ छेडछाड करे, तो कोई बात नहीं लेकिन दलित लडके से ठाकुर की लडकी प्यार करे तो आसमान फट पडता है। कुछ ऐसा ही हुआ भरतपुर जिले के सेवर पंचायत समिति के चिकसाना थानान्तर्गत गांव इकरन में। इस गांव में सभी जाति के लगभग 1100 परिवार हैं। जिनमें 950 परिवार ठाकुर, 100 परिवार बधेला, 12 परिवार जाटव (अनुसूवित जाति) 20 परिवार नाई, 10 परिवार फकीर, 12 परिवार वैष्य, 2 परिवार वाल्मीकि, 2 परिवार तेली तथा 1-1 परिवार ब्राह्मण व खटीक समाज के हैं। गांव में ठाकुर जाति का बाहुल्य है इसलिए यह कहा जा सकता है कि यहां इनकी तूंती बोलती है।
गत पंचायतराज चुनावों में यहां से रनवीर सिंह जाटव सेवर पंचायत समिति के पंचायत समिति सदस्य निर्वाचित हुए क्योंकि यह वार्ड अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित था। इन्हीं रनवीर सिंह के पुत्र मनोज (24) और ठाकुर की लडकी (20) के प्रेम संबंध एक वर्ष से बताये जाते हैं। वैसे दोनों की शादी नहीं हुई है और कानूनी रूप से बालिग व कुआंरे हैं। लडका बी.ए. तक पढा है और एमुनेशन डिपो में नौकरी करता है तथा लडकी 8वीं पास है और घर पर ही रहती थी। दोनों में प्रेम संबंध कैसे बने यह तो पता नहीं लेकिन इनके प्रेम को शायद समाज स्वीकृति नहीं दे पाता यही विचार कर दोनों ने ही घर छोडने का फैसला लिया।
जब दोनों को लगा कि अलग-अलग जाति का होने के कारण खासकर लडका दलित समाज का और लडकी राजपूत समाज की तो ठाकुरों को यह बात पच नहीं पाएगी और बेरहम जमाना हमारे पवित्र संबंधों को स्वीकार नहीं करेगा, इससे अच्छा है कि कहीं दूर जाकर अपनी जिन्दगी जियेंगे, जहां कोई जाति बंधन नहीं हो और हमारा प्यार जिन्दा रह सके। ऐसा सोच कर दोनों ने ही घर छोडने का निर्णय ले लिया। ठाकुर की लडकी ने दलित लडके से रात में आकर उसे घर से ले जाने का वादा कर दिया। 22 मई 2016 की रात को लडकी द्वारा पूर्व निर्धारित समय पर दलित युवक मनोज जाटव लडकी का इशारा पाकर पहुंच गया और दोनों उनकी मंजिल को रवाना हो गये।
परिवार के लोगों को उसी दिन पता चल चुका था इसलिए सभी घरवालों ने बैठकर निर्णय लिया कि बात आगे नहीं बढे और इज्जत भी बच जाये, इसलिए दलित परिवार के लोगों को कहा कि हमारी लडकी को कहीं से भी ढूंढ कर ले आओ हम कुछ नहीं करेंगे। इस पर दलित परिवार के लोगों ने काफी कोशिश की परन्तु दानों का कोई सुराग नहीं लगा। पांच दिन बाद दिनांक 27 मई 2016 को लडकी के भाई ने पुलिस थाना चिकसाना में मनोज पुत्र रनवीर, वीरेन्द्र पुत्र चिम्मन, गौरव पुत्र तेजसिंह व अक्षय पुत्र दीपचन्द के खिलाफ एक एफ.आई.आर. अन्तर्गत धारा 363, 366व 34 आई.पी.सी. दर्ज कराई।
इस घटना के बाद ठाकुरों के डर से दलित परिवार गांव छोडकर चले गये हैं। दलित परिवारों में केवल महिलाएं व बच्चे ही हैं। दूसरी तरफ पुलिस ने दलित परिवारों पर दवाब बनाना शुरू कर दिया क्योंकि पुलिस महकमे में बैठे लोगों को भी यह हजम नहीं हो रहा है कि दलित लडका ठाकुरों की लडकी के साथ संबंध रखे। सरकार ने अन्तर्जातीय विवाह करने पर 5 लाख रूपये की योजना बना कर इसे कानूनी जामा पहनाने की कोशिश तो कर दी लेकिन ऐसे दंपत्तियों को सुरक्षा मुहैया करवाने का भी तो उपाय करे।
घटना के बाद से ही दलित अपने-अपने घरों को छोडकर पलायन कर गये तो ठाकुरों द्वारा पीडित दलितों के खाली घरों में जमकर लूटपाट की गई। जब भय कम हुआ तो महिलाएं लौटने लगी लेकिन 29 मई 2016 की रात को दलित मौहल्ले में 7-8 नकाबपोश युवक आए और श्रीमती सुनीता पत्नी गिर्राज जाटव के सिर पर देशी पिस्तौल (कट्टा) रख दिया और कहा कि हल्ला मचाया तो खत्म कर देंगे। डर के कारण दलित महिला ने चुप रहना ही बेहतर समझा। उन युवकों ने दलित के घर से गैस सिलेण्डर, चांदी-सोने के जेवरात आदि लूट लिए और बेबस दलित महिला कुछ नहीं कर पायी। इसकी सूचना दलित पीडिता ने पुलिस को भी दी लेकिन शायद पुलिस ने इस पर कोई कार्यवाही करना उचित नहीं समझा। वैसे भी पुलिस दलितों के 70 फीसदी मामलों में जो रवैया अपनाती है वही उसने यहां भी कर दिखाया। इसके बाद जिला कलेक्टर से भी दलितों ने महजरनामा देकर सुरक्षा की गुहार लगाई लेकिन प्रशासन की ओर से भी दलितों को कोई सहारा नहीं मिला।
अब डर यह भी है कि यदि लडके-लडकी वापिस आ भी गये तो क्या वे जिन्दा बच पायेंगे? ठकुराई के आगे लडकी कहीं ऑनर किलिंग की भेंट नहीं चढ जाए या लडके और लडकी या दलित परिवार को खाप पंचायत का अजीब फरमान सुनकर हमेशा के लिए गांव छोडना ना पड जाए? पुलिस और प्रशासन की बेरूखी के कारण दलितों को कहीं ठाकुरों का कोप भाजन बनना नहीं पड जाए? प्रश्न बहुत सारे मुंह बाए खडे हैं, आखिर जाति की दीवार कब तक आडे आती रहेगी? संविधान के मूल अधिकार कब तक किताबों के पन्नों तक सिमटकर रह जायेंगे? ये सवाल जवाब मांग रहे हैं उस समाज से जहां इंसानियत है, ये सवाल जवाब मांग रहे हैं उन लोगों से जो बुद्धिजीवी हैं, ये सवाल जवाब मांग रहे हैं उन राजनेताओं से जो संविधान के तहत शपथ लेते हैं, ये सवाल जवाब मांग रहे हैं उन लोगों से जो समाज के ठेकेदार बने फिरते हैं? ये सवाल जवाब मांग रहे हैं उस पुलिस से जो मानवाधिकारों की रक्षा के लिए है, ये सवाल जवाब मांग रहे हैं आप से और हमसे, जवाबों की इसी प्रतीक्षा में...
गोपाल राम वर्मा ( लेखक सामाजिक न्याय एवं विकास समिति के सचिव हैं इनसे मो. नां. 9414427200 तथा [email protected] पर सम्पर्क किया जा सकता है।)

07/06/2016

ग्राउंड दलित रिपोर्ट -9
कोटड़ी ( भीलवाड़ा )
जातिगत अपमान की अंतहीन दास्तान ..............................................................
राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के बनेड़ा थाना क्षेत्र का कोटडी गाँव आज भी सामंती अत्याचारों का गढ़ बना हुआ है .इस गाँव के निवासी पन्ना लाल बलाई ने आज भीलवाड़ा के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के समक्ष पेश हो कर अपनी व्यथा बयान की ,उनका कहना था कि जब से उसने अपने गाँव में एक अच्छा सा सुन्दर पक्का मकान बनाया है तब से वह गाँव के सामंतों के निशाने पर आ गया है ,वे उसे तरह तरह से परेशान करने में लगे है .दरअसल पन्नालाल बलाई का मकान पडौसी सामंतों से ऊँचा जो है ,क्या वह बर्दाश्त किया जा सकता है ? ऐसे प्रदेश में जहाँ पर घरों के दरवाजे तक जाति की साईज पर रखने की मजबूरी हो !
पन्ना लाल के परिवार पर विगत कई वर्षों से सामंती कहर बरपा है ,कभी उनका चारा जलाया गया तो कभी उनके यहाँ आये मेहमानों को पीटा गया .इस बार 24 मई को लक्षमण सिंह ने भरी दोपहरी दिन दहाड़े पन्नालाल के घर पर हमला किया ,घर के खिड़की दरवाजे तोड़ दिए .फर्श उखाड़ दिया और घर के बाहर खड़ी एक्सल गाड़ी के भी कांच तोड़ दिये .इतना ही नहीं बल्कि घर में रखे पांच हज़ार रूपये और भामाशाह कार्ड जैसे सारे दस्तावेज भी चुरा कर ले जाने लगा ,जब उसे रोकने की कोशिस की गई तो लक्ष्मण सिंह पथराव करने लगा और कांडी तथा बलाईटा जैसी अपमानजनक गलियाँ देकर अपमानित करने लगा .
बर्षों तक इस तरह का अत्याचार सहते सहते तंग आ चुके पन्नालाल ने इस बार दलित अधिकार कार्यकर्ताओं की मदद लेने की सोची और उन्होंने जयपुर स्थित सामाजिक न्याय समिति के सचिव गोपाल वर्मा से सम्पर्क स्थापित कर मदद मांगी .श्री वर्मा ने पीड़ित दलित पन्नालाल की अर्जी ड्राफ्ट कर दी और उन्हें बनेड़ा थाने में भेजा ताकि मुकदमा दर्ज हो सके .
पीड़ित पक्ष जब अपनी शिकायत ले कर थाने पर पंहुचा तो वहां पर पोस्टेड अधिकारी एस पी हटवाल ने जो कि खुद भी दलित है और बाबा साहब के रहमो करम से सरकारी नौकरी में है ,उसने दलित पन्नालाल की मदद करने के बजाय उसे ही धमकाया और खुले आम कहा कि जा कोई कार्यवाही नहीं होगी ,जयपुर से कार्यवाही करवा लेना .ये दलितों के नेता बनने वाले कागलों ( कव्वों ) से ही कार्यवाही करवाना ,मैं नहीं करूँगा .और उसने अपना वचन निभाया ,घटना के नौ दिन बीत जाने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं की .डॉ अम्बेडकर ने ऐसे ही लोगों के लिए आगरा में कहा था कि – मुझे मेरे ही समाज के पढ़े लिखे लोगों ने धोखा दिया है .सही बात है शासन और प्रशासन में ऐसे हजारों धोखेबाज दलित बहुजन अधिकारी कर्मचारी बैठे है ,मगर वे बाबा साहब की संतानों को न्याय देने का काम नहीं करते ,बल्कि गैरदलितों के तलुवे चाटने को ही अपनी ज़िन्दगी का उद्देश्य बनाये हुए रहते है .इसलिये इन नाकारा महाशय से भी क्या उम्मीद की जा सकती थी .
खैर ,जब पीड़ित पन्नालाल के सब्र का बांध टूट गया तो वह आज अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ज्योतिस्वरूप शर्मा के पास अपनी व्यथा ले कर पंहुचा ,उसने अपने साथ हुए पूरे घटना क्रम से पुलिस के आला अफसरान को अवगत कराया ,अंततः आरोपी लक्षमण सिंह के खिलाफ कार्यवाही के त्वरित दिशा निर्देश प्रदान किये गए .बरषों बाद आज पन्नालाल बलाई के चेहरे पर उम्मीद की भी एक झुर्री दिखलाई पड़ने लगी है ,हालाँकि न्याय और समानता का लक्ष्य अभी बहुत बहुत दूर है ,मगर उसकी तरफ कदम बढ़ चूका है और पन्नालाल ने जान लिया है कि बिन लड़े यहाँ कुछ भी नहीं हासिल हो सकता है ,इसलिए उसने संघर्ष के लिए कमर कस ली है .दशकों से दमित पन्नालाल के इस जज्बे को सलाम और क्रांतिकारी जय भीम कहना तो बनता ही है .
- भंवर मेघवंशी
( लेखक राजस्थान में दलित ,आदिवासी ,घुमन्तु और अल्पसंख्यक समुदाय के प्रश्नों पर कार्यरत है )

02/06/2016

ग्राउंड दलित रिपोर्ट -8

उदलपुरा ( भीलवाड़ा )

जहाँ पशुओं के लिये पानी है पर दलितों के लिये नहीं !.............................................................
बाबा साहब अम्बेडकर ने बरषों पहले अगस्त 1926 में पानी पर दलितों के अधिकार के लिए महाड के चवदार तालाब पर सत्याग्रह किया था .इसके बाद जब देश आजाद हुआ तो संविधान ने सार्वजनिक स्थानों से छुआछूत और भेदभाव को कानूनन ख़त्म कर दिया .बाद में अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण कानून ने दलितों के जल पर अधिकार को बाधित करने को अपराध घोषित कर दिया .देश में सत्ताएं बदल गई ,मगर मानसिकता नहीं बदली .भारत को विश्व आर्थिक शक्ति बनाने के दावे करने वालों और तरक्की के मापदंड सकल घरेलु उत्पाद को लेकर लगातार ढोल पीटने वालों से अगर कहा जाये कि आज भी भारत में लाखों गांवों में दलितों को सार्वजनिक पेयजल स्त्रोतों से पानी लेने का अधिकार नहीं है तो वे इस बात की यह कह कर खिल्ली उड़ायेंगे कि ये सब पुरानी बातें हो चुकी है .आज के दौर में यह सब नहीं होता है .
आजकल अक्सर ऐसा भी सुनने को मिलता है कि अब जातिगत छुआछूत बीते ज़माने की बात हो गई है ,अब भेदभाव जैसी बातें सिर्फ जातिवादी लोग करते है .जिन्हें दलितों के मसीहा बनने की इच्छा होती है ,वे ही लोग समाज को बांटने के लिए ऐसी विघटनकारी बातें उछालते रहते है ,जिनके कोई सर पैर नहीं होते है ,क्योंकि अब भेदभाव जैसी कोई बात नहीं बची है .
जिन्हें जाति के आधार पर हो रहे भेदभाव को अपने क्रूर और नग्न स्वरुप में देखना हो ,उन्हें राजस्थान के भीलवाड़ा जिले की आसीन्द पंचायत समिति की गांगलास पंचायत के उदलपुरा गाँव का दौरा करना चाहिये .छुआछूत की जमीनी हकीकत से रूबरू होने के लिए यह एकदम उपयुक्त गाँव है .इस गाँव में तक़रीबन 145 परिवार निवास करते है ,जिनमें 55 परिवार दलित समुदाय के है और शेष 90 परिवार अन्य पिछड़े वर्ग की कुमावत ,गुर्जर ,गाडरी तथा वैष्णव जाति के परिवार है .सर्वाधिक 80 परिवार कुमावत समाज के है .ब्राह्मण ,बनिया और राजपूत जिन्हें हम पानी पी पी कर रात दिन मनुवाद के लोग कौसते रहते है ,उनका एक भी परिवार यहाँ निवास नहीं करता है .पूरा गाँव ही दलितों और पिछड़ों का है .85 फीसदी बहुजनों और मूलनिवासियों की एकता की बात करने वालों को भी इस गाँव का दौरा करना चाहिये . दलित और पिछड़ों की एकता का राग अलापने वालों को भी जरुर उदलपुरा एक बार आना ही चाहिये ताकि वे जान सके कि आज तथाकथित पिछड़े ही दलितों पर अत्याचार ,भेदभाव और छुआछूत करने में सर्वाधिक आगे है .वर्णव्यस्था के शूद्र आज के नव सामंत ,नव ब्राह्मण और नए धन पिशाच बन गए है .वे हिंदुत्व प्रणीत ब्राह्मणवाद के शव को सिर पर लादे हुए घूम रहे है और श्रेष्ठता की ग्रंथि से ग्रंथित हो चुके है .
मैं यह बात अपने अनुभवों के साथ पूरे दावे के साथ कह सकता हूँ कि देश भर में दलित समुदाय इन कथित पिछड़ों के अत्याचारों से त्रस्त है और वे इनसे मुक्ति चाह रहे है ,इसलिये उन्हें बहुजन और मूलनिवासी की अवधारणा अब अप्रासंगिक लगने लगी है और जगह जगह पर अब दलित कथित अगड़ों के साथ जाता हुआ दिखाई पड़ रहा है .
खैर ,उदलपुरा के पिछड़े वर्ग के लोग यहाँ के दलितों को सार्वजनिक सरकारी नल से पानी नहीं भरने देते है ,पिछले एक वर्ष से दलित महिलाएं पेयजल के गंभीर संकट से जूझ रही है ,उन्हें डेढ़ किलोमीटर दूर से पानी लाने को मजबूर किया जा रहा है .गाँव में पीने के पानी की अलग अलग व्यवस्था है ,पिछड़े शूद्र अपने आप को ऊँचा समझते है और वे अपने मोहल्ले में स्थित नल पर दलितों को फटकने भी नहीं देते है .गाँव की दलित महिलाएं बताती है कि जब वे पानी लेने कुमावतों के मोहल्ले में जाती है तो उन्हें भद्दी भद्दी जातिगत गालियाँ दे कर अपमानित किया जाता है और उनके मटके फोड़ने की कोशिस की जाती है .बार बार के अपमान और धमकियों के चलते उदलपुरा की दलित औरतें अब पानी के लिए सरकारी नल पर नहीं जाती बल्कि इधर उधर भटकती रहती है .दलितों के पेयजल की समस्या के समाधान को लेकर वहां की सरकारी एजेंसियां बिलकुल भी संवेदनशील नहीं है .तीन साल पहले विधायक निधि से दलित बस्ती में एक पानी की टंकी स्वीकृत हुई थी ,जो सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ कर जस की तस ताबूत बने खड़ी है ,उसका काम पूरा भी नहीं हुआ कि फंड खत्म हो गया .उदलपुरा के जानवरों एक ही प्याऊ से पानी पी लेते है ,ग्राम पंचायत भी पशुओं की इस प्याऊ में टेंकर से पानी डलवाती है .उसे दलितों से ज्यादा पशुओं की चिंता अधिक है .
भेदभाव का यह सिलसिला यहीं खत्म नहीं होता बल्कि महात्मा गाँधी नरेगा में भी यह बदस्तूर जारी है .अव्वल तो दलितों को नरेगा में काम ही नहीं दिया जाता है .आज भी 15 से अधिक दलित परिवार रोजगार गारंटी में काम के इच्छुक है ,मगर उन्हें बार बार मांगने पर भी काम नहीं दिया जा रहा है ,जिन छह परिवारों को महिलाएं काम पर नियोजित की गई है ,उनके साथ कार्यस्थल पर भयंकर छुआछूत किया जाता है .नरेगा श्रमिक पारसी बलाई का कहना है कि हमसे पूरा काम लिया जाता है जबकि दुसरे समुदाय की औरतें बैठी रहती है ,इसके बदले में काम जे सी बी मशीन से करवाया जाता है ,जिसका पैसा श्रमिकों से वसूला जाता है .इन दलित महिलाओं का आरोप है कि उनसे हर माह 100 रुपये वसूला जाता है जबकि वे हर दिन अपना काम पूरा करती है .नरेगा का काम में मशीनों का इस्तेमाल कानूनन अवैध है ,लेकिन यहाँ पर मेट शम्भू लाल कुमावत की ओर से यह काम बेख़ौफ़ किया जा रहा है और इसके बदले में चौथ वसूली की जा रही है .
नरेगा में पानी पिलाने के काम में यहाँ पर सिर्फ पिछड़े वर्ग की महिलाओं को ही रखा जाता है .दलित स्त्रियों को पानी के काम पर रखने पर अघोषित प्रतिबन्ध लगा हुआ है ,उदलपुरा में भी ऐसा ही है ,यहाँ पर कुमावत या गुर्जर समुदाय को ही पानी के काम पर रखा जाता है ,नतीजतन दलित नरेगा श्रमिकों को पानी नहीं पिलाया जाता है ,उदलपुरा की छह दलित महिला नरेगा श्रमिक अपने साथ घर से पानी की बोतलें ले कर जाती है .अगर दिन में उनकी बोतलों में से पानी ख़त्म हो जाता है तो उन्हें ऊपर से दूर से पानी डाला जाता है ,साथ ही जातिगत उलाहने दिए जाते है कि इनकी वजह से उनका पानी अशुद्ध हो गया है ,इस तरह दिन में कईं बार अपमानित होते हुए यहाँ की दलित महिलाएं नरेगा पर काम करती है ,जहाँ पर उनका मेजरमेंट कम लिखा जाता है ताकि पूरी मजदूरी भी नहीं मिल सके .
उदलपुरा के दलितों के साथ अन्याय की दास्तान यहीं खत्म नहीं होती ,बरसात के दिनों में पूरे गाँव का पानी बहकर दलित बस्ती की तरफ आता है ,जिस नाले से पानी निकलता था ,उसे भी इस साल बंद कर दिया गया ,इसके चलते यह सम्भावना बन गई है कि जिन दलितों के कच्चे मकान है ,वे इस बार की बारिश में ढह जायेंगे .शेष दलितों को कीचड में रहने को मजबूर होना पड़ेगा .
गाँव के गैरदलितों के मोहल्ले में सरकारी सी सी रोड बना हुआ है ,जबकि दलितों को इससे जानबूझ कर वंचित किया गया है ,आज अगर देखा जाये तो यह साफ दिखाई पड़ता है कि उदलपुरा के दलित समुदाय को रोड ,पानी जैसी सुविधाओं से योजनाबद्द तरीके से वंचित किया जा रहा है ,यहाँ के दलितों ने इस अन्याय के खिलाफ कई बार कईं स्तर पर आवाज भी उठाई मगर कहीं भी कोई सुनवाई नहीं हुई ,इस बार यहाँ की दलित महिलाओं ने मोर्चा संभाला है ,आज ही दलित बस्ती की सार्वजनिक सराय में यहाँ की महिलाएं अपने पुरुषों के बराबर बैठी और उन्होंने मामले को उच्च स्तर पर ले जाने की योजना को अंतिम रूप दिया है ,कल वे जिला कलक्टर से मिलकर अपनी समस्याएं रखेगी ,उन्होंने अब एक भी और दिन अन्याय को सहने से इंकार किया है और छुआछूत ,भेदभाव और अन्याय ,अत्याचार के खात्में तक संघर्ष करने का मन बनाया है .
- भंवर मेघवंशी
( लेखक ‘ग्राउंड दलित रिपोर्ट’ के सम्पादक है )

02/06/2016

Ground Dalit Report-7
गाँव-श्यारोली, (सवाईमाधोपुर)
जहाँ आज भी दलितों का मंदिर प्रवेश वर्जित है
राजस्थान का जिला सवाईमाधोपुर रणथम्भोर टाइगर उद्यान के लिए विख्यात है लेकिन ये जिला अब दलित अत्याचार के मामलें में कुख्यात हो रहा है |डांग इलाका होने के कारण सरकार ने डांग विकास बोर्ड बनाकर यहाँ विकास के कुछ लक्ष्य भी हासिल कर लिए हों परन्तु दलित अत्याचार के मामलों में कोई कमी नहीं आई है | इनमे से कुछ ही मामले सामने आ पाते है लेकिन अधिकांश मामलों में तो रिपोर्ट ही दर्ज नहीं हो पाती और सेंकडो मामले जाति पंचायत करके दबा दिए जाते है | यहाँ पुलिस प्रशासन से ज्यादा राजनेताओं की चलती है और जिस जाति का नेता यहाँ से सांसद व विधायक होता है वह निर्णय करता है की किसमें चालान करना है और किसमें मामलें में झूठ कायम करना है |
इसी जिले की गंगापुर तहसील के वजीरपुर थानान्तर्गत गाँव श्यारोली में लगभग सभी जातियों के 1000 परिवार है, जिनमे जाट व जाटब (अनुसूचित जाति) बराबर 250-250 परिवार है| अन्य अनुसूचित जातियों में कोली, वाल्मीकि, बलाई, धोबी परिवार शामिल है| इस गाँव में आबादी के हिसाब से दलितों की हिस्सेदारी तो समान है परन्तु गाँव की परम्परा के नाम पर दलितों को मंदिर में जाने की अनुमति तक नहीं हैं |
गाँव में पुरातन समय का बना हुआ एक भैरव मंदिर है जिस पर प्रत्येक शनिवार मेला लगता है और जहाँ हजारों यात्री बाहर से भी आते है| गाँव के उक्त मंदिर में पूजा अर्चना का काम हेमराज भोपा करता है | आप अंदाज़ा लगा सकते है की इस अन्धविश्वास के काल में जहाँ हजारों लोग प्रति शनिवार आते हो वहां कितना चढ़ावा आता होगा | इसलिए गाँव के ही लोगों ने दिनांक 14/2/2013 को देवस्थान विभाग से एक ट्रस्ट रजिस्टर्ड करवा लिया परन्तु राजनीतिक प्रभाव के चलते 9/9/2015 को हेमराज भोपा को ट्रस्ट का अध्यक्ष बना दिया गया जिससे इसके प्रभाव और बढ़ गए|
इस मंदिर पर दलितों को जाने की मनाही है लेकिन गाँव के युवा दलित नेता मांगी लाल जाटब ने अपने कुछ साथियों सहित दिनांक 3/10/2015 को इस गलत परम्परा को तोड़ने का प्रयास किया तो जैसे गैर दलितों की नाक ही कट जायगी, ऐसा मानकर उनसे बलराम, ओमवीर पुत्र विजय सिंह जाट,उदयसिंह जाट , देवीसिंह ,छोट्या गुर्जर , भगवत ब्राह्मण आदि भीड़ गए और वहां उपस्थित दलित समुदाय के मांगीलाल, रेतिलाल, रामस्वरूप, शंकर, समय सिंह, हरिचरण, भगवान् सिह, रामचरण, राजू, शिवचरण व अन्य के साथ गाली गलोच कर धक्का मुक्की की गयी | दलितों ने इसकी सूचना पुलिस को भी दी परन्तु वहां वही हुआ जैसा पुलिस का रवैया रहता है और उनकी रिपोर्ट को ठन्डे बस्ते में डाल दिया आखिर दलितों ने इसे अपने सम्मान के खिलाफ मानकर कोर्ट का रास्ता अखत्यार किया और बमुश्किल दिनांक 6/11/2015 को रिपोर्ट दर्ज हो पायी |
जब प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज हो गयी तो आरोपियों ने पुनः दलित बस्तियों में आकर उन्हें धमकाया और कहा की आस पास के सभी गाँवो के लोग तुम्हे गाँव में रहने लायक नहीं छोड़ेंगे और गाँव छोडनें की धमकी तक देनें लगे | कुछ लोगों को डराकर घरों से ले गए और खाली कागजों पर हस्ताक्षर करवा लिए , इसकी सूचना भी दलितों ने पुलिस को दी परन्तु पुलिस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा | दलितों ने अपने इस प्रकरण की शिकायत सभी उच्च अधिकारियों तक को दी परन्तु परिणाम वही ढ़ाक के तीन पात निकला |
पुलिस जैसा दलितों के मामलो में प्रायः करती है वही किया और प्रकरण को दिनांक 4/12/2015 को यह कहकर झूठा साबित कर दिया की एस.सी. वर्ग के लोग मंदिर में निर्माण काम करते है फिर मंदिर में जाने से रोकने की बात गलत है, इसके अलावा गर्भ गृह में जाने से कोनसा लाभ होने वाला है, दर्शन तो बाहर से भी हो जाते है औरगर्भ गृह में केवल पुजारी ही जा सकता है | आस पास के सभी मंदिरों में यही व्यवस्था है| पुलिस ने अपनी अंतिम रिपोर्ट में यह भी अंकित किया है कि करौली जिले के प्रसिद्ध मंदिरों जैसे मदन मोहन जी मंदिर ,कैला देवी मंदिर ,रणथम्भोर के गणेश मंदिर (पुलिस का यह उदाहरण बिल्कुल गलत है , लेखक स्वयम केवल सत्य जानने के लिए रणथम्भोर के गर्भ गृह में गया है)
यद्यपि इस प्रकरण में जागरूक दलितों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है परन्तु वहां से भी क्या दलितों को न्याय मिल पायेगा, कहा नहीं जा सकता | लेखक ने पीड़ित पक्ष से इस बारे में पूर्ण वाकया जाना तो पता चला की उन्हें मंदिर में दर्शन करने की कोई चाह नहीं है उन्होंने तो केवल सम्मान के लिए ये कदम उठाया है|
देश की शासन व्यवस्था जिस संविधान के द्वारा संचालित है उसी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता का अंत कर दिया गया लिखा है| 1976 में बना नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम भी छुआछूत को समाप्त करने के लिए बनाया गया है| 1989 में अनुसूचित जाति-जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम भी बना | 31 दिसम्बर 2015 में संशोधित अधिनियम आया जो 26 जनवरी 2016 से लागू हो गया और इसके नियम भी 14 अप्रेल 2016 से मान्य हो गए है, लेकिन सारे कानूनों को पुलिस ताक पर रख कर वही करती है जो उसे करना है या जो राजनेता चाहते है| ऐसा कब तक चलेगा | दलित वर्ग को एक साथ मिलकर इसके लिए आवाज बुलंद करनी होगी और जाति की जंजीरों को तोड़कर एक होना पड़ेगा तभी हमें हमारा हक मिल पायेगा चाहे वह सामाजिक हो,चाहे राजनितिक हो, चाहे आर्थिक हो |
गोपाल राम वर्मा (लेखक सामाजिक न्याय व विकास समिति के सचिव है )
इनसे [email protected] , [email protected] ,
मो. 9414427200 पर संपर्क किया जा सकता है

02/06/2016

ग्राउंड दलित रिपोर्ट – 5
( किसी नरक से कम नहीं है बरजांगसर )
जहाँ अभी तक दलितों से जबरन मृत पशु डलवाये जा रहे है !
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राजस्थान के बीकानेर जिले की डूंगरगढ़ तहसील का गाँव है बरजांगसर .यूँ तो देश ने काफी तरक्की कर ली है ,तेज रफ़्तार से आगे बढ़ रहा है ,कानून का शासन स्थापित है ,दलित लोग दासता से मुक्त कर दिए गए है ,भेदभाव ओर छुआछुत को अपराध घोषित किया जा चुका है और किसी भी दलित को जबरन किसी भी अस्वच्छ पेशे में नहीं धकेला जा सकता है ,विशेषकर मृत पशु को निस्तारित करने जैसे काम में तो कतई नहीं .यह सब अच्छी अच्छी बातें भारत के संविधान में लिखी हुई है ,मगर बीकानेर जिले के बरजांगसर में भारत के कानून अभी लागू नहीं होते है ,अभी वहां संविधान का राज नहीं स्थापित हो पाया है ,भीमराव का विधान नहीं ,अभी भी वहां पर मनु नामक शैतान का विधान लागू है ,इसीलिए तो आज भी बरजांगसर के दलितों को जबरन मरे हुए जानवर डालने के लिए मजबूर किया जा रहा है ,इतना ही नहीं बल्कि अगर वे इसका विरोध करें तो उन्हें पुलिस ,प्रशासन और शासन में बैठे लोगों के हाथों अपमानित होना पड़ता है ,उन्हें धमकियां दी जाती है . उनके साथ ऐसा सलूक होता है कि अगर कहीं नरक नामक जगह का अस्तित्व हो तो वह भी शर्मिंदा हो जाता होगा .
बरजांगसर के दलित ,जिनमें मुख्यतः नायक और मेघवाल जैसी दो जातियां यहाँ निवास करती है ,उनसे आज तक यहाँ के जातिवादी सवर्ण मरे हुए पशु उठवाते है ओर उसे निस्तारित करवाते है .इस घृणित काम को करवा कर वहां के कथित उच्च वर्णीय लोग नदामत महसूस नहीं करते बल्कि उनका मानना है कि " इन लोगों से यह काम करवाने में क्या बुराई है ,ये तो है ही नीच ". इतना ही नहीं बल्कि मृत जानवरों को दलितों के रहने के स्थान के पास ही डलवा दिया जाता है ,ताकि उसकी दूषित हवा से दलितों का स्वास्थ्य ख़राब रहे ओर वे हर वक़्त गन्दी हवा में जीते रहे .इन मृत पशुओं के कंकालों के इर्द गिर्द आवारा कुत्ते ,गिद्द और अन्य हिंसक जानवर डेरा जमाये रहते है .कुत्ते रात भर भौंकते है ओर दलित बच्चे बच्चियों को अकेला पा कर उन पर झपटते है .दलित समुदाय के पेयजल का स्त्रोत नलकूप भी यहीं पर स्थित है ,पानी भरने के लिए वहां जाने पर मृत पशुओं की गंध नथुनों में भर जाती है ,जी मितलाने लगता है और लोग उल्टियाँ करने लगते है ,इस तरह इस भयंकर गर्मी ओर अकाल के मौसम में भी दलित पीने के पानी से भी वंचित हो जाते है .यहीं पर दलितों की आस्था के केंद्र बाबा रामसा पीर का मंदिर भी अवस्थित है ,वे उस तक भी जाना चाहे या इकट्टा हो कर कोई अध्यात्मिक गतिविधि करना चाहे तो नहीं कर सकते है .इस तरह हम देखें तो बरजांगसर के दलित आज भी गुलामी का जीवन जीने को मजबूर है .उनसे जबरदस्ती मृत जानवर उठवाये जा रहे है ओर अपने ही हाथों अपनी ही बस्ती के पास उन्हें डालने को मजबूर किया जा रहा है ,ताकि दलितों को उनकी औकात में रखा जा सके .
अब जबकि देश में अनुसूचित जाति एवं जनजाति ( अत्याचार निवारण ) संशोधन अधिनियम 2015 जैसा प्रभावी कानून लागू है जिसकी धारा 3(बी ) एवं (सी ) स्पष्ट रूप से यह कहती है कि – “ अजा जजा के किसी सदस्य के आधिपत्य के परिसर में अथवा ऐसे परिसर में प्रवेश के स्थान पर मल मूत्र ,रद्दी वस्तु ,किसी भी प्रकार की मृत लाश या कंकाल या अन्य कोई घृणाजनक पदार्थ डालेगा . ऐसी कोई चीज़ शोक पंहुचाने अथवा अपमान करने के लिए अथवा हानि करने के लिए डालेगा .” तो यह दलित अत्याचार की श्रेणी में आकर सजा योग्य अपराध माना जायेगा .लेकिन शायद बीकानेर के प्रशासन और राजनेताओं ने यह कानून नहीं पढ़ा होगा ,बरजांगसर के कतिपय जातिवादी घृणित तत्वों से तो इसकी उम्मीद करना भी बेकार ही है कि उन्होंने " कानून " नामक किसी चिड़िया का नाम भी सुना होगा ,जो यह कहता है कि अब किसी भी दलित से जबरन कोई भी काम करवाना बेगार माना जायेगा ,उनसे मृत पशु निस्तारित करवाना और उनके रहने के स्थान या उसमे प्रवेश की जगह पर कोई लाश या कंकाल डालना अपराधिक कृत्य होगा .जो यह करवा रहे है ,जिनकी उन्हें शह मिली हुई है ,वे सब तो अपराधी है ही ,मगर सबसे बड़े अपराधी वहां के सरकारी कारिन्दें है ,जिनकी जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि कमजोर वर्गों के साथ किसी तरह का अन्याय नहीं होना चाहिए .
बरजांगसर में यह सब जारी है ,वहां के सवर्ण जातिवादी तत्व बर्षों से यह अपराध खुले आम कर रहे है ,जिसकी शिकायत किये जाने पर प्रशासन ने कोई सुनवाई नहीं की है . पीड़ित दलित डूंगरगढ़ के विधायक किशना राम और बीकानेर के सांसद अर्जुनराम मेघवाल से भी मिल चुके है ,इन दलितों का आरोप है कि दोनों ही जनप्रतिनिधियों ने उनकी इस गंभीर समस्या की ओर ध्यान नहीं दिया है .इसके बाद इन पीड़ितों ने मुख्यमंत्री द्वारा शुरू किये गए संपर्क पोर्टल पर भी शिकायत दर्ज करवाई तथा जिला कलेक्टर के समक्ष व्यतिगत रूप से हाज़िर हो कर ज्ञापन भी सौंपा ,जिस पर कलक्टर ने तीन दिन में कार्यवाही का आश्वासन दिया ,मगर शिकायत के आठ दिन बाद तक कोई सुनवाई नहीं हुयी .नोवें दिन इलाके का सी आई विष्णुदत्त विश्नोई ओर तहसीलदार ओमप्रकाश जांगिड दस पन्द्रह पुलिस वालों के साथ मौके पर पंहुचे .वहां जाकर उन्होंने जो कृत्य किया ,वैसा शायद ही आजाद भारत में आज तक किसी लोकसेवक ने किया होगा ! पुलिस अधिकारी विश्नोई और तहसीलदार जांगिड ने स्वयं की मौजूदगी में दलितों से दबावपूर्वक मृत जानवर उठवाये ओर उसी जगह पर डलवाये ,जहाँ पर दलित बस्ती के पास गाँव के जातिवादी तत्व पहले से ही डाल रहे है .इस तरह प्रशासन ने इस गंभीर अपराध पर अपनी सहमती की मोहर लगा दी ,जिससे वो तत्व और हावी हो गए ,जिनका यह कहना है कि इन डेढ़ चमारों का तो काम ही यही है ,ये नीच हमारी जूतियाँ बनाते है ,इन्हें कब से मरे जानवरों से गंध आने लग गई ?
बरजांगसर के दलितों का तो यहाँ तक आरोप है कि जो पुलिस अधिकारी ओर प्रशासनिक अधिकारी गाँव में आये उन्होंने भी यही कहा कि इन ढेढ़ों से यही काम करवाओं और जरुरत पड़े तो ठोक पीट कर ठीक कर लो ,डरने की कोई जरूरत नहीं है ,आगे सब हम संभाल लेंगे .
इस नारकीय दलित स्थिति के बारे में दलित संगठनों को पता चलते ही राज्य भर में आक्रोश की तीव्र लहर दौड़ गयी है ,राजधानी में आज हुई एक बैठक में दलित मानव अधिकार संगठनों ने बरजांगसर के इस अमानवीयतापूर्ण मामले को हर स्तर तक ले जाने की ठानी है . साथ ही यह भी तय किया है कि इस गंभीर दलित अत्याचार के मामले में शामिल सरकारी अधिकारीयों व कर्मचारियों के विरुद्ध भी दलित प्रताड़ना का मुकदमा दर्ज करवाया जाये .
एक तरफ देश का प्रधानसेवक हाथ में झाड़ू लेकर देश को साफ करने में लगा है और हजारों करोड़ रुपये खर्च करके सरकार स्वच्छता के लिए अभियान चला रही है,वहीँ दूसरी और विश्व का सबसे सहिष्णु होने का दम भरने वाला समाज अपने ही लोगों के प्रति कितनी गन्दगी अपने दिल ओर दिमाग में भरे हुए है .गली गली में झाड़ू से सफाई करके सेल्फी ले रहे राष्ट्र के कर्णधारों से पूंछने को जी चाहता है कि हिन्दू धर्म के इस घृणित जातियतावाद की गंदगी को साफ करने की भी कोई योजना किसी व्यक्ति ,संगठन ,सरकार या शन्कराचार्य के पास है या वो गंदगी फ़ैलाने के अपने ऐतिहासिक स्वर्णिम अतीत की परम्परा को ही जीवित रखेंगे ?अजीब देश है यह जहाँ सफाई करने वाले नीच और गंदगी करने वाले उच्च समझे जाते है !
- भंवर मेघवंशी
( लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता है ,जिनसे [email protected] पर सम्पर्क किया जा सकता है )

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