05/06/2024
औरंगाबाद से Imtiaz jaleel की हार क्यों हुई?
(मेरा आकलन)
औरंगाबाद से मजलिस- Aimim- All India Majlis-E-Ittehadul Muslimeen की हार क्यों हुई ये जानने से पहले ध्यान में रखना ज़रूरी है कि औरंगाबाद कोई मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्र नहीं है। 1952 से 2024 तक बस 2 बार यहां से मुस्लिम उम्मीदवार जीते हैं, 1980 में सलीम काज़ी और 2019 में इम्तियाज़ जलील। 1980 के दौर में हिंदू-मुस्लिम समुदायों के बीच इतनी खाई नहीं थी, बस कांग्रेस की निशानी काफ़ी थी।
👉 2019 के चुनाव में यहां कुल 11,98,727 वोट पड़े थे, जिसमें शिवसेना-भाजपा के उम्मीदवार खैरे को 384,550, कांग्रेस उम्मीदवार झांबड़ को 91,790, निर्दलीय मराठा उम्मीदवार हर्षवर्धन जाधव को 283,798 और विजेता इम्तियाज़ जलील को 389,042 वोट मिले थे। हार-जीत का अंतर महज़ 4492 का था। इस चुनाव में AIMIM-VBA गठबंधन होने से इम्तियाज़ जलील को मुसलमानों के साथ साथ दलित-बौद्धों के वोट एक मुश्त मिले थे। इसके अलावा शिवसेना-भाजपा और निर्दलीय मराठा उम्मीदवार को 32% और 23% वोट मिलने से हिंदु समुदाय के वोटों का खड़ा विभाजन हुआ था, जिसके चलते औरंगाबाद से मजलिस की जीत मुमकिन हो सकी थी।
👉 2019 में औरंगाबाद से एक मुस्लिम उम्मीदवार, वो भी उस पार्टी के उम्मीदवार की जो कभी आज़ाद हैदराबाद देश की पक्षधर थी, की जीत से हिंदुत्ववादियों के सीनों में जैसे हैदराबादी खंजर चुभ गया था, जिसका दर्द पूरे 5 साल तक रहा। इस जीत का दर्द सिर्फ हिंदुत्ववादी दलों तक सीमित नहीं था, बल्कि गठबंधन में रही वंचित बहुजन आघाडी के नेताओं, कार्यकर्ताओं को भी था कि हमसे गठबंधन कर औरंगाबाद तो जीत लिए, मगर इस गठबंधन का लाभ अकोला और सोलापुर सीटों पर नहीं हुआ जहां जनाब प्रकाश आंबेडकर उम्मीदवार थे! उनकी शिकायत ग़लत नही थी,क्योंकि दोनों सीटों पर मुसलमानों ने पारंपरिक जुम्मनगिरी की थी। इसी के चलते कुछ ही महीनों बाद हुए विधानसभा के चुनाव में AIMIM-VBA गठबंधन टूट गया...!
👉 2019 में इम्तियाज़ जलील सांसद तो बन गए, लेकिन उसके बाद स्थानीय स्तर पर हालात बदले। बहुत से लोकल नेता, नगर निगम के पार्षद, इम्तियाज़ जलील से नाराज़गी की वजह से मजलिस छोड़कर गए। मुसलमानों का ये हाल है कि गैरों के जूतों में पड़े रहेंगे; लेकिन अपनों के सामने बराबरी की बात कर आस्तीन चढ़ा लेंगे! 25 सालों तक शिवसेना का सांसद चुपचाप बर्दाश्त करने वाले औरंगाबाद के मुसलमान इम्तियाज़ जलील से 5 साल भी ख़ुश नहीं रह सके! में ये नही कहता कि इम्तियाज़ जलील परफेक्ट इंसान हैं। परफेक्ट तो कोई नहीं रहता, असदुद्दीन ओवैसी भी नहीं है। हैदराबाद में ओवैसी को लेकर भी नाराज़गी रहती है; लेकिन चुनाव में वोट इधर-उधर नहीं जाता, क्योंकि वो लोग आज़ाद राजनीतिक वजूद की अहमियत को समझते हैं।
👉 2024 का चुनाव आते आते महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन ने उग्र रूप धारण किया। 'जरांगे फैक्टर' के चलते मराठा समुदाय भाजपा के ख़िलाफ़ हो गया। इसी के चलते मराठवाड़ा की 8 में से 7 सीटों पर महाविकास आघाडी कामयाब हुई जबकि औरंगाबाद की सीट पर हिंदू समुदाय ने बड़ी ही चतुराई से शिंदे गुट के उम्मीदवार को जिताया! हुआ यूं कि MVA का उम्मीदवार OBC था और शिंदे गुट का मराठा। मराठा आरक्षण आंदोलन के चलते मराठा बनाम ओबीसी वातावरण में परभणी और बीड़ की सीट पर 'मराठा बनाम ओबीसी' वोटिंग हुई, जिसमें ओबीसी के उम्मीदवार हार गए। इस हार में दिवंगत गोपीनाथ मुंडे की बेटी भी बच नहीं पाई, इतना कट्टर माहौल बना था। लेकिन, मज़े की बात ये है कि औरंगाबाद में मराठा वोट शिंदे गुट के उम्मीदवार भुमरे को जाना चाहिए था वो गया; लेकिन 'मराठा बनाम ओबीसी' विवाद में ओबीसी हिंदुओं का वोट शिवसेना (ठाकरे) के उम्मीदवार खैरे को मिलना चाहिए था वो नहीं मिला, बल्कि यहां ओबीसी हिंदू भी अपनी जाति भूलकर 'हिंदू' बन गया और भूमरे के पक्ष में गया ताकि 'संभाजीनगर' से 'औरंगाबाद' वकालत करने वाला मुस्लिम उम्मीदवार कामयाब नहीं हो सके!!
👉 एक तरफ़, 'औरंगाबाद बनाम संभाजीनगर' और 'मुस्लिम बनाम हिंदू' मुद्दे पर औरंगाबाद के हिंदू जातिवाद भूलकर गोपनीय तरीके से एकजुट हो गए। लेकिन, दूसरी तरफ़, भाजपा को हराने के लिए मुसलमानों के वोटों का बड़ा हिस्सा शिवसेना (ठाकरे) के उम्मीदवार खैरे के पाले में चला गया जो कि शर्म से डूब मरने वाली बात है।
👉 जमीयत उलेमा ए हिंद ने इंडिया गठबंधन को समर्थन घोषित किया था जिसमें औरंगाबाद की सीट भी अपवाद नहीं थी! जहां वर्तमान मुस्लिम MP है वहां भी जमीयत का समर्थन इंडिया गठबंधन यानी ठाकरे के उम्मीदवार को था! इसके चलते, अपने 'बड़ों' का आदेश मानकर औरंगाबाद के 'छोटों' ने इम्तियाज़ जलील के ख़िलाफ़ ठाकरे सेना का प्रचार किया! नतीजन, इस बार मुस्लिम वोटों में विभाजन हुआ!
👉 वंचित बहुजन आघाडी ने 2019 का हिसाब चुकता करना करने के लिए इस बार औरंगाबाद से जानबूझकर मुस्लिम उम्मीदवार उतारा था, जिसे 69266 वोट मिले। हालांकि इसमें ज़्यादातर वोट बौद्ध समुदाय के है। पिछली बार 283,798 वोट हालिस करने निर्दलीय मराठा उम्मीदवार इस बार सिर्फ 39828 वोट ले पाए जबकि पिछली बार 384,550 वोट लेकर दो नंबर पर रहे खैरे इस बार 293,450 पर अटक गए! इन वोटों में भी बड़ा हिस्सा मुसलमानों का है! बात साफ़ है कि हिंदू वोट विभाजित न होकर शिंदे गुट की तरफ गया और मुस्लिम वोट 3 जगह बंटा!
👉 पिछले 5 सालों में इम्तियाज़ जलील ने सिर्फ़ मुसलमानों या दलितों का नहीं बल्कि पूरे औरंगाबाद का सांसद बनकर काम किया। कई ऐसे बड़े बुनियादी काम किए जो पिछला सांसद 30 सालों में नहीं कर सका था। 2019 की जीत में बौद्ध समुदाय की अहम भूमिका होने से इम्तियाज़ जलील ने उस समुदाय का ख़ासा खयाल रखा। उनके मुहल्लों में, बौद्ध विहारों में बड़े पैमाने पर विकास कार्य किए। लेकिन, बौद्ध समुदाय राजनीतिक रूप से काफी जागरूक है और अपने आज़ाद राजनीतिक अस्तित्व को हर हाल में बचाना चाहता है। इसलिए, इम्तियाज़ जलील से लगाव होते हुए भी इस समुदाय ने प्रकाश आंबेडकर के उम्मीदवार को वोट दिया ताकि 'क़यादत' ज़िंदा रह सके...
👉 'इस बार बौद्ध वोट नहीं मिलेंगे इसलिए MIM को वोट देना बेकार है' ये सोचकर, जमीयत उलेमा हिंद ने शिवसेना (ठाकरे) का समर्थन करने से और कुछ जलनखोर, बुग्ज़ रखने वाले मुसलमानों की वजह से मुसलमानों के वोटों का एक बड़ा हिस्सा ठाकरे के उम्मीदवार को और कुछ वोट VBA के मुस्लिम को जाने से इम्तियाज़ जलील का नुकसान हुआ।
👉 आदर्श क्रेडिट सोसायटी के घोटाले के ख़िलाफ़ लड़ने की वजह वजह से उम्मीद थी कि उस घोटाले में करोड़ों रुपए अटके हुए 40 हजार शेयर होल्डर्स का वोट इम्तियाज़ जलील को मिलेगा; लेकिन, 'औरंगाबाद बनाम संभाजीनगर' और 'मुस्लिम बनाम हिंदू' वातावरण में ये वोट भी आखिर में 'हिंदू' ही बना! इसमें, Asaduddin Owaisi असदुद्दीन ओवैसी द्वारा औरंगाबाद की जनसभाओं में 'बाबरी मस्जिद ज़िंदाबाद' के ग़ैर ज़रूरी नारे ने भी भी कुछ असर ज़रूर किया होगा। कितना ही बड़ा सेक्यूलर हिंदू, बाबरी मस्जिद बनाम राम मंदिर में से 'राम मंदिर' का ही चुनाव करेगा! इसलिए, जो सीट मुस्लिम बहुल नहीं है वहां ऐसे नारों से सिवान नुकसान के और कुछ नहीं हो सकता! एक तरफ जहां, भाजपा को हराने के नाम पर मुसलमान बाबरी मस्जिद को तोड़ने की ज़िम्मेदारी गर्व से लेने वाले ठाकरे के उम्मीदवारों को एक तरफ़ा वोट कर रहे हैं, वहां भला ऐसे नारों से क्या फ़र्क़ पड़ सकता है!!
👉 मराठा आरक्षण आंदोलन के दौरान इम्तियाज़ जलील अंतरवाली सराटी जाकर मनोज जरांगे पाटील से मिले, उन्हें समर्थन दिया। ख़ुद ओवैसी ने जरांगे की तारीफ़ की। पूरे महाराष्ट्र के मुसलमानों ने मराठा आरक्षण को समर्थन दिया। जरांगे पाटील की सभाओं, पदयात्राओं में सेवाएं दी, खाना, पानी, शरबत का इंतज़ाम किया। मदरसों में रहने का इंतज़ाम किया। इम्तियाज़ जलील और असदुद्दीन ओवैसी, दोनों ने लोकसभा के सदनों के कीमती समय में मराठा और धनगर आरक्षण के लिए आवाज़ उठाई थी जिसकी उन समुदायों में बहुत तारीफ़ हुई थी कि देखो! मुसलमान होकर भी हमारे लिए आवाज़ उठा रहे हैं। लेकिन, इस तमाम 'भाईचारे' का इम्तियाज़ जलील को फ़ायदा नहीं हो सका।
👉 कुलमिलाकर, इम्तियाज़ जलील से स्थानीय मुस्लिम (ख़ुद को बड़ा समझने वाले) कार्यकर्ताओं की नाराज़गी, VBA साथ नहीं होने से मुस्लिम वोटों का MVA की तरफ जाना, जमीयत उलेमा हिंद का ठाकरे को समर्थन और मराठा-ओबीसी विवाद भूलकर हिंदुओं का 'हिंदू' बनकर शिंदे गुट के उम्मीदवार को एक मुश्त वोट देना, बौद्ध द्वारा अपनी 'क़यादत' बचाना... आदि के चलते औरंगाबाद की जीत दोहरा नहीं सके।
इसके लिए, मराठा-ओबीसी मिलकर 'हिंदू' बने मतदाताओं, अपनी क़यादत बचाने के लिए वोट देने वाले बौद्ध मतदाताओं, ओवैसी से बुग्ज़ रखने वाले 'जमीयत' के लोगों, इम्तियाज़ जलील से बुग्ज़ रखने वाले मुसलमानों को मुबारकबाद पेश कीजिए...
✒️ - Javed Patel
Asaduddin Owaisi - Akbaruddin Owasi Millat Times English