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16/11/2023
12/06/2023

दर्शन भगवान तिरुपति बाला जी सिद्दड़ा जम्मू।

07/06/2023

बाबा सिद्ध गोरिया देवस्थान,विजयपुर जम्मू जम्मु व कश्मीर

03/02/2023

Travel from Reasi to Kouri-Bakkal Chinab railway bridge total distance 42 Km

10/09/2022

इस सीन को देखकर पता चल जाएगा क्योंकि साउथ आज बॉलीवुड को पीछे छोड़ चुका है।

अपनी 8 वर्षीय पुत्री को स्कूल से घर वापस लाने के लिए मैं स्कूल के गेट पर पहुंच गया था , जूनियर के.जी.के छात्र 10 मिनट बा...
21/07/2022

अपनी 8 वर्षीय पुत्री को स्कूल से घर वापस लाने के लिए मैं स्कूल के गेट पर पहुंच गया था , जूनियर के.जी.के छात्र 10 मिनट बाद बाहर आना शुरू करते हैं , जबकि सीनियर छात्र 10 मिनट पहले ।

गेट पर अभिभावकों की भीड़ लगी थी । एकाएक तेज़ बारिश शुरु हो गई ! "सभी ने अपनी अपनी छतरी तान ली ।

मेरे बगल में एक सज्जन बिना छतरी के खड़े थे , मैंने शिष्टाचारवश उन्हें अपनी छतरी में ले लिया . गाड़ी से जल्दी जल्दी में आ गया छतरी नहीं ला सका ,, उन्होंने कहा । कोई बात नहीं ऐसा अकसर हो जाता है , मैंने कहा ।

जब उनका बेटा रेन कोट पहने निकला तो मैंने उन्हें छतरी से गाड़ी तक पहुंचा दिया । उन्होंने मुझे गौर से देखा और धन्यवाद कह कर चले गये ।

कल रात में नौ बजे पाटिल साहब का बेटा आया और बोला... अंकल बेबी (उसकी छ:माह की बेटी ) की तबीयत बहुत ख़राब है , उसे डाक्टर के पास ले चलना है । अंधेरी बरसाती रात में जब डाक्टर के यहां हम लोग पहुंचे तो दरबान गेट बंद कर रहा था ।

कम्पाऊंडर ने बताया कि डॉ. साहब लास्ट पेशेंट देख रहे हैं और अब उठने ही वाले हैं । अब सोमवार को ही अगला नम्बर लग पायेगा ।

मैं कम्पाऊंडर से आज ही दिखाने का आग्रह कर ही रहा था कि डाक्टर साहब चेम्बर से घर जाने के लिए बाहर आये . मुझे देखा तो ठिठक गये और फिर बोले - अरे ! आप आये हैं , बोलिये भाई साहब - क्या बात है।

कहना नहीं होगा कि डाक्टर साहब वही सज्जन थे जिन्हें स्कूल में मैंने सिर्फ़ छतरी से गाड़ी तक पहुंचाया था . डाक्टर साहब ने बच्ची से मेरा रिश्ता पूछा । मेरे मित्र पाटिल साहब की बेटी है , हम लोग एक ही सोसायटी में रहते हैं , मैंने बताया ।

उन्होंने बच्ची को देखा . कागज़ पर दवा लिखी और कम्पाऊंडर को हिदायत दी - यह इंजेक्शन बच्ची को तुरंत लगा दो और दो तीन दिन की दवा अपने पास से दे दो , मैंने एतराज़ किया तो बोले -अब कहां इस बरसाती रात में आप दवा खोजते फिरेंगे सर ? कुछ तो अपना रंग मुझ पर भी चढ़ने दीजिये ।

बहुत कहने पर भी डॉ. साहब ने ना फीस ली, ना दवा का दाम और अपने कम्पाउंडर से बोले -ये हमारे मित्र हैं, ये जब भी आयें तो इन्हें आने देना और वे हमें गाड़ी तक पहुंचाने आये ।

निःस्वार्थ सेवा करते रहिये शायद आपका रंग औरों पर भी चढ़ जाये । निःस्वार्थ और निष्काम भाव से की गई छोटी सी सेवा भी कभी व्यर्थ नहीं जाती ।

94 साल के एक बूढ़े व्यक्ति को मकान मालिक ने किराया न दे पाने पर किराए के मकान से निकाल दिया। बूढ़े के पास एक पुराना बिस्त...
23/06/2022

94 साल के एक बूढ़े व्यक्ति को मकान मालिक ने किराया न दे पाने पर किराए के मकान से निकाल दिया। बूढ़े के पास एक पुराना बिस्तर, कुछ एल्युमीनियम के बर्तन, एक प्लास्टिक की बाल्टी और एक मग आदि के अलावा शायद ही कोई सामान था। बूढ़े ने मालिक से किराया देने के लिए कुछ समय देने का अनुरोध किया। पड़ोसियों को भी बूढ़े आदमी पर दया आयी, और उन्होंने मकान मालिक को किराए का भुगतान करने के लिए कुछ समय देने के लिए मना लिया। मकान मालिक ने अनिच्छा से ही उसे किराया देने के लिए कुछ समय दिया।
बूढ़ा अपना सामान अंदर ले गया।
रास्ते से गुजर रहे एक पत्रकार ने रुक कर यह सारा नजारा देखा। उसने सोचा कि यह मामला उसके समाचार पत्र में प्रकाशित करने के लिए उपयोगी होगा। उसने एक शीर्षक भी सोच लिया, ”क्रूर मकान मालिक, बूढ़े को पैसे के लिए किराए के घर से बाहर निकाल देता है।”
फिर उसने किराएदार बूढ़े की और किराए के घर की कुछ तस्वीरें भी ले लीं।
पत्रकार ने जाकर अपने प्रेस मालिक को इस घटना के बारे में बताया। प्रेस के मालिक ने तस्वीरों को देखा और हैरान रह गए। उन्होंने पत्रकार से पूछा, कि क्या वह उस बूढ़े आदमी को जानता है?
पत्रकार ने कहा, नहीं।
अगले दिन अखबार के पहले पन्ने पर बड़ी खबर छपी। शीर्षक था, *”भारत के पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारीलाल नंदा एक दयनीय जीवन जी रहे हैं”।* खबर में आगे लिखा था कि कैसे पूर्व प्रधान मंत्री किराया नहीं दे पा रहे थे और कैसे उन्हें घर से बाहर निकाल दिया गया था।
टिप्पणी की थी कि आजकल फ्रेशर भी खूब पैसा कमा लेते हैं। जबकि एक व्यक्ति जो दो बार पूर्व प्रधान मंत्री रह चुका है और लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री भी रहा है, उसके पास अपना ख़ुद का घर भी नहीं??
दरअसल गुलजारीलाल नंदा को वह स्वतंत्रता सेनानी होने के कारण रु. 500/- प्रति माह भत्ता मिलता था। लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इस पैसे को अस्वीकार किया था, कि उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के भत्ते के लिए स्वतंत्रता की लड़ाई नहीं लड़ी। बाद में दोस्तों ने उसे यह स्वीकार करने के लिए विवश कर दिया यह कहते हुए कि उनके पास जीवन यापन का अन्य कोई स्रोत नहीं है। इसी पैसों से वह अपना किराया देकर गुजारा करते थे।
अगले दिन तत्कालीन प्रधान मंत्री ने मंत्रियों और अधिकारियों को वाहनों के बेड़े के साथ उनके घर भेजा। इतने वीआइपी वाहनों के बेड़े को देखकर मकान मालिक दंग रह गया। तब जाकर उसे पता चला कि उसका किराएदार, श्री गुलजारीलाल नंदा, भारत के पूर्व प्रधान मंत्री थे।
मकान मालिक अपने दुर्व्यवहार के लिए तुरंत गुलजारीलाल नंदा के चरणों में झुक गया।
अधिकारियों और वीआईपीयों ने गुलजारीलाल नंदा से सरकारी आवास और अन्य सुविधाएं को स्वीकार करने का अनुरोध किया। श्री गुलजारीलाल नंदा ने इस बुढ़ापे में ऐसी सुविधाओं का क्या काम, यह कह कर उनके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया।
अंतिम श्वास तक वे एक सामान्य नागरिक की तरह, एक सच्चे स्वतंत्रता सेनानी बन कर ही रहे। 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व एच डी देवगौड़ा के मिलेजुले प्रयासो से उन्हें "भारत रत्न" से सम्मानित किया गया।
*जरा उनके जीवन की तुलना वर्तमानकाल के किसी मंत्री तो क्या , किसी पार्षद परिवार से ही कर लें !!*
पुण्यात्मा को सादर नमन्।।

तस्वीर में आप एक टमाटर के पौधे को देख रहे होंगे, शायद किसी यात्री ने टमाटर खाकर उसके बीज को ट्रेन से फेंक दिया होगा... य...
17/06/2022

तस्वीर में आप एक टमाटर के पौधे को देख रहे होंगे, शायद किसी यात्री ने टमाटर खाकर उसके बीज को ट्रेन से फेंक दिया होगा... ये पौधा मिट्टी की छाती फाड़कर नही बल्कि पत्थरों को चीरकर बाहर आया है।
जब ये और भी नन्हा सा होगा, तब शताब्दी ओर राजधानी जैसे तूफान से भी तेज दौड़ती ट्रेनों के बिल्कुल पास से गुजरते हुए भी इसने सिर्फ बढ़ना सीखा ओर बढ़ते बढ़ते आखिर कार इसने एक टमाटर को जन्म दे ही दिया।

न हाथ है, न पांव है, न ही दिमाग है, और तो और इसको जीवित रहने के लिए कम से कम मिट्टी और पानी तो मिलना चाहिए ही था, जो इसका हक भी था लेकिन इस पौधे ने बिना जल, बिना मिट्टी के, बिना सुविधा के अपने आपको बड़ा किया... फला फूला और जीवन का उद्देश्य इसने पूरा किया।

जिन लोगो को लगता है कि जीवन मे हम तो असफल हो गए हम तो जीवन मे कुछ कर ही नही सकते, हम तो बस अब बरबाद हो ही चुके है, तो उन्हें इस टमाटर के पौधे से कुछ सीख लेनी चाहिए।
असली जीवन का नाम ही लगातार संघर्षों की कहानी है ।

01/03/2022

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