ब्रह्मवैवर्त पुराण

ब्रह्मवैवर्त पुराण ब्रह्मवैवर्त पुराण परम दुर्लभ है।
यह
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इसमें नये-नये अत्यंत गोपनीय रमणीय रहस्य भरे पड़े हैं।

यह हरिभक्तिप्रद, दुर्लभ हरिदास्य का दाता, सुखद, ब्रह्म की प्राप्ति करने वाला साररूप और शोक संताप का नाशक है।

जैसे सरिताओं में शुभकारिणी गंगा तत्क्षण ही मुक्ति प्रदान करने वाली हैं,

तीर्थों में पुष्कर और

पुरियों में काशी जैसे शुद्ध है,

सभी वर्षों में जैसे भारत वर्ष शुभ और तत्काल मुक्तिप्रद है,

जैसे पर्वतों में सुमेरु,

पुष्पों में प

ारिजात-पुष्प,

पत्रों में तुलसी पत्र,

व्रतों में एकादशीव्रत,

वृक्षों में कल्पवृक्ष,

देवताओं में श्रीकृष्ण,

ज्ञानि शिरोमणियों में महादेव,

योगीन्द्रों में गणेश्वर,

सिद्धेन्द्रों में एकमात्र कपिल,

तेजस्वियों में सूर्य,

वैष्णवों में अग्रगण्य भगवान सनत्कुमार,

राजाओं में श्रीराम,

धनुर्धारियों में लक्ष्मण,

देवियों में महापुण्यवती सती दुर्गा,

श्रीकृष्ण की प्रेयसियों में प्राणाधिका राधा,

ईश्वरियों में लक्ष्मी तथा

पण्डितों में सरस्वती सर्वश्रेष्ठ हैं;

उसी प्रकार सभी पुराणों में ब्रह्मवैवर्त श्रेष्ठ है।

इससे विशिष्ट, सुखद, मधुर, उत्तम पुण्य का दाता और संदेहनाशक दूसरा कोई पुराण नहीं है।

यह इस लोक में सुखद, संपूर्ण संपत्तियों का उत्तम दाता, शुभद, पुण्यद, विग्नविनाशक और उत्तम हरि-दास्य प्रदान करने वाला है तथा परलोक में प्रभूत आनन्द देने वाला है।

संपूर्ण यज्ञों, तीर्थों, व्रतों और तपस्याओं का तथा समूची पृथ्वी की प्रदक्षिणा का भी फल इसके फल की समता में नगण्य है।

चारों वेदों के पाठ से भी इसका फल श्रेष्ठ है।

जो संयत चित्त होकर इस पुराण को श्रवण करता है; उसे गुणवान विद्वान वैष्णव पुत्र प्राप्त होता है।यदि कोई दुर्भगा नारी इसे सुनती है तो उसे पति के सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

इस पुराण के श्रवण से मृतवत्सा, काकवन्ध्या आदि पापिनी स्त्रियों को भी चिरजीवी पुत्र सुलभ हो जाता है।

अपुत्र को पुत्र, भार्यारहित को पत्नी और कीर्तिहीन को उत्तम यश मिल जाता है।

मूर्ख पण्डित हो जाता है।

रोगी रोग से बँधा हुआ बन्धन से, भयभीत भय से और आपत्तिग्रस्त आपत्ति से मुक्त हो जाता है।

अरण्य में, निर्जन मार्ग में अथवा दावाग्नि में फँसकर भयभीत हुआ मनुष्य इसके श्रवण से निश्चय ही उस भय से छूट जाता है।

इसके श्रवण से पुण्यवान पुरुष पर कुष्ठरोग, दरिद्रता, व्याधि और दारुण शोक का प्रभाव नहीं पड़ता। ये सभी पुण्यहीनों पर ही प्रभाव डालते हैं।

जो मनुष्य अत्यंत दत्तचित्त हो इसका आधा श्लोक अथवा चौधाई श्लोक सुनता है, उसे बहुसंख्यक गोदान का पुण्य प्राप्त होता है- इसमें संशय नहीं है।

जो मनुष्य शुद्ध समय में जितेंद्रिय होकर संकल्प पूर्वक वक्ता को दक्षिणा देकर भक्ति-भावसहित इस चार खण्डों वाले पुराण को सुनता है, वह अपने असंख्य जन्मों के बचपन, कौमार, युवा और वृद्धावस्था के संचित पाप से निःसंदेह मुक्त हो जाता है तथा श्रीकृष्ण का रूप धारण करके रत्ननिर्मित विमान द्वारा अविनाशी गोलोक में जा पहुँचता है। वहाँ उसे श्रीकृष्ण की दासता प्राप्त हो जाती है, यह ध्रुव है। असंख्य ब्रह्माओं का विनाश होने पर भी उसका पतन नहीं होता। वह श्रीकृष्ण के समीप पार्षद होकर चिरकाल तक उनकी सेवा करता है।

जो श्रीकृष्ण की भक्ति से युक्त हो इस पुराण को सुनता है, वह श्रीहरि की भक्ति और पुण्य का भागी होता है तथा उसके पूर्वजन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं।

इसमें सम्पूर्ण धर्मों का निरूपण है। यह पुराण सब लोगों को अत्यन्त प्रिय है तथा सबकी समस्त आशाओं को पूर्ण करने वाला है।
यह सम्पूर्ण अभीष्ट पदों को देने वाला है। पुराणों में सारभूत है। इसकी तुलना वेद से की गयी है।

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