मैना: भोजपुरी साहित्य कऽ उड़ान

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मैना: भोजपुरी साहित्य कऽ उड़ान भोजपुरी साहित्य कऽ पत्रिका

मैना: भोजपुरी साहित्य कऽ उड़ान के बारे में
मैना एगो चिरई ह जेवन मनई के बोली के नकल उतार सके ले औरी उतारबो करेले। कबो-कबो तऽ ई नकल एतना साफ होला कि लगबे ना करेला कि मनई नाही एगो चिरई बोलत बीआ। सङही भोजपुरी लोकसाहित्य औरी लोकजीवन में मैना चिरई के बहुत बड़ जगह बा। लरिकाई में इया के तोता-मैना के काथा होखे चाहें जिनिगी के केवनो बड़हन बात भा सीख होखे, मैना चिरई हमेशा एगो चिन्ह औरी उदाहरन बन के सोझा आजाले औ

री कहेले कि देखऽ रसता ई नाही, ई हऽ। औरी ए तरे हर भोजपुरिया के मन के एगो कोन में चुपचाप बइठ के आपन काम क रहल बे।
भोजपुरी लोक परम्परा, जीवन औरी साहित्य जाने केतना पुरान बा कुछऊ कहल मुसकिल बा औरी सङही ओकर फईलाव अथाह बा जेमे जाने का-का समाईल बा। सगरी भोजपुरी लोक परम्परा, जीवन औरी साहित्य कबिता, काथा, गीत, खेला औरी नाच जइसन कईगो जेवनार (बिधा) सोझा आइल बा औरी भोजपुरिया समाह ओके अपनवले बा। मगर बाचिक भईला से बहुत कुछ समय के धार में बहि गईल बा औरी बहुत कुछ बह रहल बा। हर सुख के, हर दुख के लोक परम्परा रहलि हऽ जेवन बदलाव के बरखा में बुताईल जाता। बस खाली बुताते नईखे, संगे-संगे सगरी चिन्ह औरी निशानो मिटल जाता जेवना के जानल, समझल औरी सहेजल जरूरी बा।
मैना भोजपुरी साहित्य खाती एगो छोट डेग बा जेवना के बस एगही धेय बा औरी उ ई बा कि भोजपुरी साहित्य जेवन भोजपुरिया समाज के लोकपरम्परा, बिसवास, मरजादा, संस्कार औरी काल्ह औरी आज के समेटले होखे ऊ साहित्य अधिका से अधिका लोगन तक पहुँचे चाहें ऊ केवनो जेवनार में होखे।


लेखक औरी कवि लोगन से
केवनो समाज के बिकास में ओकरा लेखकन औरी कवि लोगन जइसन कलाकारन के बहुत बड़ जोगदान होला औरी भोजपुरी साहित्य के बिकास में उनकर योगदान केहू से छिपल नइखे। हम मैना की ओर से आप लोगन से गुहार करत बानी कि आप सभे आपन रचना भेजीं ताकि ऊ सबका सोझा रखल जा सके। आप आपन कबिताम काथा, खेला (नाटक), लेख, गीत, केवनो छपल रचना पर आपन राय भा चाहें औरी साहित्य के केवनो बिधा होखे भेजीं। ई हमनी के अहोभाग रही कि ओके छाप सकीं जा।
कबिता, काथा, लेख औरी खेला (नाटक) खाती
आप आपन कबिता, काथा, लेख औरी खेला (नाटक) मंगल आ फेर केवनो फोण्ट में लिख के माइकोसाफ्ट के वर्ड में हमनी के आपन परिचय, एगो तसबीर के संगे ईमेल में भेजीं। ईमेल भेजे के बेरा बिसय बसतू में जेवनार (बिधा) जइसे कि कबिता, काथा, लेख आ खेला जरुर लिखीं।
भेजे के बेरा ए बातन के खियाल राखे के किरिपा करीं
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आपन छोट परिचय
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चइत में मन चहकि जाला उठे जब तान चइता के, उड़े रँग लाल पीयर बैगनी फागुन अकासे में। सुने आवे सजल सावन उमड़ि के बाग में कजर...
24/12/2024

चइत में मन चहकि जाला उठे जब तान चइता के,
उड़े रँग लाल पीयर बैगनी फागुन अकासे में।

सुने आवे सजल सावन उमड़ि के बाग में कजरी,
चले बिजुरी बदरिया साथ लमहर डग हुलासे में।

लगा के कान में अँगुरी सुनावे तान चरवाहा,
त ऊ पुरुबी के धुन लागे मधुर शरबत पियासे में।

शहर से नींक बाटे गाँव जननी जन्म के भूँई,
इहाँ सहजे बसे 'संगीत' तन मन में अनासे में।
-संगीत सुभाष

मिले दिन रात बिजुरी अब इहाँ टहटह अँजोरा बातबो माँटी के ढिबरी साँझि बेरा याद आवेला। बहुत बदलल बनल बिगड़ल बहुत उजरल बसल सु...
23/12/2024

मिले दिन रात बिजुरी अब इहाँ टहटह अँजोरा बा
तबो माँटी के ढिबरी साँझि बेरा याद आवेला।

बहुत बदलल बनल बिगड़ल बहुत उजरल बसल सुधरल
नजर ना बैल खूँटा गाइ बछरू नाद आवेला।

मिले खएका शहर जइसन समोसा चाउमिन बर्गर,
कहाँ ओ सोन्ह सतुआ भात जइसन स्वाद आवेला?

सरग से नींक तबहूँ गाँव जननी जन्म के भूँई
इहाँ परकीति भेजे खूब आसिरबाद आवेला।
-संगीत सुभाष

जोश बदले, उमंग बदलेला।संग  बदले,  तरंग  बदलेला।जिंदगी जंग ह लड़ीं, बुझि केजंग  के  रंग  ढंग  बदलेला।-संगीत सुभाष
21/12/2024

जोश बदले, उमंग बदलेला।
संग बदले, तरंग बदलेला।
जिंदगी जंग ह लड़ीं, बुझि के
जंग के रंग ढंग बदलेला।
-संगीत सुभाष

मुक्तक -मांग  कइले  मान  जाला,  प्रार्थना  राखीं बचा के।साध  ना  जबले  सधे  सब, साधना राखीं बचा के।छोट  रहनीं  मस्त रहनी...
19/12/2024

मुक्तक -

मांग कइले मान जाला, प्रार्थना राखीं बचा के।
साध ना जबले सधे सब, साधना राखीं बचा के।
छोट रहनीं मस्त रहनीं, ना रहे चिंता फिकिर गम,
ना दुसर बचपन मिली अब, बचपना राखीं बचा के।
-संगीत सुभाष

भोजपुरी गजलछोड़ा के हाथ जनि जाईं, अबे कुछ साँस बाकी बा।तनिक बिलमीं गजल गाईं, अबे कुछ साँस बाकी बा।अबे हठ बा निहारबि मौत ...
01/12/2024

भोजपुरी गजल

छोड़ा के हाथ जनि जाईं, अबे कुछ साँस बाकी बा।
तनिक बिलमीं गजल गाईं, अबे कुछ साँस बाकी बा।

अबे हठ बा निहारबि मौत के अपनी तबे जाइबि,
विदा के गीत जनि गाईं, अबे कुछ साँस बाकी बा।

बिना साहस बिना बल शांति के सब बात थोथा हऽ,
वचन ई साँच गठिआईं, अबे कुछ साँस बाकी बा।

नयन में जोति बा बहुते दिखाई देत बा सब कुछ,
अपन चश्मा ना पहिनाईं, अबे कुछ साँस बाकी बा।

उगावे के ह सूरज-चाँद फिर नवका समय खातिर,
रवाँ असमान बनि जाईं, अबे कुछ साँस बाकी बा।

लगा के पाँव में पैकड़ चली कइसे भला अदिमी,
पथल के पाँव बनवाईं, अबे कुछ साँस बाकी बा।

दरद के लोर में सानल पिसाने के सुखल रोटी,
हँसी सब लोग छिपि खाईं, अबे कुछ साँस बाकी बा।

लड़ाई हर घरी जानल अजानल शत्रु से बाटे,
चलीं कुछ के त निपटाईं, अबे कुछ साँस बाकी बा।

न बा 'संगीत'' साहित शास्त्र ना तहज़ीब कविता के,
बितावे दिन कहाँ जाईं, अबे कुछ साँस बाकी बा।

-संगीत सुभाष

साँच मिलिहें, लबार मिलि जइहें। संत मिलिहें,  गँवार मिलि जइहें। साफ मन खोजि दीं त दुनियाँ में, बहुते सुलझल इयार मिलि जइहे...
30/11/2024

साँच मिलिहें, लबार मिलि जइहें।
संत मिलिहें, गँवार मिलि जइहें।
साफ मन खोजि दीं त दुनियाँ में,
बहुते सुलझल इयार मिलि जइहें।
--संगीत सुभाष

गीतजहिया सुरता चढ़े तहार, नीनिया अँखिया छोड़ि पराले।बिस्तर लागे काँटेदार, नीनिया अँखिया छोड़ि पराले। गुजरल दिन के सगरी ब...
27/11/2024

गीत
जहिया सुरता चढ़े तहार,
नीनिया अँखिया छोड़ि पराले।
बिस्तर लागे काँटेदार,
नीनिया अँखिया छोड़ि पराले।

गुजरल दिन के सगरी बतिया
छतिया चढ़ि हुमचावे
बिलमल पलटल देखल बिहसल
गर पर तेग चलावे
ढरके आँसू तूरि किनार,
नीनिया अँखिया छोड़ि पराले।

चान चिढ़ावे ग्रह गवरेसे
रेते रात करिखही
हुमरत बँसवारी से उरुआ
चढ़ि आवेला लगहीं
लागे भकसावन घर द्वार,
नीनिया अँखिया छोड़ि पराले।

दहके तन बिन आँच अगिनि के
काठी जइसन सुलगे
भागि छोट बा मुदई लागल
कइलसि अलगे-अलगे
जगले होखेला भिनुसार,
नीनिया अँखिया छोड़ि पराले।

-संगीत सुभाष

गीतऊ त कहल जासु नटनागर, तू नटनगरी बनबू का?रोरी मारि फोरि दे गागर, तूहूँ गगरी बनबू का?गाल बजावे भरमावेलें लकुराधिन के अगु...
25/11/2024

गीत
ऊ त कहल जासु नटनागर, तू नटनगरी बनबू का?
रोरी मारि फोरि दे गागर, तूहूँ गगरी बनबू का?

गाल बजावे भरमावेलें लकुराधिन के अगुआ
फागुन धुन छेड़े कजरी के गावे सावन फगुआ
करिया रूप झूठ में आगर, तूहूँ अगरी बनबू का?

चोरन के सरदार चोरावे माखन दही मलाई
पकड़े ग्वालिन ओरहन दे त टिपुना देत चुवाई
बान्हे पीत वसन के पागर, उनके पगरी बनबू का?

मति जा घर से दूर राधिका अधिका घूमत बाड़े
मनहर छब मनिहारी बनि के भरमे साँझि-सकारे
कुछऊ कहलू करिहें झागर तूहूँ झगरी बनबू का?
-संगीत सुभाष

भोजपुरी गजलकबो जिंदगी के कहानी लिखाई। रिसाला छपी कुछ जुबानी लिखाई। मुहब्बत जरूरी, मगर पेट खालीत कइसे दिवाना दिवानी लिखाई...
24/11/2024

भोजपुरी गजल
कबो जिंदगी के कहानी लिखाई।
रिसाला छपी कुछ जुबानी लिखाई।

मुहब्बत जरूरी, मगर पेट खाली
त कइसे दिवाना दिवानी लिखाई?

वतन हित कटा भुज दिही दान केहू
त अस्सी में चढ़ती जवानी लिखाई।

ज'ले पीर के बा सियाही भराइल
कलम से गजल ना रुमानी लिखाई।

जिये के अलावे मिलल का जगत से
त पानी से' पानी प पानी लिखाई।

गइल साँच हऽ उनके' मर्जी ह आइल
कइल नींक बाउर निशानी लिखाई।
-संगीत सुभाष

अइसन पोखर जनि बुझिहऽ हम चढ़ी जेठ सुखि खाली होखबि। अतनो ना कमजोर कि तुरि दऽ सुखल रेंड़ के डाली होखबि।सोरि पताले डाढ़ि अका...
21/11/2024

अइसन पोखर जनि बुझिहऽ हम
चढ़ी जेठ सुखि खाली होखबि।

अतनो ना कमजोर कि तुरि दऽ
सुखल रेंड़ के डाली होखबि।

सोरि पताले डाढ़ि अकासे
फइलल बाटे बूझि लिहऽ तू,

सुरुज चान पहरू हमार तऽ
हम कतना भगिशाली होखबि?
-संगीत सुभाष

जइसे धुनकी से रूई धुनाइल। डाँठ  थ्रेसर  में जइसे दँवाइल। झूठ  झाँवर  बना देत  मुखड़ा, चोर  सेन्हिए प जइसे धराइल।-संगीत स...
20/11/2024

जइसे धुनकी से रूई धुनाइल।
डाँठ थ्रेसर में जइसे दँवाइल।
झूठ झाँवर बना देत मुखड़ा,
चोर सेन्हिए प जइसे धराइल।
-संगीत सुभाष

भले कुछलोग बा मुअना बिगाड़ू घरफोरन कुढ़ना, तबो  करुना दया सहयोग सत सदभाव भारी बा। विदा  होली  पलानी  से  धिया  रोवे  महल...
19/11/2024

भले कुछलोग बा मुअना बिगाड़ू घरफोरन कुढ़ना,
तबो करुना दया सहयोग सत सदभाव भारी बा।

विदा होली पलानी से धिया रोवे महल साथे,
बराला चूल्हि ना भरि गाँव अइसन भाव तारी बा।

कहीं हुरदंग लरिकन के कहीं बुढ़वन के हरिचर्चा,
कहीं निकसल जवानी खेत में कान्हे कुदारी बा।

सरग से नींक बाटे गाँव जननी जन्म के भूँई,
जहाँ सब जीव का सब जीव से सहजे इयारी बा।
-संगीत सुभाष

वसूलीलोग कहे कि उहाँ के लगे रुपया के अंबार बा। केतनो के दरकार होखे उहाँ के दे देबि लेकिन अइसे ना, बाजार भाव से बहुत जिया...
10/11/2024

वसूली

लोग कहे कि उहाँ के लगे रुपया के अंबार बा। केतनो के दरकार होखे उहाँ के दे देबि लेकिन अइसे ना, बाजार भाव से बहुत जियादा सूद ले के। केहू कब्बो कहियो दे कि "मालिक सूद बहुत जियादा होता, कुछ कम क दीं", त जबाब रहत रहे कि "ई हमार रोजगार ह। रोजगार से कवनो समझौता ना करबि। तहरा परता परे त ले जा, ना त तहरा तरे बहुत लोग बा।" वसूलियो के कायदा बड़ा खतरनाक रहे। समय पर ना लवटावल जा त गारी-गलौज पर उतरि आइल उहाँ के आम बात रहे। केतना लोग के साथे त वसूली खातिर मारो-झगरा हो गइल रहे। कब्बो पीटि देईं त कब्बो पिटा जाईं लेकिन सुभाव आ वसूली में कड़ाई जस-के-तस रहे।

एही से बहुत लोग उहाँ से करजा-गोयाम ना कइल चाहे, बाकिर जब सब जगह से निराश हो जा, कवनो उपाय ना लागे, त उहाँ किहाँ जाहीं के परे। कवनो बेरा जाईं, अंगूठा के निसान दीं आ जरूरत भर के रुपया ले आईं। बाकिर ए हिदायत के साथे कि "समय पर ना लवटल त जुलुमे होई।"

रघुवंश की बेटी के बिआह में रुपया घटि गइल। चारू ओरि हाथ-गोड़ चलवलें, कहीं से इंतजाम ना हो पावल। पछतइला मने रघुवंश का उहाँ किहाँ जाए परल। रुपया ए हिदायत के साथे मिलल कि तीन महीना में लवटा देबे के बा। रघुवंशो सोचलें कि बिआह बीतते तीनू लरिका बाहर चलि जइहें सँ। पँच-पँचो हजार भेजि दिहें सँ त दस हजार रुपया सूद समेत तीन महीना के पहिलहीं लवटा देब।

बिआह भइल। बिआह बितला के तीन दिन बाद रघुवंश के छाती में बहुत जोर के दर्द भइल। डाक्टर के लगे ले जाए के बेवस्था होत रहे तले उनके जीवनलीला ओरा गइल।

तीनू लरिका अब्बे घरहीं रहलें। जल्दी-जल्दी अंतिम क्रिया खातिर रघुवंश के लाश ले के तीनू लरिकन के साथे बहुत लोग नदी किनारे पहुँचल।

एन्ने उहाँ का पता लागल कि रघुवंश त बिना रुपया लवटवलहीं मरि गइलें। उहाँ का तुरत मोटरसाइकिल चालू कइनीं आ असमसान घाट पर पहुँचि गइनीं। देखते रघुवंश के बड़का लरिका पूछलें- "इहाँ कइसे-कइसे आ गइनीं? राउर बड़ी किरिपा कि हमरा बाप के अंतिम संस्कार में अइनीं।"

"हमरा ए अंतिम संस्कार से का लेबे-देबे के बा? एक हफ्ता पहिले रघुवंश हमरा से दस हजार रुपया ले आइल रहलें ऊ चुका दऽ।" - उहाँ का कहनीं।

"रुपया त हम लवटाइए देबि लेकिन ई मांगे के कवनो बेरा ना ह। बेटी के बिआह कइला के बाद बाबूजी के हाथ एकदम खाली हो गइल रहल ह। बहुत जोगाड़ के बाद त कफन आ लकड़ी किनाइल ह। कुछदिन के महूलत दीं। राउर पाई-पाई जोरि के मिलि जाई।"- रघुवंश के बड़कू लरिका कहलें।

"हमार बा त कबो मांगि सकत बानीं। आपन दिहल रुपया मांगे मे बेरा-कुबेर कइसन? तहरा रुपया त एही बेरा देबे के परी।"

" बाबूजी रउरा से तीन महीना के समय लिहले रहले हँ नू? हम ओकरा पहिले लवटा देबि।"- बड़कू बेटा हाथ जोरि लिहलें।

" ऊ मरि गइलें त कइसन समय? लोग का बदलत देर नइखे लागत। हमरा एही बेरा चाहीं।"

रघुवंश के लरिका लोग हाथ जोरि के निहोरा करे लागल कि "ना मानबि त कवनो बेवस्था करे के चार दिन के समय दीं। कहीं त गोड़ पर गिरि जात बानीं जा। ए बेरा ई संस्कार करे दीं।"

"हमार निरनय, तहरी बात आ तहरा वादा से रत्ती भर ना पलटी। उहाँ का एक साँस में कहि गइनीं के जले रुपया ना मिली हम लाश ना जरावे देब। सुनले बाड़ नू हम लाश से आपन रुपया वसूल क लेइले।"

अब त रघुवंश के लरिका लोग सोच में परि गइल। ओ लोग के साथे अउरियो लोग उहाँ के निहोरा करे लागल। लेकिन उहाँ का अपनी बात से टस्स-से-मस्स ना भइनीं।

घंटन मनवला आ निहोरा के बादो जब उहाँ का ना मननीं त रघुवंश के लरिका अचानक उठलें आ सब लोग से कहलें - "चलऽ लोग घरे। हमके इहाँ का ना रुपया दिहले बानीं ना हम लिहले बानीं। बाबूजी लिहले रहले हँ। उहे एकर हाल जनिहें। उनके लाश इहाँ परल बा, इहाँ का लाश से आपन रुपया वसूलीं। आ हँ, वसूल क के लाश जरूर जरा देबि। बिना जरवले अइसहीं छोड़ि के गइनीं त थाना एही बाजार में बा।"

उहाँ के अक्को-बक्को बन्द हो गइल। जल्दी-जल्दी मोटरसाइकिल चालू कइनीं आ भगनीं। पीछे पलटियो के ना तकनीं।

-संगीत सुभाष
फोटो 2020 के ह।

आदित! कन-कन जोति तहार।गिरि, कन्दरा, धरा, नभमंडल,पसरल किरिन पथार। अतुलित ऊर्जा-उखमा के बा तहरे घर भंडार।अति उल्लास, हुलास...
07/11/2024

आदित! कन-कन जोति तहार।
गिरि, कन्दरा, धरा, नभमंडल,
पसरल किरिन पथार।

अतुलित ऊर्जा-उखमा के बा तहरे घर भंडार।
अति उल्लास, हुलासे तहके पूजे ई संसार।

मनके बाती, तृप्ति तेल से तनके दियना बार।
आँखि मूँनि तहके सुमिरत में सब लउकत उजियार।

तहरे किरिपा आजु अगिनि- जल एक साथ बा ठाढ़।
नदिया, पोखर, ताले के जल अगिनि लेत अँकवार।

भावभरल दउरा बहँगी ले मनई बनल कँहार।
पहुँचा दिहलसि भार घाट पर, अब तूँ हरिहऽ भार।

-संगीत सुभाष

सिखावे पेड़ बुढ़वा रहि अचल हर हाल में हर दिन,दिहऽ छाया जो केहू पास में आवे छँहाए के।उड़त चिरई अकासे मौज में नापे कठिन रस...
05/11/2024

सिखावे पेड़ बुढ़वा रहि अचल हर हाल में हर दिन,
दिहऽ छाया जो केहू पास में आवे छँहाए के।

उड़त चिरई अकासे मौज में नापे कठिन रस्ता,
बतावे मंत्र आजादी के', हिम्मतवर कहाए के।

मिले दधि दूध सस्ता शुद्ध मुफुते में हवा पानी,
नदी के धार निरमल रोकि के बोले नहाए के।

सरग से नींक बाटे गाँव जननी जन्म के भूँई,
इहाँ के नेह अमृत हीक भर पी के अघाए के।
-संगीत सुभाष

02/11/2024
उमड़ि आवे घटा बरिसे सुधारस ताल-पोखर में, खिले शतदल कमल मन-भौंर करि गुंजार नाचेला। नदी के धार सुख-दुख तट से मिलि हँसि-हँस...
01/11/2024

उमड़ि आवे घटा बरिसे सुधारस ताल-पोखर में,
खिले शतदल कमल मन-भौंर करि गुंजार नाचेला।

नदी के धार सुख-दुख तट से मिलि हँसि-हँसि के बतिआवे,
लगे तट पर खड़ा सब लोग के हालत सवाँचेला।

निरेखीं हरियरी चारु दिशा में खेत में पसरल,
बुझाला चित्रकारी के मुसव्विर रेख खाँचेला।

सरग से नींक बाटे गाँव जननी जन्म के भूँई
इहाँ के लोग आपन भागि खुद लिखि-लिखि के बाँचेला।
-संगीत सुभाष
मुसव्विर=चित्रकार

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मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान के बारे में मैना एगो चिरई ह जेवन मनई के बोली के नकल उतार सके ले औरी उतारबो करेले। कबो-कबो तऽ ई नकल एतना साफ होला कि लगबे ना करेला कि मनई नाही एगो चिरई बोलत बीआ। सङही भोजपुरी लोकसाहित्य औरी लोकजीवन में मैना चिरई के बहुत बड़ जगह बा। लरिकाई में इया के तोता-मैना के काथा होखे चाहें जिनिगी के केवनो बड़हन बात भा सीख होखे, मैना चिरई हमेशा एगो चिन्ह औरी उदाहरन बन के सोझा आजाले औरी कहेले कि देखऽ रसता ई नाही, ई हऽ। औरी ए तरे हर भोजपुरिया के मन के एगो कोन में चुपचाप बइठ के आपन काम क रहल बे। भोजपुरी लोक परम्परा, जीवन औरी साहित्य जाने केतना पुरान बा कुछऊ कहल मुसकिल बा औरी सङही ओकर फईलाव अथाह बा जेमे जाने का-का समाईल बा। सगरी भोजपुरी लोक परम्परा, जीवन औरी साहित्य कबिता, काथा, गीत, खेला औरी नाच जइसन कईगो जेवनार (बिधा) सोझा आइल बा औरी भोजपुरिया समाह ओके अपनवले बा। मगर बाचिक भईला से बहुत कुछ समय के धार में बहि गईल बा औरी बहुत कुछ बह रहल बा। हर सुख के, हर दुख के लोक परम्परा रहलि हऽ जेवन बदलाव के बरखा में बुताईल जाता। बस खाली बुताते नईखे, संगे-संगे सगरी चिन्ह औरी निशानो मिटल जाता जेवना के जानल, समझल औरी सहेजल जरूरी बा। मैना भोजपुरी साहित्य खाती एगो छोट डेग बा जेवना के बस एगही धेय बा औरी उ ई बा कि भोजपुरी साहित्य जेवन भोजपुरिया समाज के लोकपरम्परा, बिसवास, मरजादा, संस्कार औरी काल्ह औरी आज के समेटले होखे ऊ साहित्य अधिका से अधिका लोगन तक पहुँचे चाहें ऊ केवनो जेवनार में होखे। लेखक औरी कवि लोगन से केवनो समाज के बिकास में ओकरा लेखकन औरी कवि लोगन जइसन कलाकारन के बहुत बड़ जोगदान होला औरी भोजपुरी साहित्य के बिकास में उनकर योगदान केहू से छिपल नइखे। हम मैना की ओर से आप लोगन से गुहार करत बानी कि आप सभे आपन रचना भेजीं ताकि ऊ सबका सोझा रखल जा सके। आप आपन कबिताम काथा, खेला (नाटक), लेख, गीत, केवनो छपल रचना पर आपन राय भा चाहें औरी साहित्य के केवनो बिधा होखे भेजीं। ई हमनी के अहोभाग रही कि ओके छाप सकीं जा। कबिता, काथा, लेख औरी खेला (नाटक) खाती आप आपन कबिता, काथा, लेख औरी खेला (नाटक) मंगल आ फेर केवनो फोण्ट में लिख के माइकोसाफ्ट के वर्ड में हमनी के आपन परिचय, एगो तसबीर के संगे ईमेल में भेजीं। ईमेल भेजे के बेरा बिसय बसतू में जेवनार (बिधा) जइसे कि कबिता, काथा, लेख आ खेला जरुर लिखीं। भेजे के बेरा ए बातन के खियाल राखे के किरिपा करीं आपन नाम आपन छोट परिचय आपन एगो तसबीर संपर्क सूत्र (पता औरी फोन नं) रचना के नाँव जेवनार (बिधा) के नाँव (कबिता, काथा, लेख आ खेला) सगरी जानकारी संगे रउआँ हे ईमेल पर भेजीं [email protected] केवनो रचना पर राय भा टिप्पणी आप केवनो कबिता, काथा, लेख औरी खेला (नाटक) पर राय भा टिप्पणी मंगल आ फेर केवनो हिन्दी के फोण्ट में लिख के माइकोसाफ्ट के वर्ड में हमनी के आपन परिचय, एगो तसबीर के संगे ईमेल में भेजीं। भेजे के बेरा ए बातन के खियाल राखे के किरिपा करीं आपन नाम आपन छोट परिचय आपन एगो तसबीर संपर्क सूत्र (पता औरी फोन नं) रचना के नाँव औरी लिंक सगरी जानकारी संगे रउआँ हे ईमेल पर भेजीं ई-मेल: [email protected] ट्विटर: https://twitter.com/bhojpurimaina