Dharam Pal Dhankhar
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03/11/2023
01/11/2023
06/06/2023
17/03/2023
हम तमाशा प्रिय समाज में बदल चुके हैं। तमाशे से मनोरंजन हो ना हो, मजा आये ना आये, तालियां पीटना हमारी नीयती बन चुकी है। संसद और विधानसभाएं हो या सड़क, तमाशा चालू आहे।
05/03/2023
आखिर क्या है बीजेपी के लिए खतरे की घंटी
|| DHARAMPAL DHANKHAR ||
27/02/2023
मित्रों कल यानी 28 फरवरी को चंडीगढ़ में मिलते हैं।
23/02/2023
किसानों के भले के लिए सरकार की भागदौड़ में कोई कमी नहीं है! सीजन खत्म होने के बाद भी बाजरा खरीदने की तैयारियां जोरों पर हैं!
20/02/2023
बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को,
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को ।
सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए,
गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरख़्वान को ।
शबनमी होंठों की गर्मी दे न पाएगी सुकून,
पेट के भूगोल में उलझे हुए इंसान को ।
पार कर पाएगी ये कहना मुकम्मल भूल है,
इस अहद की सभ्यता नफ़रत के रेगिस्तान को ।
-अदम गोंडवी
18/02/2023
आरक्षण निश्चित रूप से खत्म होना चाहिए। लेकिन उससे पहले जाति और धर्म खत्म होने चाहिएं।
18/02/2023
संपादकीय
अडानी प्रकरण: पर्देदारी क्यों!
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद देश के शेयर बाजार में हड़कंप मच गया और अडानी की कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट दर्ज की गयी। एक अनुमान के मुताबिक अडानी की कंपनियों के शेयर धारकों को करीब दस लाख करोड़ का घाटा होने का अनुमान है। वहीं, विश्व के अमीरों की सूची में नंबर दो के अमीर गौतम अडानी 22 वें नंबर पर पहुंच गये थे। हालांकि कि शेयरों में गिरावट से अडानी की जेब से सीधे तौर पर कुछ नहीं गया, लेकिन उनकी कंपनियों के शेयर धारकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। दूसरी तरफ विपक्ष सरकार पर हावी है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी समेत समूचे विपक्ष ने अडानी की कंपनियों पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में लगाये गये आरोपों की संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी से जांच करवाने तथा संसद में चर्चा की मांग को लेकर खूब हंगामा किया। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस के दौरान प्रतिपक्ष ने ना केवल सत्ता पक्ष, बल्कि प्रधानमंत्री पर भी आरोप लगाये। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस का जवाब देते हुए विपक्ष को आड़े हाथों लिया और खूब खरी-खोटी सुनाई। लेकिन हिंडनबर्ग रिपोर्ट और अडानी प्रकरण पर एक शब्द नहीं बोले। प्रधानमंत्री ने विपक्ष के आरोपों व सवालों का जवाब नहीं दिया। हालांकि इससे पहले अडानी को लेकर राहुल गांधी ने जो सवाल उठाये थे, उन्हें सबूत ना होने के आधार पर सदन की कार्यवाही से निकाल दिया था। यहां ये भी गौरतलब है संसद विचार-विमर्श के लिए है। इसलिए सदन की कार्यवाही को अदालत की तरह नहीं चलाया जा सकता है। सदन में चर्चा के लिए सबूत मांगे जाने से तो संसदीय लोकतंत्र पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाता है।
अडानी समूह की कंपनियों में देश के बैंकों, एल आई सी और म्यूचुअल फंड्स ने बड़ा निवेश किया है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद बाजार में हुई उथल-पुथल में सरकारी बैंक और एल आई सी आदि डूबेंगे या बचेंगे? ये सवाल यक्ष प्रश्न बन कर खड़ा है। इनमें आम आदमी का पैसा लगा है। इसलिए विपक्षी दलों की आम निवेशकों के हितों को लेकर चिंता वाजिब है। बेशक अडानी से जुड़े सवालों को सदन की कार्यवाही से हटा दिया, लेकिन संसद के बाहर विपक्ष और सोशल मीडिया में इस पर बहस को रोक पाना सहज नहीं है। हिंडनबर्ग रिपोर्ट में क्रोनी कैपिटलिज्म से जुड़े गंभीर मुद्दे उठाए हैं। इनको नजरंदाज नहीं किया जा सकता। अडानी समूह ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट को भारत पर हमला बताते हुए अपनी कंपनियों में सारा लेन-देन नियमानुसार होने का दावा किया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी सब कुछ सही होने की बात कही है, तो फिर सरकार को बहस करवाने में क्या दिक्कत है? खबरों के मुताबिक अडानी प्रकरण के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की रैंक पांचवें से छठे स्थान पहुंच गयी है।
हिंडनबर्ग रिपोर्ट को भारत की अर्थव्यवस्था पर हमला इसलिए भी नहीं माना जा सकता है कि इससे पहले वह अन्य देशों की कंपनियों के बारे में भी इस तरह की रिसर्च रिपोर्ट जारी कर चुका है। एक तरह से देखा जाये तो जहां कोरोना काल में देश में बड़ी आबादी की आमदनी घटी है, जिसके कारण गरीबों की संख्या बढ़ी है, वहीं अडानी की संपत्ति में जबरदस्त उछाल हिंडनबर्ग के सवालों को सही साबित करता है। एक सवाल ये भी है कि अभी तक अडानी समूह ने इस रिपोर्ट को लेकर हिंडनबर्ग के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने में भी कोई रूचि नहीं दिखाई है। विपक्ष के तमाम आरोपों के बावजूद सरकार का संसद में कोई जवाब ना देने और बहस ना करवाये जाने से शक और बढ़ गया है कि दाल में कुछ काला जरूर है।
सरकार और उद्योगपतियों के बीच नजदीकियां होना कोई नयी बात नहीं है और ना ही ये ग़लत है। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, टाटा, बिड़ला, डालमिया और बजाज आदि औद्योगिक घरानों से नजदीकियां जगजाहिर हैं। इसी प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अडानी और अंबानी समूहों से नजदीकियां किसी से छुपी हुई नहीं हैं। इन दोनों समूहों की कांग्रेस सरकारों से भी नजदीकी हैं। ये दोनों उद्योगपति उन प्रदेशों में भी निवेश कर रहे हैं, जहां कांग्रेस या अन्य दलों की सरकार है। सभी राज्य सरकारें उद्योगपतियों को अपने यहां निवेश करने के लिए समिट भी करवा रहीं हैं। देश के विकास के लिए सरकार और उद्योगपतियों के बीच परस्पर विश्वास और तालमेल होना जरूरी है। लेकिन ये देखना भी जरूरी है कि कहीं गैर कानूनी हथकंडे अपनाकर सत्ता से नजदीकियों का फायदा तो नहीं उठाया जा रहा है। अडानी प्रकरण के चलते विश्व बाजार में भारतीय कंपनियों की साख जरूर कम हुई है। इसके चलते विदेशी निवेश भी प्रभावित हो सकता है। हिंडनबर्ग के विदेशी कंपनी होने के आधार पर उसके आरोपों को खारिज नहीं किया जा सकता। ऐसे में सरकार को निवेशकों का विश्वास बनाये रखने के लिए हिंडनबर्ग रिपोर्ट में लगाये गये क्रोनी कैपिटलिज्म, टैक्स चोरी, धोखाधड़ी, टेक्स हेवन, हवाला और राजनीतिक संबंधों के जरिए लाभ लेने के आरोपों की जांच करवाया जाना जरूरी है। जहां विपक्ष इस मामले की संयुक्त संसदीय समिति से जांच करवाने की मांग कर रहा है, वहीं बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने तो अडानी की सारी संपत्ति का राष्ट्रीयकरण करने की मांग सरकार से की है। इस प्रकरण में सेबी जो कि शेयर बाजार की संवैधानिक नियामक संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में बताया है कि वह इस मामले पर नजर रखे हुए हैं और तमाम पहलुओं पर जांच कर रही है। हिंडनबर्ग रिपोर्ट के आने से पहले साल 2021 में टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र लिखकर इसी तरह के आरोप लगाकर अडानी समूह की जांच करवाने की मांग की थी। लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी। उस समय यदि जांच करवायी जाती तो हो सकता है कि आज ये नौबत ही ना आती। केंद्र सरकार को भी जनता का विश्वास जीतने और विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए पूरे प्रकरण की जेपीसी या न्यायिक जांच करवानी चाहिए।
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16/02/2023
अडानी प्रकरण पर पर्देदारी क्यों ! || DHARAMPAL DHANKHAR ||
15/02/2023
ऐसे गुंडों के खिलाफ जनता को सामने आना ही होगा।
11/02/2023
तुम्हारे पांव के नीचे जमीन नहीं है ! || DHARAMPAL DHANHKAR ||
10/02/2023
सत्ता का चरित्र निष्ठुरता से ही गढ़ा जाता है। दयालुता और संवेदना का पुट तो उसे महान जताने के लिए दिया जाता है।
09/02/2023
अडानी पर जांच से क्यों बच रही सरकार ! || DHARAMPAL DHANKHAR ||
07/02/2023
विवादों के भागवत || DHARAMPAL DHANKHAR ||
07/02/2023
जाति व्यवस्था भी इंसानों की देन है। अछूत भी इंसानों ने ही इंसानों को बनाया है। धर्म और भगवान भी इंसानों ने ही बनाये हैं। पश्चिमी देशों में गुलाम बनाते थे, हिंदुस्तान में अछूत। गुलाम या अछूत बनाने वाले चालाक और शक्तिशाली लोग थे। एक बात का जवाब दे दीजिए ब्राह्मण को सर्वश्रेष्ठ किसने बनाया? जिसने ब्राह्मण को सर्वश्रेष्ठ बनाया उसी ने जातियां बनायी हैं। मैं दावे के साथ कह सकता हूं अछूत ने तो जातियां नहीं बनायी। वैसे इस बात पर बहस का आज कोई औचित्य नहीं है कि किसने जाति बनायी, किसने स्वर्ण और अवर्ण बनाये? आज जरूरत जाति व धार्मिक व्यवस्थाओं के बंधनों को तोड़कर मानवता को प्रकृति के साथ जोड़कर संपूर्ण पृथ्वी को बचाने के लिए काम करने की है। लेकिन सत्ताधीश अपनी सत्ता बचाये रखने के लिए मानवता को बांटने में लगे है। इसलिए निवेदन है कि आप केवल अपनी जाति के लिए लड़ना छोड़कर, समस्त ब्रह्माण्ड को बचाने के लिए आगे आयें।
06/02/2023
मेरे देश की संसद मौन हैं....! || DHARAMPAL DHANKHAR ||
05/02/2023
एकता की जरूरत दूसरे समूह अथवा धर्म पर हमला करने या दूसरों के हमलों का मुकाबला करने के लिए ही पड़ती है। वर्ना एकता का सामान्य परिस्थितियों में कोई काम नहीं।
04/02/2023
हिंदू सेना ने सुप्रीम कोर्ट से क्यों की बीबीसी को बैन करने की मांग
|| Dharampal Dhankhar Show ||
03/02/2023
रामचरित मानस तुलसीदास ने अपने समसामयिक हालात और जनश्रुतियों के आधार पर लिखी थी। इसलिए रामचरित मानस में लिखी बातों पर पांच सौ साल बाद, बहस का कोई औचित्य नहीं है।
02/02/2023
प्रकृति विरुद्ध विकास रुके!
जोशीमठ क्षेत्र में भूधंसाव लगातार जारी है। उसे रोकने के तमाम प्रयास विफल साबित हो रहे हैं। अब तक हुए सभी सर्वेक्षणों में यह पाया गया है कि हिमालयी क्षेत्र में अनियंत्रित, अवैज्ञानिक और प्रकृति विरोधी विकास के चलते पहाड़ कमजोर हो रहे हैं। भूस्खलन और भूधंसाव की घटनाएं बढ़ रही हैं। जहां तक बात जोशीमठ की वर्तमान त्रासदी की है, सरकार वास्तविकता को छुपा रही है। यहां सरकार को वास्तविक स्थिति लोगों के सामने रखकर, उनके हित में उचित निर्णय लेना चाहिए। वहां के निवासी बेघर हो रहे हैं। वे पलायन को विवश हैं। क्षेत्र के निवासियों का मुख्य काम पशुपालन है। जिस तरह से लोगों को दूसरी जगहों पर शरण दी जा रही है, वो भी सुरक्षित नहीं है। जिन घरों में दरारें आ गयी हैं, उनके रहवासियों को वहीं होटलों आदि में शरण दी जा रही है। मवेशियों के लिए इतने बड़े पैमाने पर व्यवस्था कर पाना राज्य सरकार के बूते का काम तो है ही नहीं। केंद्र सरकार भी इसको लेकर कितनी गंभीर है इसका अंदाजा उसकी अब तक की कारगुज़ारी से सहज ही लगाया जा सकता है। ऐसे में सरकार की राजस्व उगाही के लिए चलाई जा रही विकास परियोजनाओं का खामियाजा स्थानीय निवासियों को उठाना पड़ रहा है। एक बात साफ है कि आदि शंकराचार्य का बसाया शहर जोशीमठ अब डूब रहा है। उसे बचा पाना संभव नहीं दिखता। जोशीमठ का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व हम सभी जानते हैं।
इस बीच प्राप्त जानकारी के मुताबिक बद्रीनाथ और नीति राजमार्गों में दरारें आ रही हैं। पुरानी दरारेंं चौड़ी हो रही है तथा रोजाना नयी दरारें पड़ रहीं हैं। इनका रखरखाव करने वाली एजेंसियां फिलहाल दरारों को मिट्टी आदि से भर रही हैं। ये दोनों राजमार्ग सामरिक महत्व के हैं। चीन सीमा तक पहुंचने के लिए सेना इन्हीं दोनों रास्तों का प्रयोग करतीं हैं। इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। इनके धंसने का मतलब है चीन सीमा से भारतीय सेना का संपर्क कटना। जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बेहद संवेदनशील मसला है। बद्रीनाथ हाईवे जोशीमठ से होकर गुजरता है। इसी राजमार्ग से आईटीबीपी कैंप के लिए सड़क जाती है, तो इसी राजमार्ग के साथ भारतीय सेना का बेस कैंप भी है। बद्रीनाथ हाईवे का करीब बारह किलोमीटर टुकड़ा जोशीमठ से होकर गुजरता है। इसमें से दस किलोमीटर धंसाव वाले क्षेत्र में पड़ता है। इसी प्रकार जोशीमठ से नीति हाईवे में भी कई जगहों पर दरारें आ रही हैं। नीति गांव चीन सीमा के पास का आखिरी गांव है। ये काफी चिंताजनक स्थिति है। राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से ना केवल इन दोनों राजमार्गों पर धंसाव रोकना जरूरी है, बल्कि वैकल्पिक मार्ग का होना भी जरूरी है।
पिछले दो ढ़ाई दशक में उत्तराखंड समेत हिमालयी क्षेत्र में चाहे केदारनाथ त्रासदी हो या हाल की जोशीमठ त्रासदी हो, इन सभी का कारण वहां चल रही विभिन्न विकास परियोजनाएं हैं। इनमें भी पहाड़ पर बढ़ती आबादी, तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को सुविधाएं देने वास्ते सड़क, रेलवे लाइन, और विद्युत परियोजनाओं का निर्माण किया जा रहा है।इन निर्माण कार्यों से पहाड़ को नुकसान पहुंच रहा है। रेल और विद्युत परियोजनाओं के लिए बड़ी संख्या में टनल बनायी जा रही हैं। इनमें ड्रिलिंग से पहाड़ों में दरारेंं आ रही हैं और पेड़ों की जड़ें हिल रही हैं। सुरंगों और पुलों के निर्माण के लिए गहराई तक ड्रिल किये जा रहे हैं, अवैज्ञानिक तरीके से विस्फोट किये जा रहे हैं, उनसे पहाड़ और प्रकृति को नुकसान हो रहा है। इसके चलते विभिन्न शहरों और कई गांवों के घरों में दरारें आ रही हैं। जमीन धंस रही है। चारधाम सड़क चौड़ीकरण परियोजना जिसे आल वेदर रोड़ नाम दिया गया है, के कारण भी कई जगहों पर मकानों में दरारें आयी हैं। इसी तरह चारधाम रेल परियोजना भारी तबाही का कारण बन सकती है। उत्तराखंड में सबसे बड़ी रेल परियोजना टिहरी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग और चमोली को जोड़ने वाली है। इसमें करीब सोलह सुरंगों का निर्माण किया जा रहा है, जिनमें एक देवप्रयाग से जनासू तक सबसे लंबी 14.8 किलोमीटर है। इसी परियोजना का दूसरा चरण जो पहले कर्ण प्रयाग से जोशीमठ तक था। इसे अब पीपल कोठी तक बनाया जायेगा। इसके अलावा गंगा और उसकी सहायक नदियों पर एक लाख तीस हजार करोड़ की छोटी-बड़ी परियोजनाएं बन रही हैं। कहने का तात्पर्य ये है कि पिछले एक डेढ़ दशक में उत्तराखंड में विकास के लिए अनेक बड़ी-बड़ी परियोजनाएं शुरू की गयी हैं। लेकिन इस विकास की बहुत बड़ी क़ीमत ना केवल पहाड़ बल्कि मैदानी क्षेत्रों के लोगों को भी चुकानी पड़ सकती है।
सवाल फिर यही आ जाता है कि क्या आपदाओं के चलते विकास ठप्प कर दिया जाये! जवाब होगा नहीं। लेकिन प्रकृति विरुद्ध विकास पर तत्काल रोक लगानी चाहिए। ना केवल उत्तराखंड बल्कि संपूर्ण हिमालय को संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया जाये। चूंकि भूस्खलन और भूधंसाव उत्तराखंड और हिमाचल में हीं नहीं, बल्कि उत्तरपूर्वी राज्यों में भी जारी है। दार्जिलिंग और सिक्किम आदि भी इसकी जद में हैं। इसलिए हिमालय क्षेत्र में चल रही छोटी-बड़ी तमाम परियोजनाओं की समीक्षा की जानी चाहिए। संवेदनशील क्षेत्रों में चल रही पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली परियोजनाओं को बंद किया जाये। साथ ही समूचे हिमालयी क्षेत्र के लिए प्रकृति और पर्यावरण के अनुकूल विकास परियोजनाएं बनायी जायें। इसके साथ ही पहाड़ों पर बढ़ते बड़े शहरों की प्रक्रिया को हतोत्साहित करना भी जरूरी है। प्राकृतिक दृष्टि से हिमालय पर्वत श्रृंखला दुनिया की सबसे युवा यानी नयी श्रृखंला है। पहाड़ कच्चा होने के कारण इसकी बार सहने की क्षमता भी कम है। इसलिए हिमालय पर बढ़ते जनसंख्या के दबाव को कम करने की रणनीति पर भी काम करना होगा। सबसे जरुरी है कोई भी विकास परियोजना परिस्थितिकी और पर्यावरण के अनुकूल होनी चाहिए। प्रकृति विभिन्न त्रासदियों के जरिए बार बार चेतावनी दे रही है। अब भी यदि केंद्र और राज्य सरकारों ने पर्यावरण विरोधी विकास परियोजनाओं को बंद करके पारिस्थितिकी संतुलन बनाने की दिशा में कारगर कदम नहीं उठाये तो इसके घातक परिणाम होंगे। यह सर्व विदित तथ्य है कि प्रकृति सदैव अपनी पूर्व अवस्था को प्राप्त करने के लिए गतिशील रहती है। और जब वह बड़ा बदलाव करती है तो उसे हम त्रासदी कहते हैं।
31/01/2023
मोहब्बत की दुकान से राहुल बनाएंगे बीजेपी मुक्त भारत ? || DHARAMPAL DHANKHAR ||
31/01/2023
ये अंग्रेजों के पिट्ठू थे, गुलाम थे, टोडी बच्चा थे, इससे क्या फर्क पड़ता है! आज तो ये देश के हुकुमरां हैं ना! इनके आदेश पर किसानों के बेटे और भाई ही नौकर के तौर पर लाठी-गोली चलाने को मजबूर हैं। जलियांवाला बाग में आदेश देने वाला जनरल डायर अंग्रेज था, लेकिन गोलियां बरसाने वाले सिपाही हमारे ही भाई-बंध और बेटे थे। वैसी ही स्थिति आज है। अंतर है तो केवल इतना कि तब हुकुमरां अंग्रेज थे, अब हम-वतन हैं। बंदूक और लाठी तो तब भी हमारे लोगों के हाथ में थी, आज भी। बस हुकुम अंग्रेज का या ...।
29/01/2023
खट्टर साहब नौकरियों देने की आपकी ट्रांसपेरेंट पालिसी पर अब तो केंद्रीय मंत्री भी सवाल उठाने लगे। क्या यही- बिन खर्ची, बिन पर्ची की ट्रांसपेरेंट सरकार है!
29/01/2023
राम रहीम का नया विवाद और सरकार की रहमत || DHARAMPAL DHANKHAR ||
सिरसा के डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह एक बार फिर विवादों के घेरे में है। साध्वियों के यौन शोषण और पत्रकार रामचन्द्र छत्रपति की हत्या के दोष में 20-20 साल की सजा काट रहा राम रहीम, चालीस दिन की पैरोल पर है। राम रहीम का विवादों से पुराना और गहरा नाता रहा है। वह कभी दसवें सिख गुरु गोविन्द सिंह जैसी ड्रेस पहनकर विवादों में आये थे। हालांकि इस ड्रेस के लिए बाद में माफी भी मांग ली थी। चंद रोज पहले या रहीम तलवार से केक काटने को लेकर चर्चाओं में रहे। ताज़ा विवाद तिरंगी यानी तीन रंगों की बोतल फेंकने को लेकर है।
-धर्मपाल धनखड़
26/01/2023
माइंड रीडर सुहानी शाह ने टी वी चैनल पर लाइव दिखाकर, धीरेन्द्र शास्त्री के चमत्कार को जादुई ट्रिक साबित किया। सनातन का मतलब धोखा, फरेब और बचकानी हरकतें करना तो नहीं होता!
26/01/2023
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राम रहीम का नया विवाद और सरकार की रहमत || DHARAMPAL DHANKHAR || सिरसा के डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह एक बार फिर विवादों के घेरे में है। साध्वियों के यौन शोषण और पत्रकार रामचन्द्र छत्रपति की हत्या के दोष में 20-20 साल की सजा काट रहा राम रहीम, चालीस दिन की पैरोल पर है। राम रहीम का विवादों से पुराना और गहरा नाता रहा है। वह कभी दसवें सिख गुरु गोविन्द सिंह जैसी ड्रेस पहनकर विवादों में आये थे। हालांकि इस ड्रेस के लिए बाद में माफी भी मांग ली थी। चंद रोज पहले या रहीम तलवार से केक काटने को लेकर चर्चाओं में रहे। ताज़ा विवाद तिरंगी यानी तीन रंगों की बोतल फेंकने को लेकर है। -धर्मपाल धनखड़
खेल जगत में व्याप्त गंदगी साफ करेंगे मोदी ? कुश्ती संघ अध्यक्ष पर यौन प्रताडना के आरोप भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक जीतकर देश का नाम रोशन करने वाले पहलवानों ने तानाशाही, जान मारने की धमकी देने और यौन प्रताड़ना जैसे गंभीर आरोप लगाये हैं। कुश्ती संघ के अध्यक्ष के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर टोक्यो ओलंपिक के कांस्य पदक विजेता बजरंग पूनिया, रियो ओलिंपिक की मेडल विजेता साक्षी मलिक, विश्व चैम्पियनशिप की पदक विजेता विनेश फोगाट, एशियाई चैंपियनशिप पदक विजेता सरिता मोर, संगीता फोगाट, विश्व चैम्पियनशिप में पदक जीतने वाली अंशु मलिक, सोनम मलिक, द्रोणाचार्य अवार्डी, सत्यव्रत कादियान और सुजीत मान समेत तीस नामी पहलवान जंतर-मंतर पर धरना दे रहे हैं। -धर्मपाल धनखड़
शुरू हुई 2024 की तैयारी, अब 2023 की जंग की बारी ! ||DHARAMPAL DHANKHAR || देश की दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियों कांग्रेस और भाजपा समेत सभी दल 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे हैं, तो बीजेपी खास तौर पर लोकसभा की उन 160 सीटों पर फोकस कर रही है, जहां पिछले चुनाव में वह हारी थी। लेकिन 2024 से पहले इस साल नौ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और भाजपा समेत कई क्षेत्रीय दलोंं की अग्नि परीक्षा होनी है। गुजरात विधानसभा चुनाव में प्रचंड़ जीत का प्रचम फहराने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभामंडल कितना बढ़ा है! वहीं भारत जोड़ो यात्रा से नायक बनकर उभरे राहुल गांधी की मोहब्बत की दुकान से कांग्रेस, कितनी मजबूत हुई ये भी इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों से ही तय होगा।
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