14/06/2021
इस लेख में हम जानेंगे वेदों के एक ऐसे विषय पे जिसके कारण वेदों के शब्दों का अनर्थ किया जाता है ,वह विषय है -वेदों में शब्द के प्रकार |
सबसे पहले जान लेते हैं शब्द कितने प्रकार के होते हैं -
एक दृष्टि के अनुसार शब्द ३ प्रकार के होते हैं -
१) यौगिक
२) योगरूढ़ी
३) रूढ़ी
यौगिक शब्द किसे कहते हैं ?
यौगिक उनको कहते हैं कि जो प्रकृति और प्रत्ययार्थ तथा अवयवार्थ का प्रकाश करते हैं , दुसरे शब्दों में ,
जो भी शब्द अपने गुण, स्वाभाव को बतलाते हैं उन्हें यौगिक कहते हैं|
यह प्रायः वेदों और ब्राह्मण ग्रन्थो में ही दिखने को मिलते हैं |उदहारण के रूप में -
"गुरु" शब्द | यह यौगिक शब्द है , इसलिए वेदों में ये शब्द जहाँ जहाँ आयेगा उसका अर्थ अष्टाध्यायी , धातुपाठ अनुसार लिया जायेगा , न की किसी मनुष्य का गुरु नाम हो तो वो लिया जायेगा |
यौगिक शब्दों के अर्थ धातुपाठ द्वारा किये होते हैं |
वेदों में २ प्रकार के शब्द होते हैं -
१) यौगिक शब्द
२) योगरूढ़ी शब्द |
चलिए अब जानते हैं योगरूढ़ी शब्द किसे कहते हैं -
योगरूढ़ि उनको कहते हैं कि जो अवयवार्थ का प्रकाश करते हुए अपने योग से अन्य अर्थ में नियत हों, दुसरे शब्दों में ,किसी भी शब्द के अर्थ अनुसार कोई पदार्थ मिलता है जगत में तो वह उस नाम से प्रसिद्ध हो जाता है | जैसे अश्व शब्द को लेते हैं , अश्व शब्द का अर्थ है जो तीव्र गति से आगे बढ़ते हुवे लक्ष्य को प्राप्त करे | इस अर्थ अनुसार जो मेल खाने वाला पशु घोडा है , वह अश्व नाम से संसार में प्रसिद्ध हो गया | इसका तात्पर्य ये नही की वेदों में केवल घोड़े को ही अश्व कहा जायेगा बल्कि , उस प्रकरण अनुसार किसी भी पदार्थ ,जीव को जो तीव्र गति से लक्ष्य को प्राप्त करे उसे अश्व कहके अर्थ किया जायेगा |
अब अगला आता है रुढ़िवादी शब्द -
रूढ़ि उनको कहते हैं कि जिनमें प्रकृति और प्रत्यय का अर्थ न घटता हो, किन्तु ये संबोधक हों, दुसरे शब्दों में , रुढ़िवादी शब्द उन्हें कहते हैं जो बिना अर्थ के किसी का भी नाम रख दिया जाता है, जैसे किसी मनुष्य का नाम , किसी व्यक्ति ने अपने बैल का नाम नन्दी रख दिया |यहाँ बैल के लिए संस्कृत में "उक्षा" जो शब्द है वह तो योगरूढ़ी शब्द है , लेकिन उसका "नन्दी" नाम रूढ़ीवादी शब्द है | रुढ़िवादी शब्द वेदों में नही होते | परन्तु कई लोग जो वेदों का भाष्य करते हैं वह बिना जाने रुढ़िवादी अर्थ कर देते हैं , जैसे कई लोग वेदों में किसी मनुष्य का नाम ढूंढने लगते हैं, हिन्दू लोग देवी देवताओं के नाम को ढूंढने लगते हैं ,मुसलमान लोग अपने पैगम्बर को ढूंढने लगते हैं , इसाई लोग जीसस को ढूंढने लगते हैं | बिना वेदों और व्याकरण को जाने रूढ़ीवाद अर्थ करके वेदों के अर्थ का अनर्थ करते हैं , और इसका उल्टा कहते हैं की स्वामी दयानन्द ने अर्थ का अनर्थ कर दिया |
जब वैदिक शब्दों को लोक -संसार में लौकिक रूप में प्रयोग किया जाता है तो वह रूढ़ीवादी शब्द हो जाता है |
चलिए अब इसका प्रमाण मैं देता हु की वेदों में केवल यौगिक और योगरूढ़ी शब्द होते हैं -
निरुक्त "1/12" में यह श्लोक लिखा है -
"नामाख्याते चोपसर्गनिपाताश्च । तत्र नामान्याख्यातजानीति शाकटायनो नैरुक्तसमयश्च । न सर्वाणीति गार्ग्यो वैयाकरणानां चैके ||"
जिसमे यह बतलाया गया है की "सब नाम , आख्यातज उपसर्ग और प्रत्यय से मिलकर बने होते हैं | परन्तु गार्ग्य तथा वैयाकरणों में से कुछ एक ऐसा मानते हैं की सब नाम आख्यातज नही हैं |
आख्यात का तात्पर्य है "क्रियावाची शब्द" और नाम का तात्पर्य है "संज्ञा"|
इस श्लोक का अर्थ यही है की सब संज्ञा , क्रियावाची शब्द उपसर्ग और प्रत्यय से मिलकर बने हैं , परन्तु गार्ग्य अथवा अन्य वैयाकरणों में से कुछ एक ऐसा मानते हैं की सारे संज्ञा क्रियावाची नही होते |
कोई भी शब्द उपसर्ग और प्रत्यय अर्थात prefix aur suffix में मिलकर बने होते हैं |जैसे "अग्नि" शब्द में "अग्" उपसर्ग है और "नी" एक प्रत्यय है |
इसके अतिरिक्त महर्षि पतंजलि महाभाष्य में यह श्लोक लिखते हैं, जिसका अर्थ है -" संज्ञा को निरुक्त में धातुज अर्थात क्रियावाची माना है , तथा व्याकरण में भी शाकटायन का ये मत है | इस श्लोक में आया है की "नैगमरुढ़िभवं ही सुसाधु" अर्थात नैगम अलग हैं और रुढ़ि अलग हैं | अर्थात वेदों में रुढ़िवादी शब्द नही हैं , ये महर्षि पतंजलि का कहना है|
वेदों में रुढ़िवादी शब्द नही होते ये सिद्ध कर दिया है |
✍ सूर्यांश