ओजस्वद् । Ojasvad

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अपने मन से गुलामी मानसिकता खतम करना ही नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को देने योग्य सर्वोत्तम श्रद्धांजलि होगी। नेता जी को शत ...
23/01/2023

अपने मन से गुलामी मानसिकता खतम करना ही
नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को देने योग्य सर्वोत्तम श्रद्धांजलि होगी। नेता जी को शत शत नमन 🙏🪔

पुराण वर्णित भगवान बुद्ध का जन्म किकट प्रदेश में हुआ जबकि गौतम बुद्ध का जन्म लुंबिनी नेपाल में हुआ था। दोनो भिन्न व्यक्त...
20/10/2022

पुराण वर्णित भगवान बुद्ध का जन्म किकट प्रदेश में हुआ जबकि गौतम बुद्ध का जन्म लुंबिनी नेपाल में हुआ था। दोनो भिन्न व्यक्ति थे।

जब दयानंद सरस्वती स्वयं एक गुरु के तलाश में भटक रहे थे, न ज्ञानी थे ना कुछ तब वे कैसे 1857 क्रांति के सूत्रधार बने? वे उ...
30/09/2022

जब दयानंद सरस्वती स्वयं एक गुरु के तलाश में भटक रहे थे, न ज्ञानी थे ना कुछ तब वे कैसे 1857 क्रांति के सूत्रधार बने? वे उस काल खंड में न तो झांसी गए न बिठूर, ना ही कोलकाता पर यह बात अनार्य समाजी को कौन समझाए जिन्हें हर हाल में झूठ ही पड़ोसना है इतिहास से कटे हिंदुओ को फांसने केलिए? बिना प्रमाण कुछ भी कह देते है और कुछ मूर्ख मान लेते है पर अच्छी बात है कि धार्मिक आर्य जैसे गिने चुने आर्य समाजी इन झूठ के विरुद्ध आवाज़ बुलंद कर रहें हैं। हमें इस पोस्ट का कॉमेंट off रखना होगा क्योंकि जो लोग दयानंद समाज से परिचित है वें भली भांति जानते है कि जहां इनके पास प्रमाण न हो ये गाली गलोच पर उतरते है और हम नही चाहते बच्चे वो गालियां पढ़े। बाकि झूठ का विरोध यहां से होता रहेगा, मीनाक्षी जैन एक इतिहासकार है जो स्पष्ट रूप से जांच कर प्रमाण सहित Plight of Brahmins में कहीं के 80% योगदान क्रांति में किनका था परंतु अनार्य समाज आज तक 10-12 नाम से अधिक नही गिना पाए प्रमाण सहित, बस कोई ठहर गया इनके मंदिर में यह भी इनके लिए आर्य समाजी कहलाने हेतु पर्याप्त है। हमें आर्य समाज से द्वेष नहीं परंतु झूठ के आधार पर लोगो को प्रभावित करना यह सोचकर की विरोध नहीं होगा यह हठ त्यागना होगा। यह अकाउंट तो छोटा सा है, हिंदू जिस दिन आपके झूठ का खुलकर विरोध में उतरेंगे या प्रमाण मांगने लगेंगे उस दिन आपके संतान इसी झूठ केलिए लज्जित होंगे यह स्मरण रखें। इस सत्य कथन केलिए यदि आप इस अकाउंट को unfollow करना चाहें तो आपका स्वागत है।

1857 के क्रांति और 80% क्रांति में दयानंद सरस्वती का प्रत्यक्ष परोक्ष योगदान का कोई प्रामाणिक इतिहास नही सिवाय आर्य समाजी पुस्तकों के जो स्वयं रचे अपने मिथ्या को एक आधार देने केलिए, उन पुस्तक तक में कोई प्रमाण प्रस्तुस नही। जिन दयानंदी और सत्य से अपरिचित हिंदू को हमें गाली देना है DM में आपका स्वागत है।

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जगतगुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के चरणों में हमारी भावभीनी श्रद्धांजलि और नमन 🙏😞 ओम् शांति
11/09/2022

जगतगुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के चरणों में हमारी भावभीनी श्रद्धांजलि और नमन 🙏😞 ओम् शांति

15/08/2022

तिरंगा तो लहराया पर दिल में एक ही प्रश्न गूंज रहा है,
"क्या भारत सही में स्वतंत्र है? क्या यह तंत्र/व्यवस्था हमारी है?"

हमारा असली स्वतंत्रता दिवस क्या वह दिन नही जब नेताजी सुभाष ने अपने व्यवस्था अनुसार हमारा स्वतंत्र सरकार बनाया? वो दिन न होता तो आज हम शारीरिक गुलाम भी रहते, कितनो को याद है वो दिन?

यह  चित्र  नेपाल  का  है  जहां  पुरोहित  अपने  यजमान   को  रक्षा  सूत्र  बांधकर  श्रावणी  पूर्णिमा  पर्व  मनाते  हैं |  ...
11/08/2022

यह चित्र नेपाल का है जहां पुरोहित अपने यजमान को रक्षा सूत्र बांधकर श्रावणी पूर्णिमा पर्व मनाते हैं |
यही इस पर्व का प्राचीनतम इतिहास भी है . पुरोहित ब्राह्मण अपने यजमानों को रक्षा सूत्र बांधकर धर्म और राष्ट्र की रक्षा का वचन लेते थे |

अकबर के भरे दरबार में प्रतिबंध के बाद भी राणाशक्ति सिंह ने ब्राह्मण से रक्षा सूत्र बंधवाकर मुगलों की धर्मांधता का उत्तर दिया था लेकिन दुर्भाग्य से भारत में यह पर्व अपने आदर्शों से भटक कर भाई बहन का त्योहार बन कर रह गया है | त्योहारों में आ रहे इन प्रदूषणों को दूर करना चाहिए ||

11/06/2022
13/05/2022

ईसाइयत और इस्लाम में धर्मांतरित होने वाले दलितों को भी मिलेगा आरक्षण? मोदी सरकार बनाने जा रही है पैनल

http://dhunt.in/vlj6I?s=a&uu=0x3c366cb5cb430679&ss=pd
Source : "Live हिन्दुस्तान" via Dailyhunt

*भाजपा के इस निर्णय से धर्मांतरण और तीव्र गति से होगी और भारत केलिए संकट बढ़ेंगे*

भगवान शिव द्वारा भगवती उमा को दिया धर्मोपदेश –(महाभारत अनुशासन पर्व, दानधर्म पर्व, 145)विद्याभ्यासैर्वृद्धयोगैरात्मानं व...
01/03/2022

भगवान शिव द्वारा भगवती उमा को दिया धर्मोपदेश –

(महाभारत अनुशासन पर्व, दानधर्म पर्व, 145)

विद्याभ्यासैर्वृद्धयोगैरात्मानं विनयं नयेत् ।
विद्या धर्मार्थफलिनी तद्विदो वृद्धसंशिताः ॥

विद्या के अभ्यास और वृद्ध पुरुषों के सङ्ग से अपने आपको विनयशील बनाये। विद्या धर्म और अर्थ रूप फल देने वाली है । जो उस विद्या के ज्ञाता हैं, उन्हीं को वृद्ध कहते हैं ।

मनसा बद्ध्यते चापि मुच्यते चापि मानवः ॥
निगृहीते भवेत् स्वर्गो विसृष्टे नरको ध्रुवः।

अर्थ -मन से ही मनुष्य बँधता है और मन से ही मुक्त होता है। यदि मन को वश में कर लिया जाय, तब तो सुख मिलता है और यदि उसे खुला छोड़ दिया जाय तो दुःख की प्राप्ति अवश्यम्भावी है।

विद्यया स्फीयते शानं ज्ञानात् तत्त्वविदर्शनम्।
दृष्टतत्त्वो विनीतात्मा सर्वार्थस्य च भाजनम् ॥

विद्या से ज्ञान बढ़ता है, ज्ञान से तत्त्वका दर्शन होता है और तत्त्व का दर्शन कर लेने के पश्चात् मनुष्य विनीत चित्त होकर समस्त पुरुषार्थी का भाजन हो जाता है ।।

शक्यं विद्याविनीतेन लोके संजीवनं शुभम् ॥
आत्मानं विद्यया तस्मात् पूर्व कृत्वातुभाजनम्।
वश्येन्द्रियो जितक्रोधो भूतात्मानं तु भावयेत् ॥

विद्या से विनीत हुआ पुरुष संसारमें शुभ जीवन बिता सकता है। अतः अपने आपको पहले विद्या द्वारा पुरुषार्थ का भाजन बनाकर क्रोध विजयी एवं जितेन्द्रिय पुरुष सपूर्ण भूतों के आत्मा-परमात्मा का चिन्तन करे ।

भावयित्वा तदाऽऽत्मानं पूजनीयः सतामपि ॥
कुलानुवृत्तं वृत्तं वा पूर्वमात्मा समाश्रयेत् ।

परमात्माका चिन्तन करके मनुष्य सत्पुरुषोंके लिये पूजनीय बन जाता है । जीवात्मा पहले कुलपरम्परा से आते हुए सदाचारका ही आश्रय ले ।।

यदि चे विद्यया चैव वृत्ति का दद्यात्मनः ॥
राजविद्यां तु वा देवि लोकविद्यामथापि वा।
तीर्थतश्चापि गृह्णीयाच्छुश्रूषादिगुणैर्युतः॥
ग्रन्थतश्चार्थतश्चैव दृढं कुर्यात् प्रयत्नतः॥

यदि विद्या से अपनी जीविका चलाने की इच्छा हो तो शुश्रूषा आदि गुणों से सम्पन्न हो किसी गुरु से राजविद्या अथवा लोकविद्या की शिक्षा ग्रहण करे और उसे ग्रन्थ एवं गर्थ के अभ्यास द्वारा प्रयत्न पूर्वक दृढ़ करे।

एवं विद्याफलं देवि प्राप्नुयान्नान्यथा नरः ।
न्यायाद् विद्याफलानीच्छेदधर्म तत्र वर्जयेत् ॥

ऐसा करने से मनुष्य विद्या का फल पा सकता है, अन्यथा नहीं । न्याय से ही विधा जनित फलों को पाने की इच्छा करे। वहाँ अधर्म को सर्वथा त्याग दे ॥

आत्मसाक्षी भवेन्नित्यमात्मनस्तु शुभाशुभे ।
मनसा कर्मणा वाचा न च काङ्क्षत पातकम् ॥

अपने शुभ और अशुभ कर्म में सदा अपने-आपको ही साक्षी माने और मन, वाणी तथा क्रिया द्वारा कभी पाप करने की इच्छा न करे ॥

|| महाशिवरात्रि की सभी को ढेरों शुभकामनाएं एवं बधाई ||

#महाशिवरात्रि #महाशिवरात्री #शिवरात्रि #शिव #शंकर

प्रस्तुति – ओजस्वद् । Ojasvad (सूर्यांश एवम् पल्लवी)

 #वेद तथा  #ब्राह्मण_ग्रंथों के मंत्रों के रूढ़िवादी अनुचित/गलत अर्थ निकाला मिस्र वासियों ने और वह अनुचित अनुवाद पहुंचा ...
20/02/2022

#वेद तथा #ब्राह्मण_ग्रंथों के मंत्रों के रूढ़िवादी अनुचित/गलत अर्थ निकाला मिस्र वासियों ने और वह अनुचित अनुवाद पहुंचा यहूदियों के मत में।

15/12/2021

How actually did Alexander die?
Unveiling Alexander's death mystery with sources ↓

(1.) Greek Historian & Geographer "Strabo" wrote in his book "Geographika" that "one's who wrote victory of Alexander were a set of liars hired to hide the shame"

(2.) Egyptologist & Philologist "E.A.W Budge" in his book "The Life and Exploits of Alexander" wrote "Indians soldiers & war elephants destroyed majority of the cavalry, realizing that he could be completely ruined thus Alexander requested King Porus to stop the fight & King Porus spared the life of Alexander out of mercy"

(3.) Russian history scholar & Marshal "Gregory Zhukov" said "Alexander's actions after the battle of Hydaspse suggest he faced an out right defeat" further he concluded "Alexander suffered a greater setback in India than Napolean in Russia".. his these statements are preserved in many Russian books - Blog - Marshal Zhukov on Alexander’s failed India invasion - Russia Beyond
https://www.rbth.com/blogs/2013/05/27/marshal_zhukov_on_alexanders_failed_india_invasion_25383

4.) King Porus's brother "Amar" killed Army commander of Alexander, King Porus's son Malayketu battled Seleucus 1 Nicator who came to take revenge of Alexander's death in Babylon which was due to lung pain as King Puru's spear wounded Alexander's lung and ribs.
Source : Independent Greek historian "Strabo" in his book "Geographika"

5.) Indian History book where this battle is written by Indian historians "Mudra Rakshasa"

Academic books tell us India was found by Vasco Da Gama for the first time in July 1497.. if so then story of Alexander would be a fake which it isn't.

वैदिक / वास्तविक "ईश्वर" कौन है? जानें वेद से संक्षिप्त में।ईश्वर को जानें तद्पश्चात मानें।
03/09/2021

वैदिक / वास्तविक "ईश्वर" कौन है? जानें वेद से संक्षिप्त में।
ईश्वर को जानें तद्पश्चात मानें।

धर्म क्या हैं?
03/09/2021

धर्म क्या हैं?

14/06/2021

नमस्ते सभी को ,इस लेख में हम जानेंगे वेदों के एक ऐसे विषय पे जिसके कारण वेदों के शब्दों का अनर्थ किया जाता है ,वह विषय है -वेदों में शब्द के प्रकार |

सबसे पहले जान लेते हैं शब्द कितने प्रकार के होते हैं -
एक दृष्टि के अनुसार शब्द ३ प्रकार के होते हैं -
१) यौगिक
२) योगरूढ़ी
३) रूढ़ी

यौगिक शब्द किसे कहते हैं ?
यौगिक उनको कहते हैं कि जो प्रकृति और प्रत्ययार्थ तथा अवयवार्थ का प्रकाश करते हैं , दुसरे शब्दों में ,
जो भी शब्द अपने गुण, स्वाभाव को बतलाते हैं उन्हें यौगिक कहते हैं|
यह प्रायः वेदों और ब्राह्मण ग्रन्थो में ही दिखने को मिलते हैं |उदहारण के रूप में -
"गुरु" शब्द | यह यौगिक शब्द है , इसलिए वेदों में ये शब्द जहाँ जहाँ आयेगा उसका अर्थ अष्टाध्यायी , धातुपाठ अनुसार लिया जायेगा , न की किसी मनुष्य का गुरु नाम हो तो वो लिया जायेगा |
यौगिक शब्दों के अर्थ धातुपाठ द्वारा किये होते हैं |

वेदों में २ प्रकार के शब्द होते हैं -
१) यौगिक शब्द
२) योगरूढ़ी शब्द |

चलिए अब जानते हैं योगरूढ़ी शब्द किसे कहते हैं -

योगरूढ़ि उनको कहते हैं कि जो अवयवार्थ का प्रकाश करते हुए अपने योग से अन्य अर्थ में नियत हों, दुसरे शब्दों में ,किसी भी शब्द के अर्थ अनुसार कोई पदार्थ मिलता है जगत में तो वह उस नाम से प्रसिद्ध हो जाता है | जैसे अश्व शब्द को लेते हैं , अश्व शब्द का अर्थ है जो तीव्र गति से आगे बढ़ते हुवे लक्ष्य को प्राप्त करे | इस अर्थ अनुसार जो मेल खाने वाला पशु घोडा है , वह अश्व नाम से संसार में प्रसिद्ध हो गया | इसका तात्पर्य ये नही की वेदों में केवल घोड़े को ही अश्व कहा जायेगा बल्कि , उस प्रकरण अनुसार किसी भी पदार्थ ,जीव को जो तीव्र गति से लक्ष्य को प्राप्त करे उसे अश्व कहके अर्थ किया जायेगा |

अब अगला आता है रुढ़िवादी शब्द -

रूढ़ि उनको कहते हैं कि जिनमें प्रकृति और प्रत्यय का अर्थ न घटता हो, किन्तु ये संबोधक हों, दुसरे शब्दों में , रुढ़िवादी शब्द उन्हें कहते हैं जो बिना अर्थ के किसी का भी नाम रख दिया जाता है, जैसे किसी मनुष्य का नाम , किसी व्यक्ति ने अपने बैल का नाम नन्दी रख दिया |यहाँ बैल के लिए संस्कृत में "उक्षा" जो शब्द है वह तो योगरूढ़ी शब्द है , लेकिन उसका "नन्दी" नाम रूढ़ीवादी शब्द है | रुढ़िवादी शब्द वेदों में नही होते | परन्तु कई लोग जो वेदों का भाष्य करते हैं वह बिना जाने रुढ़िवादी अर्थ कर देते हैं , जैसे कई लोग वेदों में किसी मनुष्य का नाम ढूंढने लगते हैं, हिन्दू लोग देवी देवताओं के नाम को ढूंढने लगते हैं ,मुसलमान लोग अपने पैगम्बर को ढूंढने लगते हैं , इसाई लोग जीसस को ढूंढने लगते हैं | बिना वेदों और व्याकरण को जाने रूढ़ीवाद अर्थ करके वेदों के अर्थ का अनर्थ करते हैं , और इसका उल्टा कहते हैं की स्वामी दयानन्द ने अर्थ का अनर्थ कर दिया |
जब वैदिक शब्दों को लोक -संसार में लौकिक रूप में प्रयोग किया जाता है तो वह रूढ़ीवादी शब्द हो जाता है |

चलिए अब इसका प्रमाण मैं देता हु की वेदों में केवल यौगिक और योगरूढ़ी शब्द होते हैं -

निरुक्त "1/12" में यह श्लोक लिखा है -

"नामाख्याते चोपसर्गनिपाताश्च । तत्र नामान्याख्यातजानीति शाकटायनो नैरुक्तसमयश्च । न सर्वाणीति गार्ग्यो वैयाकरणानां चैके ||"

जिसमे यह बतलाया गया है की "सब नाम , आख्यातज उपसर्ग और प्रत्यय से मिलकर बने होते हैं | परन्तु गार्ग्य तथा वैयाकरणों में से कुछ एक ऐसा मानते हैं की सब नाम आख्यातज नही हैं |

आख्यात का तात्पर्य है "क्रियावाची शब्द" और नाम का तात्पर्य है "संज्ञा"|
इस श्लोक का अर्थ यही है की सब संज्ञा , क्रियावाची शब्द उपसर्ग और प्रत्यय से मिलकर बने हैं , परन्तु गार्ग्य अथवा अन्य वैयाकरणों में से कुछ एक ऐसा मानते हैं की सारे संज्ञा क्रियावाची नही होते |

कोई भी शब्द उपसर्ग और प्रत्यय अर्थात prefix aur suffix में मिलकर बने होते हैं |जैसे "अग्नि" शब्द में "अग्" उपसर्ग है और "नी" एक प्रत्यय है |

इसके अतिरिक्त महर्षि पतंजलि महाभाष्य में यह श्लोक लिखते हैं, जिसका अर्थ है -" संज्ञा को निरुक्त में धातुज अर्थात क्रियावाची माना है , तथा व्याकरण में भी शाकटायन का ये मत है | इस श्लोक में आया है की "नैगमरुढ़िभवं ही सुसाधु" अर्थात नैगम अलग हैं और रुढ़ि अलग हैं | अर्थात वेदों में रुढ़िवादी शब्द नही हैं , ये महर्षि पतंजलि का कहना है|

वेदों में रुढ़िवादी शब्द नही होते ये सिद्ध कर दिया है |
✍ सूर्यांश

10/06/2021

क्या ब्राह्मण ग्रन्थ इत्यादि शाखाएं स्वयं वेद हैं ?

उत्तर - ब्राह्मण ग्रन्थ वेद नही हो सकते, क्यूंकि इनका नाम इतिहास, पुराण ,कल्प, गाथा, और नाराशंसी है| लौकिक इतिहास होने से ब्राह्मण ग्रन्थ वेद नही हो सकते | जैसे ब्राह्मण ग्रन्थों में मनुष्यों के नाम उल्लेखित हैं और थोडा बहोत लौकिक इतिहास भी है , वैसे मन्त्र भाग में नही है| मन्त्र भाग वेद है , ब्राह्मण भाग वेद नही है |किसी ऋषि ने ब्राह्मण ग्रन्थों को वेद नही कहा |

यस्मादृचो अपातक्षन् यजुर्यस्मादपाकषन् ।
सामानि यस्य लोमान्यथर्वांगिरसो मुखं स्कम्भन्तं ब्रूहि कतमः स्विदेव सः ।।
(अथर्ववेद 10/7/20)

भावार्थ - ईश्वर ने ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद को ऋषियों को प्रदान किया और अथर्ववेद को अंगीरा ऋषि को प्रदान किया|

जब वेद ईश्वर का ज्ञान हैं जिसमे ज्ञान, कर्म , उपासना और विज्ञान विषय हैं , उसमे मानवीय लौकिक इतिहास कहाँ से प्राप्त हो सकेगा क्युकी इतहास तब होता है जब वो घटना हो जाती है , जबकि ईश्वर ने आदि सृष्टि में ऋषियों को वेद दिया क्युकी बिना ज्ञान के मनुष्य कुछ भी व्यवहार इत्यादि ज्ञान नही सीख सकता| वहीँ ब्राह्मण ग्रन्थों को रचने वाले ऋषि थे एवं उनमे जो ब्राह्मण भाग है उसमे वेदों का व्याख्या एवं लौकिक इतिहास है |

छन्दोब्राह्मणानि च तद्विषयाणि ||(अष्टाध्यायी 4/2/66)
महर्षि पाणिनि द्वारा रचित अष्टाध्यायी में वेद और ब्राह्मण ग्रन्थो को अलग अलग कहके बताया गया है | इससे स्पष्ट हो जाता है की वेद मन्त्रभाग और ब्राह्मण व्याख्या भाग है |

ईश्वर सगुण है या निर्गुण?

उत्तर - ईश्वर सगुण और निर्गुण दोनों है |
सगुण का अर्थ होता है जिसमे वह गुण हो , और निर्गुण का अर्थ होता है जिसमे वह गुण न हो | जैसे ईश्वर में सर्वज्ञता का गुण है और अल्पज्ञता का गुण नही है | संसार का हर तत्त्व सगुण और निर्गुण दोनों होता है |

स पर्य॑गाच्छु॒क्रम॑का॒यम॑व्र॒णम॑स्नावि॒रꣳ शु॒द्धमपा॑पविद्धम्। क॒विर्म॑नी॒षी प॑रि॒भूः स्व॑य॒म्भूर्या॑थातथ्य॒तोऽर्था॒न् व्य᳖दधाच्छाश्व॒तीभ्यः॒ समा॑भ्यः ॥ (यजुर्वेद 40/8)

पदार्थ- जो ब्रह्म (शुक्रम्) शीघ्रकारी सर्वशक्तिमान् (अकायम्) स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीररहित (अव्रणम्) छिद्ररहित और नहीं छेद करने योग्य (अस्नाविरम्) नाड़ी आदि के साथ सम्बन्धरूप बन्धन से रहित (शुद्धम्) अविद्यादि दोषों से रहित होने से सदा पवित्र और (अपापविद्धम्) जो पापयुक्त, पापकारी और पाप में प्रीति करनेवाला कभी नहीं होता (परि, अगात्) सब ओर से व्याप्त जो (कविः) सर्वत्र (मनीषी) सब जीवों के मनों की वृत्तियों को जाननेवाला (परिभूः) दुष्ट पापियों का तिरस्कार करनेवाला और (स्वयम्भूः) अनादि स्वरूप जिसकी संयोग से उत्पत्ति, वियोग से विनाश, माता, पिता, गर्भवास, जन्म, वृद्धि और मरण नहीं होते, वह परमात्मा (शाश्वतीभ्यः) सनातन अनादिस्वरूप अपने-अपने स्वरूप से उत्पत्ति और विनाशरहित (समाभ्यः) प्रजाओं के लिये (याथातथ्यतः) यथार्थ भाव से (अर्थान्) वेद द्वारा सब पदार्थों को (व्यदधात्) विशेष कर बनाता है, (सः) वही परमेश्वर तुम लोगों को उपासना करने के योग्य है ॥

अकायम का अर्थ होता है शरीर रहित |
अव्रणम् का अर्थ होता है छिद्ररहित|
अस्नाविरम् का अर्थ है नाड़ी रहित |

प्रश्न यह है की जब अकायम कहके शरीर रहित कह दिया गया तो अलग से छिद्ररहित और नाडीरहित कहने का क्या तात्पर्य है ?

इसका उत्तर यह है की शरीर तीन प्रकार के होते हैं - सूक्ष्म शरीर, कारण शरीर और स्थूल शरीर |

अकाय, अव्रण और अस्नावि का अर्थ आदि शंकराचार्य क्या करते है वह देखेंगे | उपरोक्त यजुर्वेद मन्त्र ईशोपनिषद् के मन्त्र 8 पर भी है | यह प्रमाण गीताप्रेस से छपा ईशोपनिषद् शांकरभाष्य का है |

शंकराचार्य यहां लिखते हैं:-

स यथोक्त आत्मा पर्यगात्परि समन्तादगाद्गतवानाकाशवद्व्यापी इत्यर्थः।

वह पूर्वोक्त आत्मा(यानी परमात्मा)सब ओर गया हुआ है अर्थात् आकाश के समान सर्वव्यापक है।

अकायमशरीरे लिंगशरीरवर्जित इत्यर्थः। अवर्ण अक्षतम्। अस्नाविरं स्नावाः शिरा यस्मिन्न विद्यन्त इत्यस्नाविरम्। अव्रणमस्नाविरमित्याभ्यां स्थूलशरीरप्रतिषेधः। शुद्धं निर्मलमविद्यामलरहितमिति कारणशरीरप्रतिषेधतः।

अकाय- अशरीरी अर्थात् लिंग शरीर से रहित है; अव्रण अर्थात अक्षत है; अस्नाविर है, जिसमें स्नायु अर्थात् शिरायें न हों उसे अस्नाविर कहते हैं। अवर्ण और अस्नाविर इन दो विशेषणों से स्थूल शरीर का प्रतिषेध किया गया है तथा शुद्ध, निर्मल यानी अविद्यारूप मल से रहित है- इससे कारण शरीर का प्रतिषेध किया गया है।"

लीजिये, शंकराचार्य ने स्पष्ट रूप से कहा है कि ईश्वर स्थूल,सूक्ष्म, कारण हर तरह के शरीर से मुक्त व निराकार है। तब साकार कैसे कहा जा सकता है ?

प्र॒जाप॑तिश्च॒रति॒ गर्भे॑ऽअ॒न्तरजा॑यमानो बहु॒धा वि जा॑यते।
तस्य॒ योनिं॒ परि॑ पश्यन्ति॒ धीरा॒स्तस्मि॑न् ह तस्थु॒र्भुव॑नानि॒ विश्वा॑ ॥ (यजुर्वेद 31/19)

पदार्थ - हे मनुष्यो ! जो (अजायमानः) अपने स्वरूप से उत्पन्न नहीं होनेवाला (प्रजापतिः) प्रजा का रक्षक जगदीश्वर (गर्भे) गर्भस्थ जीवात्मा और (अन्तः) सबके हृदय में (चरति) विचरता है और (बहुधा) बहुत प्रकारों से (वि, जायते) विशेषकर प्रकट होता (तस्य) उस प्रजापति के जिस (योनिम्) स्वरूप को (धीराः) ध्यानशील विद्वान् जन (परि, पश्यन्ति) सब ओर से देखते हैं (तस्मिन्) उसमें (ह) प्रसिद्ध (विश्वा) सब (भुवनानि) लोक-लोकान्तर (तस्थुः) स्थित हैं ॥

इस मन्त्र में यही बताया गया है की वह ईश्वर उत्पन्न होने वाला नही है , गर्भ में जीवात्मा में भी वो है और सबके ह्रदय में भी वो है |

इस मन्त्र में "बहुधा वि, जायते" का यह अर्थ है की वह बहुत प्रकारों से विशेषकर प्रसिद्ध होता है |

प्र तद्विष्णु॑: स्तवते वी॒र्ये॑ण मृ॒गो न भी॒मः कु॑च॒रो गि॑रि॒ष्ठाः।
यस्यो॒रुषु॑ त्रि॒षु वि॒क्रम॑णेष्वधिक्षि॒यन्ति॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑ ॥( यजुर्वेद 1/154/2)

पदार्थ - हे मनुष्यो ! (यस्य) जिस जगदीश्वर के निर्माण किये हुए (उरुषु) विस्तीर्ण (त्रिषु) जन्म, नाम और स्थान इन तीन (विक्रमणेषु) विविध प्रकार के सृष्टि-क्रमों में (विश्वा) समस्त (भुवनानि) लोक-लोकान्तर (अधिक्षियन्ति) आधाररूप से निवास करते हैं (तत्) वह (विष्णुः) सर्वव्यापी परमात्मा अपने (वीर्येण) पराक्रम से (कुचरः) कुटिलगामी अर्थात् ऊँचे-नीचे नाना प्रकार विषम स्थलों में चलने और (गिरिष्ठाः) पर्वत कन्दराओ में स्थिर होनेवाले (मृगः) हरिण के (न) समान (भीमः) भयङ्कर है और समस्त लोक-लोकान्तरों को (प्रस्तवते) प्रशंसित करता है ॥

यहाँ कही ईश्वर का अवतार होना नही लिखा | वेद में किसी भी तरह सिद्ध नही हो पाया पोप पंडितों से की ईश्वर साकार है |

उ॒त नोऽहि॑र्बु॒ध्न्यः᳖ शृणोत्व॒जऽएक॑पात् पृथि॒वी स॑मु॒द्रः।
विश्वे॑ दे॒वाऽऋ॑ता॒वृधो॑ हुवा॒नाः स्तु॒ता मन्त्राः॑ कविश॒स्ताऽअ॑वन्तु ॥(यजुर्वेद 34/53)

इस मन्त्र का देवता "अज एकपात" नही बल्कि " लिङ्गोक्ता देवता" है |
और वेदों मन्त्रों पे लिखे देवताओं का अर्थ क्या है वह निरुक्त बतलाता है-

अथातो दैवतम् । तद्यानि नामानि प्राधान्यस्तुतीनां देवतानां तद्दैवतमित्याचक्षते । (निरुक्त 7/1)

अर्थात - दैवत उनको कहते हैं की जिनके गुणों का कथन किया जाए, अर्थात जो जो संज्ञा जिन जिन मन्त्रों में जिस जिस अर्थ की होती है , उन उन मन्त्रों का नाम वही देवता है |

शास्त्रों ने वेदों को प्रमाण सबसे पहले माना है, इसलिए गीता से पहले प्रमाण वेदों का माना जायेगा |

अणोरणीयान् महतो महीयानात्मा (श्वेताश्वतर उपनिषद् 3/20)

अर्थात - ईश्वर अणु से भी सूक्ष्म और महान से भी महान है |
तात्पर्य ये है की ईश्वर अतिसूक्ष्म होते हुवे भी सर्वव्यापक है| इस श्लोक से ये बिलकुल सिद्ध नही होता की ईश्वर का स्वयं से भी विपरीत स्वाभाव है |

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