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Happy Diwali to all
13/11/2020

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केले की खेतीएस.पी. सिंह (कृषि विशेषज्ञ) केला भारतवर्ष का प्राचीनतम, अति स्वादिष्ट तथा पौष्टिक फल है। देश के प्रत्येक भाग...
31/05/2020

केले की खेती
एस.पी. सिंह (कृषि विशेषज्ञ)

केला भारतवर्ष का प्राचीनतम, अति स्वादिष्ट तथा पौष्टिक फल है। देश के प्रत्येक भाग में आम की भांति ही केले के पौधे मिलते है। प्रयोगों के आधार पर प्रदेश के पूर्वी तथा तराई वाले क्षेत्र केले की खेती के लिये लाभप्रद है। प्रति इकाई क्षेत्र से अधिक उत्पादन तथा आय प्राप्ति हेतु केला की खेती बेजोड़ है। केले का पौधा तथा पत्ते पूजा तथा अनेकों धार्मिक कार्यों के प्रयोग में आते हैं। केले का प्रयोग फल शाक-भाजी तथा आटे के रूप में किया जाता है। गृहवाटिका उद्यान के लिये केला उत्तम पौधा है।

भूमि तथा जलवायु:
अच्छे जल निकास वाली उपजाऊ, बलुई दोमट अथवा मटियार भूमि केले की खेती के लिये उत्तम है। गर्मतर सम-जलवायु केले की व्यावसायिक खेती के लिये उत्तम है। अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में केले की खेती सफल होती है। ठण्डे तथा तेज हवा व पाला पड़ने वाले क्षेत्र केले के लिये अनुपयुक्त हैं।

जातियाँ:
उपयोगितानुसार केले की जातियाँ दो भागों में विभाजित की जा सकती है:
1) पका कर खाने वाली
2) शाक-भाजी के लिये
पकाकर खायी जाने वाली जातियाँ बसराई, ड्वार्फ, हरीछाल, अल्पान तथा मालभोग प्रमुख है। शाक-भाजी के लिए मंथन, हजारा कैम्पियरगंज व कोठिया प्रमुख है।

प्रसारण:
केले का प्रसारण पुत्तियों द्वारा होता है, नर्सरी में दो-तीन माह पुरानी पुत्तियां लगाने योग्य हो जाती है। पुत्तियों के रोपण का समय 10 जून से 10 जुलाई तक होता है, लगाते समय भूमिगत तने का 45 सेमी. नीचे की ओर छोड़कर ऊपर का भाग काट देना चाहिये। यदि सिंचाई की सुविधा हो तो इसे अप्रैल-मई में भी लगा सकते हैं।

पौध रोपण:
प्रजाति के अनुसार पौधों का रोपण 2-3 मीटर पर करना चाहिए। बौनी प्रजातियों हरीछाल- रोबस्टा- का रोपण 1.5- 1.5 मीटर पर तथा कोठिया, कैम्पियरंगज 2.5-2.5 मीटर पर रोपित करना चाहिए।

खाद:
केले के लिये 200 ग्राम नत्रजन, 100 ग्राम फास्फोरस तथा 250 ग्राम पोटाश प्रति पौधा के हिसाब से देना चाहिये। पूर्ण फास्फोरस एवं आधा पोटाश तथा नत्रजन की एक तिहाई मात्रा पौधे लगाने के समय देना चाहिये।
एक तिहाई नत्रजन माह अगस्त सितम्बर तथा शेष एक तिहाई नत्रजन तथा शेष आधी पोटाश अगले वर्ष जून में फल आते समय देना चाहिए।

सिंचाई:
केले में पानी की अधिक आवश्यकता होती है। मैदानी भागों में गर्मी में सप्ताह में एक बार तथा जाड़ों में हर 15 दिन के अन्तर पर सिंचाई आवश्यक होती है। दो सिंचाई बाद निराई आवश्यक है। पानी की बचत के लिये पौधों को नाली में रखना चाहिये। इन्हीं नालियों में पानी देना चाहिये। पौधा जब बड़ा हो जाय तो उसकी जड़ों के चारों ओर मिट्टी चढ़ा देना चाहिये।

कटाई-छटाई:
केले के बारे में कहा जाता है कि ”केला रहे अकेला“। केले के पौधे में निकलने वाली पुत्तियों को बराबर निकालते रहना चाहिए अन्यथा पैदावार पर इनका प्रभाव पड़ता है। अतः अगले वर्ष मई माह तक निकली हुई पुत्तियों को सावधानीपूर्वक निकाल कर क्यारियों में लगाते रहना चाहिए जिन्हें नये बाग में रोपण हेतु उपयोग करना चाहिए।

फलत:
पौधे लगाने के एक साल में फूल आने प्रारम्भ हो जाते हैं। फूल आने के लगभग चार माह में फल तैयार हो जाते हैं। जब केले की धार का विकास लगभग 1/2 हो चुका हो तब नीचे लटकते हुए लाल फूल के गुच्छे को काटकर अलग कर देते हैं। केले से लगभग 200-250 कु. प्रति हेक्टर पैदावार ली जा सकती है। फल वाले पौधे को आवश्यकता पड़ने पर बांस के डन्डे से सहारा दे देना चाहिए।

फलों को कृत्रिम ढंग से पकाना:
केले को कमरे में इकट्ठा कर पकाना अच्छी विधि है। कमरे के लगभग तीन भाग को केलों से भर देते हैं। फिर इन्हें केले की पत्तियों से ढक देते हैं। एक भाग के कोने में उपले आदि जलाकर धुआं देने की क्रिया 30-50 घण्टें तक करते हैं। पुआल या सूखी पत्तियों में रखकर भी बन्द कमरे में पका लेते हैं।

कीड़े तथा बीमारियां:
बंची टाॅप तथा अंगमारी प्रमुख बीमारियां है तथा बनाना बीटिल व तनाछेदक कीट द्वारा पौधों की हानि होती है। बंची टाॅप बीमारी विषाणु जनित है। ग्रसित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिये। अंग मारी बीमारी से ग्रसित फलों पर प्रारम्भ में काले धब्बे बनते हैं, बाद में आपस में मिलकर बड़े हो जाते हैं। रोकथाम के लिये ताम्रयुक्त फफंदी नाशक दवा को पौधों पर छिड़कना चाहिये।

ग्रामीण उमंग की महत्वपूर्ण खबर*जंगली जड़ी बूटियों की खान है चकरनगर का बीहडांचल का क्षेत्र* रिपोर्ट- राहुल त्रिपाठीचकरनगर ...
19/05/2020

ग्रामीण उमंग की महत्वपूर्ण खबर

*जंगली जड़ी बूटियों की खान है चकरनगर का बीहडांचल का क्षेत्र*

रिपोर्ट- राहुल त्रिपाठी

चकरनगर (इटावा) यूं तो चम्बल घाटी का तकरीबन 38000 वर्ग किलोमीटर वनाच्छादित क्षेत्र है। जो कि राजस्थान के धौलपुर भरतपुर से इटावा के पचंनद तक फैला है। जहाँ हजारों प्रकार की औषधियो, वृक्षों और जड़ी-बूटियों से भरा पड़ा है। उनमें एक इस तपती गर्मी में मई जून के महीने में खट्टा सा फल देने वाला औषधीय गुणों से भरपूर एक झाड़ीदार पौधा करील भी आजकल दिखाई दे रहा है। जिसके फल को हम अपनी भाषा में टेंटी भी कहते हैं। जिसका अचार रखकर लोग घरों में भोजन के साथ बड़े ही स्वाद से खाते है ,यह पौधा लगभग 5 फुट की ऊंचाई का एक झाड़ीदार पौधा है। जो कि जंगलों में टीलों पर और राजस्थान के रेतीले इलाके में भारी मात्रा में पाया जाता है। इसका फल बेरी के आकार का होता है। इस पौधे को संरक्षित करना भी बेहद आसान है। क्योंकि इसको बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है। टेटी प्रायः तमाम जटिल असाध्य बीमारियों जैसे उच्च रक्तचाप मधुमेह कब्ज गठिया बात आदि रोगों में अत्यन्त लाभकारी होती है। टेंटी एक प्राचीन एन्टीबायोटिक है। जब भारत में अंग्रेजी दवाओं को कोई जानता भी नहीं था। तब यह शुद्ध जैविक औषधि ग्रामीण भारत का स्वास्थ्यवर्धक रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाला टॉनिक था। जो कि ऊर्जा से भरपूर जिसमें कैल्शियम आयरन विटामिन ए कार्बोहाइड्रेट्स प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। करील का उल्लेख महाभारत में पीलू और समी के साथ भी किया गया है। बताते हैं करीब 80 कोसी ब्रज भूमि में ही पाया जाता है। जो कि ब्रज भूमि के चारों ओर लगभग लगभग 350 किलोमीटर तक है। आज भी ग्रामीण इलाकों में टेटी का अचार रखा जाता है। जिसके सेवन से उच्च रक्तचाप मधुमेह गठिया बात जैसे असाध्य रोगों में भी लाभकारी सिद्ध होता है। अध्यात्मिक जानकारों की माने तो द्वापर युग में श्री कृष्ण टेटी का सेवन किया करते थे। दिमाग को तेज बनाने के लिए भी रामबाण औषधि है। आज घाटी के जंगलों में विलायती बबूल के कारण यह औषधि पौधा विलुप्त होने के कगार पर है। आज इस भौतिकता वादी सोच ने जंगलों में मिलने वाले अत्यन्त लाभकारी वनस्पति पौधों की जरूरत को नगण्य बना दिया है। आगे आने वाली पीढ़िया इनका नाम भी ना जान पाएगी। आज हम लोगों को आगे आकर इन बेशकीमती अत्यन्त लाभकारी जरूरी पोषण तत्वों से भरपूर प्राचीन औषधियों के संरक्षण के लिए जरूरी कदम उठाएं अन्यथा जंगलों को तहस-नहस कर देने वाले वन माफिया इन बेशकीमती बनस्पति को नष्ट कर देंगे। बहुत जरूरी हो गया है इस रासायनिक मिलावटी खाद्य पदार्थों के सेवन से जो हमारे शरीर का इम्यूनिटी सिस्टम तहस-नहस हो गया है। उसे इस औषधि गुणों से भरपूर वनस्पतियों के सेवन से बचाया जा सकता है।

ग्रीष्म ऋतु के घातक पशु रोग एवं बचावलू का लगना तथा गर्मी से सुरक्षा गर्मी से पशु धन की सुरक्षा के सम्बन्ध में पिछले लेखो...
17/05/2020

ग्रीष्म ऋतु के घातक पशु रोग एवं बचाव

लू का लगना तथा गर्मी से सुरक्षा

गर्मी से पशु धन की सुरक्षा के सम्बन्ध में पिछले लेखों में सदा चर्चा की गई थी। जिनमें प्रमुख रूप से पशुशालाओं के निर्माण एवं सीधे हवा के झोंको से बचाव के सम्बन्ध में जानकारी देने का प्रयास किया गया था। परदो के प्रयोग का भी उपयोग बताया गया था। गर्मी के मौसम में प्रायः हरे चारों की कमी हो जाती है और पशुओ को शारीरिक व्यायाम हेतु चारागाह में जाना आवश्यक होता है। यह ध्यान देने योग्य है कि चारागाह ऐसा हो कि छायादार वृक्षों की पर्याप्त संख्या उपलब्ध हो ताकि जब पशु अधिक गर्मी महसूस करें तब उन वृक्षों की छाया से विश्राम कर सके।
चारागाह में पानी का कोई श्रोत होना चाहिए जैसे तालाब पोखर या नदी का किनारा आदि। कहीं-कहीं पर कुंआ एवं पशुओं के पानी पीने के लिए चरही आदि उपलब्ध रहते हैं। आज कल गर्मी में इंडिया मार्का-2 पम्प लगाये जा रहे हैं। कहीं पर इन पम्पों का निर्माण गांव के बाहर हो रहा है। तब ग्राम पंचायत की सहायता से उसके निकट पशुओं हेतु पानी की चरही का निर्माण करा देना जनहित में उचित प्रतीत होता है। गर्मी के मौसम में पशुओं को नमक खिलाना बहुत उपयोगी है और इसे अवश्य दिया जाना चाहिए इसके उपयोग से पशुओं को प्यास लगती है और वे पर्याप्त मात्रा में पानी पीते हैं। फलस्वरूप लू लगने से अपने आप बचाव हो जाता है। पशुशालाओं में छत के सहारे नमक का ढेला छेंद कर के तार या रस्सी की सहायता से लटका दिया जाता है। जिससे पशु अपनी इच्छा अनुसार चाट कर अपनी आवश्यकता पूरी कर लेता है।

स्थान:

गर्मी के मौसम में पशुओं को धोकर आवश्य नहलाना चाहिए। विशेष रूप से वर्ण शंकर गायों एवं भैसों के लिए यह बहुत आवश्यक है। इसका लाभ पशुओं की उत्पादन क्षमता एवं श्रम शक्ति पर पड़ता है।

जहरीली ज्वार या हाइड्रो रसायनिक एसिड

प्रायः गर्मी के मौसम में पशुओं को चारा उपलब्ध कराने हेतु पशुपालक ज्यार या उरई की खेती करते हैं। इस कार्य में प्रमुख रूप से यह ध्यान देना आवश्यक है कि जहां पर इन चारा फसलो की उगाहत की जाए वहां सिंचाई की भरपूर सुविधा हो, यदि पानी की कमी होगी तब इन इन फसलों में जहरीला पदार्थ उत्पन्न हो जाता है और इसके खाने से पशु प्रायः तुरन्त मर जाता है। जगह का प्रभाव होने पर पशु पहले सुस्त हो जाता है। पेट फूल जाता है चलने में लड़खड़ाने लगता है और अन्त में भूमि पर गिर कर मर जाते हैं। ऐसी स्थिति में पशुपालकों को तुरन्त इस प्रकार का चारा बन्द कर देना चाहिए तथा उसे उछठा कर नष्ट कर देना चाहिए एवं निकट के पशु चिकित्सालय से परामर्श कर उचित चिकित्सा की व्यवस्था करना चाहिए।

एनथे्रक्स विषहरी

यह एक बहुत ही घातक पशु रोग है और यह प्रायः पशुओं से मनुष्यों में आ जाता है। यह रोग प्रत्येक मौसम में आ सकता है इस रोग में बहुत ही तेज ज्वार होता है और प्रायः पशु शीघ्र ही मर जाता है। नाक मुंह तथा मल से खून आता है। इस रोग की चिकित्सा प्रायः सम्भव नहीं होती। इस बात का ध्यान देना आवश्यक है इस रोग से मरे हुये पशुओं की खाल का उपयोग न किया जाए और न ही उसका शव विच्छेदन किया जाए। चूना और फिनायल उचित मात्रा में शव पर डाल कर इसे किसी गहरे गड्ढे में डाल दिया जाए। पशु पालकों को चाहिए कि निकट के पशु चिकित्सक को इस रोग की सूचना अवश्य दे दें।

हेमरेजिक सेप्टी सिनिया ; घुरका, गलघोंटू

यह प्रमुख स्वांस सम्बन्धी रोग है इस रोग के कीटाणु प्रायः स्वास नलिका में होते है और जब प्रायः गर्मी के मौसम में वर्षा हो जाती है और तापक्रम एकदम से कम हो जाता है, इस स्थित में पशु कमजोर हो जाते हैं तब इस रोग का प्रकोप हो जाता है। इस रोग में पशु को सांस लेने में कष्ट होता है। जबड़ों के बीच में सूजन आ जाती है तथा फेफड़ों में भी सूजन आ जाती है। फलस्वरूप प्रायः वायु में आक्सीजन की कमी के कारण तेज ज्वर के साथ पशु की मृत्यु हो जाती है। यदि पशु पालक शीघ्र ही चिकित्सा व्यवस्था करा ले तब इसका उपचार सम्भव है। इस रोग से बचाव हेतु टीके भी लगाये जाते हैं। पशुपालकों की गर्मी के मौसम के समाप्त होते समय तथा वर्षा ऋतु के प्रारम्भ होने के पूर्व जून माह के अन्त में अपने पशुओं को एच.एस. का टीका लगवा लेना चाहिए। यह रोग भेड़ तथा मुर्गियों मे भी होते हंै।

ब्लैक क्वारटर लगहिया

यह रोग पशुओं के बच्चों बछड़ों एव बछियों में होता है इस रोग का प्रकोप प्रायः एक विशेष क्षेत्र में ही हुआ करता है। इस रोग में पशु के पिछले फेटों पर सूजन आ जाती है और जब इस सूजन को दबाया जाता है तब उसमें एक प्रकार की चरचराहट होती है तथा जिस स्थान पर दबाव पड़ता है वहां पर गड्ढा बन जाता है। इस रोग की चिकित्सा सम्भव है पशुपालक किसी पशु चिकित्सा की सहायता से चिकित्सा करा सकते हैं। इस रोग से बचाव के टीके भी पशुपालक विभाग की ओर से लगाये जाते हैं। इस का लाभ पशुपालकों को लेना चाहिए।

फसलो के साथ साथ वैज्ञानिक तकनीक अपना कर किसान भाई करे मत्स्य पालन से चौतरफा इजाफा ।
16/05/2020

फसलो के साथ साथ वैज्ञानिक तकनीक अपना कर किसान भाई करे मत्स्य पालन से चौतरफा इजाफा ।

16/05/2020

किसान भाईयो की समृद्धि का दूसरा नाम है महिंद्रा ट्रैक्टर्स। देश की मिट्टी से सोना उगलने की अदभूत छमता रखने वाले महिंद्रा ट्रैक्टर्स वास्तव मे देश के लाल है। इस वीडियो को अवश्य देखे

बदलते मौसम से पशुओं में बढा संक्रामक रोगों का खतरा*बढ़पुरा :-प्रकृति के प्रकोप के बाद अब खुरपका-मुंहपका बीमारी से ग्रामी...
12/05/2020

बदलते मौसम से पशुओं में बढा संक्रामक रोगों का खतरा*

बढ़पुरा :-प्रकृति के प्रकोप के बाद अब खुरपका-मुंहपका बीमारी से ग्रामीण क्षेत्र के पशुपालकों के चेहरे पर अब चिंता की लकीरें दिखने लगी है । असल मे बदलते मौसम के कारण खुरपका-मुंहपका रोग मवेशियों विशेषकर दुधारू जानवरों को अब अपनी चपेट में ले रहा है। जिससे उदी गांव के पशुपालकों के चेहरे पर इस समय चिंता की लकीरें छाई हुई हैं।
वही ग्राम वासियों का कहना है कि खुरपका-मुंहपका जैसी बीमारी के लिए अक्सर पशु चिकित्सा विभाग की ओर से टीकाकरण अभियान चलाया जाता है। मगर इस बार जानवरों के लिए ऐसा कोई भी टीकाकरण कार्यक्रम शुरू नहीं किया गया है। जिसकी वजह से जानवरों में यह बीमारी बढ़ती दिखाई दे रही है।
कुछ ग्रामीणों द्वारा उदी मोड़ चौराहे पर पशु अस्पताल मैं दूरभाष द्वारा इस बीमारी के बारे में अवगत कराया तो अस्पताल के स्टाफ ने कहा की आप अस्पताल में आकर लिखित आवेदन दें तत्पश्चात कोई कार्यवाही की जाएगी। खुरपका-मुंहपका विभक्त खुर वाले पशुओं के लिए अत्यंत घातक विषाणु जनित बीमारी होती है। जो गाय भैंस आदि पशुओं को अपने चपेट में ले लेती है। इसकी चपेट में आने से पशु कमजोर, सुस्त होने के साथ-साथ चारा भी त्याग देता है। और दुधारू पशु का दूध भी सूखने (कम होने) लगता है।
अगर समय से इसकी देखभाल न की जाए तो असमय ही पशु की मौत भी हो सकती है।
विकासखंड बढ़पुरा के उदी गांव में कई जानवरों को इस बीमारी ने अपनी चपेट में ले लिया है। अतः ग्रामीणों की मांग है कि जिला पशु स्वास्थ्य विभाग द्वारा जल्द से जल्द इस रोग से ग्रसित पशुओं के लिए टीकाकरण शुरू किया जाए। जिससे जल्द से जल्द इस बीमारी को और जानवरों में भी फैलने से रोका जा सके।

किसान भाईयों को वैज्ञानिको की विशेष सलाहसमय, धन और ऊर्जा की बचत हेतु धान की सीधी बुवाईटी.के. दास, वी.के. सिंह, आर.के. सि...
10/05/2020

किसान भाईयों को
वैज्ञानिको
की विशेष सलाह

समय, धन और ऊर्जा की बचत हेतु
धान की सीधी बुवाई

टी.के. दास, वी.के. सिंह, आर.के. सिंह एवं पी.के. उपाध्याय
भा.कृ.अनु.प.- भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली-110 012

जैसा की हमें विदित है कि इस वैश्विक महामारी (ब्व्टप्क् 19) से खेती में श्रमिकाें की उपलब्धता कम हुई है। ऐसे
में धन, ऊर्जा, मानवशक्ति, पानी की बचत एवं उत्पादन लागत में कमी करके अधिक उत्पादन के लिए चावल की सीधी बुवाई
द्वारा खेती कर किसान भाई अधिक लाभ कमा सकते हैं।
धान की सीधी बुवाई एक प्राकृतिक संसाधन सरंक्षण तकनीक है, जिसमे उचित नमी पर यथा सम्भव खेत की कम जुताई
करके अथवा बिना जाेते हुए खेतों में आवश्यकतानुसार गैर चयनात्मक खरपतवारनाशी (नानसेलेक्टिव हर्बिसाइड) का प्रयोग कर
जीरो टिल मशीन से सीधी बुवाई की जाती है। जो किसान भाई अपने गेहूं की कटाई कम्बाईन से किए हो वे बिना फसल अवशेष
जलाए धान की सीधी बुवाई हैप्पी सीडर अथवा टर्बो सीडर से कर सकते है। इस तकनीक से रोपाई एवं लेव की जुताई (पड़लिंग)
की लागत में बचत होती है एवं फसल समय से तैयार हाे जाती है जिससे अगली फसल की बुवाई उचित समय से करके पूरे
फसल प्रणाली की उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलती है।
धान की सीधी बुवाई के लिए उपयुक्त क्षेत्र
 उन क्षेत्राे में जहां सिंचाई जल की कमी हाे जैसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटका, तमिल नाडु, छतिश गढ़
 वे राज्य जहां जल भराव की परिस्थिति हाे उदाहरण के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, असम व पश्चिम बंगाल
 उन राज्ये मे जहां वर्षा आधारित खेती हाेती हाे जैसे ओड़ीशा, झारखंड, उत्तर-पूर्वी राज्य
धान की सीधी बुवाई के लाभं-
 श्रमिकाें की आवश्यकता में 30-40प्रतिशत की कमीे।
 पानी की 20-30 प्रतिशत बचत
 उर्वरक उपभोग क्षमता में वृद्धि।
 समय से पहले (7-10) फसल तैयार जिससे आगे बोई जाने वाली फसल की समय से बुवाई।
 ऊर्जा की बचत (50-60 प्रतिशत डीजल)
 मैथेन उत्सर्जन में कमी जिससे पर्यावरण सुरक्षा में इजाफा।
 उत्पादन लागत में 3000-4000 रूपये/है० की कमी।
बुवाई का उपर्यु क्त समय:- उपर्यु क्त समय पर फसल की बुवाई एक रामबाण का काम करती है अतः सीधी बुवाई वाले धान की
फसल काे मानसून आने के 10-15 दिन पहले बो देना चाहिए जिससे फसल वर्षा शुरू होने तक 3-4 पंक्तियाें वाली अवस्था में
हों। इससे पौधाें की जड़ाें की बढ़वार अच्छी हाेगी तथा ये खरपतवारों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकें।
प्रजातियाें का चयन:- सीधी बुवाई हेतु एेसे प्रजातियाें का चयन करें जाे अच्छी बढ़वार के साथ-साथ खरपतवाराें से भी प्रतिस्पर्धा
कर सकें। जैसे पूसा सुगंध 5, पूसा बासमती1121ए पी.एच.बी.71ए नरेन्द्र 97, एम.टी.यू. 1010, एच.यू.आर. 3022, आर.एम. डी.(आर)-1,
सहभागी धान, सी आर धान 40, सी आर धान 100, सी आर धान 101, आदि ।
बोने की विधि:- यदि जिराे कम फर्टिसीडड्रील से बुवाई करते हैं तो इसके लिए महीन दानों वाली प्रजातियों (बासमती) के लिए
15-20 किग्रा मोटे दाने वाली प्रजाति के लिए 20-25 किग्रा तथा संकर प्रजातियों के लिए 8-10 किग्रा/है. बीज पर्याप्त रहता
है। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेमी उपयुक्त रहती है। बीज को सही गहराई पर बोने से फसल का अंकुरण अच्छा होता है।
अतः बीज को 2-3 सेमी गहराई पर ही बोना चाहिए बुवाई से पूर्व बीजों को पानी में 8-10 घंटे (सीड प्राइमिंग) भिगोकर छायादार
स्थान पर सुखा लें, जिससे बीजों के जैव रसायनों में अनुकूल परिवर्तन हाेता है तथा अंकुरण में वृद्धि हाेती है। बीजों काे बुवाई से
पहले 2.5 ग्रा/किग्रा. बीज, को बाविस्टीन या थीरम से उपचारित जरूर करें जिससे मृदा व बीज जनित राेगों में कमी पायी जाती
है।
उर्वरक प्रबन्ध रू 100-150 किग्रा नत्रजन, 50 किग्रा फास्फोरस, 40 किग्रा पोटाश एवं 25 किग्रा जिंक प्रति हैक्टेयर का प्रयोग
करें। नत्रजन का एक तीहाई तथा फास्फाेरस, पोटाश एवं जिंक की पूरी मात्रा बुवाई के समय तथा शेष नत्रजन की एक तिर्हाइ
मात्रा बुवाई के 30 दिन बाद और शेष बची हुई मात्र बुवाई के 55 दिन बाद दे । यदि मृदा मे लोहा तत्व की कमी हो तो
आयरन सल्फेट (19ः) का 0.5 प्रतिशत घोल बनाकर 10-15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करे।
खरपतवार प्रबंधनः- खरपतवारों की राेकथाम हेतु बुवाई से एक सप्ताह पूर्व ग्लाईफोसेट नामक खरपतवारनाशी (1 किग्रा/ है.
सक्रिय तत्व) का प्रयोग करे। बुवाई के 1-2 दिन के अंतराल पर पेन्डेमेथालिन ;सक्रिय तत्व 1 किग्रा/ है.द्ध तथा 20-25 दिन के
अंतराल पर बिसपायरिबेक (नोमनी गोल्ड) की 25 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति है का छिड़काव करे।
कीटध् सूत्रकृमि प्रबंधनः- यदि फसल मे सूत्रकृमि का प्रकाेप हाे तब बुवाई के 30-40 दिन के अंतराल मे कार्बोफ्यूराेन ;सक्रिय तत्व
0.75 किग्रा/हैद्ध का छिड़काव करे । तना छेदक की रोकथाम के लिए बुवाई के 25-30 दिन बाद करटप हाइड्राेक्लोरयीड का 1
किग्रा/है सक्रिय तत्व का छिड़काव करना चाहिए।

ब्रेकिंग न्यूजइटावा पछयाँ गाँव / कोरोना कोविड-19 वैश्विक महामारी के चलते सबका दल यूनाइटेड पार्टी के युवा प्रदेश अध्यक्ष ...
10/05/2020

ब्रेकिंग न्यूज

इटावा पछयाँ गाँव / कोरोना कोविड-19 वैश्विक महामारी के चलते सबका दल यूनाइटेड पार्टी के युवा प्रदेश अध्यक्ष अवनीश लोधी , पार्टी की महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष मीना लोधी ने वितरित की राहत खाद सामिग्री।

बढपुरा बिकास खंड के ग्राम मडैया पंछायगाव मे आज सबका दल यूनाइटेड पार्टी के युवा प्रदेश अध्यक्ष अवनीश लोधी साथ पार्टी की महिला मोर्चा की जिला अध्यक्ष मीना लोधी द्वारा करीब तीन दर्जन से अधिक गरीब असहाय मजदूर परिवारों को आटा, दाल, आलू, प्याज आदि राहत खाद सामग्री किट वितरण की गई।

वही गांव के लोगो ने पार्टी के लोगों का सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए फूल मालाओं से सम्मान किया गया।

इस दौरान पार्टी के इटावा जिलाध्यक्ष शेखर लोधी, युवा जिला अध्यक्ष सुनील लोधी, महेंद्र लोधी, मोनू लोधी, श्यामवीर लोधी, उदय लोधी, गीतम लोधी, जिलाउपाध्यक्ष संजय वघेल आदि उपस्थित रहे।

रिपोर्ट:- राहुल त्रिपाठी पत्रकार ग्रामीण उमंग इटावा

Grameen Umang (https://www.facebook.com/GrameenUmang)We hope that you must have received a “Cease & Desist Notice” for a...
09/05/2020

Grameen Umang (https://www.facebook.com/GrameenUmang)
We hope that you must have received a “Cease & Desist Notice” for abuse of Registered Trade Mark which we sent to your email ID “[email protected]” . You are advised to take the needful action and confirm accordingly.

श्वेत बटन खुम्ब ;मशरूमद्ध उत्पादन बटन मशरूम को जो आज भी व्यावसायिक दृष्टि से सर्वाधिक उपयुक्त मशरूम है, समशीतोष्ण जलवायु...
07/05/2020

श्वेत बटन खुम्ब ;मशरूमद्ध उत्पादन
बटन मशरूम को जो आज भी व्यावसायिक दृष्टि से सर्वाधिक उपयुक्त मशरूम है, समशीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है। बीज के फैलाव के समय इसे 220 सेल्सियस से लेकर 250 सेल्सियस तक तापमान की आवश्यकता होती है तथा फलन के समय तापमान 140 सेल्सियस से 180 सेल्सियस के बीच होना चाहिए। तापमान के अलावा श्वेत बटन खुम्ब को अत्यधिक नमी की भी जरूरत होती है। अतः पूरे उत्पादन में 80 से 90 प्रतिशत नमी बनाये रखनी होती है।

समय
श्वेत बटन खुम्ब को भी एक निश्चित ऋतु मंे उगाया जाता है। मैदानी भागों में श्वेत खुम्ब उगाने को उचित समय शरद ऋतु में नम्बर से फरवरी तक होता है।
उगाने का तरीका
बटन खुम्ब की दो खाद्य जातियां - एगोरिकस बाइस्पोरस और एगेरिकस बाइटाॅरकिस की अब कृत्रिम खेती की जाती है और वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों के फलस्वरूप इन खुम्बों को कृत्रिम ढंग से तैयार की गई खाद (कम्पोस्ट) पर उगाया जाता है।

खाद ;कम्पोस्टद्ध तैयार करना
विधि
1. उर्वरक मिश्रण तैयार करना:
भूसे को पक्के फर्श पर 2 दिन (24 घण्टे) तक रूक-रूक कर पानी का छिड़काव करके गीला किया जाता है। भूसे को गीला करते समय पैरों से दबाना और अच्छा रहता है। ऐसा करने से भूसे में पानी का अवशोषण अधिक होताह ै। साथ ही गीले भूसे की ढेरी बनाने के 12-16 घण्टे पहले जिप्सम व बी.एच.सी. को छोड़कर अन्य सभी सामग्री जैसे उर्वरक, चोकर व शीरा को एक साथ मिलाकर गीला कर लेते है तथा ऊपर से गीली बोरी से ढक देते हैं, रात भर इसी प्रकार ढके रहने पर सभी उर्वरक घुल कर चोकर में अवशोषित हो जाते हैं और एक उपयुक्त मिश्रण तैयार हो जाता है।

2. ढेर बनाना:
अब गीले किये गये भूसे में उर्वरक मिश्रण को मिला दिया जाता है और लकड़ी के तख्तों की सहायता से 5 फुट चैड़ा व 5 फुट ऊँचा ढेर बनाते हैं। ढेर की लम्बाई सामग्री की मात्रा पर निर्भर करती है लेकिन ऊंचाई व चैड़ाई ऊपर लिखे माप से अधिक व कम नहीं होनी चाहिए। यह ढेर पांच दिनों तक (ढेर बनाने के दिन से अतिरिक्त) खड़ा रहता है। परतों पर नमी कम होने पर आवश्यकतानुसार पानी छिड़काव किया जा सकता है। ढेर के अन्दर सूक्ष्म जीवों द्वारा किण्वन की प्रक्रिया के कारण चैथे-पांचवे दिन तक तापमान बढ़कर 70 सेल्सियस से भी अधिक हो जाता है जिसे एक तापमानी से नापा जा सकता है।

3. पलटाई कम:
कद्ध पहली पलटाई ;6वां दिनद्ध छठवें दिन को पहली पलटाई दी जाती है। पलटाई देते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि ढेर के प्रत्येक हिस्से की उलट-पलट अच्छी तरह से जाये ताकि प्रत्येक हिस्से के अपघटन के लिए पर्याप्त वायु व नमी प्राप्त हो जाये। पलटाई देते समय, ढेर की चारों बाहरी सतहो से एक-एक फुट परत उतार कर अलग रख लेते हैं। इसके पश्चात मध्य परत को (एक फुट मोटी बाहरी पतर उतारने के बाद शुरू होती है) उतारना आरम्भ करते है और तब तक उतारते हैं, तब तक भूरे रंग की परत दिखाई न दें। इसी भूरी परत के दिखाई देने तक समय लेना चाहिए कि मध्य परत समाप्त हो गयी है और भीतरी शुरू हो गयी है। इस तरह खाद के ढेर की तीनों परतों को अलग-अलग कर लेते हैं। अब नया ढेर इस प्रकार बनाते हैं कि मध्य परत भीतर, बाहरी परत मध्य मंे तथा भीतरी परत ऊपर आ जाय ऐसा करने से खाद प्रत्येक हिस्से की अच्छी उलट-पलट हो जाती है। ढेर बनाते समय यदि खाद में नमी कम हो तो आवश्यकतानुसार पानी का छिड़काव कर लेते हैं। नये ढेर का आकार व नाम पहले ढेर की भांति ही होता है।
खद्ध दूसरी पलटाई ;10वां दिनद्ध दसवें दिन ढेर को तोड़कर, ऊपर बताई गई विधि से पुनः पलटाई देकर ढेर बनाते हैं।
गद्ध तीसरी पलटाई ;13वां दिनद्ध तेरहवें दिन तीसरी पलटाई दी जाती है तथा जिप्सम की पूरी मात्रा मिलाकर पूर्व की भांति नया ढेर बनाये हैं।
घद्ध चैथी पलटाई ;16वां दिनद्ध सोलहवें दिन उपरोक्त विधि से पलटाई करें व नया ढेर बना दें।
ङद्ध पाँचवी पलटाई ;19वां दिनद्ध उन्नीसवें दिन पांचवी पलटाई दें व पुनः ढेर बना लें।
चद्ध छठवीं पलटाई ;22वां दिनद्ध बाइसवंे दिन छठवीं पलटाई दें व ढेर बना लें।
छद्ध सातवी पलटाई ;25वां दिनद्ध पच्चीसवें दिन ढेर को तोड़कर समान रूप से बी.एच.सी. की पूरी मात्रा मिलायें व पहले की भांति पलटाई देकर नया ढेर बनायें।
जद्ध आठवीं पलटाई ;28वां दिनद्ध अट्ठाइसवें दिन खाद (कम्पोस्ट) में अमोनिया व नमी का परीक्षण किया जताा है। नमी का स्तर जानने के लिए खाद को मुट्ठी में दबाते हैं। यदि दबाने पर हथेली व उंगलियां गीली हो जाये परन्तु खाद में पानी निचुड़ कर बहे तो खाद में नमी का स्तर उचित माना जाता है तथा ऐसी दशा में खाद 68-70 प्रतिशत नमी होती है।
अमोनिया परीक्ष्ज्ञण करने के बाद खाद को संूघा जाता है। सूंघने पर यदि अमोनिया की गंध (गौशाला मंे पशु मूत्र जैसी गंध) होती है, तो 3 दिन के अन्तर में एक या दो पलटाई और देनी चाहिए। अब खाद को 250 सेल्सियस तापमान पर ठंडा होने दें और बिजाई कर दें इस प्रकार लम्बी विधि से खाद तैयार करने में कुछ 28 दिन का समय लगता है। उपरोक्त विधि से तैयार की गयी खाद में निम्नलिखित गुण होने चाहिए।
1. खाद का रंग गहरा भूरा हो।
2. खाद में नमी 68-70 प्रतिशत हो।
3. खाद में नाइट्रोजन की मात्रा 1.75-2.2 प्रतिशत हो।
4. अमोनिया गंघ न हो।
5. खाद का पी.एच. 7.2-7.8 के बीच हो।
6. खाद में कोई रोगाणु या नाशक जीव न हो।

बीजाई करना
बीज खरीदते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए। यदि बीच को अधिक दूर से खरीद कर लाना हो तो खरीद कर रात्रि के समय यात्रा करनी चाहिए ताकि बीच खराब न हो। बीजाई करने से पहले बीजाई स्थान व बीजाई में प्रयुक्त किये जाने वाले बर्तनों को 2 प्रतिशत फार्मेलीन घोल से धोयें। बीजाई का कार्य करने वाले व्यक्ति भी अपने हाथों को पहले साबुन से साफ करें, बाद में स्पीरिट या डेटाॅल के घोल से धोयें ऐसा करने से खाद में किसी प्रकार का संक्रमण नहीं होता है।
इसके पश्चात 0.5 से 0.75 प्रतिशत की दर से खाद में बीज मिलायें यानी कि 100 किलोग्राम खाद के लिए 500 से 750 ग्राम बीज पर्याप्त है।

बीजित खाद को पाॅलीथीन के थैलों में भरना व कमरों में रखना
किसान भाई किसी हवादार कमरे में बाॅस व अन्य प्रकार की मजबूत लकड़ी की सहायता से कमरे की ऊँचाई की दिशा में दो फिट के अंतराल पर 2) फुट चैडे़ बहुस्तरीय सेल्फ यादि चैखटे बना लें। सेल्फ की लम्बाई कमरे की लम्बाई के अनुसार रखी जाती है। यह कार्य बीजाई करने से पहले कर लेना चाहिए। बीजित खाद के थैले रखने से दो दिन पहले इस कमरे की फर्श 2 प्रतिशत फार्मेलीन घोल से घोलें तथा मचान (सेल्फ), दीवारों व छत पर इस घोल का छिड़काव करें। इसके तुरन्त बाद कमरे की दरवाजे तथा खिड़कियां इस तरह बन्द करें कि बाहर की हवा अन्दर न आ सके अगले दिन कमरे को दिन भर के लिए खोल दें।
इस प्रकार खुम्ब उत्पादन कक्ष तैयार एवं स्वच्छ कर लिया जाता है। अब खाद में बीज मिलायें और 10-15 किग्रा. बीजित खाद को पाॅलीथीन के थैलों (साइज 18ग24 इंच) में भरते जाये तथा थैलों का मुंह मोड़कर बन्द कर दें इसके पश्चात इन थैलों को कमरे से बने बाॅस के चैखटों (सेल्फ) पर एक दूसरे से सटाकर रख दें। कमरे में 220-250 सेल्सियस तापमान व 80-85 प्रतिशत नमी बनायें रखें। तापमान को बिजली चालित उपकरणों जैसे-कूलर, हीटर आदि का प्रयोग करके नियन्त्रित किया जा सकता है। नमी कम होने पर कमरों की दीवारों पर पानी का छिड़काव करके गीली बोरियां टांगकर व फर्श पर पानी डालकर नमी को बढ़ाया जा सकता है। ऐसी परिस्थितियों में दो सप्ताह में खाद में कवक-जाल फैल जाता है, जो सफेद धागा जैसे दिखाई देता है।
कोसिंग या आवरण
कवक जाल युक्त खाद को एक विशेष प्रकार के केसिंग मिश्रण से ढकना या आवृत करना पड़ता है। तभी खुम्ब निकलना आरम्भ होता है। कोसिंग परत चढ़ाने का उद्देश्य नवजात खुम्ब कलिकाओं को नमी पोषक तत्व व सहारा प्रदान करना भी होता है। केसिंग मिश्रण ए प्रकार की मिट्टी है। जिसे निम्नलिखित अवयवों को मिलाकर तैयार किया जाता है:
1. चार भाग दोमट मिट्टी व एक भाग रेत।
2. दो साल पुरानी गोबर की खाद व दोमट मिट्टी (बराबर हिस्सों में)।
3. दो साल पुरानी खुम्ब की अवशिष्ट खाद- दो भाग गोबर की खाद-एक भाग व चिकनी दोमट मिट्टी एक भाग।

किसान भाई सुविधानुसार उपरोक्त में कोई एक केसिंग मिश्रण (आवरक) तैयार कर लें। लेकिन इस मिश्रण को खाद पर चढ़ाने से पहले रोगाणुओं को सूत्रकृमि आदि से मुक्त करना होता है। रासायनिक का उपचार विधि या केसिंग विधि सस्ती व सरल है। इस विधि के अनुसार केसिंग मिश्रण को फार्मेलीन नामक रसायन के चार प्रतिशत घोल से उपचारित किया जाता है। इस घोल को तैयार करने के लिए 4 लीटर फार्मेलीन (40 प्रतिशत ए.आई.) को 40 लीटर पानी में घोला जाता है। इस घोल के केसिंग मिश्रण को गीला किया जाता है तत्पश्चात् इस मिश्रण को पाॅलीथीन की केसिंग प्रक्रिया शुरू करने के 24 घण्टे पूर्व हटाते हैं। पाॅलीथीन हटाने के बाद यह कार्य शुरू कर देना चाहिए। अच्छे केसिंग मिश्रण की जलधारणा क्षमता व छिद्रता अधिक होनी चाहिए।
केसिंग के उपरान्त फसल प्रबन्धन
केसिंग प्रक्रिया पूर्ण कर लेने के पश्चात फसल की अधिक देखभाल करनी पड़ती है। प्रतिदिन थैलों में नमी का जायजा लेना चाहिए तथा आवश्यकतानुसार पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए। केसिंग करने के लगभग एक सप्ताह बाद जब कवक जाल खाद से केसिंग परत में फैल जायें तब कमरे का तापमान 220 - 250 सेल्सियस से घटाकर 140 - 180 सेल्सियस पर ले आना चाहिए तथा इस तापमान को पूरे फसल उत्पादन काल तक बनाये रखना चाहिए साथ ही कमरे में भरपूर स्वच्छ हवा डाली जाती है। इन परिस्थतियों में इस तापमान पर छोटी-छोटी खुम्ब कलिकाएं बनाना शुरू हो जाती है। जो शीघ्र ही परिपक्व खुम्ब में बदल जाती है। इस चरण में नमी की अधिक आवश्यकता होती है। अतः पहले से कुछ अधिक नमी बनाये रखना चाहिए। थैलों पर दिन में एक बार पानी का छिड़काव करना चाहिए। आवश्यकता से अधिक पानी का छिड़काव नहीं करना चाहिए अन्यथा नवजात खुम्ब सड़ने लगते हैं। तापमान व नमी के अतिरिक्त, खुम्ब उत्पादन के लिए हवा का आदान-प्रदान उत्तम होना चाहिए इसके लिए आवश्यक है कि उत्पउदन कक्ष में रोशनदान, खिड़की व दरवाजे द्वारा आसानी से हवा अन्दर आ सके और अन्दर की हवा जिसमें कार्बन डाईआक्साइड अधिक होती है वो बाहर जा सके। सुबह लगभग एक घन्टे के लिए दरवाजे व खिड़कियां खोल देना चाहिए ताकि ताजी हवा मिल जाये परन्तु दरवाजों/खिड़कियों में महीन जालीदार परदें लगाना जरूरी है ताकि मक्खियां आदि से बचा जा सकें।

खुम्बों की तुड़ाई
खुम्ब कलिकायें बनने के 2-4 दिन बाद खुम्ब कलिकायें विकसित होकर बड़े खुम्बों में परिवर्तित हो जाती है। जब इन खुम्बों की टोपी का आकार 3-4 सेमी. हो परन्तु टोपी बंद हो (छत्रक न बना हो) तब इन्हें परिपक्व समझना चाहिए और मरोड़ कर तोड़ लेना चाहिए। तुड़ाई के पश्चात शीघ्र इन खुम्बों का उपयोग में ले लेना चाहिए क्योंकि ये बहुत जल्दी खराब हो जाते हैं।

उपज
अच्छी देखभाल, अच्छी खाद एवं अच्छे किस्म के बीज का उपयोग करने से लम्बी विधि से तैयार की गई प्रति क्विंटल खाद से 12-15 किलोग्राम तथा छोटी विधि से तैयार की गई खाद से 20-25 किग्रा. खुम्ब 8 से 10 सप्ताह में प्राप्त होते है। इस प्रकार खाद बनाने में लगभग डेढ़-दो महीने बाद से खुम्ब मिलने लगती है और लगातार 8-10 सप्ताह तक उत्पादन मिलता है। जिससे किसानों की आय में पर्याप्त वृद्धि लायी जा सकती है।

भाजपा किसान मोर्चा द्वारा सिनेटराइज तरीक़े से कानपुर मे हजारों लोगों   को भोजन व निशुल्क राशन----भाजपा किसान मोर्चा द्वार...
07/05/2020

भाजपा किसान मोर्चा द्वारा सिनेटराइज तरीक़े से कानपुर मे हजारों लोगों को भोजन व निशुल्क राशन
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भाजपा किसान मोर्चा द्वारा जरूरत मंदो को भोजन व राशन वितरण -
भाजपा किसान मोर्चा कानपुर ने लॉकडाउन में लगातार प्रतिदिन एक हजार जरूरतमन्दों को निःशुल्क राशन व भोजन पैकेट का वितरण कार्य किया lजिला अध्यक्ष संतोष कुमार शुक्ला महामंत्री श्री शशांक शेखर पांडेय के नेतृत्व में पूरी टीम लगी रही। श्री संतोष कुमार शुक्ल, के, आवास, पर, सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए पूर्ण सिनेटराइज तरीके से, कुशल कारीगरों द्वारा भोजन निर्माण प्रतिदिन मेनू बदलकर कराया गयाl योगी रसोई के नाम से संचालित इस रसोई का सांसद देवेंद्र सिंह भोले उच्च शिक्षा राज्यमंत्री श्रीमती नीलिमा कटियार ,भाजपा जिलाध्यक्ष श्री सुनील बजाज व वरिष्ठ भाजपा नेता श्री निर्मल तिवारी ने किसान मोर्चे के इस कार्य की भरपूर सराहना की व रसोई घर में पहुँचकर उत्साह वर्धन किया किसान मोर्चा द्वारा सेवा कार्य में लगे स्वास्थ्य कर्मियो, सफाईकर्मियों का अभिनंदन भी किया गया व मास्क बांटे गए lइस अवसर पर अशोक सिंह, दद्दा। शशांक शेखर पाण्डेय, रमाकांत , प्रवीण शुक्ला आदि विशेष सक्रिय रहेl

06/05/2020

ग्रामीण उमंग की खबरें।
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इटावा, कोरोना महामारी मे लाक डाउन के दौरान गरीबों को राहत पहुंचाने के उदेशय से महिला बाल विकास की सभापति विधायक श्रीमती सरिता भदौरिया, जिला अध्यक्ष अजय धाकरे, उपाध्यक्ष देवप्रताप भदौरिया के नेतृत्व मे सैकड़ों परिवार को खाद्य सामिग्री के कि टो का वितरण किया गया।
इस मौके पर सरिता भौदरिया ने कहा कि कोरोना महामारी मे अपनी जान की बाजी लगा कर हमारी सेवा कर रहे स्वास्थ्य व सुरक्षा मे लगे योद्धाओं का हमें स्वागत करना चाहिए।

हमे यह स्पष्ट करना है कि वेबसाइट grameenumang.org एक आयातक है और एफबी उपयोगकर्ताओं और आम जनता को गुमराह करने और भ्रमित क...
06/05/2020

हमे यह स्पष्ट करना है कि वेबसाइट grameenumang.org एक आयातक है और एफबी उपयोगकर्ताओं और आम जनता को गुमराह करने और भ्रमित करने और ग्रामीण उमंग के नाम का उपयोग करने की कोशिश कर रहा है। ग्रामीण उमंग एक प्रतिष्ठित पत्रिका है जो 1998 से लखनऊ के श्री आदित्य मिश्रा द्वारा प्रकाशित और संपादित की जाती है और श्री आदित्य मिश्रा का पंजीकृत ट्रेडमार्क है। किसी अन्य उपयोगकर्ता द्वारा इस नाम का कोई भी उपयोग अनधिकृत और अवैध है।
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14/12/2019

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