10/05/2020
किसान भाईयों को
वैज्ञानिको
की विशेष सलाह
समय, धन और ऊर्जा की बचत हेतु
धान की सीधी बुवाई
टी.के. दास, वी.के. सिंह, आर.के. सिंह एवं पी.के. उपाध्याय
भा.कृ.अनु.प.- भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली-110 012
जैसा की हमें विदित है कि इस वैश्विक महामारी (ब्व्टप्क् 19) से खेती में श्रमिकाें की उपलब्धता कम हुई है। ऐसे
में धन, ऊर्जा, मानवशक्ति, पानी की बचत एवं उत्पादन लागत में कमी करके अधिक उत्पादन के लिए चावल की सीधी बुवाई
द्वारा खेती कर किसान भाई अधिक लाभ कमा सकते हैं।
धान की सीधी बुवाई एक प्राकृतिक संसाधन सरंक्षण तकनीक है, जिसमे उचित नमी पर यथा सम्भव खेत की कम जुताई
करके अथवा बिना जाेते हुए खेतों में आवश्यकतानुसार गैर चयनात्मक खरपतवारनाशी (नानसेलेक्टिव हर्बिसाइड) का प्रयोग कर
जीरो टिल मशीन से सीधी बुवाई की जाती है। जो किसान भाई अपने गेहूं की कटाई कम्बाईन से किए हो वे बिना फसल अवशेष
जलाए धान की सीधी बुवाई हैप्पी सीडर अथवा टर्बो सीडर से कर सकते है। इस तकनीक से रोपाई एवं लेव की जुताई (पड़लिंग)
की लागत में बचत होती है एवं फसल समय से तैयार हाे जाती है जिससे अगली फसल की बुवाई उचित समय से करके पूरे
फसल प्रणाली की उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलती है।
धान की सीधी बुवाई के लिए उपयुक्त क्षेत्र
उन क्षेत्राे में जहां सिंचाई जल की कमी हाे जैसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटका, तमिल नाडु, छतिश गढ़
वे राज्य जहां जल भराव की परिस्थिति हाे उदाहरण के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, असम व पश्चिम बंगाल
उन राज्ये मे जहां वर्षा आधारित खेती हाेती हाे जैसे ओड़ीशा, झारखंड, उत्तर-पूर्वी राज्य
धान की सीधी बुवाई के लाभं-
श्रमिकाें की आवश्यकता में 30-40प्रतिशत की कमीे।
पानी की 20-30 प्रतिशत बचत
उर्वरक उपभोग क्षमता में वृद्धि।
समय से पहले (7-10) फसल तैयार जिससे आगे बोई जाने वाली फसल की समय से बुवाई।
ऊर्जा की बचत (50-60 प्रतिशत डीजल)
मैथेन उत्सर्जन में कमी जिससे पर्यावरण सुरक्षा में इजाफा।
उत्पादन लागत में 3000-4000 रूपये/है० की कमी।
बुवाई का उपर्यु क्त समय:- उपर्यु क्त समय पर फसल की बुवाई एक रामबाण का काम करती है अतः सीधी बुवाई वाले धान की
फसल काे मानसून आने के 10-15 दिन पहले बो देना चाहिए जिससे फसल वर्षा शुरू होने तक 3-4 पंक्तियाें वाली अवस्था में
हों। इससे पौधाें की जड़ाें की बढ़वार अच्छी हाेगी तथा ये खरपतवारों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकें।
प्रजातियाें का चयन:- सीधी बुवाई हेतु एेसे प्रजातियाें का चयन करें जाे अच्छी बढ़वार के साथ-साथ खरपतवाराें से भी प्रतिस्पर्धा
कर सकें। जैसे पूसा सुगंध 5, पूसा बासमती1121ए पी.एच.बी.71ए नरेन्द्र 97, एम.टी.यू. 1010, एच.यू.आर. 3022, आर.एम. डी.(आर)-1,
सहभागी धान, सी आर धान 40, सी आर धान 100, सी आर धान 101, आदि ।
बोने की विधि:- यदि जिराे कम फर्टिसीडड्रील से बुवाई करते हैं तो इसके लिए महीन दानों वाली प्रजातियों (बासमती) के लिए
15-20 किग्रा मोटे दाने वाली प्रजाति के लिए 20-25 किग्रा तथा संकर प्रजातियों के लिए 8-10 किग्रा/है. बीज पर्याप्त रहता
है। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेमी उपयुक्त रहती है। बीज को सही गहराई पर बोने से फसल का अंकुरण अच्छा होता है।
अतः बीज को 2-3 सेमी गहराई पर ही बोना चाहिए बुवाई से पूर्व बीजों को पानी में 8-10 घंटे (सीड प्राइमिंग) भिगोकर छायादार
स्थान पर सुखा लें, जिससे बीजों के जैव रसायनों में अनुकूल परिवर्तन हाेता है तथा अंकुरण में वृद्धि हाेती है। बीजों काे बुवाई से
पहले 2.5 ग्रा/किग्रा. बीज, को बाविस्टीन या थीरम से उपचारित जरूर करें जिससे मृदा व बीज जनित राेगों में कमी पायी जाती
है।
उर्वरक प्रबन्ध रू 100-150 किग्रा नत्रजन, 50 किग्रा फास्फोरस, 40 किग्रा पोटाश एवं 25 किग्रा जिंक प्रति हैक्टेयर का प्रयोग
करें। नत्रजन का एक तीहाई तथा फास्फाेरस, पोटाश एवं जिंक की पूरी मात्रा बुवाई के समय तथा शेष नत्रजन की एक तिर्हाइ
मात्रा बुवाई के 30 दिन बाद और शेष बची हुई मात्र बुवाई के 55 दिन बाद दे । यदि मृदा मे लोहा तत्व की कमी हो तो
आयरन सल्फेट (19ः) का 0.5 प्रतिशत घोल बनाकर 10-15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करे।
खरपतवार प्रबंधनः- खरपतवारों की राेकथाम हेतु बुवाई से एक सप्ताह पूर्व ग्लाईफोसेट नामक खरपतवारनाशी (1 किग्रा/ है.
सक्रिय तत्व) का प्रयोग करे। बुवाई के 1-2 दिन के अंतराल पर पेन्डेमेथालिन ;सक्रिय तत्व 1 किग्रा/ है.द्ध तथा 20-25 दिन के
अंतराल पर बिसपायरिबेक (नोमनी गोल्ड) की 25 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति है का छिड़काव करे।
कीटध् सूत्रकृमि प्रबंधनः- यदि फसल मे सूत्रकृमि का प्रकाेप हाे तब बुवाई के 30-40 दिन के अंतराल मे कार्बोफ्यूराेन ;सक्रिय तत्व
0.75 किग्रा/हैद्ध का छिड़काव करे । तना छेदक की रोकथाम के लिए बुवाई के 25-30 दिन बाद करटप हाइड्राेक्लोरयीड का 1
किग्रा/है सक्रिय तत्व का छिड़काव करना चाहिए।