Allah hu Akbar
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Quran Surah At-Tin
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Surah Fatiha Translation | The first surah of Quran
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watu izzu mantasha watu zillu mantasha.
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Nabi Muhammad (saw) ki dua ummat ke liye | Sahih Bukhari Hadees No. 6304
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Ramadan Mubarak
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दुआ कुबूलियत के लिए कुछ कालीमत !
Sunan Nasai Hadees No. 1300
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नमाज ही है जो हमे अपने रब से जोड़ती हैं.
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Ibrahim bin Muhammad bin Sa`d narrated from his father, from Sa`d that the Messenger of Allah (ﷺ) said:
“The supplication of Dhun-Nun (Prophet Yunus) when he supplicated, while in the belly of the whale was: ‘There is none worthy of worship except You, Glory to You, Indeed, I have been of the transgressors. (Lā ilāha illā anta subḥānaka innī kuntu minaẓ-ẓālimīn)’ So indeed, no Muslim man supplicates with it for anything, ever, except Allah responds to him.”
Sunan Tirmizi#3505
Chapters on Supplication
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حَدَّثَنَا يَزِيدُ بْنُ مُحَمَّدٍ الدِّمَشْقِيُّ، حَدَّثَنَا عَبْدُ الرَّزَّاقِ بْنُ مُسْلِمٍ الدِّمَشْقِيُّ وَكَانَ مِنْ ثِقَاتِ الْمُسْلِمِينَ مِنَ الْمُتَعَبِّدِينَ، قَالَ: حَدَّثَنَا مُدْرِكُ بْنُ سَعْدٍ، قَالَ يَزِيدُ: شَيْخٌ ثِقَةٌ، عَنْ يُونُسَ بْنِ مَيْسَرَةَ بْنِ حَلْبَسٍ، عَنْ أُمِّ الدَّرْدَاءِ، عَنْ أَبِي الدَّرْدَاءِرَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ، قَالَ: مَنْ قَالَ إِذَا أَصْبَحَ وَإِذَا أَمْسَى: حَسْبِيَ اللَّهُ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ، وَهُوَ رَبُّ الْعَرْشِ الْعَظِيمِ سَبْعَ مَرَّاتٍ، كَفَاهُ اللَّهُ مَا أَهَمَّهُ صَادِقًا كَانَ بِهَا أَوْ كَاذِبًا .
हज़रत अबू-दरदा (रज़ि०) से रिवायत है, उन्होंने फ़रमाया कि जिसने सुबह और शाम के वक़्त सात बार ये कह लिया: (حسبي الله لا إله إلا هو عليه توكلت وهو رب العرش العظيم) अल्लाह तआला उसकी परेशानियों में उसकी किफ़ायत फ़रमाएगा चाहे उसने सच्चे दिल से ये कलिमा कहा हो या झूठे दिल से।
Sunan Abu Dawood#5081
आदाब और अख़लाक़ का
حَدَّثَنَا يَحْيَى بْنُ أَيُّوبَ وَقُتَيْبَةُ وَابْنُ حُجْرٍ قَالُوا حَدَّثَنَا إِسْمَعِيلُ يَعْنُونَ ابْنَ جَعْفَرٍ عَنْ الْعَلَاءِ عَنْ أَبِيهِ عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ إِذَا دَعَا أَحَدُكُمْ فَلَا يَقُلْ اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِي إِنْ شِئْتَ وَلَكِنْ لِيَعْزِمْ الْمَسْأَلَةَ وَلْيُعَظِّمْ الرَّغْبَةَ فَإِنَّ اللَّهَ لَا يَتَعَاظَمُهُ شَيْءٌ أَعْطَاهُ
अला के वालिद (अब्दुर-रहमान) ने हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि०) से रिवायत की कि रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने फ़रमाया: जब तुममें से कोई शख़्स दुआ करे तो ये न कहे: ऐ अल्लाह! अगर तू चाहे तो मुझे बख़्श दे, बल्कि वो पुख़्तगी और इसरार से सवाल करे और बड़ी दिलचस्पी का इज़हार करे, क्योंकि देने के लिये अल्लाह के लिये कोई चीज़ बड़ी नहीं है।
Sahih Muslim#6812
किताब : अल्लाह के ज़िक्र, दुआ, तौबा और इस्तग़फ़ार
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حَدَّثَنَا أَبُو كُرَيْبٍ مُحَمَّدُ بْنُ الْعَلَاءِ الْهَمْدَانِيُّ حَدَّثَنَا ابْنُ فُضَيْلٍ عَنْ أَبِيهِ عَنْ عُمَارَةَ بْنِ الْقَعْقَاعِ عَنْ أَبِي زُرْعَةَ عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ قَالَ قَالَ رَجُلٌ يَا رَسُولَ اللَّهِ مَنْ أَحَقُّ النَّاسِ بِحُسْنِ الصُّحْبَةِ قَالَ أُمُّكَ ثُمَّ أُمُّكَ ثُمَّ أُمُّكَ ثُمَّ أَبُوكَ ثُمَّ أَدْنَاكَ أَدْنَاكٍَ
फ़ुज़ैल ने उमारा-बिन-क़अक़ा से, उन्होंने अबू-ज़ुरआ से, उन्होंने हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि०) से रिवायत की, कहा: एक शख़्स ने पूछा: अल्लाह के रसूल! लोगों में से (मेरी तरफ़ से) हुस्ने- मुआशरत का सबसे ज़्यादा हक़दार कौन है? आप (सल्ल०) ने फ़रमाया: तुम्हारी माँ, फिर तुम्हारी माँ, फिर तुम्हारी माँ, फिर तुम्हारा बाप, फिर जो तुम्हारा ज़्यादा क़रीबी (रिश्तेदार) हो, (फिर जो उसके बाद) तुम्हारा क़रीबी हो। (उसी तरतीब से आगे हक़दार बनेंगे)।
Sahih Muslim#6501
किताब : हुस्ने-सुलूक, सिला रहमी और अदब
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حَدَّثَنَا أَبُو نُعَيْمٍ ، حَدَّثَنَا شَيْبَانُ ، عَنْ يَحْيَى ، عَنْ أَبِي سَلَمَةَ سَمِعْتُ أَبَا هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ ، قَالَ : قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ : أَلَا أُحَدِّثُكُمْ حَدِيثًا عَنِ الدَّجَّالِ مَا حَدَّثَ بِهِ نَبِيٌّ قَوْمَهُ إِنَّهُ أَعْوَرُ وَإِنَّهُ يَجِيءُ مَعَهُ بِمِثَالِ الْجَنَّةِ وَالنَّارِ فَالَّتِي يَقُولُ : إِنَّهَا الْجَنَّةُ هِيَ النَّارُ وَإِنِّي أُنْذِرُكُمْ كَمَا أَنْذَرَ بِهِ نُوحٌ قَوْمَهُ .
नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया, ''क्यों न मैं तुम्हें दज्जाल के मुताल्लिक़ एक ऐसी बात बता दूँ जो किसी नबी ने अपनी क़ौम को अब तक नहीं बताई। वो काना होगा और जन्नत और जहन्नम जैसी चीज़ लाएगा। इसलिये जिसे वो जन्नत कहेगा हक़ीक़त में वही दोज़ख़ होगी और मैं तुम्हें उसके फ़ितने से इसी तरह डराता हूँ जैसे नूह (अलैहि०) ने अपनी क़ौम को डराया था।
Sahih Bukhari#3338
किताब : नबियों (अलैहि०) के बयान में
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नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, जो शख़्स जुमा के दिन ग़ुस्ल करे और ख़ूब अच्छी तरह से पाकी हासिल करे और तेल इस्तेमाल करे या घर में जो ख़ुशबू मुयस्सर हो इस्तेमाल करे फिर जुमा कि नमाज़ के लिये निकले और मस्जिद में पहुँच कर दो आदमियों के बीच न घुसे, फिर जितनी हो सके नफ़ल नमाज़ पढ़े और जब इमाम ख़ुतबा शुरू करे तो ख़ामोश सुनता रहे तो उसके इस जुमा से ले कर दूसरे जुमा तक सारे गुनाह माफ़ कर दिये जाते हैं।
Sahih Bukhari 883