Lav ki awaz

Lav ki awaz (समाज, साहित्य, खेल, फिल्म, राजनीति, शिक्षा...)
यहां प्रेम मिलेगा, फसाने मिलेंगे
सहज और सरल तराने मिलेंगे।

90 साल से ज्यादा हो गए, इस धरती पर आए हुए70 साल से ज्यादा हो गए, ससुराल में आए हुए।जब कोई ऐसी ताई मिले, अपने गांव में जा...
12/12/2024

90 साल से ज्यादा हो गए, इस धरती पर आए हुए
70 साल से ज्यादा हो गए, ससुराल में आए हुए।
जब कोई ऐसी ताई मिले, अपने गांव में जाने पर
पता न चलता समय का, उनसे बीती बतियाते हुए।

#बड़े #बड़े_बूढ़े #बुढ़िया #बुढ़ापा

कभी–कभी... #सर्दियां  #जाड़ा  #ठंड        #मौसम
12/12/2024

कभी–कभी...

#सर्दियां #जाड़ा #ठंड #मौसम

ए पुष्पा! #पुष्पा
10/12/2024

ए पुष्पा!

#पुष्पा

कुछ–कुछ तो समझ में आ रहा है। उत्तराखंड के मित्रों से अनुरोध है कि इसका हिंदी में पूरा भावार्थ बताएं। कम से कम मुखड़े का ...
06/12/2024

कुछ–कुछ तो समझ में आ रहा है। उत्तराखंड के मित्रों से अनुरोध है कि इसका हिंदी में पूरा भावार्थ बताएं। कम से कम मुखड़े का तो बता ही दें।
......

** पहली लाइन– बेडु पाको बारामासा

(बेडु– उत्तराखंड में अंजीर जैसा मीठा और रसीला फल। हिमालयन फ़िग भी कहते हैं।
पाको– पकना
बारामासा– बारह महीने, साल भर)
......

** दूसरी लाइन– नरेण काफल पाको चैत मेरी छैला।

(नरेण– श्रेष्ठ, राजा
काफल– उत्तराखंड का राजकीय फल। गोल और लाल, गुलाबी रंग का। मीठा और रसीला। कई औषधीय गुण वाला।
पाको चैत– चैत्र माह में पकता है।
मेरी छैला– मेरी प्रेमिका)
....

यह उत्तराखंड का अत्यंत प्रसिद्ध लोकगीत है, जिसके रचयिता स्व. बृजेन्द्र लाल शाह हैं। यह उत्तराखंड के राजकीय गीत जैसा है। मोहन उप्रेती तथा बृजमोहन शाह द्वारा संगीतबद्ध यह गीत दुनिया भर में उत्तराखण्डियों द्वारा सुना जाता है। राग दुर्गा पर आधारित इस गीत को पहली बार 1952 में राजकीय इण्टर कॉलेज, नैनीताल के मंच पर गाया गया। बाद में इसे दिल्ली में तीन मूर्ति भवन में एक अन्तर्राष्ट्रीय सभा के सम्मान में प्रदर्शित किया गया, जिससे इसे अधिक प्रसिद्धि मिली। उस सभा में एचएमवी द्वारा बनाये इस गीत की रिकॉर्डिंग मेहमानों को स्मारिका के रूप में भी दी गयी थीं। यह जवाहर लाल नेहरू के पसंदीदा गीतों में से था।
....

पूरा गीत नीचे है। उत्तराखंड के मित्रों से अनुरोध है कि इसका हिंदी में अर्थ बताएं। कम से कम मुखड़े का तो बता ही दें।

बेडू पाको बारो मासा ,
नरेण काफल पाको चैत मेरी छैला।
बेडू पाको बारो मासा ,
ओ नरेण काफल पाको चैत मेरी छैला।।
रुणा भूणा दिन आया ,
नरेण को जा मेरी मैता ,मेरी छैला।

अल्मोड़े की नंदा देवी ,
नरेण फुल चढूनी पाती ,मेरी छैला।
जैसी तीले बोली मारी ,
ओह नरेण धन्य मेरी छाती मेरी छैला।
बेडू पाको बारो मासा ,
ओ नरेण काफल पाको चैत मेरी छैला।
नैनीताल की नंदा देवी ,
नरेण फुल चढूनी पाती ,मेरी छैला।
बेडू पाको बारो मासा ,
ओ नरेण काफल पाको चैत मेरी छैला।
तेरी खुटी को कान बूड़ो ,
नरेण मेरी खुटी में पीड़ा ,मेरी छैला।
बेडू पाको बारो मासा ,
ओ नरेण काफल पाको चैत मेरी छैला।
अल्मोड़े की लाल बजारा ,-2
नरेण पाथरे की सीणी मेरी छैला।
आपु खानी पान सुपारी ,-2
ओ नरेण मैकू दीनी बीड़ी मेरी छैला।
बेडू पाको बारो मासा ,
ओ नरेण काफल पाको चैत मेरी छैला।
श्री बिजेंद्र लाल शाह ,-2
यो तनोरो गीत मेरी छैला।
बेडू पाको बारो मासा। …………….

#लोकगीत #धोनी #पहाड़ #गीत

आज अखबार में एक नया शब्द पढ़ा– ट्वाई लाइट या ट्विलाइट। ट्वाई लाइट यानी डूबते सूरज की रोशनी। खबर में बताया गया कि ट्वाई ल...
04/12/2024

आज अखबार में एक नया शब्द पढ़ा– ट्वाई लाइट या ट्विलाइट। ट्वाई लाइट यानी डूबते सूरज की रोशनी। खबर में बताया गया कि ट्वाई लाइट में गुलाबी गेंद के सामने बल्लेबाजी करना कठिन होता है, इसलिए ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एडिलेड में दिन–रात के टेस्ट मैच के लिए भारतीय टीम ने ट्वाई लाइट के दौरान काफी अभ्यास किया। इधर शाम को घर की छत पर भी ट्वाई लाइट के आसपास का नजारा दिख गया। इस ट्वाई लाइट को देखने चंद्र देव और संभवतः शुक्र देव भी बाहर निकल आए। वैसे अपने यहां इसे गोधूलि बेला कहते हैं।

भांति–भांति के बहिष्कार...(शेष आपको पता हों तो इसमें जोड़िए) #सुखबीरसिंहबादल                      #समाज  #परंपरा  #रीति ...
04/12/2024

भांति–भांति के बहिष्कार...
(शेष आपको पता हों तो इसमें जोड़िए)

#सुखबीरसिंहबादल #समाज #परंपरा #रीति

// 3 दिसंबर : मेजर ध्यानचंद ने ‘युधिष्ठिर’ के हाथों में तोड़ा था दम //Lav ki awaz29 अगस्त 1905 को प्रयागराज में जन्मे हॉ...
02/12/2024

// 3 दिसंबर : मेजर ध्यानचंद ने ‘युधिष्ठिर’ के हाथों में तोड़ा था दम //

Lav ki awaz

29 अगस्त 1905 को प्रयागराज में जन्मे हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को 1979 में लिवर कैंसर हो गया था। उन्हें इलाज के लिए दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती किया गया। देखभाल के लिए मेजर ध्यानचंद के पुत्र अशोक कुमार अस्पताल में मौजूद थे। लेकिन 3 दिसंबर की रात अस्पताल में जब मेजर ध्यानचंद ने अंतिम सांस ली तो उस वक्त उनका सिर बेटे के बजाय एक रेडियोग्राफर के हाथों में था। यह रेडियोग्राफर कोई और नहीं बल्कि ‘महाभारत’ धारावाहिक में युधिष्ठिर की भूमिका निभाने वाले अभिनेता गजेंद्र चौहान थे।

2021 में एबीपी न्यूज के साथ एक इंटरव्यू में गजेंद्र चौहान ने जो बताया, उसके अनुसार उन दिनों वे रेडियोग्राफर के रूप में दिल्ली के ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (एम्स) में काम करते थे। उन्होंने 11 सितंबर, 1979 से एम्स में काम करना शुरू किया था।

गजेंद्र चौहान के अनुसार लिवर के कैंसर के इलाज के लिए भर्ती ध्यानचंद उन दिनों अर्द्ध-बेहोशी की हालत में थे। ऐसे में देर रात को मेजर ध्यानचंद का एक इमरजेंसी एक्स-रे निकालने का निर्देश डॉक्टर ने गजेंद्र चौहान को दिया था। मेजर ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार भी पिता की देखभाल के लिए अस्तपाल में मौजूद थे।

ध्यानचंद की मौत के कुछ ही मिनट पहले अशोक कुमार ने गजेंद्र चौहान से कहा कि वे नीचे से चाय पीकर आते हैं, तब तक वे (गजेंद्र चौहान) उनके पिता के पास मौजूद रहें। अशोक कुमार के जाने के कुछ ही देर बाद मेजर ध्यानचंद अचानक से असहज महसूस करने लगे। गजेंद्र चौहान तुरंत उनके पास गए और जैसे ही मेजर ध्यानचंद का सिर अपने दोनों हाथों में लिया उसके कुछ ही पल बाद मेजर ध्यानचंद की आंखें हमेशा-हमेशा के लिए बंद हो चुकीं थीं। जब अशोक कुमार लौटे तो उनके पिता का सिर गजेंद्र चौहान के हाथों में ही था। अशोक कुमार यह नजारा देखते ही समझ गए कि अब उनके पिता इस दुनिया में नहीं रहे।

गजेंद्र चौहान ने दो साल का ‘डिप्लोमा इन‌ क्लिनिकल टेक्नोलॉजी’ (डीटीसी) किया था, जिसके बाद रेडियोग्राफर के रूप में उन्होंने दिल्ली के एम्स अस्पताल में सितंबर, 1979 से मई, 1982 तक काम किया। 1982 में वे मुंबई आकर अभिनय की दुनिया में हाथ आजमाने लगे। जल्द ही उन्हें काम मिल गया और फिर उन्होंने कई फिल्मों और सीरियलों में यादगार भूमिकाएं निभाईं।

#ध्यानचंद #मेजरध्यानचंद

// जो गैस से डरकर भागा, वह सबसे पहले मरा //// हवन कर रहे परिवार को कुछ नहीं हुआ ! //Lav ki awaz3 दिसंबर 1984 को मध्य प्र...
02/12/2024

// जो गैस से डरकर भागा, वह सबसे पहले मरा //
// हवन कर रहे परिवार को कुछ नहीं हुआ ! //

Lav ki awaz

3 दिसंबर 1984 को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक भयंकर औद्योगिक दुर्घटना हुई, जो भारत के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गई। उस समय देश में कांग्रेस की सरकार थी और राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। दुर्घटना यूनियन कार्बाइड (Union carbide) नामक बहुराष्ट्रीय कंपनी के कारखाने में हुई थी। यहां मिथाइल आइसो साइनाइट (Methyl Iso Cyanite मिक या एमआईसी MIC) नाम की अत्यंत जहरीली गैस से कीटनाशक बनाया जाता था। इस कीटनाशक को सेविन (Sevin) के नाम से बेचा जाता था।

यह कारखाना 1979 से काम कर रहा था। 3 दिसंबर 1984 की रात इस कारखाने से मिक गैस का रिसाव हुआ जिससे आधिकारिक तौर पर 3787 लोग मारे गए, लेकिन जानकारों का अनुमान है कि इस दुर्घटना में 15 हजार से भी ज्यादा लोगों की जान गई और हजारों लोग अपंगता का शिकार हुए।

// क्यों और कैसे ? //

नेशनल ज्योग्राफिक चैनल (National Geographic Channel) के खोजपरक कार्यक्रम से हमें पता चलता है कि-

• पिछले कुछ सालों से यूनियन कार्बाइड के इस कारखाने में बन रहा कीटनाशक सेविन बाजार में ज्यादा नहीं बिक रहा था। नतीजतन, कंपनी के मुख्यालय से भोपाल के कारखाने को खर्चे में कटौती करने के निर्देश दिए गए थे।

• निर्देशों के बाद कई कर्मचारियों की छंटनी कर दी गई , जिनमें वह सुपरवाइजर भी शामिल था जिस पर सुरक्षा इंतजामों की निगरानी की जिम्मेदारी थी।

• कारखाने में लगे पानी के पाइप का जुड़ाव उन भूमिगत टैंकों से भी था जिनमें खतरनाक मिक गैस भरकर रखी जाती थी। किसी अन्य कार्य के लिए जब इस पाइप का प्रयोग होता तो पानी को मिक गैस के टैंकों तक जाने से रोकने के लिए पाइप के अंदर एक लोहे की पट्टी ऑटोमैटिक तरीके से अवरोधक बन जाती थी, लेकिन पिछले काफी समय से यह अवरोधक पट्टी काम नहीं कर रही थी और सुपरवाइजर आदि न होने से इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

• कारखाने में सुरक्षा के लिए रखे सारे मैनुअल अंग्रेजी में थे जबकि कारखाने में काम करने वाले ज्यादातर कर्मचारियों को अंग्रेजी का बिल्कुल ज्ञान नहीं था।

• मिक गैस को तीन भूमिगत टैंकों में रखा जाता था लेकिन जिस ई-610 संख्या वाले टैंक से गैस लीक हुई, वह 75 फीसदी तक भरा हुआ था, जबकि नियम यह था कि टैंक को केवल 50 फीसदी तक ही भरा जाएगा।

• टैंक में भरी गैस का तापमान 4.5 डिग्री होना चाहिए था लेकिन दुर्घटना के समय यह 20 डिग्री था। टैंक को कूल करने के लिए बना फ्रीजिंग प्लांट भी बिजली का बिल कम करने के लिए बंद कर दिया गया था।

• बड़ी दुर्घटना होने से पहले भी कारखाने में कई बार छोटे-छोटे लीकेज की घटनाएं हो चुकी थीं, लेकिन अतिरिक्त सतर्कता के लिए कुछ नहीं किया गया था।

// दुर्घटना का तात्कालिक कारण //

दुर्घटना का तात्कालिक कारण ई-610 भूमिगत मिक गैस टैंक में पानी का रिसाव होना था। टैंक में गया पानी जब खतरनाक गैस से जाकर मिला तो वहां अत्यधिक गर्मी और दबाव उत्पन्न हो गया और टैंक का अंदरूनी तापमान 200 डिग्री के पार पहुंच गया। इस स्थिति ने कंकरीट की मजबूत दीवार में भी दरारें पैदा कर दीं और गैस का रिसाव होने लगा। एक घंटे के अंदर ही करीब 30 मीट्रिक टन गैस बाहर निकल गई।

// सारे सुरक्षा इंतजाम फेल //

गैस रिसाव की स्थिति में कारखाने में तीन स्तरीय सुरक्षा के इंतजाम किए गए थे लेकिन उस समय किसी उपाय ने काम नहीं किया।

• पहला सुरक्षा इंतजाम एक हौज के रूप में था, जो गैस लीकेज के रास्ते में लगा था। यदि खतरनाक गैस का रिसाव हो तो यह गैस इस हौज में जमा होनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

• दूसरा उपाय एक आग वाला मंच था जहां रिसने वाली गैस के पहुंचने पर यह मंच उसे जलाकर आगे नहीं बढ़ने देता, लेकिन यह व्यवस्था भी काम नहीं कर रही थी।

• तीसरा और अंतिम उपाय उस चिमनी के पास था जहां से गैस अंतिम रूप से कारखाने से बाहर निकलकर शहर में फैली। इंतजाम यह होना था कि यदि जहरीली गैस चिमनी से निकलती है तो उसके चारों तरफ लगे पानी के पाइपों से तेज धार चिमनी के मुंह के ऊपर डाली जानी थी। इससे गैस पानी के साथ घुलकर जमीन पर गिर जाती। लेकिन जब कर्मचारियों ने पानी की धार चिमनी के मुंह पर फेंकी तो चिमनी ऊंची निकली और धार छोटी रह गई। यानी पाइपों के पानी की धार चिमनी के मुंह तक पहुंच ही नहीं रही थी।

// कौन लोग ज्यादा मरे? //

जहरीली गैस तेजी से कारखाने की चिमनी से निकलकर भोपाल शहर के ऊपर फैल गई। इसका प्रवाह भोपाल में दक्षिण-पूर्वी दिशा में आठ से दस किलोमीटर के क्षेत्र में ज्यादा था। खास बात यह थी कि यह गैस ऊपर न जाकर नीचे, धरती की तरफ बैठती गई, जिससे मरने वालों की संख्या बहुत ज्यादा हो गई।

डॉक्टरों के अनुसार वे लोग पहले मरे जिन्होंने इस गैस के डर से भागना शुरू किया। भागने से जहरीली गैस उनके फेफड़ों में जल्दी भर गई, जिससे उनकी जान चली गई।

// क्या यज्ञ ने परिवार को बचा लिया? //

उस दौरान छपी खबरों में प्रभावित क्षेत्र में रह रहे एक कुशवाह परिवार का भी जिक्र है। बताया गया कि इस परिवार के लोगों को कोई नुकसान नहीं हुआ और कारण बताया गया कि यह परिवार प्रतिदिन अग्निहोत्र यानी यज्ञ (हवन) करता था और गैस रिसाव के दिन भी इस परिवार में अग्निहोत्र किया जा रहा था।

// कोई जांच नहीं, कोई दोषी नहीं //

खास बात यह थी कि भारत सरकार ने इस भयानक दुर्घटना की मुकम्मल जांच तक नहीं कराई। हादसे के चार दिन बाद 7 दिसंबर 1984 को यूनियन कार्बाइड के अध्यक्ष और सीईओ वारेन एंडर्सन (Warren Andersen) अमेरिका से भारत आए तो उन्हें जनता के रोष को शांत करने के उद्देश्य से गिरप्तार कर लिया गया, लेकिन छह घंटे के बाद ही उन्हें छोड़ दिया गया। इसके बाद एंडरसन बड़ी आसानी से भारत से निकलकर अमेरिका चले गए। वहां जाकर उन्होंने इस दुर्घटना के पीछे किसी कर्मचारी की साजिश की आशंका जताई।

सरकार ने फैक्ट्री की जांच के लिए एक विशेषज्ञ दल जरूर भेजा। इस दल ने कारखाने में पहुंचकर पाया कि जितनी गैस लीक हुई है, उतनी ही गैस अभी टैंकों में मौजूद है। अब इस बची हुई गैस के भी लीकेज होने की आशंका पैदा हो गई। इस पर फैसला हुआ कि कारखाने को फिर चालू किया जाए और बची गैस का प्रयोग करके उसे खत्म कर दिया जाए। कारखाना दोबारा चालू होने की खबर से भोपाल शहर लगभग खाली हो गया। अस्पताल से भी मरीज भाग निकले। आखिरकार कारखाना दोबारा चालू किया गया और बची हुई गैस को सफलतापूर्वक खत्म कर दिया गया।

भारत सरकार ने इसके बाद कारखाने को बंद करके उसमें किसी के भी प्रवेश पर रोक लगा दी। इतनी बड़ी त्रासदी हुई लेकिन न कोई इसका दोषी पाया गया और न ही किसी को सजा मिली।

नेशनल ज्योग्राफिक चैनल के कार्यक्रम में जो तथ्य बताए गए हैं वे अमेरिका से आए एक स्वतंत्र जांचकर्ता की रिपोर्ट पर आधारित हैं जो इस विशेषज्ञ जांचकर्ता ने खुफिया तरीके से तैयार की थी। यह विशेषज्ञ जांचकर्ता एक टूरिस्ट के रूप में भारत आए थे। उन्हें फैक्ट्री में घुसने की अनुमति भी नहीं मिली थी। इसके बाद उन्होंने गुप्त रूप से फैक्ट्री के हर हिस्से के ढेरों फोटो प्राप्त किए, फैक्ट्री के कर्मचारियों से बात की, अधिकारियों से बात की और काफी रिसर्च के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि फैक्ट्री में निर्माण के समय तो सुरक्षा के इंतजाम थे लेकिन समय के साथ, लापरवाही और देखरेख के अभाव में वे सब बेकार हो चुके थे। इसी का नतीजा था कि भोपाल के निवासियों को ऐसी भयानक त्रासदी झेलने को मजबूर होना पड़ा। इसके लिए फैक्ट्री प्रबंधन पूरी तरह जिम्मेदार था।

परहेज...         #उपवास                #कैंसर
02/12/2024

परहेज...

#उपवास #कैंसर

यह मशीन आपको धोकर सुखा देगी...सैन्यों इलेक्ट्रिक कंपनी (जो अब पैनासोनिक कहलाती है) ने 1970 में जापान वर्ल्ड एक्सपो में ह...
01/12/2024

यह मशीन आपको धोकर सुखा देगी...

सैन्यों इलेक्ट्रिक कंपनी (जो अब पैनासोनिक कहलाती है) ने 1970 में जापान वर्ल्ड एक्सपो में हम मानवों के लिए वाशिंग मशीन पेश की थी। तब उसमें अंडाकार पॉड था जो गर्म पानी से भरा था और नहाते समय बॉडी की मसाज के लिए अल्ट्रासोनिक तरंगों का प्रयोग किया गया था। लेकिन यह उत्पाद केवल प्रदर्शनी तक सीमित रह गया और कभी बाजार में नहीं आ पाया।

अब करीब 53 साल बाद जापान की ही साइंस कंपनी अप्रैल 2025 में ओसाका कांसाई एक्सपो में मनुष्यों के लिए वाशिंग मशीन प्रदर्शित करने जा रही है। दावा है कि यह मशीन इंसान को 15 मिनट में धोकर सुखा देगी। इस मशीन में पॉड के साथ एक पारदर्शी कैनोपी लगी है, जो किसी जेट फाइटर के कॉकपिट जैसी दिखती है। यह सेंसर और एआई के जरिए नहाने के लिए परफेक्ट तापमान सेट करती है। यह आदमी में तनाव और थकान का भी पता लगती है और उन्हें दूर करने में मदद करती है।

#जापान

चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के नेताजी सुभाष बोस सभागार में बृहस्पतिवार 21 नवंबर को 'परमवीर वंदनम' कार्यक्रम का आयोजन हु...
23/11/2024

चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के नेताजी सुभाष बोस सभागार में बृहस्पतिवार 21 नवंबर को 'परमवीर वंदनम' कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इस दौरान तिलक पत्रकारिता एवं जनसंचार स्कूल के थिएटर ग्रुप ने 'सरफरोशी की तमन्ना' नाटक का मंचन किया। नाटक को दर्शकों से खूब तालियां और सराहना मिली। युवाओं के साथ अपन को भी इस प्रयास में काफी पसीना बहाना पड़ा। इसी नाटक की कुछ झलकियां...

#पत्रकारिता_संस्थान #ड्रामा #परमवीरचक्र #परमवीर #रामप्रसादबिस्मिल #काकोरी #काकोरी_ट्रेन_एक्शन_डे

वफ़ा...     #तलाक        #एआररहमान
22/11/2024

वफ़ा...

#तलाक #एआररहमान

13/11/2024

12 नवंबर की रात दूल्हा–दुल्हनों की रात थी। 2024–25 की वैवाहिक ऋतु का पहला साया था। अखबारों के अनुसार अकेले मेरठ में ही 600 से ज्यादा शादियां हुईं। हमें भी एक विवाह समारोह का निमंत्रण था। हम गए। हमनें घोड़ी देखी, बग्घी देखी, भोजन खाया और फिर जाम भी देखा। मगर असली चीज नहीं देख पाए।

जब बारात 11.30 बजे तक भी नहीं चढ़ पाई तो हम घर को लौट लिए क्योंकि वर–वधू द्वारा एक–दूसरे को माल्यार्पण में अभी कम से कम एक घंटा और लग जाना था। घर पहुंचने में भी डेढ़–दो घंटा लगना था। हमसे पहले अनेक मेहमान निकल निकल चुके थे और हमारे साथ भी और निकल रहे थे।

बारात तो देरी से चढ़ ही रही थी, लेकिन यदि बारात जल्दी भी चढ़ती तो भी मुख्य कार्यक्रम समय से शुरू नहीं हो पाता। महिला मंडल से पता चला कि दुल्हन भी मंडप में नहीं थी। वो जिस ब्यूटी पार्लर में सजने गई थी, उस पार्लर के पास उस शाम के 26 अपॉइंटमेंट थे।

#शादियां #बारात #मंडप #शादियों_का_मौसम

पर्व... #छठ  #छठपर्व  #बिहार  #बिहारी  #त्यौहार  #नहाय_खाय  #खरना  #संध्या  #अर्घ्य  #छठपूजा  #ट्रेन  #ट्रेनों_में_भीड़ ...
05/11/2024

पर्व...

#छठ #छठपर्व #बिहार #बिहारी #त्यौहार #नहाय_खाय #खरना #संध्या #अर्घ्य #छठपूजा #ट्रेन #ट्रेनों_में_भीड़ #यात्रा

कहां खो गए तुम...
04/11/2024

कहां खो गए तुम...

// सरदार! आपसे दो शिकायतें तो रहेंगी //पहली शिकायत...सरदार! आपको पता था कि 1946 में जो कांग्रेस का अध्यक्ष बनेगा, वही भा...
31/10/2024

// सरदार! आपसे दो शिकायतें तो रहेंगी //

पहली शिकायत...

सरदार! आपको पता था कि 1946 में जो कांग्रेस का अध्यक्ष बनेगा, वही भारत का पहला प्रधानमंत्री भी होगा। कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव पीसीसी यानी प्रदेश कांग्रेस समितियां करती थीं। उस समय 15 पीसीसी थीं। सरदार! 15 में से 12 यानी 80 प्रतिशत पीसीसी ने आपके नाम पर मुहर लगाई थी। पंडित जवाहर लाल नेहरू का कहीं नाम ही नहीं था। यानी कोई प्रतियोगिता ही नहीं थी।

वैसे भी आप उस समय 70 साल के थे, जबकि नेहरूजी की आयु 56 वर्ष थी। नेहरूजी के पास आगे समय था, आपके पास नहीं था। इसके बावजूद जब गांधीजी ने अपने दाहिने हाथ जे.बी. कृपलानी के जरिये नेहरूजी को अध्यक्ष बनाने का प्रयास शुरू किया तो आपने इसका जरा भी विरोध नहीं किया। आप गांधीजी के पास गए और गांधीजी ने आपको अपना नाम वापस लेने की सलाह दी। आपने बिना कोई सवाल किए गांधीजी का कहना मान लिया।

आखिर आपने बाद में भी तो देशहित में कई मौकों पर गांधीजी से अलग रास्ता अपनाया था। विभाजन के कई मुद्दों, जिन्ना से जुड़े मसलों आदि पर कई बार आपने गांधीजी की सलाह नहीं मानी तो इस मौके पर आप वह दृढ़ता क्यों नहीं दिखा सके जिसके लिए आप जाने जाते थे? यहां भी आपको अपने राजनीतिक गुरु की बात के बजाय देशहित के बारे में सोचना चाहिए था।

और आप तो जानते थे कि 1929 से गांधीजी आपके साथ गलत करते आ रहे थे, फिर भी आप मौन रहे। 1929 में आप बारदोली समेत अनेक आंदोलनों से निकलकर देश के नायक बने हुए थे। हर कांग्रेसी और देशवासी को लग रहा था कि 1929 के ऐतिहासिक लाहौर अधिवेशन में आप ही कांग्रेस के अध्यक्ष होंगे, लेकिन तब भी मोतीलाल नेहरू के दबाव में गांधीजी ने नेहरूजी को अध्यक्ष बनवा दिया था।

सरदार! क्या आपको पता है कि बाद के वर्षों में जे.बी. कृपलानी आपके खिलाफ होने पर पछताए, नेहरूजी के समर्थक रहे जय प्रकाश नारायण पछताए कि उन्होंने आपका विरोध क्यों किया, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी पछताए और मौलाना अबुल कलाम आजाद तक ने अपनी आत्मकथा में आपको समर्थन न देने को अपने राजनीतिक जीवन की बड़ी भूल कहा।

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दूसरी शिकायत....

सरदार! हमें पता है कि यदि आप भारत के पहले प्रधानमंत्री होते तो कश्मीर भारत के लिए चिरस्थायी समस्या नहीं होती। आप पहले प्रधानमंत्री होते तो कश्मीर के लिए अनुच्छेद 370 के रूप में अलग से कोई व्यवस्था भी नहीं होती, लेकिन जब संविधान सभा में अनुच्छेद 370 को पास कराने की बारी आई तो नेहरूजी ने विदेश से आपके कंधे पर रखकर तीर चला दिया। अफसोस! आपने अपने कंधे से वह तीर चलने दिया।

नेहरूजी ने यूरोप की यात्रा से पहले शेख अब्दुल्ला के साथ अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को अंतिम रूप दिया और संविधान सभा में इसे पारित कराने का जिम्मा गोपालस्वामी अयंगर को सौंप दिया, जो कश्मीर मामले में बिना विभाग के कैबिनेट मंत्री थे।

अनुच्छेद 370 को संविधान सभा ने टुकड़े-टुकड़े कर दिया। वहां अयंगर अकेले इसके समर्थक थे। अब नेहरूजी ने विदेश से आपको फोन किया और अनुच्छेद 370 को पारित कराने का अनुरोध किया। सरदार! यहां आप वो सख्त रुख नहीं दिखा सके जिसके लिए आप जाने जाते थे। प्रधानमंत्री के अनुरोध पर आप नरम पड़ गए क्योंकि आप नेहरूजी की गैरमौजूदगी में उन्हें शर्मिंदा नहीं करना चाहते थे। हालांकि आपने कहा कि जवाहर लाल रोएगा यानी नेहरू को इसका पछतावा होगा।

नेहरूजी ने इस दौरान अपनी गैरमौजूदगी का अच्छा फायदा उठाया और इसका ठीकरा आपके सिर फोड़ दिया। जब आप इस दुनिया में नहीं रहे तो 1952 में नेहरूजी ने यह बयान भी दिया कि सरदार पटेल हमेशा इन मामलों (कश्मीर संबंधी मामले) से निपटते थे। जब लोकसभा में अनुच्छेद 370 की आलोचना हुई तो तब भी बचाव में नेहरूजी ने कहा कि सरदार पटेल ने उनकी गैरमौजूदगी में इस अनुच्छेद को निपटाया था और वे (नेहरू) इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं। इस पर गोपालस्वामी अयंगर तक ने कहा था कि यह सरदार पटेल के प्रति एक बुरा प्रतिदान है।

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बहरहाल, सरदार! आपने देश के लिए बाकी जो कुछ किया, उसके बारे में पढ़कर और सोचकर आश्चर्य होता है कि हमारे देश में एक ऐसा बुद्धिमान, परिपक्व, निर्णायक, जिम्मेदार और आगे बढ़कर नेतृत्व करने वाला नेता था, जिसने भारत देश की कांटों भरी राह को काफी आसान बना दिया था।

अंग्रेजों का अनुमान था कि भारतीय रिसायतों के भारत में विलय करने में भारत को 10 से 15 साल या इससे ज्यादा का समय लगेगा, लेकिन आपने 548 रिसायतों को भारत में मिलाने में 10 से 15 महीने से भी कम समय लिया।

सरदार! आपके कठोर व्यक्तित्व को देखते हुए अंग्रेजों को उम्मीद थी कि भारत सरकार और रियासतों में लड़ाई तय है। लेकिन आपने मुट्ठियां वहीं लहराईं जहां जरूरत थी और आपकी शानदार रणनीति के फलस्वरूप कुछ को छोड़कर सारी रियासतें भारत की झोली में आसानी से आ गईं।

सरदार! आपने भारत में कई पाकिस्तान और कई कश्मीर होने से बचा लिए। आपने पूरा पंजाब, पूरा बंगाल और असम (जिसमें तब पूरा उत्तर-पूर्व शामिल था) पाकिस्तान में जाने से बचा लिया और स्वयं जिन्ना के शब्दों में उन्हें ‘कीट खाया पाकिस्तान’ मिला।

पाकिस्तान के बनने से भारत को लगभग 3,65,000 वर्ग मील क्षेत्र और लगभग 82 मिलियन की आबादी का नुकसान हुआ लेकिन रियासतों के एकीकरण से भारत को लगभग 5,00,000 वर्ग मील का क्षेत्र और लगभग 90 मिलियन की आबादी मिली।

ब्रिटेन के लोकप्रिय इतिहासकार और पटकथा लेखक एलेक्स वॉन टुनजेलमैन ने तो अपनी किताब ‘इंडियन समर’ में यहां तक लिख दिया है कि सरदार पटेल ने यह काम करके 90 साल के ब्रिटिश राज, 180 साल के मुगल साम्राज्य और 130 साल के अशोक व मौर्य शासकों की तुलना में एक बड़ा और अधिक एकीकृत भारत हासिल कर लिया था।

सरदार! यह बेहिचक कहा जा सकता है कि आप न होते तो 548 में से कई राज्य कम होते और वे कश्मीर की तरह बड़ी समस्याएं पैदा करते। आप न होते तो देश कई टुकड़ों में बंट जाता। त्रावणकोर, हैदराबाद, भोपाल, जूनागढ़, राजस्थान के सीमावर्ती राज्य और कई अन्य राज्य पहले से ही पाकिस्तान या कश्मीर बनने की राह पर थे।

स्वयं 19 जून 1948 को भारत से विदा लेते समय माउंटबेटन भी कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि वर्तमान सरकर की अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि रियासतों का भारत में एकीकरण है। वर्तमान सरकार की प्रतिष्ठा में किसी और चीज ने उतनी वृद्धि नहीं की है जितनी आपकी रियासतों के साथ अपनाई शानदार नीति ने की है।

सरदार! स्वयं नेहरूजी ने रियासतों के एकीकरण के आपके काम की प्रशंसा की थी। लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि इसके बावजूद उन्होंने कश्मीर के मामले में आपको हाथ नहीं लगाने दिया, जिसका नतीजा हम आज भी देख रहे हैं।

जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के बेटे कर्ण सिंह ने लिखा कि सरदार पटेल ने ऐसा काम किया जो विश्व इतिहास में पहले कभी नहीं किया गया था। पूरा देश सरदार वल्लभभाई पटेल का हमेशा ऋणी रहेगा, जिन्हें सही मायने में भारत का लौह पुरुष कहा जाता है।

आपको शत-शत नमन है सरदार!

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31/10/2024

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29/10/2024

आपकी दिवाली...शुभ हो, शुभ हो, शुभ हो

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