12/10/2024
#ह़त्मीफ़ैस़लदलीलेनुबूवत ! #اردوبھی
#सीरतोसुन्नते_स़. #अज़्मतेहसन_अ. व ह़श्रे "मलिक अज़ूज़" !
दो सौ, ख़ुस़ूस़न सत्तर अस्सी 70-80 साल से ऐसे काम किए जा रहे हैं जो उम्मत ए मॊह़म्मदिया ने बारह तेरह 12-13 सौ साल में कभी नहीं किए। मिल्लत ए इस्लामिया ने इस पूरे त़ूल त़वील दौर में कभी भी, कहीं भी बच्चों के नाम सुफ़्यान ओ हिंदा, मुआविया ओ यज़ीद, मर्वान ओ सफ़्वान, हज्जाज ओ ज़ियाद वग़ैरह नहीं रखे। कम अज़ कम बर्र ए स़ग़ीर की हज़ार बारह सो 1000-1200 साला तारीख़ में तो क़त़्अन नहीं। अब पेट्रो-डॉलर के नर्ग़े में फंसकर सुफ़्यान ओ मुआविया, हिंदा ओ यज़ीद, मर्वान ओ सफ़्वान आम किए जा रहे हैं। ह़ज्जाज के लिए दिलों में नर्मी पैदा की जा रही है। कहीं सियासत ए मुआविया ज़िंदाबाद के नारे लगाए, उर्स मनाए तो कहीं से '' यज़ीद मुआविया का बेटा था, इस लिए 'ताबेई' था,इसके लिए उसे 'रहेमाहुल्लाह्' कहना चाहिए..." के फ़त्वे जारी किए जा रहे हैं। इसी तरह और भी बहुत से नए नए काम किया जा रहे हैं, जो इस्लाम और उसकी त़ाहिर ओ मुत़्त़हर हस्तियों की शबीह बिगाड़ने के साथ साथ मुसल्मानों के ज़ाविया ए निगाह तब्दील कर रहे हैं, बल्कि ज़ेहनियत, ईमान ओ अक़ाइद,ऐमाल ओ अक़्वाल ओ ख़स़्लतों में भी ख़तरनाक बदलाव ला रहे हैं, उधर क़ाबिल ए कराहत लोगों को क़ाबिल मदह़ बना रहे हैं। उम्मत में ऐसे लोग पैदा कर दिए गए हैं जो ह़क़ के नाम पे सना ए बात़िल व बनाम ए एह़तराम ए कुल, मुस़ाबहत ए आप स़., शान ए अहल ए बैत ए अत़्हार अ., क़ुर्बानी ए शहादत ए शुहदा+स़ह़ाबियत ए साबिकून अव्वलून मुहाजिर ओ अंसार रज़ी., इत्तिबा ए ताबेईन ओ तबे ताबेईन और तक़्वा ए औलिया अल्लाह व स़ुलह़ा रह. की तज़्ह़ीक ओ तज़्लील करने पे कमर बांध चुके हैं। फ़िर्क़ा हाए जदीद में से बाज़ मस्लकों ने क़दीम अक़ाइद ओ नज़रयात पस ए पुश्त डाल दिए और बिल्कुल नए अक़ीदे व नज़रिए अपना लिए हैं। बेश्तर मुक़र्रिर,वाइज़, ख़त़ीब, मुस़न्निफ़ ओ मुबल्लिग़ अहल ए बैत ए अत़्हार अ.से बरा ए नाम तअल्लुक़ के ख़ूगर हो गए या उनके अस्मा ए मुबारका को अवाम की अक्स़िरयत के दरम्यान साख बचाए रखने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। साबिक़ून अव्वलून मुहाजिर ओ अंस़ार स़हाबा रज़ी.के हम पल्ला मुआविया को बाव़र कराया जा रहा है, बल्कि बाज़ औक़ात उनसे भी बढ़के, जैसे यज़ीद को मुआविया का बेटा होने की बिना पे " ताबेई " और "रहेमाहुल्लाह्" डिक्लेयर किया गया; जबकि आप स.ने उसे ख़ासत़ौर पे ज़म्मी लक़ब "मलिक अज़ूज़" दिया है और "त़ुलक़ा" में है ही..... ! जिसका मतलब बशुमूल मह़्फ़ूज़-ए-ख़ता हज़रत इमाम हुसैन अ., अस़्ह़ाब ए रसूल रज़ी. और ह़ुक्म ए क़ुर्आन के मुताबिक़ उनकी एह़सान के साथ पैरवी करने वालों का दानिस्ता ना-दानिस्ता मज़ाक उड़ाया जाए; मुआविया व यज़ीद को उनके सरों पे बिठा दिया जाए; ज़मीर, शराफ़त, अक़्दार ओ अख़्लाक़ की बात ही क्या ! अदालत، क़वानीन ए शरीयत, इंसाफ़, उ़स़ूल ओ ज़वाबित़ समेत इस्लाम को दफ़्न कर दिया जाए; ह़क़ को बात़िल,बात़िल को ह़क़ क़रार दे दिया जाए और इस्लाम के नाम पे ही मुसल्मानों को दीन ए खुदा ओ रसूल स़.से निकाल के बेराह रवी पे डाल दिया जाए; रोज़ मर्रा की पूरी ज़िंदगी बाउस़ूल से बेउस़ूल, इंसाफ़ पर्वरी से नाइंस़ाफ़ी; ह़क़ से हटा के बात़िल पे मुर्तकिज़ कर दी जाए; यहां तक कि उनकी आख़िरत बिलख़ैर पे भी स़वालिया निशान लगा दिया जाए। मिल्लत में एक बिल्कुल मुंफ़रिद त़़ब्क़ा उभर आया है जो 50-100 साल पहले तक कहीं नहीं था और बनू उमय्या के लिए ख़ुदा ओ रसूल स़., इस्लाम ओ ईमान, उस़ूल ओ मबादी, निज़ाम ए अद्ल और उम्मत ए मॊहम्मदिया को दाऊ पे लगा चुका है। त़़वील गुफ़्त्गू का मौक़ा नहीं। दुनिया व आख़िरत से वाबस्ता मुस्लिमीन ए दौर ए हाज़िर के अक़ीदे, नज़रिए, रविय्ये और ख़स़्लतें तबाह कर रहे इस अहम तरीन दीनी, मॊआश्रती व अख़्लाक़ी बिगाड़ का पुख़्ता ह़ल #मुतवातिर दलील ए नुबूवत फ़र्मान ए रसूल स़.है। क़वी उम्मीद है; इसकी ज़ेर ए नज़र तह़लील मुह़िब्बीन ए ख़ुदा ओ रसूल स़., दीन ओ ईमान और ह़क़ ओ इंस़ाफ़ को मौजूदा रविश पे ग़ौर ओ फ़िक्र करने के लिए मुफ़ीद स़ाबित होगी।
रसूलल्लाह् हसनैन करीमैन रज़ी.के नाना जान स़.ने फ़र्माया:-
मेरा,यह बेटा सरदार है-उम्मीद है-अल्लाह इसके ज़रिए
दो मुसल्मान गिरोह-में-स़ुलह़-कराएगा
मह़्फ़ूज़-ए-ख़ता ह़जरत इमाम ह़सन अ. नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की गोद में थे, ख़ास़ जुमे के दिन, जुमे की नमाज़ से ऄन क़ब्ल, ख़ुत़्बे के दौरान, तमाम स़ह़ाबा किराम रज़ी. ख़ुत़्बा पूरी तवज्जो और इन्हेमाक से समाअत कर रहे हैं, आप स. ठीक इस वक़्त पेश्गोई फ़र्माते हैं ताकि हर शख़्स ध्यान से सुन ले और ज़ेहन नशीं हो जाए;आवाज़, अल्फ़ाज़ व रू ए मुबारक से बेटे की त़रफ़ मज़ीद मुतवज्जा करने की ख़ात़िर, कभी स़हाबा रज़ी. और कभी उनकी जानिब नज़र ए करम फ़र्माते हुए इंतेहाई अहम बशारत ए पेश्गोई का पहला फ़र्मान ए एलान ए आम जारी करते हैं : - " #मेरा यह बेटा सरदार है " किस का सरदार है? तमाम उम्मत ए मॊह़म्मदिया का ; हर मुसल्मान का ! जो भी आप स़.को ब-रज़ा ओ रग़्बत ख़ातमुन्नबिय्यीन मानता हो, जो भी अल्लाह, फ़रिश्तों, किताबों, अंबिया ओ रसल अ. व रोज़ ए हिसाब पे ईमान रखता हो, जो भी मॊह़म्मद स़.बिन अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तलिब बिन हाशिम का दावेदार ए उम्मती हो। उन सब के सरदार सिब्त ए रसूल स़. हज़रत इमाम हसन बिन अली अ.हैं। जिसने भी मॊह़म्मद स़. बिन अब्दुल्ला...का दावा ए उम्मती करने के बावजूद, इस फ़र्मान को न माना, हज़रत इमाम हसन बिन अली अ. को अपना सरदार तस्लीम न किया, वह मॊह़म्मद स़़. बिन अब्दुल्ला...के ज़रिए ख़ुदा तआला के ह़ुक्म पर मुक़र्रर कर्दा नबी ए अक्रम स़. के सरदार बेटे को सरदार न मानने का ही मुर्तकिब नहीं हुआ, बल्कि अल्लाह ओ रसूल स़़. के हुक्म से सर्ताबी करने का भी मुस्तौजिब क़रार पाया। पस, अज़ ख़ुद उसने रब्बुलआलमीन व रह़मतल्लिल्आलमीन स. का दामन झटक के छोड़ दिया। फ़र्मान ए रसूल स. में मख़्फ़ी शख़्स मै नास़िबीन दलील ए नुबूवत स. के #पहले जुज़्व में ही #दोहरा #फ़ारिग़ है।
लेकिन ख़बर ए नबी ए करीम स. अभी काफ़ी है। आगे फ़र्माया :- " #उम्मीद है " आप स़. ने उम्मीद लफ़्ज़ लुग़वी नहीं, यक़ीनी ख़बर के इस़्तेलाह़ी व मुरादी मानी में इस्तेमाल फ़र्माया है कि अंबिया ओ रसल अ.ह़ुक्म ए ख़ुदा से मुतअल्लिक़ कभी ग़ैर यक़ीनी कलाम नहीं फ़र्माते। आप स़.ने पेश्गोई ए स़ुलह़ इस लिए फ़र्माई कि आप स़.को ख़ुदा तआला की त़रफ़ से मालूम था कि जिस शख़्स़ के मुस्तक़बिल में बात़िल स़ाबित होने के बावुजूद भी, बिना किसी ह़क़ और क़वानीन ए अद्ल ओ इंस़ाफ़ की ख़िलाफ़ वर्ज़ी कर के, जंग ओ जिदाल का त़ूफ़ान बर्पा करने की बिना पे, उसका दोबारह ख़ब्स़ ए बात़िन ज़ाहिर करने और एक मर्तबा फिर इम्तेहान से गुज़ारने की ख़ुदाई मंशा के पेश ए नज़र (((इससे पहले जंग ए स़िफ़्फ़ीन में क़त्ल ए ह़ज़़रत अम्मार रज़ी.व बाग़ी गिरोह दलील ए नुबूवत स़.से :- अफ़्सोस ! अम्मार! तुझे एक #बाग़ी गिरोह क़त्ल करेगा; #तू उसे #जन्नत की त़रफ़ और #वह तुझे #जहन्नम की त़रफ़ बुलाता होगा))) स़ुलह़ की शर्तों पे मॊआहिदा होना है, वह आप स़. के उम्मत पे मुक़र्रर कर्दा सरदार बेटे को ख़ुदा ओ रसूल स़. की ह़ुक्म उदूली कर के ना स़िर्फ़ अपना सरदार तस्लीम नहीं करेगा बल्कि तीर ओ तलवार ओ तफ़ंग, मक्र ओ फ़रेब और मक़्बूज़ा ह़ुकूमत के तमाम वसाइल के साथ फ़ित्ना ओ फ़साद और क़त्ल ओ क़िताल पे भी उतर आएगा। (((जैसे, मह़्फ़ूज़-ए-ख़ता ख़लीफ़ा ए राशिद ह़ज़़रत अली के हुक्म ए माज़ूली, आप कर्रमल्लाहु वजहहुल्करीम को अमीर उल मौमिनीन मानने से इंकार व स़िफ़्फीन में मक्र ओ ख़ूं के दर्या बहाए ))) साथ ही क़ुर्आन की आयत- मौमिन स़ुलह़ की पेश्कश क़ुबूल करे, को मद्द ए नज़र रखके अपनी दानिस्त में बड़ी होशियारी भरी चाल चलेगा कि मेरा यह बेटा ह़ुक़्म ए ख़ुदा पे अमल करते हुए एक मुसल्मान गिरोह की दूसरे से लाज़्मन स़ुलह़ कराएगा। दलील ए नुबूवत स़. में मख़्फ़ी शख़्स ने नबी ए करीम स़. के कम ओ बेश 34 साल क़ब्ल (फ़तह़ मक्का से ढाई तीन साल पहले) हर मुसल्मान के सरदार मुकर्रर किए गए आप स़.के बेटे को अपना सरदार तो तस्लीम किया ही किया नहीं बल्कि फ़र्मान ए रसूल स़.की ढिटाई से मज़ीद तौहीन करते हुए (बज़ाहिर सिर्फ़) पूरी रियासत ए मुस्लिमा हथियाने की ख़त़िर, मक्र ओ जंग का जाल बिछा दिया। मुआविया मै नास़िबीन #दूसरी मर्तबा फ़ारिग़। मज़ीद वज़ाह़़त ज़ेर ए "दो मुसल्मान गिरोह . . . . .
एक बार फिर, ज़रूरत नहीं रह जाती कि फ़र्मान ए नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम से मज़ीद गुफ़्त्गू की जाए, लेकिन कम अज़ कम इस पेश्गोई ए दलील नुबूवत स़.से मुकम्मल त़ौर पे इस्तेफ़ादा करना लाज़िम है।आप स़. ने दौरान ए ख़ुत़्बा ए जुमा, बर-सर ए मिंबर, हज़रत इमाम ह़सन अलैहिस्सलाम के लिए एक और अज़ीमउश्शान बशारत का एलान फ़र्माया :-" #अल्लाह इस के ज़रिए " किसके ज़रिए??? कौन??? नवासा ए रसूल स़. ह़जरत इमाम ह़सन बिन अली अ. के ज़रिए रब्बुलआलमीन ! एक बार फिर ध्यान दिजिए ! रब्बुलआलमीन ! ह़जरत इमाम ह़सन बिन अली अलैहिम्अस्सलाम के ज़रिए, ना कि ह़़जरत इमाम ह़सन अ. अज़ ख़ुद !!! आप स़. के यह अल्फ़ाज़ ए इर्शाद ए गिरामी ह़ज़रत इमाम ह़सन बिन अली अलैहिम्अस्सलाम को रब्बुलआलमीन व रह़मतल्लिल्आलमीन स़. का #नुमाइंदा मुक़र्रर करने का स़रीह़ एलान ए आम हैं !!! आप स़. ने बह़ुक्म ए क़ादिर ए मुत़्लक़ दलील ए नुबूवत के पहले जुज़्व से, ह़ज़रत इमाम ह़सन अ. को उम्मत का सरदार और इस तीसरे फ़र्मान ए गिरामी से #ख़ुदा व #अपना #नुमाइंदा मुक़र्रर फ़र्माया। ह़ज़़रत इमाम ह़सन अलैहिस्सलाम तमाम मुसल्मानों समेत दोनों मुस्लमान गिरोह के सरदार ए सरबुलंद और बजुज़ मर्तबा ए मक़ाम ए नुबूवत व रिसालत #आप स़. के #जां नशीं #मिन जानिब रब्बुलआलमीन ठहरे। दलील ए नुबूवत फ़र्मान ए नबी ए करीम स़. में मख़्फ़ी शख़्स मै नास़िबीन #तीसरी दफा फ़ारिग़ है कि रब्बुलआलमीन व रह़मतल्लिल्आलमीन स़. के नुमाइंदे को उनका नुमाइंदा मानने से भी मुन्ह़रिफ़ हुआ। इधर, आप अलैहिस्सलाम को (मज़ीद) तीन त़रह़ के तीन जलीलुलक़द्र मक़ाम ओ मरातिब से सरफ़राज़ किया गया और इख़्तियारात ए उमूर ए मिल्लत ए इस्लामिया सुपूर्द किए गए।एक, नुमाइंदा ए अल्लाह ओ रसूल स़.। द़ो, उम्म्त ए मॊह़म्मदिया के सरदार ए सरबुलंद। तीन, ख़लीफा ए मुस्लिमीन बना कर।
नबी ए करीम स़. आगे फ़र्माते हैं:-" #दो मुसल्मान गिरोह "।एक वह जो अपनी मर्ज़ी और ख़ुशदिली से इस्लाम, उम्मत ए मोहम्मदिया, अद्ल ओ इंस़ाफ़, हिफ़ाज़त ए ख़िलाफ़त ए अला मिन्हाज ए नुबूवत, ह़क़ व ख़ुशनूदी ए ह़क़ तआला की ख़ात़िर, ह़ज़़रत इमाम ह़सन अ. को तमाम इख़्तियारात सुपुर्द कर के, मिल्लत ए इस्लामिया का ख़लीफ़ा ए मुस्लिमीन बना कर मैदान में लाया। यह अज़ीम वाक़ेआ मशीयत ए क़ादिर ए मुत़्लक़ और उसके महबूब स. की पेश्गोई ज़ुहूर में आने की तम्हीद के त़ौर पे रू-नुमा हुआ। मुतअल्लिक़ा दलील ए नुबूवत स़. :-((( मेरे बाद ख़िलाफ़त #तीस 30 साल रहेगी; बाद अज़ #कटखना_राजा आ जाएगा))) दूसरा वह जिसे एक शख़्स़ ने बुग़्ज़ ए मौला कर्रम.के पर्वर्दा नास़िबीन, मुनाफ़िक़ीन,तामे दौलत ओ हुकूमत, ऐश ओ इश्रत परस्त, मत़्लबी, ख़ौफ़ज़दा, ह़ुब्ब ए बनू उमय्या के जाल में फंसाए गए, तमीज़ ए ह़क़ ओ बात़िल से क़ास़िर, मजबूर, कम समझ, ना-समझ और सादा लोह़ मुसल्मानों को मुख़्तलिफ़ ह़र्बों, हथकंडों से वर्ग़ला कर गिरोह बनाया हुआ था।वह उसे नवासा ए नबी नुमाइंदा ए रब्बुलआलमीन व रह़मततल्लिल्आलमीन सरदार ए सरबुलंद ख़लिफ़ा ए मुस्लिमीन ह़ज़़रत इमाम ह़सन अलैहिस्सलाम को साथियों समेत क़त्ल करने के लिए हज़ारों ख़ूं आशाम नेज़े, तीर ओ तलवार ओ त़़बल, ज़र्हें, ख़ोद और घोड़े वग़ैरह दे कर मैदान में ले के आया।..... इल्ला नास़िबीन=मुनाफ़िक़ीन, (((पैमाना ए ईमान, फ़र्मान ए दलील ए नुबूवत स़. :- ऐ अली ! तुम से मोहब्बत नहीं करेगा मगर मौमिन और बुग़्ज़ नहीं रखेगा मगर मुनाफ़िक़/... मुनाफ़िक़ों...का ठिकाना जहन्नम है..:अल्तौबा,73))) इस गिरोह के तमाम मुसल्मान ख़ाह किसी वजह से मुआविया के साथ हों, ब-हर त़ौर मुसल्मान थे, गुमराह किए गए, बद-गुमां किए गए, ललचाए या डराए गए (((उन सब को ह़ज़़रत अली कर्रम.ने मुआफ़ करके उम्मीद ज़ाहिर की थी कि रब्ब ए करीम उन्हें मुआफ़ फ़र्मा देगा))) गिरोह में उनकी बड़ी भारी आक्स़िर्यत थी। इतनी बड़ी कि सारे दुश्मन ए ख़ुदा ओ रसूल स़., दीन ओ उम्मत ओ इंसानियत उन्हीं के पीछे छुपने को लाचार थे। बिल्कुल ऐसे ही जैसे आज मजबूर हैं और ख़ुद को " सुन्नी " बावर कराने की कोशिश करते हैं।
फ़र्मान ए रसूल ए करीम दलील ए नुबूवत स़. का अगला लफ़्ज़ ए गिरामी है :-" #में ", ध्यान दिजिए ! " #में " ; " से " नहींं ! ह़ज़रत इमाम ह़सन अ. नुमाइंदा ए अल्लाह ओ रसूल स़. के साथ पूरी उम्मत ए मोह़म्मदिया के सरदार ए सरबुलंद व ख़लीफ़ा ए मुस्लिमीन भी हैं। जिस के अफ़्र्राद ख़ाह दो गिरोह में तक़्सीम हों, तीन,चार या ज़्यादा,आप अ. की ज़िम्मेदारी में दाख़िल थे। वर्ग़लाए गए एक मुसल्मान गिरोह के ख़ुद साख़्ता सरगिरोह ने उसके दम पे सालों से मसला खड़ा किया हुआ था, जिसे राह ए रास्त पे गामज़न दूसरा मुसल्मान गिरोह ह़ल करना चाहता था, सो आप अ. ने दोनों #में #स़ुलह़ #कराई, ना कि ख़ुद किसी " से की "। मुआविया मै नास़िबीन #चौथी मर्तबा फ़ारिग़। बिलफ़र्ज़ अगर, मुदाफ़े मख़्फ़ी शख़्स़ कहे कि नुमाइंदा ए रब्बुलआलमीन व रह़मतुल्लिल्आलमीन स़.ने " स़ुल़ह़ की " तो मख़्फ़ी शख़्स़ पांचवीं बार फ़ारिग़ कि ((( मगर जैसे कि दलील ए नुबूवत स़. से इयां है, आप रज़ी. ने किसी से भी स़ुलह़ नहीं की))) आप स़. का एक और फ़र्मान ए आलीशान है :- ((( मेरी,मेरे अहल ए बैत से जंग करने वाले से जंग है, स़ुलह़ करने वाले से स़ुलह़ ))) यानी आप अ. से जंग करने वाला भी काफ़िर और स़ुलह़ करने वाला भी। जैसे मक्के के काफ़िरों व मुश्रिकों ने आप स़. से जंग की तब भी काफ़िर, स़ुलह़ की तब भी काफ़िर। यमन, नजरान के वफ़द ने ईमान न लाकर जज़िया देने की शर्त़ पे मॊआहिदा करके स़ुलह़ की तब भी।
बशारत ए दलील ए नुबूवत स़. का मख़्ज़न ए अम्न लफ़्ज़ है:-'' #स़ुलह़ " ; यह लफ़्ज़ नबी ए करीम स़. की इस पेश्गोई की अहमियत के एतबार से अपनी जगह इतना अहम है कि इसके जलू में किताब की मुतअद्दिद जिल्दें समा जाएं। लिखने वाले को अब्दु मुनाफ़ के बेटों से शुरू करके अल्लाह तआला के स़ुलह़ से मुतअल्लिक़ मन्शा ओ मक़ासिद और आख़री फ़ैसले तक के मुम्किना व गुज़िश्ता वाक़ेआत, अस़्रात,अमल,रद्द ए अमल, नताइज, किरदारों की जिबल्लतें, रिवायतें, मन्स़ूबे, इहद्दाफ़ ओ मक़ास़िद का तमाम पहलूओं से बिला रू रिआयत तज्ज़िया करते हुए जिल्दों पे जिल्दें क़लमबंद करनी होंगी। सो,फ़क़्त़ चंद बातें। यह आलम ए इंसानियत का ऐसा फ़क़ीदुल मिस़ाल वाक़ेआ ((( सुलह़, इसलिए कि नुमाइंदा ए अल्लाह ओ रसूल स़.; मुख़ालिफ़ गिरोह के ख़ुद साख़्ता सरगिरोह को चंद शराइत़ के काग़ज़ी वादे पे सब कुछ सपुर्द कर दे और मुसल्मानों की रियासत में से मुत़्लक़ कोई अद्ना सी शै भी अपने पास न रखे ! मिस़्ल ए ख़र्क़ ए आदत ह़ैरत ओ इस्तेजाब का मक़ाम है ! ! ! ))) था कि मा-क़ब्ल ओ बाद कभी कहीं हुआ न होगा। बिल्कुल सानेह़ा ए मक़्तल ए ख़ानवादा ए रसूल स़. ( 72 में 22 मै ह़ज़रत इमाम हुसैन अ.) की तरह़ बेमिस़्ल मगर साथ ही क़त्अन बरअक्स! नताइज दोनों के यक्सां। शराइत ए स़ुलह़ के ख़िलाफ़ अमल करने वाले की नियत ओ ज़ेहनियत के अक्कास एमाल ओ अक़्वाल ओ अस़्रात ओ नताइज फ़ैसला स़ादिर करते हैं :- फ़ित्ना ऊपरी त़ौर पे ख़ामोश हुआ व दीन ओ उम्मत में दाइमी तिफ़र्क़ा डाल दिया गया (((जैसे, सिफ़्फ़ीन में क़ुर्आन नेज़ों की नौक पे चढ़ा के डाला और नबी ए करीम स. की ख़वारिज निकलने की पैश्गोई पूरी होने का ज़रिआ बना ))) .....! ऐसे तनाज़ात में स़ुलह़, अमूमन तीन त़रह़ की होती हैं। एक, ग़ालिब फ़रीक़ मग़्लूब फ़रीक़ पे शर्तें थोपता है। यहां ऐसा हर्गिज़ नहीं। दो, फ़र्रिक़ैन कुछ ले दे कर स़ुलह़ करते हैं।यह भी क़त़्अन नहीं हुआ। तीन, मक्कार फ़रीक़ जो चाहता है लेने के लिए फ़रीक़ ए मुख़ालिफ़ की हर शर्त़ क़ुबूल कर लेता है। बिल्कुल यही किया गया، मगर ह़ज़रत इमाम ह़सन अ.की निस्बत से ब-वजह अदीमुल-मिस़ाल स़ुलह़ होने के मुक़ाबिल इसकी अहमियत कम कम; व दलील ए नुबूवत स़. में मख़्फ़ी शख़्स़ के तअल्लुक़ से इंतेहाई शदीद एताब आमेज़ .....! चुंकि ह़ज़रत इमाम ह़सन अ. रसूलल्ला स़. के नवासे, जां नशीं मिन जानिब रब्ब ए करीम इल्ला नुबूवत ओ रिसालत, तालीम ओ तर्बियत, दुआओं व फ़ैज़ान याफ़्ता (दूसरी त़रफ़ !!!) सो आप अ. को ब-वास्ता नबी ए अक्रम स़. मौस़ूल हुक्म ए ख़ुदा पे अमल करना ही करना था। इसी लिए आप अ. ने राह ए रास्त पे गामज़न जमाअत की त़रफ़ से ऐसी ((( ख़हा अल्लाह तआला ने आप अ. पे इल्क़ा कीं या मौला अली कर्रम. ने नबी ए करीम स़. से मौस़ूला अमानत का मज्मुआ आप अ. को पहुंचाया ))) शर्तें मनवाईं जिन्हें आप अ. ख़ूब अच्छी त़रह़ जानते थे कि वह सारी तस्लीम कर लेगा, मगर अमल बर-अक्स करेगा। यूं उसके सारे बॊहतान, सारे बहाने, सारे मुत़ाल्बे, सारे वादे, सारे इरादे त़श्त-अज़-बाम हो जाएंगे.....! एक अहम बात यह कि स़ुलह़ बिना मॊआहिदा लिखे और मॊआहिदे में बिना शराइत़ दर्ज किए, हर्गिज़ स़ुलह़ नहीं होती।
आख़री जुज़्व ए गिरामी पेश्गोई ए दलील ए नुबूवत स़. :-" #कराए-गा "। स़ुलह़ कराए-गा। #कराए पे ख़ुस़ूस़ी तव्वजो मर्कूज़ किजिए ! #कराए-गा ; #करे-गा नहीं। #स़ुलह़ #कौन #कराए-गा ??? #रब्बुलआलमीन। #किस #के #ज़रिए #कराए-गा ??? #नवासा ए रसूल स़. #ह़सन बिन अली अ. #के #ज़रिए #कराए-गा। #कौन? #किस? #के #ज़रिए #किन? #की #स़ुलह़ #कराए-गा ? #रब्बुलआलमीन #अपने व #अपने #मह़बूब स़. #के #नुमाइंदे ह़ज़रत इमाम #ह़सन अ. #के #ज़रिए #दो मुस्लमान गिरोह #में #स़ुलह़ #कराए-गा जो ह़ुक्म ए ख़ुदा से नबी ए मुकर्रम स़. के मुक़र्रर कर्दा हर उम्मती के सरदार ए सरबुलंद भी हैं। मुआविया मै नास़िबीन #पांचवीं दफ़ा फ़ारिग़। ह़ज़रत इमाम ह़सन अ. ने #रब्बुलआलमीन के #क़ुर्आन व आप स़. से मौस़ूल ह़ुक्म पर #बत़ौर #उनके #नुमाइंदे #दो मुस्लमान गिरोह #में #स़ुलह़ #कराई #ना कि #ख़ुद #किसी #से #की।
नबी ए करीम स़. ने बह़ुक्म ए ख़ुदा अव्वलीन अल्फ़ाज़ ए पेश्गोई ए दलील ए नुबूवत से ह़ज़रत इमाम ह़सन अ.को हर उम्मती का सरदार मुक़र्रर फ़र्माया। फिर उन्हें अपने बाद 30 साल पूरे होने से पहले ही एक शख़्स़ के 6 बरस से ख़ुदा की ज़मीन पे फैलाए जा रहे फ़ित्ना ओ फ़साद को मज़ीद फैलाने से रुकवाने, बर्पा की जा रही ख़ाना जंगी और बद-अम्नी ख़त्म कराने, ब-शुमूल बंदगान ए ख़ुदा उम्मत के जान ओ माल ओ इज़्ज़त ओ ह़ुर्मत मह़फ़ूज़ रखवाने और दोबारह (((पहले, क़त्ल ए ह़ज़रत अम्मार रज़ी. व बाग़ी गिरोह पेश्गोई ए दलील ए नुबूवत स़. के ज़रिए ))) इम्तेहान में पड़े उसी शख़्स़ का एक बार फिर ख़ब्स़ ए बात़िन ज़ाहिर कराने के लिए मिन-जानिब रब्बुलआलमीन ख़ुद उसका व अपना #नुमाइंदा मुक़र्रर फ़र्माया। यह इस क़दर अज़ीमुलमर्तबत ज़िम्मेदारी थी कि नवासा ए रसूल स़. ह़ज़रत इमाम ह़सन बिन अली अ. ही सर अंजाम दे सकते थे। जैसे उनके वालिद मौला अली कर्रम. को अपनी जगह मक्के के मुश्रिकों व काफ़िरों की, अपने पास रखी हुई अमानतें सपुर्द कराने के लिए, रवानगी ए शब ए हिज्रत, बिस्तर ए नुबूवत पे सुलाया। महीनों बाद अज़ फ़तह़ मक्का, ह़ज के मौक़े पे अपना नाइब बना कर, कुफ़्फ़ार ओ मुश्रिकीन के लिए नाज़िल ह़त्मी हुक्म ऐ ख़ुदा सुनाने मक्के भेजा; और बद्र ओ उह़द ओ ख़ंदक़ ओ ख़ैबर वग़ैरह में अज़्मत ओ रिफ़्अत से भरीं अज़ीम ज़िम्मेदारियांं अत़ा की थीं।
रोज़ ए रोशन की त़रह़ वाज़ेह़ है कि ह़ज़रत इमाम ह़सन अ. ने किसी से भी क़त़्अन स़ुलह़ नहीं की। रब्बुलआलमीन ने अपने व अपने रसूल स़. के नुमाइंदे (के ज़रिए), मै सारी उम्मत ए मॊह़म्मदिया दोनों मुसल्मान गिरोह के सरदार ए सरबुलंद और राह ए रास्त पे गामज़न जमाअत के उन को सपुर्द कर्दा इख़्तियारात के तह़त मिन जानिब कुल, शामिल ए तनाज़ा " दो मुसल्मान गिरोह में स़ुलह़ कराई।" गुमराह कर्दा शामी गिरोह को सब कुछ तहस नहस करने व क़त्ल ओ ग़ारत-गरी पे कमर बस्ता कर दिया गया था। उसे बाईस 22 बरस से जमा करने वाले सरगिरोह ने मक्र ओ फ़रेब ओ लालच के नर्ग़े में फंसाकर अपने पीछे पूरी त़रह़ लामबंद किया हुआ था। सो, आप अ. ने ख़ुदा ओ रसूल स़. और राह ए रास्त पे गामज़न मुसल्मान गिरोह की त़रफ़ से, गुमराह कर्दा मुसल्मान गिरोह के ख़ुद साख़्ता सरगिरोह बने शख़्स़ को, चंद साल के लिए,मुसल्मानों की रियासत के इंतेज़ामी उमूर सपुर्द कर दिए। उस पे मज़ीद शरई ह़ुज्जत तमाम करने के लिए मॊआहिदा ए स़ुलह़ में शर्तें मनवा के लिखवा दीं। इस आख़री व तीसरे इम्तेहान में भी #नुमाइंदा ए ख़ुदा ओ रसूल स़. के मुक़ाबले पे आया शख़्स़ पूरी त़रह़ नाकाम हो गया। ((( इस से क़ब्ल सिफ़्फ़ीन में ह़ज़रत अम्मार रज़ी. के क़त्ल की ख़बर मौस़ूल होने पर फ़र्मान ए दलील ए नुबूवत स़. के मानी पलट के आप स़. को ह़ज़़रत हम्ज़ा. . . रज़ी और ह़ज़रत अली कर्रम.को ह़ज़रत अम्मार व दीगर शुहदा रज़ी. के क़ातिल और . . . . . (नाऊज़ुबिल्लाह) क़रार दिया। छ 6 माह बाद बमक़ाम *अज़्रज, कलामउल्लाह समेत ख़लीफ़ा ए राशिद, 1000 बद्री व अस़ह़ाब ए रिज़वान रज़ी. और तमाम उम्मत ए मोह़म्मदिया के साथ ऐसा ही किया)))। मुआविया मै नास़िबीन #छटी दफ़ा फ़ारिग़। मॊआहिदे की शराइत़ के बर-अक्स अमल करने से उसका अस़्ल मक़सद व चेहरा एक बार फिर तीसरी बार अलीम ओ ख़बीर ओ बस़ीर रब समेत करोड़ों मुस्लिमीन और पूरी नौ ए इंसानी के सामने आ गया, ताकि रोज़ ए ह़िसाब करोड़ हा करोड़ अल्लाह के बंदे उसके ख़िलाफ़ गवाही दे सकें। इस एक ही दलील ए नुबूवत फ़र्मान ए रसूल स. में मख़्फ़ी शख़्स़ मै नास़िबीन #छ 6 मर्तबे फ़ारिग़ है। दोनों फ़रीक़ में स़ुलह़ का मॊआहिदा कराना और राह ए रास्त पे गामज़न जमाअत की जानिब से मॊआहिदे की शराइत़ त़ै करना भी दलील ए नुबूवत फ़र्मान ए नबी ए करीम स़. व इस जमाअत के आप अ. को सुपुर्द कर्दा इख़्तियारात के तह़त आप अ. की ज़िम्मेदारी में दाख़िल था। ख़ुदा व मह़बूब ए ख़ुदा स. के नुमाइंदे नवासा ए रह़मतल्लिल्आलमीन ह़ज़रत इमाम ह़सन बिन अली अ. के मुक़ाबले पे सरगिरोह ए नास़िबीन आया, यह उसकी पर्वरिश ओ पर्दाख़्त व हविस ए इक़्तेदार पे तुर्रा, मै आप स़.अहल ए बैत ए अत़्हार अ.से बुग़्ज़ की मार; कोई और आता, तब भी ह़ज़रत इमाम ह़सन अलैहिस्सलाम की #सरदारी, #ज़िम्मेदारी व #नुमाइंदगी ए ख़ुदा ओ रसूल स़.की क़द्र ओ मन्ज़िलत यही होती।
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नोट: तह़रीर में पांच पेश्गोई ए दलाइल ए नुबूवत फ़रामीन ए रसूल स़. पेश किए गए हैं। एक जानिब सब का तअल्लुक़़ रास्त बिर्रास्त मुश्तर्का त़ौर पे अहल ए बैत ए अत़्हार अ. व तीन अलग अलग बर्गज़ीदा हस्तियों और दो-त़र्फ़ा जुदा जुदा मवाक़े से है; यानी आप स़. ने दस साला दौर ए हिज्रत के मुख़्तलिफ़ औक़ात में मौक़े बमौक़े; कम ओ बेश 34 ता 40 बरस बाद, मुतफ़र्रिक़ मौकों पर, सानेह़ात ओ वाक़ेआत ग़ैर मुश्तबा रूनुमा होने के बारे में, कुल पेश्गोईयां इर्शाद फ़र्माईं; दूसरी त़रफ़ तमाम मतून में फ़र्द ए वाह़िद अख़्ख़स़ उल ख़ास़ निशाना मख़्फ़ी शख़्स़ " मुआविया " है । इंतेहाई तवज्जो त़लब और ह़ैरत अंगेज बात यह कि आप स़. ने किसी एक पेश्गोई में भी उसका नाम लेना भी गवारा नहीं फ़र्माया !!!!! यहां तक कि एक में उसकी ख़स़्लत को पूरी त़रह़ उभार के नुमायां किया और साथ ही नाम लेने से भी सख़्त एराज़ फ़र्माया। दलाइल ए नुबूवत स़. में मख़्फ़ी शख़्स मै नास़िबीन बिल्कुल वाज़ेह़ और मोटे त़ौर पे #ग्यारह 11 , जी हां , ग्यारह 11 दफ़े फ़ारिग़ है। इसी सीरत ओ सुन्नत ए रसूल स़. पे अमल करते हुए, मज़मून में कोशिश की गई है कि आप स.व ह़ज़रत इमाम ह़सन बिन अली अलैहिम्अस्सलाम के अस्मा ए मुबारका के साथ एक ही जुम्ले में उसका नाम न आए। अगर कहीं भूल चुक से आ गया हो, बहुत बहुत माज़रत ! मुत़्तले फ़र्माएं ! ताकि तस्ह़ीह़ कर दी जाए। . . . . .
अव्वलीन पब्लिश्ड 27-10-2022 नज़र ए स़ानी- 25-01-23
*اذرج बहुत शुक्रिया -अलमिहर ख़ा
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#سیرت و #سنت ص #عظمت #حسن ع وحشر"ملک عضوض" !
دو سو، خصوصا ستر اسی 80/70 سال سے ایسے کام کئے جا رہے ہیں جو امت محمدیہ نے بارہ تیرہ 13/12 سو سال میں کبھی نہیں کئے۔ ملت اسلامیہ نے اس پورے طول طویل دور میں کبھی بھی، کہیں بھی بچوں کے نام، سفیان و ہندہ، معاویہ و یزید، مروان و صفوان، حجاج و زیاد وغیرہ نہیں رکھے۔ کم از کم بر صغیر کی ہزار 1200/1000 بارہ سو سالہ تاریخ میں تو قطعاً نہیں۔ اب پیٹرو ڈالر کے نرغے میں پھنس کر سفیان و معاویہ، ہندہ و یزید، مروان و صفوان عام کئے جا رہے ہیں۔ حجاج کے لئے دلوں میں نرمی پیدا کی جا رہی ہے۔ کہیں سیاست معاویہ زندہ باد کے نعرے لگائے، عرس منائے اور کہیں سے''یزید معاویہ کا بیٹا تھا، اس لئے تابعی تھا، اس کے لئے اسے'رحمہ اللہ' کہنا چاہئے'' کے فتوے جاری کئے جا رہے ہیں۔ اسی طرح دیگر ایسے بہت سے بالکل نئے نئے کام کئے جا رہے ہیں جو اسلام اور اس کی طاہر و مطہر ہستیوں کی شبیہ بگاڑنے کے ساتھ ساتھ، مسلمانوں کے زاویہ نگاہ تبدیل کر رہے ہیں بلکہ ذہنیت، ایمان و عقائد، اعمال و افعال و خصلتوں میں بھی خطرناک بدلاؤ لا رہے ہیں؛ ادھر قابل کراہت لوگوں کو قابل مدح بنا رہے ہیں۔ امت میں ایسے لوگ پیدا کر دیئے گئے ہیں جو حق کے نام پہ ثنائے باطل اور بنام احترام کل، مصابحت رسول اللہ صلی اللہ علیہ وآلہ وسلّم، شان اہل بیت اطہار علیہم السلام، قربانی شہادت شہداء+صحابیت سابقون اولون مہاجر و انصار- صحابہ کرام رضوان اللہ علیہم اجمعین، اتباع تابعین و تبع تابعین اور تقویٰ اولیاءاللہ و صلحاء رح کی تضحیک و تذلیل کرنے پہ کمر باندھ چکے ہیں۔ فرقہ ہائے جدید میں سے بعض مسلکوں نے اس تعلق سے قدیم عقائد و نظریات پس پشت ڈال دیئے اور بالکل نئے عقیدے و نظرئے اپنا لئے ہیں۔ بیشتر مقرر، واعظ، خطیب، مصنف و مبلغ اہل بیت اطہار ع سے برائے نام تعلق کے خوگر ہوگئے یا ان کے اسمائے مبارکہ کو عوام کی اکثریت کے درمیان ساکھ بچائے رکھنے کے لئے استعمال کر رہے ہیں۔ سابقون اولون مہاجر و انصار صحابہؓ کے ہم پلہ معاویہ کو باور کرایا جا رہا ہے، بلکہ بعض اوقات ان سے بھی بڑھ کے، جیسے، یزید کو معاویہ کا بیٹا ہونے کی بنا پر تابعی اور "رحمہ اللہ" ڈکلیئر کیا گیا؛ جب کہ آپ ص نے اسے خصوصی طور پہ ذمی لقب "ملک عضوض" دیا ہے اور "طلقاء" میں ہے ہی ۔۔۔۔۔۔جس کا مطلب اس کے علاوہ کچھ نہیں کہ بشمول محفوظ خطا حضرت امام حسین ع تمام اصحاب رسول رض و حکم قرآن کے مطابق ان کی احسان کے ساتھ پیروی کرنے والوں کا دانستہ نا دانستہ مزاق اڑایا جائے؛ معاویہ و یزید کو ان کے سروں پہ بٹھا دیا جائے؛ ضمیر, شرافت و اقدار و اخلاق کی بات ہی کیا ! عدالت، قوانین شرعیت، انصاف، اصول و ضوابط سمیت اسلام کو دفن کر دیا جائے؛ حق کو باطل، باطل کو حق قرار دے دیا جائے اور اسلام کے نام پہ ہی مسلمانوں کو دین خدا و رسولؐ سے نکال کے بے راہ روی پہ ڈال دیا جائے؛ روز مرہ کی پوری زندگی بااصول سے بے اصول، انصاف پروری سے ناانصافی ، حق سے ہٹا کر باطل پہ مرتکز کر دی جائے؛ یہاں تک کہ ان کی آخرت بالخیر پہ بھی سوالیہ نشان لگا دیا جائے ! ملت میں ایک بالکل منفرد طبقہ ابھر آیا ہے جو پچاس 100/50 سو سال پہلے تک کہیں نہیں تھا اور بنو امیہ کے لئے خدا و رسولؐ، اسلام و ایمان، اصول و مبادی، نظام عدل و امت محمدیہ کو داؤ پہ لگا چکا ہے۔ طویل گفتگو کا موقع نہیں۔ دنیا و آخرت سے وابستہ مسلمین دور حاضر کے روئے، نظرئے، عقیدے، جبلتیں تباہ کر رہے اس اہمترین دینی، معاشرتی و اخلاقی بگاڑ کا پختہ حل #متواتر دلیل نبوت فرمان رسولؐ ہے۔ قوی امید ہے، اس کی زیر نظر تحلیل محبین اللہ و رسولؐ، دین و ایمان اور حق و انصاف کو موجودہ روش پہ غور و فکر کرنے کے لئے مفید ثابت ہوگی۔۔۔۔।
رسول اللہ حسنین کریمین رض کے نانا جان ص نے فرمایا:-
میرا یہ بیٹا سردار ہے-امید ہے-اللہ اس کے ذریعے
دو مسلمان گروہ-میں-صلح-کرائے گا
محفوظ خطا حضرت امام حسن علیہ السّلام نبی کریمؐ صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم کی گود میں تھے خاص جمعے کے دن، جمعے کی نماز سے عین قبل، خطبے کے دوران، تمام صحابہ رضی اللہ عنہم خطبہ پوری توجہ و انہماک سے سماعت کر رہے ہیں، آپ ص ٹھیک اس وقت پیشگوئی فرماتے ہیں تاکہ ہر شخص دھیان سے سن لے اور ذہن نشیں ہو جائے، آواز، الفاظ اور رو مبارک سے بیٹے کی طرف مزید متوجہ کرنے کی خاطر کبھی صحابہ کرام رضوان اللہ علیہم اجمعین اور کبھی ان کی جانب نظر کرم فرماتے ہوئے انتہائی اہم بشارت پیشگوئی کا پہلا فرمان اعلان عام صادر کرتے ہیں :- " #میرا یہ بیٹا سردار ہے۔۔،" کس کا سردار ہے ؟ تمام امت محمدیہ کا ؛ ہر مسلمان کا ! جو بھی آپ ص کو برضا و رغبت خاتم الانبیاء مانتا ہو۔ جو بھی اللہ کو واحدہ لاشریک، فرشتوں، کتابوں، انبیاء و رسل علیہم السلام اور روز حساب پہ ایمان رکھتا ہو، جو بھی محمد ص بن عبداللہ بن عبدالمطلب بن ہاشم کا دعویدار امتی ہو۔ ان سب کے سردار سبط رسولؐ حضرت امام حسن بن علی علیہم السلام ہیں۔ جس نے بھی محمد رسول اللہ ص بن عبداللہ۔۔۔ کا دعویٰ امتی کرنے کے باوجود اس فرمان کو نہ مانا، حضرت امام حسن بن علی علیہم السلام کو اپنا سردار تسلیم نہ کیا، وہ محمد ص بن عبداللہ۔۔۔۔کے ذریعے اللہ تعالیٰ کے حکم پر مقرر کردہ نبی اکرمؐ کے سردار بیٹے کو سردار نہ ماننے کا ہی مرتکب نہیں ہوا، بلکہ اللہ و رسولؐ کے حکم سے سرتابی کرنے کا بھی مستوجب قرار پایا۔ پس، از خود اس نے رب العالمین و رحمت اللعالؐمین کا دامن جھٹک کے چھوڑ دیا۔ فرمان رسولؐ میں مخفی شخص مع ناصبین پیشگوئی دلیل نبوت ص کے #پہلے جزو میں ہی #دوہرا #فارغ ہے۔۔۔۔۔
مگر خبر نبی مکرمؐ ابھی کافی ہے۔ آگے فرمایا:-"۔۔۔ #امید ہے۔۔۔"۔ آپ ص نے امید لفظ لغوی نہیں، یقینی خبر کے اصطلاحی و مرادی معنی میں استعمال فرمایا ہے کہ انبیاء و رسل علیہم السلام حکم خدا سے متعلق ہرگز غیر یقینی کلام نہیں فرماتے۔ آپ ص نے پیشگوئی صلح اس لئے فرمائی کہ آپ ص کو اللہ تعالیٰ کی طرف سے معلوم تھا کہ جس شخص کے مستقبل میں باطل ثابت ہونے کے باوجود بھی، بلا کسی حق اور قوانین عدل و انصاف کی خلاف ورزی کر کے، جنگ و جدال کا طوفان برپا کرنے کی بنا پر، اس کا دوبارہ خبث باطن ظاہر کرنے اور ایک مرتبہ پھر امتحان سے گزارنے کی خدائی منشاء کے پیش نظر ((( اس سے قبل جنگ صفین میں قتل حضرت عمار رض و باغی گروہ دلیل نبوت ص سے :- افسوس ! عمار! تجھے ایک #باغی گروہ قتل کرے گا۔ #تو اسے #جنت کی طرف اور #وہ تجھے #جہنم کی طرف بلاتا ہوگا ))) صلح کی شرائط پہ معاہدہ ہونا ہے، وہ رسول خدا ص کے امت پہ مقرر کردہ سردار بیٹے کو خدا و رسولؐ کی حکم عدولی کر کے نہ صرف اپنا سردار تسلیم نہیں کرے گا بلکہ تیر و تلوار و تفنگ، مکر و فریب اور مقبوضہ حکومت کے تمام وسائل کے ساتھ فتنہ و فساد اور قتل و قتال پہ بھی اتر آئے گا (((جیسے, محفوظ خطا خلیفہ راشد حضرت علیؑ کے حکم معزولی و آپ کرم اللہ وجہہ الکریم کو امیر المومنین ماننے سے انکار اور صفین میں مکر و خوں کے دریا بھائے ))) ساتھ ہی قرآن کی آیت :- مومن صلح کی پیشکش قبول کرے، کو مد نظر رکھ کے اپنی دانست میں بڑی ہوشیاری بھری چال چلے گا کہ میرا یہ بیٹا حکم خدا پہ عمل کرتے ہوئے ایک مسلمان گروہ کی دوسرے سے لازماً صلح کرائے گا۔ دلیل نبوت ص میں مخفی شخص نے نبی کریمؐ کے کم و بیش 34 سال قبل( فتح مکہ سے ڈھائی تین سال پہلے) ہر مسلمان کے سردار مقرر کئے گئے آپ ص کے بیٹے کو اپنا سردار تو تسلیم کیا ہی کیا نہیں بلکہ فرمان رسولؐ کی ڈھٹائی سے مزید توہین کرتے ہوئے (بظاہر صرف) پوری ریاست مسلمہ ہتھیانے کی خاطر، مکر و جنگ کا جال بچھا دیا۔ معاویہ مع ناصبین #دوسری مرتبہ فارغ۔ مزید وضاحت زیر"دو مسلمان گروہ"۔۔۔۔۔
ایک مرتبہ پھر حاجت نہیں رہ جاتی کہ باقی فرمان رحمت اللعالمین صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم سے مزید گفتگو کی جائے، مگر کم از کم اس پیشگوئی دلیل نبوت سے مکمل طور پہ استفادہ کرنا لازم ہے۔ آپ ص نے دوران خطبہ جمعہ، بر سر منبر، حضرت امام حسن علیہ السّلام کے لئے ایک اور انتہائی عظیم الشان بشارت کا اعلان فرمایا :-"۔۔۔۔۔ #اللہ اس کے ذریعے۔۔۔۔۔" ۔ کس کے ذریعے؟؟؟ کون؟؟؟؛ سبط رسولؐ حضرت امام حسن بن علی ع، کے ذریعے، رب العالمین۔ ایک مرتبہ پھر دھیان دیجئے! رب العالمین!حضرت امام حسن ع کے ذریعے! نہ کہ حضرت امام حسن ع از خود !!! آپ ص کے یہ الفاظ ارشاد گرامی حضرت امام حسن علیہ السّلام کو رب العالمین و اپنا #نمائندہ مقرر کرنے کا #صریح اعلان عام ہیں!!! آپ ص نے بحکم قادر مطلق