भाषा-ज्ञान संवाद ई-पत्रिका

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भाषा-ज्ञान संवाद पत्रिका का मुख्‍य उद्देश्‍य न केवल राष्‍ट्रभाषा हिंदी की गरिमा को विश्‍व पटल पर बनाए रखना है, अपितु भाषा, साहित्य, संस्कृति और प्रौद्योगिकी के विषय में नई-नई जानकरियाँ भी प्रदान करना है।

15/06/2021

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15/06/2021

भाषा ज्ञान संवाद पत्रिका का नवीनतम अंक - 2 आपके समक्ष प्रस्तुत है। आपकी प्रतिक्रिया की हमें प्रतीक्षा रहेगी।

15/03/2021

आपको यह जान कर प्रसन्नता होगी कि भाषा-ज्ञान संवाद का दूसरा अंक अप्रैल में निकलने का प्रस्ताव है। इसमें भाषा, साहित्य, कला-संस्कृति, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, अनुवाद, राजभाषा आदि विषयों पर आलेख प्रकाशित किए जाएँगे।
इस पत्रिका के संवर्धन के लिए हमें आप जैसे विद्वान और विशेषज्ञ के सहयोग की अपेक्षा है। उपर्युक्त विषयों में से किसी एक विषय पर अपना शोधपत्र अथवा लेख 31 मार्च, 2021 तक ईमेल [email protected] पर भेजने की कृपा करें।
कृपया ध्यान दें कि लेख/रचना केवल यूनिकोड फोंट (मंगल फोंट) में ही टाईप हो, इससे प्रकाशन में सुविधा होगी।लेख 12फोंट साइज़ में दिया जाए। लेख की सॉफ्ट कॉपी ओपन फाइल यानि Microsoft word (Doc or Docx) में ही भेजकर अनुगृहीत करें। कृपया PDF फाइल में लेख न भेजें। रचना/लेख के साथ अपनी फोटो भेजना न भूलें। रचना/लेख मौलिक होना चाहिए और पहले कहीं प्रकाशित न हो।

02/03/2021

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21/02/2021
21/02/2021

*आखिर है क्या रामायण ????*

*अगर पढ़ो तो आंसुओ पे काबू रखना...प्यारे पाठको....छोटा सा वृतांत है*

*एक रात की बात हैं,माता कौशिल्या जी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी। नींद खुल गई । पूछा कौन हैं ?*

*मालूम पड़ा श्रुतिकीर्ति जी हैं ।नीचे बुलाया गया*

*श्रुतिकीर्ति जी, जो सबसे छोटी बहु हैं, आईं, चरणों में प्रणाम कर खड़ी रह गईं*

*माता कौशिल्या जी ने पूछा, श्रुति ! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बिटिया ? क्या नींद नहीं आ रही ?*

*शत्रुघ्न कहाँ है ?*

*श्रुतिकीर्ति की आँखें भर आईं, माँ की छाती से चिपटी, गोद में सिमट गईं, बोलीं, माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए ।*

*उफ ! कौशल्या जी का ह्रदय काँप कर झटपटा गया ।*

*तुरंत आवाज लगी, सेवक दौड़े आए । आधी रात ही पालकी तैयार हुई, आज शत्रुघ्न जी की खोज होगी, माँ चली ।*

*आपको मालूम है शत्रुघ्न जी कहाँ मिले ?*

*अयोध्या जी के जिस दरवाजे के बाहर भरत जी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रहते हैं, उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला हैं, उसी शिला पर, अपनी बाँह का तकिया बनाकर लेटे मिले ।*

*माँ सिराहने बैठ गईं, बालों में* *हाथ फिराया तो शत्रुघ्न जी ने* *आँखें*
*खोलीं, माँ !*

*उठे, चरणों में गिरे, माँ ! आपने क्यों कष्ट किया ? मुझे बुलवा लिया होता ।*

*माँ ने कहा, शत्रुघ्न ! यहाँ क्यों ?"*

*शत्रुघ्न जी की रुलाई फूट पड़ी, बोले- माँ ! भैया राम जी पिताजी की आज्ञा से वन चले गए, भैया लक्ष्मण जी उनके पीछे चले गए, भैया भरत जी भी नंदिग्राम में हैं, क्या ये महल, ये रथ, ये राजसी वस्त्र, विधाता ने मेरे ही लिए बनाए हैं ?*

*माता कौशल्या जी निरुत्तर रह गईं ।*

*देखो क्या है ये रामकथा...*

*यह भोग की नहीं....त्याग की कथा हैं, यहाँ त्याग की प्रतियोगिता चल रही हैं और सभी प्रथम हैं, कोई पीछे नहीं रहा*

*चारो भाइयों का प्रेम और त्याग एक दूसरे के प्रति अद्भुत-अभिनव और अलौकिक हैं ।*

*रामायण जीवन जीने की सबसे उत्तम शिक्षा देती हैं ।*🌸🌸🌸
*भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ तो उनकी पत्नी माँ सीता ने भी सहर्ष वनवास स्वीकार कर लिया। परन्तु बचपन से ही बड़े भाई की सेवा मे रहने वाले लक्ष्मण जी कैसे राम जी से दूर हो जाते! माता सुमित्रा से तो उन्होंने आज्ञा ले ली थी, वन जाने की.. परन्तु जब पत्नी उर्मिला के कक्ष की ओर बढ़ रहे थे तो सोच रहे थे कि माँ ने तो आज्ञा दे दी, परन्तु उर्मिला को कैसे समझाऊंगा!! क्या कहूंगा!*

*यहीं सोच विचार करके लक्ष्मण जी जैसे ही अपने कक्ष में पहुंचे तो देखा कि उर्मिला जी आरती का थाल लेके खड़ी थीं और बोलीं- "आप मेरी चिंता छोड़ प्रभु की सेवा में वन को जाओ। मैं आपको नहीं रोकूँगीं। मेरे कारण आपकी सेवा में कोई बाधा न आये, इसलिये साथ जाने की जिद्द भी नहीं करूंगी।"*

*लक्ष्मण जी को कहने में संकोच हो रहा था। परन्तु उनके कुछ कहने से पहले ही उर्मिला जी ने उन्हें संकोच से बाहर निकाल दिया। वास्तव में यहीं पत्नी का धर्म है। पति संकोच में पड़े, उससे पहले ही पत्नी उसके मन की बात जानकर उसे संकोच से बाहर कर दे!*

*लक्ष्मण जी चले गये परन्तु 14 वर्ष तक उर्मिला ने एक तपस्विनी की भांति कठोर तप किया। वन में भैया-भाभी की सेवा में लक्ष्मण जी कभी सोये नहीं परन्तु उर्मिला ने भी अपने महलों के द्वार कभी बंद नहीं किये और सारी रात जाग जागकर उस दीपक की लौ को बुझने नहीं दिया।*

*मेघनाथ से युद्ध करते हुए जब लक्ष्मण को शक्ति लग जाती है और हनुमान जी उनके लिये संजीवनी का पहाड़ लेके लौट रहे होते हैं, तो बीच में अयोध्या में भरत जी उन्हें राक्षस समझकर बाण मारते हैं और हनुमान जी गिर जाते हैं। तब हनुमान जी सारा वृत्तांत सुनाते हैं कि सीता जी को रावण ले गया, लक्ष्मण जी मूर्छित हैं।*

*यह सुनते ही कौशल्या जी कहती हैं कि राम को कहना कि लक्ष्मण के बिना अयोध्या में पैर भी मत रखना। राम वन में ही रहे। माता सुमित्रा कहती हैं कि राम से कहना कि कोई बात नहीं। अभी शत्रुघ्न है। मैं उसे भेज दूंगी। मेरे दोनों पुत्र राम सेवा के लिये ही तो जन्मे हैं। माताओं का प्रेम देखकर हनुमान जी की आँखों से अश्रुधारा बह रही थी। परन्तु जब उन्होंने उर्मिला जी को देखा तो सोचने लगे कि यह क्यों एकदम शांत और प्रसन्न खड़ी हैं? क्या इन्हें अपनी पति के प्राणों की कोई चिंता नहीं?*

*हनुमान जी पूछते हैं- देवी! आपकी प्रसन्नता का कारण क्या है? आपके पति के प्राण संकट में हैं। सूर्य उदित होते ही सूर्य कुल का दीपक बुझ जायेगा। उर्मिला जी का उत्तर सुनकर तीनों लोकों का कोई भी प्राणी उनकी वंदना किये बिना नहीं रह पाएगा। वे बोलीं- "*
*मेरा दीपक संकट में नहीं है, वो बुझ ही नहीं सकता। रही सूर्योदय की बात तो आप चाहें तो कुछ दिन अयोध्या में विश्राम कर लीजिये, क्योंकि आपके वहां पहुंचे बिना सूर्य उदित हो ही नहीं सकता। आपने कहा कि प्रभु श्रीराम मेरे पति को अपनी गोद में लेकर बैठे हैं। जो योगेश्वर राम की गोदी में लेटा हो, काल उसे छू भी नहीं सकता। यह तो वो दोनों लीला कर रहे हैं। मेरे पति जब से वन गये हैं, तबसे सोये नहीं हैं। उन्होंने न सोने का प्रण लिया था। इसलिए वे थोड़ी देर विश्राम कर रहे हैं। और जब भगवान् की गोद मिल गयी तो थोड़ा विश्राम ज्यादा हो गया। वे उठ जायेंगे। और शक्ति मेरे पति को लगी ही नहीं शक्ति तो राम जी को लगी है। मेरे पति की हर श्वास में राम हैं, हर धड़कन में राम, उनके रोम रोम में राम हैं, उनके खून की बूंद बूंद में राम हैं, और जब उनके शरीर और आत्मा में हैं ही सिर्फ राम, तो शक्ति राम जी को ही लगी, दर्द राम जी को ही हो रहा। इसलिये हनुमान जी आप निश्चिन्त होके जाएँ। सूर्य उदित नहीं होगा।"*

*राम राज्य की नींव जनक की बेटियां ही थीं... कभी सीता तो कभी उर्मिला। भगवान् राम ने तो केवल राम राज्य का कलश स्थापित किया परन्तु वास्तव में राम राज्य इन सबके प्रेम, त्याग, समर्पण , बलिदान से ही आया।*

‘भाषा-ज्ञान संवाद’ ई-पत्रिका के प्रवेशांक का लोकार्पण ‘भाषा-ज्ञान संवाद’ त्रैमासिक अंतरराष्‍ट्रीय ई-पत्रिका के प्रवेशांक...
03/02/2021

‘भाषा-ज्ञान संवाद’ ई-पत्रिका के प्रवेशांक का लोकार्पण
‘भाषा-ज्ञान संवाद’ त्रैमासिक अंतरराष्‍ट्रीय ई-पत्रिका के प्रवेशांक का लोकार्पण दिनांक 30.01.2021 (शनिवार) को दोपहर 2.30 बजे (भारतीय समय के अनुसार) वर्चुअल माध्‍यम से (ज़ूम पर) प्रोफेसर कृष्‍ण कुमार गोस्‍वामी के कर कमलों द्वारा किया गया। सर्वप्रथम, पत्रिका की संपादक श्रीमती नम्रता बजाज ने सभी का स्वागत और अभिनंदन करते हुए कहा कि इस पत्रिका का मुख्य उद्देश्य हिन्दी का प्रचार-प्रसार करने के अतिरिक्त भाषा, साहित्य, संस्कृति, विज्ञान और प्रोद्योगिकी के संदर्भ में नवीन जानकारियाँ प्रदान करना है। उन्‍होंने आशा व्‍यक्‍त की कि सभी को यह प्रयास पसंद आएगा और इसे आगे और अधिक समृद्ध बनाने के लिए सभी विद्वानों, लेखकों और साहित्यकारों से सहयोग की अपेक्षा की। तत्‍पश्‍चात् उन्‍होंने सुविख्यात भाषाविज्ञानी एवं आलोचक प्रोफेसर कृष्ण कुमार गोस्वामी से अनुरोध किया कि वे पत्रिका का लोकार्पण कर दो शब्‍द आशीर्वाद स्‍वरूप कहें। उन्‍होंने कहा कि प्रो. गोस्‍वामी के मार्गदर्शन और आशीर्वाद से ही यह कार्य संपन्‍न हो पाया है।
प्रोफेसर कृष्‍ण कुमार गोस्‍वामी ने ई-पत्रिका को सभी के साथ स्‍क्रीन पर शेयर करते हुए इसका लोकार्पण किया। उन्‍होंने पत्रिका की रूपरेखा, इसके परामर्श मंडल एवं संपादक मंडल, लेखों और उनके लेखकों के बारे में विस्‍तार से बताते हुए सभी उपस्थित विद्वजनों से पत्रिका में सहयोग प्रदान करने की आशा व्‍यक्‍त की। प्रोफेसर गोस्‍वामी ने कहा कि इस पत्रिका का उद्देश्‍य भाषा, साहित्‍य, संस्‍कृति, अनुवाद, विज्ञान, प्रौद्योगिकी आदि के क्षेत्र में हो रहे विकास के बारे में अधिक से अधिक से जानकारी देना है।
इस अवसर पर डॉ. रमा द्विवेदी (तेलंगाना), प्रो. जगदीश शर्मा (नई दिल्‍ली), डॉ. ओम प्रकाश प्रजापति (हिमाचल प्रदेश), श्रीमती सेतु वारियर (ऑस्‍ट्रेलिया), डॉ. राजकिशोर सिन्‍हा (दिल्ली) आदि ने पत्रिका के लोकार्पण के अवसर पर संपादक मंडल को बधाई दी और आशा व्‍यक्‍त की यह पत्रिका अपने उद्देश्‍य को पूरा करते हुए निरंतर प्रकाशित होती रहेगी।
तत्‍पश्‍चात्, पत्रिका की कार्यकारी संपादक श्रीमती मुदिता जौहर ने सभी विद्वजन को धन्‍यवाद व्‍यक्‍त करते हुए कहा कि उनके इस अवसर पर उपस्थित होने से हम सभी का मनोबल बढ़ा है और आगे भी यह पत्रिका और अधिक महत्वपूर्ण जानकारियों के साथ निरंतर निकलती रहे, इसके लिए उन्‍होंने सभी से सुझाव और सहयोग देने का अनुरोध किया। साथ ही उन्‍होंने प्रोफेसर कृष्ण कुमार गोस्वामी जी का भी हार्दिक धन्यवाद करते हुए कहा कि उन्होंने हर कदम पर हमें अपना मार्गदर्शन और आशीर्वाद दिया जिसके फलस्‍वरूप हम यह पत्रिका प्रस्‍तुत कर पाए हैं।
अंत में, धन्‍यवाद प्रस्‍ताव के साथ समारोह का समापन किया गया।

27/01/2021

"भाषा-ज्ञान संवाद" ई - पत्रिका का उद्देश्य हिंदी का विकास और प्रचार-प्रसार करना है। इसके प्रवेशांक का लोकार्पण सुविख्यात भाषाविज्ञानी और आलोचक प्रो (डॉ) कृष्ण कुमार गोस्वामी के द्वारा 30 जनवरी, 2021 (शनिवार) दोपहर 2 :00 (भारतीय समय के अनुसार) होगा।

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