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Urgent need Direct employment visa (1) Restaurant (2) Food packing Salary 1200Duty 8+overtime Room company Food free1200...
10/05/2024

Urgent need Direct employment visa
(1) Restaurant
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हर हर महादेव जी
31/12/2023

हर हर महादेव जी

27/11/2023

Maharana Pratap episode update 1



राजपूतो की लाइफ
करते है दूसरो के लिए फाइट
ये बात है एकदम राइट.!!

जो शेर से लड़ जाता है
उसका खून लाल होता है
जो मौत को ललकारे वो
खून राजपूत का होता है !

12/11/2023

हैप्पी दीपावली आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं

राम राम जी

1582 में अकबर के मुगल सेनापति सुल्तान खां समेत 30000 सैनिकों को महाराणा प्रताप के नेतृत्व में मेवाड़ और उसके सहयोगी राजा...
11/11/2023

1582 में अकबर के मुगल सेनापति सुल्तान खां समेत 30000 सैनिकों को महाराणा प्रताप के नेतृत्व में मेवाड़ और उसके सहयोगी राजाओं ने दिवेर के युद्ध मैं पूरी तरह से समाप्त कर दिया इस युद्ध में अकबर की शर्मनाक हार हुई।इसके बाद अकबर ने कभी मेवाड़ की तरफ मुंह उठाकर नहीं देखा।

महाराणा प्रताप के पुत्र राणा अमर सिंह ने अपने क्षेत्र की रक्षा के लिए एक कठिन लड़ाई का नेतृत्व किया और व्यक्तिगत रूप से मुगल सेनापति सुल्तान खान और उनके घोड़े को भाले से मार डाला जो दोनों के बीच से चिरता हुआ चला गया। कथित तौर पर युद्ध मे मुग़लों कि पराजय हुई।

09/11/2023

जय श्री राम सभी को मेवाड़ का इतिहास सीरीज अपडेट की जाएगी आप बताओ
Yas & no

 ्दीघाटी_युद्ध_में_वीरगति_को_प्राप्त_होने_वाले__ ्रमुख_मेवाड़ी_योद्धा__________1) ग्वालियर के राजा रामशाह तोमर2) कुंवर श...
05/10/2023

्दीघाटी_युद्ध_में_वीरगति_को_प्राप्त_होने_वाले__
्रमुख_मेवाड़ी_योद्धा__________

1) ग्वालियर के राजा रामशाह तोमर

2) कुंवर शालिवाहन तोमर (रामशाह तोमर के पुत्र व महाराणा प्रताप के बहनोई)

3) कुंवर भान तोमर (रामशाह तोमर के पुत्र)

4) कुंवर प्रताप तोमर (रामशाह तोमर के पुत्र)

5) भंवर धर्मागत तोमर (शालिवाहन तोमर के पुत्र)

6) दुर्गा तोमर (रामशाह तोमर के साथी)

7) बाबू भदौरिया (रामशाह तोमर के साथी)

8) खाण्डेराव तोमर (रामशाह तोमर के साथी)

9) बुद्ध सेन (रामशाह तोमर के साथी)

10) शक्तिसिंह राठौड़ (रामशाह तोमर के साथी)

11) विष्णुदास चौहान (रामशाह तोमर के साथी)

12) डूंगर (रामशाह तोमर के साथी)

13) कीरतसिंह (रामशाह तोमर के साथी)

14) दौलतखान (रामशाह तोमर के साथी)

15) देवीचन्द चौहान (रामशाह तोमर के साथी)

16) छीतर सिंह चौहान (हरिसिंह के पुत्र व रामशाह तोमर के साथी)

17) अभयचन्द्र (रामशाह तोमर के साथी)

18) राघो तोमर (रामशाह तोमर के साथी)

19) राम खींची (रामशाह तोमर के साथी)

20) ईश्वर (रामशाह तोमर के साथी)

21) पुष्कर (रामशाह तोमर के साथी)

22) कल्याण मिश्र (रामशाह तोमर के साथी)

23) बदनोर के ठाकुर रामदास राठौड़ (वीरवर जयमल राठौड़ के 7वें पुत्र) :- ये अपने 9 साथियों समेत काम आए |

24) बदनोर के कुंवर किशनसिंह राठौड़ (ठाकुर रामदास राठौड़ के पुत्र)

25) पाली के मानसिंह सोनगरा चौहान (महाराणा प्रताप के मामा) :- ये अपने 11 साथियों समेत काम आए |

26) कान्ह/कान्हा (महाराणा प्रताप के भाई) :- इनके वंशज आमल्दा व अमरगढ़ में हैं |

27) कल्याणसिंह/कल्ला (महाराणा प्रताप के भाई)

28) कानोड़ के रावत नैतसिंह सारंगदेवोत

29) केशव बारठ (कवि) :- ये सोन्याणा वाले चारणों के पूर्वज थे।

30) जैसा/जयसा बारठ (कवि) :- ये भी सोन्याणा वाले चारणों के पूर्वज थे।

31) कान्हा सांदू (चारण कवि)

32) पृथ्वीराज चुण्डावत (पत्ता चुण्डावत के बड़े भाई)

33) आमेट के ठाकुर कल्याणसिंह चुण्डावत (वीरवर पत्ता चुण्डावत के पुत्र) - इनके पीछे रानी बदन कंवर राठौड़ सती हुईं रानी बदन कंवर मेड़ता के जयमल राठौड़ की पुत्री थीं।

34) देसूरी के खान सौलंकी (ठाकुर सावन्त सिंह सौलंकी के पुत्र)

35) नीमडी के महेचा बाघसिंह राठौड़ कल्लावत (मल्लीनाथ के वंशज)

36) देवगढ़ के पहले रावत सांगा चुण्डावत :- ये वीरवर पत्ता चुण्डावत के पिता जग्गा चुण्डावत के भाई थे रावत सांगा देवगढ़ वालों के मूलपुरुष थे।

37) देवगढ़ के कुंवर जगमाल चुण्डावत (रावत सांगा चुण्डावत के पुत्र)

38) शंकरदास जैतमालोत राठौड़ (ठि. बनोल)

39) रामदास जैतमालोत राठौड़ (ठि. बनोल)

40) केनदास जैतमालोत राठौड़ (ठि. बनोल)

41) नरहरीदास जैतमालोत राठौड़ (ठि. बनोल) :- ये शंकरदास राठौड़ के पुत्र थे।

42) नाहरदास जैतमालोत राठौड़ (ठि. बनोल) :- ये शंकरदास राठौड़ के पुत्र थे।

43) राजपुरोहित नारायणदास पालीवाल के 2 पुत्र

44) किशनदास मेड़तिया

45) सुन्दरदास

46) जावला

47) प्रताप मेड़तिया राठौड़ (वीरमदेव के पुत्र व वीरवर जयमल राठौड़ के भाई)

48) बदनोर के कूंपा राठौड़ (वीरवर जयमल राठौड़ के पुत्र)

49) राव नृसिंह अखैराजोत (पाली के अखैराज के पुत्र)

50) प्रयागदास भाखरोत

51) मानसिंह

52) मेघराज

53) खेमकरण

54) भगवानदास राठौड़ (केलवा के ईश्वरदास राठौड़ के पुत्र)

55) नन्दा पडियार

56) पडियार सेडू

57) साँडू पडियार

58) अचलदास चुण्डावत

59) रावत खेतसिंह चुण्डावत के पुत्र

60) राजराणा झाला मान/झाला बींदा

61) बागड़ के ठाकुर नाथुसिंह मेड़तिया

61) देलवाड़ा के मानसिंह झाला

62) सरदारगढ़ के ठाकुर भीमसिंह डोडिया

63) सरदारगढ़ के कुंवर हम्मीर सिंह डोडिया (ठाकुर भीमसिंह के पुत्र)

64) सरदारगढ़ के कुंवर गोविन्द सिंह डोडिया (ठाकुर भीमसिंह के पुत्र)

65) सरदारगढ़ के ठाकुर भीमसिंह डोडिया के 2 भाई

66) पठान हाकिम खां सूर (शेरशाह सूरी के वंशज, मायरा स्थित शस्त्रागार के प्रमुख व मेवाड़ के सेनापति)

67) मोहम्मद खान पठान

68) जसवन्त सिंह

69) कोठारिया के राव चौहान पूर्बिया

70) रामदास चौहान

71) राजा संग्रामसिंह चौहान

72) विजयराज चौहान

73) राव दलपत चौहान

74) दुर्गादास चौहान (परबत सिंह पूर्बिया के पुत्र)

75) दूरस चौहान (परबत सिंह पूर्बिया के पुत्र)

76) सांभर के राव शेखा चौहान

77) हरिदास चौहान

78) बेदला के भगवानदास चौहान (राव ईश्वरदास के पुत्र)

79) शूरसिंह चौहान

80) रामलाल

81) कल्याणचन्द मिश्र

82) प्रतापगढ़ के कुंवर कमल सिंह

83) धमोतर के ठाकुर कांधल जी :- देवलिया महारावत बीका ने अपने भतीजे ठाकुर कांधल जी को हल्दीघाटी युद्ध में लड़ने भेजा था।

84) अभयचन्द बोगसा चारण

85) खिड़िया चारण

86) रामसिंह चुण्डावत (सलूम्बर रावत कृष्णदास चुण्डावत के भाई)

87) प्रतापसिंह चुण्डावत (सलूम्बर रावत कृष्णदास चुण्डावत के भाई)

88) गवारड़ी (रेलमगरा) के मेनारिया ब्राह्मण कल्याण जी पाणेरी

89) श्रीमाली ब्राह्मण :- इनके पीछे इनकी एक पत्नी सती हुईं रक्त तलाई (खमनौर) में इन सती माता का स्थान अब तक मौजूद है।

90) कीर्तिसिंह राठौड़

91) जालमसिंह राठौड़

92) आलमसिंह राठौड़

93) भवानीसिंह राठौड़

94) अमानीसिंह राठौड़

95) रामसिंह राठौड़

96) दुर्गादास राठौड़

97) कानियागर के मानसिंह राठौड़

98) राघवदास

99) गोपालदास सिसोदिया

100) मानसिंह सिसोदिया

101) राजा विट्ठलदास

102) भाऊ

103) पुरोहित जगन्नाथ

104) पडियार कल्याण

105) महता जयमल बच्छावत

106) महता रतनचन्द खेमावत

107) महासहानी जगन्नाथ

108) पुरोहित गोपीनाथ

109) बिजौलिया के राव मामरख पंवार (महाराणा प्रताप के ससुर व महारानी अजबदे बाई के पिता)

110) बिजौलिया के कुंवर डूंगरसिंह पंवार (महारानी अजबदे बाई के भाई)

111) बिजौलिया के कुंवर पहाडसिंह पंवार (महारानी अजबदे बाई के भाई)

112) ताराचन्द पंवार (खडा पंवार के पुत्र)

113) सूरज पंवार (खडा पंवार के पुत्र)

114) वीरमदेव पंवार

115) राठौड़ साईंदास पंचायनोत जेतमालोत (कल्ला राठौड़ के पुत्र) :- ये अपने 13 साथियों समेत काम आए।

116) मेघा खावडिया (राठौड़ साईंदास के साथी)

117) सिंधल बागा (राठौड़ साईंदास के साथी)

118) दुर्गा चौहान (राठौड़ साईंदास के साथी)

119) वागडिया (राठौड़ साईंदास के साथी)

120) जयमल (राठौड़ साईंदास के साथी)

121) नागराज

जय श्री राम जी हर हर महादेव जी जय मेवाड़ जय चित्तौड़ जय वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप सिंह जी जय राजपूताना जय माँ भवानी धर्म क्षत्रिय युगे युगे पोस्ट को शेयर जरूर करें धन्यवाद जी।

(पोस्ट लेखक --: रॉयल राजपूत अज्य ठाकुर गोत्र भारद्वाज पंजाब जिला पठानकोट गांव अंदोई)

 ीर_क्षत्रियों_की_गाथाएं_मिहिरभोज_राजा_🕉️मैं झुक नहीं सकता मैं शौर्य का अखंड भाग हूँ जला दे जो दुश्मन की रूह तक मैं वही ...
10/06/2023

ीर_क्षत्रियों_की_गाथाएं_मिहिरभोज_राजा_🕉️

मैं झुक नहीं सकता मैं शौर्य का अखंड भाग हूँ जला दे जो दुश्मन की रूह तक मैं वही राजपूत की औलाद हूँ।

हिंदू राजपूत शौर्य और बहादुरी से जुड़े क्षत्रिय सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार के रोचक पहलू जो उन्हे महान बनाते है
हिंदू राजपूत शौर्य और बहादुरी से जुड़े क्षत्रिय सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार के रोचक पहलू जो उन्हे महान बनाते है
काव्यों एवं इतिहास मे इन विशेषणो से वर्णित किया।

क्षत्रिय सम्राट,भोजदेव, भोजराज, वाराहवतार, परम भट्टारक, महाराजाधिराज, परमेश्वर , प्रभास, महानतम भोज, मिहिर महान।

ासनकाल______

सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार ने 18 अक्टूबर 836 ईस्वीं से 885 ईस्वीं तक 50 साल तक राज किया मिहिर भोज के साम्राज्य का विस्तार आज के मुलतान से पश्चिम बंगाल तक और कश्मीर से कर्नाटक तक था।

्रतिहार_साम्राज्य_______

प्रतिहार साम्राज्य ने अपने शुरूआती शासनकाल मे ही पूरी दूनिया को अपनी ताकत से हिला दिया था इनके साम्राज्य का क्षेत्रफल लगभग 20 लाख किलोमीटर स्क्वायर माइल्स था इनका शासनकाल 6ठी शताब्दी से 10वी शताब्दी तक रहा प्रतिहारों ने अरबों से 300 वर्ष तक लगभग 200 से ज्यादा युद्ध किये जिसका परिणाम है कि हम आज यहां सुरक्षित है प्रतिहारों ने अपने वीरता, शौर्य , कला का प्रदर्शन कर सभी को आश्चर्यचकित किया है भारत देश हमेशा ही प्रतिहारो का रिणी रहेगा उनके अदभुत शौर्य और पराक्रम का जो उनहोंने अपनी मातृभूमि के लिए न्यौछावर किया है जिसे सभी विद्वानों ने भी माना है प्रतिहार साम्राज्य ने दस्युओं, डकैतों, अरबों, हूणों, कुषाणों, खजरों, इराकी,मंगोलो,तुर्कों, से देश को बचाए रखा और देश की स्वतंत्रता पर आँच नहीं आई।

इनका राजशाही निशान वराह है ठीक उसी समय मुश्लिम धर्म का जन्म हुआ और इनके प्रतिरोध के कारण ही उन्हे हिंदुश्तान मे अपना राज कायम करने मे 300 साल लग गए प्रतिहार राजपूत ही भारतीय संस्कृति के रक्षक बने और इनके राजशाही निशान वराह #विष्णु का अवतार माना है प्रतिहार मुश्लमानो के कट्टर शत्रु थे इसलिए वो इनके राजशाही निशान वराह से आजतक नफरत करते है।

ासन_व्यवस्था______

सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार वीरता शौर्य और पराक्रम के प्रतीक हैं उन्होंने विदेशी साम्राज्यो के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अपनी पूरी जिन्दगी अपनी मलेच्छो से पृथ्वी की रक्षा करने मे बिता दी सम्राट मिहिरभोज बलवान न्यायप्रिय और धर्म रक्षक सम्राट थे सिंहासन पर बैठते ही मिहिरभोज ने सर्वप्रथम कन्नौज राज्य की व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त किया प्रजा पर अत्याचार करने वाले सामंतों और रिश्वत खाने वाले कामचोर कर्मचारियों को कठोर रूप से दण्डित किया व्यापार और कृषि कार्य को इतनी सुविधाएं प्रदान की गई कि सारा साम्राज्य धनधान्य से लहलहा उठा मिहिरभोज ने प्रतिहार #राजपूत साम्राज्य को धन वैभव से चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया अपने उत्कर्ष काल में उसे सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार की उपाधि मिली थी अनेक काव्यों एवं इतिहास में उसे कई महान विशेषणों से वर्णित किया गया है।

ाह_उपाधी_______

सम्राट मिहिर भोज के महान के सिक्के पर वाराह भगवान जिन्हें कि भगवान विष्णु के अवतार के तौर पर जाना जाता है वाराह भगवान ने हिरण्याक्ष राक्षस को मारकर पृथ्वी को पाताल से निकालकर उसकी रक्षा की थी सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार का नाम आदिवाराह भी है ऐसा होने के पीछे यह मुख्य कारण हैं।

जिस प्रकार वाराह (विष्णु जी) भगवान ने पृथ्वी की रक्षा की थी और हिरण्याक्ष का वध किया था ठीक उसी प्रकार मिहिरभोज ने मलेच्छों को मारकर अपनी मातृभूमि की रक्षा
की इसीलिए इनहे आदिवाराह की उपाधि दी गई है।

ासक____

सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार शिव शक्ति के उपासक थे स्कंध पुराण के प्रभास खंड में भगवान #शिव के प्रभास क्षेत्र में स्थित शिवालयों व पीठों का उल्लेख है प्रतिहार साम्राज्य के काल में सोमनाथ को भारतवर्ष के प्रमुख तीर्थ स्थानों में माना जाता था प्रभास क्षेत्र की प्रतिष्ठा काशी विश्वनाथ के समान थी स्कंध पुराण के प्रभास खंड में सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार के जीवन के बारे में विवरण मिलता है मिहिरभोज के संबंध में कहा जाता है कि वे सोमनाथ के परम भक्त थे उनका विवाह भी सौराष्ट्र में ही हुआ था उन्होंने मलेच्छों से पृथ्वी की रक्षा की 50 वर्ष तक राज करने के पश्चात वे अपने बेटे महेंद्रपाल प्रतिहार को राज सिंहासन सौंपकर सन्यासवृति के लिए वन में चले गए थे सम्राट मिहिरभोज का सिक्का जो कन्नौज की मुद्रा था उसको सम्राट मिहिरभोज ने 836 ईस्वीं में कन्नौज को देश की राजधानी बनाने पर चलाया था।

्यवस्था________

सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार महान के सिक्के पर वाराह भगवान जिन्हें कि भगवान विष्णु के अवतार के तौर पर जाना जाता है इनके पूर्वज सम्राट नागभट्ट प्रथम ने स्थाई सेना संगठित कर उसको नगद वेतन देने की जो प्रथा चलाई वह इस समय में और भी पक्की हो गई और प्रतिहार साम्राज्य की महान सेना खड़ी हो गई यह भारतीय इतिहास का पहला उदाहरण है जब किसी सेना को नगद वेतन दिया जाता हो।

मिहिर भोज के पास ऊंटों हाथियों और घुडसवारों की दूनिया कि सर्वश्रेष्ठ सेना थी इनके राज्य में व्यापार सोना चांदी के सिक्कों से होता है यइनके राज्य में सोने और चांदी की खाने भी थी भोज ने सर्वप्रथम कन्नौज राज्य की व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त किया प्रजा पर अत्याचार करने वाले सामंतों और रिश्वत खाने वाले कामचोर कर्मचारियों को कठोर रूप से दण्डित किया व्यापार और कृषि कार्य को इतनी सुविधाएं प्रदान की गई कि सारा साम्राज्य धनधान्य से लहलहा उठा मिहिरभोज ने प्रतिहार साम्राज्य को धन वैभव से चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया।

िश्व_की_सुगठित_और_विशालतम_सेन____

मिहिरभोज प्रतिहार की सैना में 4,00,000 से ज्यादा पैदल करीब 30,000 घुडसवार हजारों हाथी और हजारों रथ थे मिहिरभोज के राज्य में सोना और चांदी सड़कों पर विखरा था-किन्तु चोरी-डकैती का भय किसी को नहीं था जरा हर्षवर्धन बैस के राज्यकाल से तुलना करिए हर्षवर्धन के राज्य में लोग घरों में ताले नहीं लगाते थे पर मिहिरभोज के राज्य में खुली जगहों में भी चोरी की आशंका नहीं रहती थी।

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मिहिरभोज प्रतिहार बचपन से ही वीर बहादुर माने जाते थे
एक बालक होने के बावजूद देश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को महसूस करते हुए उन्होंने युद्धकला और शस्त्रविधा में कठिन प्रशिक्षण लिया राजकुमारों में सबसे प्रतापी प्रतिभाशाली और मजबूत होने के कारण पूरा राजवंश और विदेशी आक्रमणो के समय देश के अन्य राजवंश भी उनसे बहुत उम्मीद रखते थे और देश के बाकी वंशवह उस भरोसे पर खरे उतरने वाले थे।

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मिहिरभोज प्रतिहार राजपूत साम्राज्य के सबसे प्रतापी सम्राट हुए उनके राजगद्दी पर बैठते ही जैसे देश की हवा ही बदल गई मिहिरभोज की वीरता के किस्से पूरी दूनीया मे मशूहर हुए विदेशी आक्रमणो के समय भी लोग अपने काम मे निडर लगे रहते है गद्दी पर बैठते ही उन्होने देश के लुटेरे शोषण करने वाले गरीबो को सताने वालो का चुन चुनकर सफाया कर दिया। उनके समय मे खुले घरो मे भी चोरी नही होती थी।

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अरब यात्री सुलेमान – पुस्तक सिलसिलीउत तुआरीख 851 ईस्वीं :

जब वह भारत भ्रमण पर आया था सुलेमान सम्राट मिहिरभोज के बारे में लिखता है कि इस सम्राट की बड़ी भारी सेना है उसके समान किसी राजा के पास उतनी बड़ी सेना नहीं है सुलेमान ने यह भी लिखा है कि भारत में सम्राट मिहिरभोज से बड़ा इस्लाम का कोई शत्रु नहीं था मिहिरभोज के पास ऊंटों हाथियों और घुडसवारों की सर्वश्रेष्ठ सेना है इसके राज्य में व्यापार सोना चांदी के सिक्कों से होता है ये भी कहा जाता है कि उसके राज्य में सोने और चांदी की खाने भी थी।

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वह कहता है कि (जुज्र) प्रतिहार साम्राज्य में 90,000 गांव नगर तथा ग्रामीण क्षेत्र थे तथा यह दो हजार किलोमीटर लंबा और दो हजार किलोमीटर चौड़ा था राजा की सेना के चार अंग थे और प्रत्येक में सात लाख से नौ लाख सैनिक थे उत्तर की सेना लेकर वह मुलतान के बादशाह और दूसरे मुसलमानों के विरूद्घ युद्घ लड़ता है उसकी घुड़सवार सेना देश भर में प्रसिद्घ थी।जिस समय अल मसूदी भारत आया था उस समय मिहिरभोज तो स्वर्ग सिधार चुके थे परंतु प्रतिहार शक्ति के विषय में अल मसूदी का उपरोक्त विवरण मिहिरभोज के प्रताप से खड़े साम्राज्य की ओर संकेत करते हुए अंतत: स्वतंत्रता संघर्ष के इसी स्मारक पर फूल चढ़ाता सा प्रतीत होता है समकालीन अरब यात्री सुलेमान ने सम्राट मिहिरभोज को भारत में इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन करार दिया था क्योंकि प्रतिहार राजपूत राजाओं ने 11 वीं सदी तक इस्लाम को भारत में घुसने नहीं दिया था। मिहिरभोज के पौत्र महिपाल को आर्यवर्त का महान सम्राट कहा जाता था।

्रतिहार_शैली_कला_____

भारत मे कोई ऐसा स्थान नही बचा जहां प्रतिहारो ने अपनी तलवार और निर्माण कला का जौहर ना दिखाया हो प्रतिहारो ने सैकडो मंदिर व किले के निर्माण किए थे जिसमे शास्त्रबहु मंदिर, बटेश्वर मंदिर, मण्डौर किला, जालौर किला, ग्वालियर किला, कुचामल किला, पडावली मंदिर, मिहिर बावडी, चौसठ योगिनी मंदिर आदि इनके अलावा सैकडो इलाके व ठिकाने है जहाँ प्रतिहारो ने अपनी कला का प्रदर्शन किया ।

्ष्मणवंशी_प्रतिहार_राजपूतों_का_परिचय__

वर्ण – क्षत्रिय

राजवंश – प्रतिहार वंश

वंश – सूर्यवंशी

गोत्र – कौशिक

वेद – यजुर्वेद

उपवेद – धनुर्वेद

गुरु – वशिष्ठ

कुलदेव – विष्णु भगवान

कुलदेवी – चामुण्डा देवी, गाजन माता

नदी – सरस्वती

तीर्थ – पुष्कर राज ( राजस्थान )

मंत्र – गायत्री

झंडा – केसरिया

निशान – लाल सूर्य

पशु – वाराह

नगाड़ा – रणजीत

अश्व – सरजीव

पूजन – खंड पूजन दशहरा

आदि गद्दी – माण्डव्य पुरम ( मण्डौर )

ज्येष्ठ गद्दी – बरमै राज्य नागौद

भारत मे प्रतिहार/परिहार राजपूतों की रियासत जो 1950 तक काबिज रही :-

नागौद रियासत – मध्यप्रदेश

अलीपुरा रियासत – मध्यप्रदेश

खनेती रियासत – हिमांचल प्रदेश

कुमारसैन रियासत – हिमांचल प्रदेश

मियागम स्टेट – गुजरात

उमेटा रियासत – गुजरात

एकलबारा रियासत – गुजरात

मुजपुर रियासत – गुजरात

्रतिहार_परिहार_वंश_की_वर्तमान_स्थिति__

भले ही यह विशाल प्रतिहार राजपूत साम्राज्य 15 वीं शताब्दी के बाद में छोटे छोटे राज्यों में सिमट कर बिखर हो गया हो लेकिन इस वंश के वंशज राजपूत आज भी इसी साम्राज्य की परिधि में मिलते हैं।

आजादी के पहले भारत मे प्रतिहार राजपूतों के कई राज्य थे जहां आज भी ये अच्छी संख्या में है।

मण्डौर, राजस्थान

जालौर, राजस्थान

माउंट आबू, राजस्थान

पाली, राजस्थान

बेलासर, राजस्थान

चुरु , राजस्थान

कन्नौज, उतर प्रदेश

हमीरपुर उत्तर प्रदेश

प्रतापगढ, उत्तर प्रदेश

झगरपुर, उत्तर प्रदेश

उरई, उत्तर प्रदेश

जालौन, उत्तर प्रदेश

इटावा , उत्तर प्रदेश

कानपुर, उत्तर प्रदेश

उन्नाव, उतर प्रदेश

उज्जैन, मध्य प्रदेश

चंदेरी, मध्य प्रदेश

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

जिगनी, मध्य प्रदेश

झांसी, मध्य प्रदेश

अलीपुरा, मध्य प्रदेश

नागौद, मध्य प्रदेश

उचेहरा, मध्य प्रदेश

दमोह, मध्य प्रदेश

सिंगोरगढ़, मध्य प्रदेश

एकलबारा, गुजरात

मियागाम, गुजरात

कर्जन, गुजरात

काठियावाड़, गुजरात

उमेटा, गुजरात

दुधरेज, गुजरात

खनेती, हिमाचल प्रदेश

कुमहारसेन, हिमाचल प्रदेश

जम्मू , जम्मू कश्मीर

मित्रों आइए अब जानते है प्रतिहार/परिहार वंश की शाखाओं के बारे में :-

भारत में परिहारों की 30 शाखा है जो अभी तक की जानकारी मे है जिसमे इन शाखाओं की भी कई उप शाखाएँ है जिससे आज प्रतिहार/परिहार वंश पूरे भारत वर्ष में फैल गये भारत मे प्रतिहार राजपूत लगभग 3 हजार गांवो से भी ज्यादा जगह में निवास करते है।

्रतिहार_परिहार_क्षत्रिय_राजपूत_वंश_की_शाखाएँ_

(1) डाभी प्रतिहार

(2) बडगुजर प्रतिहार (राघव)

(3) मडाड प्रतिहार और खडाड प्रतिहार

(4) इंदा प्रतिहार

(5) लल्लुरा / लूलावत प्रतिहार

(6) सूरा प्रतिहार

(7) रामेटा / रामावत प्रतिहार

(8) बुद्धखेलिया प्रतिहार

(9) खुखर प्रतिहार

(10) सोधया प्रतिहार

(11) चंद्र प्रतिहार

(13) माहप प्रतिहार

(14) धांधिल प्रतिहार

(15) सिंधुका प्रतिहार

(16) डोरणा प्रतिहार

(17) सुवराण प्रतिहार

(18) कलाहँस प्रतिहार

(19) देवल प्रतिहार

(20) खरल प्रतिहार

(21) चौनिया प्रतिहार

(22) झांगरा प्रतिहार

(23) बोथा प्रतिहार

(24) चोहिल प्रतिहार

(25) फलू प्रतिहार

(26) धांधिया प्रतिहार

(27) खखढ प्रतिहार

(28) सीधकां प्रतिहार

(29) कमाष / जेठवा प्रतिहार

(30) तखी प्रतिहार

ये सभी परिहार राजाओं अथवा परिहार ठाकुरों के नाम से बनी है आइए अब जानते है प्रतिहार वंश के महान योद्धा शासको के बारे में जिन्होंने अपनी मातृभूमि प्रजा व राज्य के लिए सदैव ही न्यौछावर थे।

्रतिहार_परिहार_वंश_के_महान_राजा_राजपूत__

(1) राजा हरिश्चंद्र प्रतिहार राजपूत

(2) राजा नागभट्ट प्रतिहार राजपूत

(3) राजा यशोवर्धन प्रतिहार राजपूत

(4) राजा वत्सराज प्रतिहार राजपूत

(5) राजा नागभट्ट द्वितीय राजपूत

(6) राजा मिहिरभोज प्रतिहार राजपूत

(7) राजा महेन्द्रपाल प्रतिहार राजपूत

(8) राजा महिपाल प्रतिहार राजपूत

(9) राजा विनायकपाल प्रतिहार राजपूत

(10) राजा महेन्द्रपाल द्वितीय राजपूत

(11) राजा विजयपाल प्रतिहार राजपूत

(12) राजा राज्यपाल प्रतिहार राजपूत

(13) राजा त्रिलोचनपाल प्रतिहार राजपूत

(14) राजा यशपाल प्रतिहार राजपूत

(15) राजा वीरराजदेव प्रतिहार (नागौद राज्य के संस्थापक ) राजपूत

मित्रों ऐसे महान हिंदू सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार की जयंती आगामी 18 अक्टूबर को आ रही है आप सभी लोगो से अनुरोध है की इस महापुरुष की जयंती पूरे भारतवर्ष में जरुर मनाये अगर थोडा सा भी हिंदू राजपूतों पर गौरव होतो ज्यादा से ज्यादा इस पोस्ट को शेयर करें।

(पोस्ट लेखक --: रॉयल राजपूत अज्य ठाकुर गोत्र भारद्वाज पंजाब जिला पठानकोट गांव अंदोई)

 #महाराणा_उदयसिंह_जी_के_इतिहास_का_भाग_21538-39 ई. “महाराणा उदयसिंह का विवाह”सर्दारों ने मारवाड़ से जालौर के अखैराज सोनगर...
24/05/2023

#महाराणा_उदयसिंह_जी_के_इतिहास_का_भाग_2

1538-39 ई. “महाराणा उदयसिंह का विवाह”

सर्दारों ने मारवाड़ से जालौर के अखैराज सोनगरा चौहान को बुलावा भिजवाया

सबने अखैराज चौहान से कहा कि आप अपनी पुत्री का विवाह महाराणा उदयसिंह से कर देवें ताकि सभी लोग ये सहर्ष स्वीकार कर लेंगे कि महाराणा उदयसिंह ही असल महाराणा हैं

अखैराज चौहान ने कहा कि इस प्रस्ताव से हमारी हर तरह से उन्नति ही है लेकिन बनवीर ने अपने हाथों से कुंवर उदयसिंह की हत्या की बात मशहूर कर रखी है इसलिए अगर आप सभी महाराणा उदयसिंह का झूठा खा लेवें तो मुझे भी कोई सन्देह न रहेगा।

सभी सर्दारों ने महाराणा उदयसिंह का झूठा खा लिया और अखैराज चौहान ने अपनी पुत्री जयवन्ता बाई का विवाह महाराणा उदयसिंह से कर दिया।

1540 ई. “मावली का युद्ध”

ये युद्ध महाराणा उदयसिंह व बनवीर की सेना के बीच हुआ था महाराणा उदयसिंह ने परवाने भेजकर सभी सरदारों को उनकी फौजी टुकड़ियों सहित युद्ध में भाग लेने हेतु बुलावा भिजवा दिया महाराणा उदयसिंह ने मारवाड़ के राव मालदेव राठौड़ से भी सहायता मांगी तो राव जी ने भी फ़ौज रवाना कर दी।

बनवीर खुद तो चित्तौड़ में बैठा रहा और उसने कुंवर सिंह तंवर के नेतृत्व में अपनी फौज महाराणा उदयसिंह से लड़ने भेजी

मावली / माहोली नामक स्थान पर युद्ध हुआ महाराणा उदयसिंह के सर्दार व सहयोगी, जिन्होंने इस युद्ध में भाग लिया।

#मावली_का_युद्ध

राव कूम्पा राठौड़ :- राव कूम्पा मारवाड़ के शासक राव जोधा के बड़े भाई राव अखैराज के पौत्र व राव मेहराज के पुत्र थे ये कुम्पावत राठौड़ राजपूतों के मूलपुरुष हैं।

राव जैता राठौड़ :- ये पंचायण राठौड़ के पुत्र थे ये जैतावत राठौड़ राजपूतों के मूलपुरुष हैं।

(मारवाड़ के शासक राव मालदेव राठौड़ ने राव जैता राठौड़ व राव कूम्पा राठौड़ के नेतृत्व में एक फौज महाराणा उदयसिंह की मदद हेतु भेजी राव मालदेव ने कुल 4000 की फौज भेजी थी)

राणा अखैराजोत :- ये मारवाड़ की फ़ौज में शामिल थे।

भद्दा कान्ह पंचायणोत :- ये मारवाड़ की फ़ौज में शामिल थे।

राजसी भैरवदासोत :- ये भी राव कूम्पा के नेतृत्व वाली मारवाड़ी फ़ौज में शामिल थे।

जालौर के अखैराज सोनगरा चौहान :- ये महाराणा उदयसिंह के श्वसुर महारानी जयवंता बाई के पिता व महाराणा प्रताप के नाना थे।

डूंगरपुर के कुँवर आसकरण :- मेवाड़ के रावल सामंतसिंह वागड़ में जाकर बस गए थे रावल सामंतसिंह के वंश में रावल पृथ्वीराज हुए जो कि डूंगरपुर के 18वें शासक थे रावल पृथ्वीराज ने महाराणा उदयसिंह की सहायता हेतु अपने पुत्र कुँवर आसकरण को फ़ौज समेत भेजा था।

बांसवाड़ा के रावल जगमाल :- डूंगरपुर रावल उदयसिंह के छोटे भाई जगमाल को बांसवाड़ा का शासक बनाया गया था इसलिए रावल जगमाल बांसवाड़ा के पहले शासक थे।

बूंदी के राव सुल्तान हाड़ा :- ये बूंदी के संस्थापक राव देवा हाड़ा के वंशज थे राव सुल्तान बूंदी के 9वें राव साहब थे इन्हें राव सुरतन के नाम से भी जाना जाता है महाराणा प्रताप धारावाहिक में राव सुरतन का बेहद ही गलत चरित्र चित्रण किया गया था वास्तव में राव सुल्तान हाड़ा महाराणा प्रताप के श्वसुर थे राव सुल्तान की पुत्री शाहमती बाई हाड़ा से महाराणा प्रताप का विवाह हुआ था।

प्रतापगढ़ के रावत रायसिंह सिसोदिया :- महाराणा कुम्भा के भाई क्षेमकर्ण ने कांठल में अपना राज स्थापित किया इन्हीं के वंश में रावत रायसिंह हुए जो कि प्रतापगढ़ के चौथे रावत साहब थे। रावत रायसिंह के पिता प्रसिद्ध रावत बाघसिंह थे जिन्होंने चित्तौड़गढ़ के दूसरे शाके में महाराणा का प्रतिनिधित्व करते हुए वीरगति पाई थी।

ईडर के राव भारमल राठौड़ :- मारवाड़ के राठौड़ वंश के संस्थापक राव सीहा के पुत्र सोनिंग राठौड़ ईडर के पहले राव साहब हुए सोनिंग राठौड़ के वंश में राव भारमल राठौड़ ईडर के 15वें राव साहब हुए।

कोठारिया के रावत खान पूर्विया चौहान

सलूम्बर के रावत साईंदास चुण्डावत

केलवा के जग्गा चुण्डावत

बागोर के रावत सांगा चुण्डावत

राव अखैराज पंवार

डोडिया ठाकुर सांडा :- महाराणा लाखा के समय में डोडिया ठाकुर धवल को लावा की जागीर दी गई थी इन्हीं के वंश में ठाकुर सांडा हुए जो कि लावा के 7वें ठाकुर साहब थे इनके पिता डोडिया ठाकुर भाण चित्तौड़गढ़ के दूसरे शाके में वीरगति को प्राप्त हुए थे।

“बनवीर के सहयोगी”

बनवीर के पास कोई दासीपुत्रों की फौज तो थी नहीं उसकी फौज में शामिल राजपूतों के नाम कुछ इस तरह हैं :-

रामा सोलंकी :- इसको माहोली की जागीर मिली थी।

मल्ला सोलंकी :- इसको ताणा की जागीर मिली थी मल्ला सोलंकी भागकर ताणा चला गया बाद में ताणा पर झाला राजपूतों का अधिकार रहा।

कुंवर सिंह तंवर :- ये इस लड़ाई में कत्ल हुआ इसी ने चित्तौड़ में बैठे बनवीर के आदेश से इस युद्ध का नेतृत्व किया था।

मावली में हुए इस युद्ध में 18 वर्षीय महाराणा उदयसिंह विजयी हुए

(मावली का युद्ध समाप्त “कुँवर प्रताप का जन्म”)

इसी वर्ष जहाँ एक तरफ महाराणा उदयसिंह ने बनवीर की भेजी हुई सेना को मावली में पराजित किया वहीं दूसरी तरफ इस शुभ घड़ी में कुम्भलगढ़ दुर्ग में महारानी जयवन्ता बाई के गर्भ से स्वाभिमान के सूरज महाराजकुमार प्रतापसिंह का जन्म हुआ

(“कुँवर शक्तिसिंह का जन्म”)

इसी वर्ष कुछ महीने बाद महाराणा उदयसिंह की दूसरी रानी सज्जा बाई सोलंकिनी ने कुंवर शक्तिसिंह को जन्म दिया

रानी सज्जाबाई टोडा के राव पृथ्वीराज सोलंकी की पुत्री थीं

अगले भाग में महाराणा उदयसिंह की ताणा व चित्तौड़गढ़ विजय का वर्णन किया जाएगा

(पोस्ट लेखक --: रॉयल राजपूत अज्य ठाकुर गोत्र भारद्वाज पंजाब जिला पठानकोट गांव अंदोई)

 #महाराणा_उदयसिंह_जी_के_इतिहास_का_भाग_1इतिहासकारों द्वारा महाराणा उदयसिंह पर लगाए गए व्यर्थ आरोप :- कई इतिहासकारों ने मह...
23/05/2023

#महाराणा_उदयसिंह_जी_के_इतिहास_का_भाग_1

इतिहासकारों द्वारा महाराणा उदयसिंह पर लगाए गए व्यर्थ आरोप :- कई इतिहासकारों ने महाराणा उदयसिंह को दूरदर्शी व योग्य शासक बताया है तो कई इतिहासकारों द्वारा महाराणा उदयसिंह पर व्यर्थ के आरोप भी लगाए गए हैं कुछ इस तरह हैं :-

कुछ इतिहासकार यहाँ तक कहते हैं कि अगर महाराणा सांगा और महाराणा प्रताप के बीच में उदयसिंह ना होते तो चित्तौड़ पर कभी मुगल आधिपत्य न होता (ऐसा कहने वाले न केवल महाराणा उदयसिंह का बल्कि महाराणा प्रताप का भी अपमान कर रहे हैं)

महाराणा सांगा के बाद अक्सर अगले महाराणा का नाम महाराणा उदयसिंह ही लिया जाता है और ये भी कहा जाता
है कि महाराणा सांगा ने अपने जीवन में जो भी पाया वो महाराणा उदयसिंह ने गँवा दिया जबकि महाराणा सांगा का देहान्त 1527 ई. में व महाराणा उदयसिंह का राज्याभिषेक 1540 ई. में हुआ बीच के इन 13 वर्षों में बहुत कुछ हुआ।

1527 ई. :- खानवा का युद्ध हुआ जिसमें महाराणा सांगा पराजित हुए और मेवाड़ की 80 फीसदी फौज वीरगति को प्राप्त हुई कई राजपूतानियाँ सती हुईं मेवाड़ की क्षेत्रीय सीमाएं भी पहले के मुकाबले सीमित हो गई।

1528-31 ई. :- महाराणा सांगा के पुत्र महाराणा रतनसिंह केवल 3 वर्ष ही राज कर पाए जिससे इनके राज में मेवाड़ को कोई लाभ न हुआ।

1533-34 ई. :- गुजरात के बादशाह बहादुरशाह ने चित्तौड़गढ़ पर हमला किया और चित्तौड़ का दूसरा साका हुआ मेवाड़ के कई योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए और क्षत्राणियों ने जौहर के मार्ग का वरण किया।

महाराणा सांगा के पुत्र महाराणा विक्रमादित्य एक अयोग्य शासक थे इनके शासनकाल में मेवाड़ के कई सामन्तों ने
मेवाड़ का साथ छोड़ दिया व मेवाड़ के बहुत से इलाके मुगलों के हाथों में चले गए।

1535 ई. :- महाराणा रायमल के ज्येष्ठ पुत्र कुँवर पृथ्वीराज के दासीपुत्र बनवीर ने मेवाड़ पर कब्जा कर रही सही कसर भी निकाल ली इसके राज में मेवाड़ की बर्बादी हुई और मेवाड़ के कई इलाके हाथ से निकल गए इन सब बातों का दोष महाराणा उदयसिंह पर लगाया जाता है जो कि सर्वथा अनुचित है।

महाराणा उदयसिंह का जीवन परिचय :-

जन्म :- महाराणा उदयसिंह का जन्म 4 अगस्त, 1522 ई. को हुआ।

पिता :- महाराणा उदयसिंह के पिता महाराणा सांगा थे कुँवर उदयसिंह जब 5 वर्ष के थे तब पिता महाराणा सांगा का देहांत हो गया।

माता :- महाराणा उदयसिंह की माता महारानी कर्णावती थीं महारानी कर्णावती बूंदी के राव नरबद हाड़ा की पुत्री थीं कुँवर उदयसिंह जब 12 वर्ष के थे तब उनकी माता महारानी कर्णावती ने अनेक क्षत्राणियों के साथ जौहर किया।

कम उम्र में ही कुँवर उदयसिंह के माता-पिता का देहांत हो गया और फिर बनवीर ने भी इनको मारने के प्रयास किए लेकिन पन्नाधाय जी ने अपने पुत्र चंदन का बलिदान देकर कुँवर उदयसिंह के प्राणों की रक्षा की इस प्रकार महाराणा उदयसिंह का शुरुआती जीवन काफी कष्टप्रद रहा पन्नाधाय कुंवर उदयसिंह को लेकर कुम्भलगढ़ चली गईं व वहीं किलेदार आशा देपुरा ने 6 वर्षों तक कुँवर उदयसिंह का पालन-पोषण किया।

कुँवर उदयसिंह, पन्नाधाय, आशा देपुरा की माँ, आशा देपुरा
1537 ई. :- इस समय महाराणा सांगा के 7 पुत्रों में केवल कुंवर उदयसिंह ही जीवित थे धीरे-धीरे मेवाड़ में ये बात फैल गई कि महाराणा उदयसिंह जीवित हैं पर बनवीर बेखटके चित्तौड़ पर राज करता रहा क्योंकि बनवीर को पूर्ण विश्वास था कि उसके हाथों से कुँवर उदयसिंह मारे जा चुके हैं कियो वध विक्रम को बनवीर उदै हरि गे गिरि कुम्भल तीर धरे बनवीर तबें सिर छत्र सुभट्टन के थट झंझट तत्र।

सरदारों की बनवीर से नाराज़गी :- बनवीर जानता था कि मेवाड़ के सामंत एक दासीपुत्र को अधिक समय तक मेवाड़ पर शासन करता हुआ नहीं देखेंगे इसलिए चित्तौड़ में दासीपुत्र बनवीर ने असल राजपूत बनने की बहुत कोशिश की एक दिन बनवीर ने सभी सरदारों को भोजन के लिए आमंत्रित किया। भोजन के वक्त बनवीर ने अपनी थाल में से कोठारिया के रावत खान पूर्विया चौहान की थाली में कुछ झूठा रखकर कहा कि इसका स्वाद बहुत अच्छा है तुम भी चक्खो।

रावत खान ने भोजन की थाली से हाथ खींच लिया और उठकर जाने लगे तो बनवीर ने पूछा क्या हुआ भोजन क्यों नहीं करते ? रावत खान ने कहा मैं खा चुका बनवीर ने कहा कि यह तो तुम्हारा बहाना है क्या तुम मुझे कम असल राजपूत जानकर घिन्न करते हो ? रावत खान ने कहा हाँ अब तक तो हमने नहीं कहा था पर आप खुद ही जो कहते हैं वही सच है इस तरह रावत खान व अन्य सरदारों ने बनवीर से बिगाड़ करके कुम्भलगढ़ की तरफ प्रस्थान किया।

(रावत खान पूर्बिया चौहान :- रणथंभौर के वीर हम्मीरदेव चौहान के वंशज माणकचंद कोठारिया के पहले रावत साहब हुए रावत माणकचंद के बाद क्रमशः रावत जयपाल रावत सारंगदेव रावत खान हुए इस प्रकार रावत खान कोठारिया के चौथे रावत साहब थे।)

महाराणा उदयसिंह का राज्याभिषेक :- रावत खान ने कुम्भलगढ़ पहुंचकर कुंवर उदयसिंह से भेंट की व सलूम्बर के साईंदास चुंडावत, केलवा के जग्गा चुण्डावत, बागोर के रावत सांगा को बुलावा भिजवाया।

सलूम्बर के रावत साईंदास चुंडावत :- ये प्रसिद्ध रावत चुंडा के वंशज थे रावत चुंडा के बाद सलूम्बर की गद्दी पर क्रमशः रावत कांधल, रावत रतनसिंह, रावत दूदा विराजमान हुए फिर सलूम्बर के 5वें रावत साहब साईंदास जी हुए।

केलवा के रावत जग्गा चुंडावत :- केलवा राठौड़ राजपूतों का ठिकाना है लेकिन उस समय यहां चुंडावतों का अधिकार रहा रावत चुंडा के पुत्र रावत कांधल हुए जिनके दूसरे पुत्र रावत सीहा हुए रावत सीहा के पुत्र रावत जग्गा जी थे जिनका मूल ठिकाना आमेट है।

बागोर के रावत सांगा :- उस समय बागोर रावत सांगा का ठिकाना था लेकिन इनका मूल ठिकाना देवगढ़ रहा रावत चुंडा के पुत्र रावत कांधल के छोटे पुत्र रावत सांगा हुए रावत सांगा देवगढ़ वालों के मूलपुरुष हैं।

सभी सर्दारों ने कुम्भलगढ़ पहुंचकर कुंवर उदयसिंह को नज़्रें दीं व उनका राज्याभिषेक कर दिया इस तरह महाराणा उदयसिंह का राज्याभिषेक 15 वर्ष की आयु में हुआ लेकिन असल राज्याभिषेक तो चित्तौड़ विजय से ही सम्भव था वीरविनोद, अमरकाव्य वगैरह ग्रन्थों में भी महाराणा उदयसिंह के राज्याभिषेक का सही समय चित्तौड़ विजय के बाद का ही बताया है।

अगले भाग में महाराणा उदयसिंह के विवाह व मावली युद्ध के बारे में लिखा जाएगा

(पोस्ट लेखक --: रॉयल राजपूत अज्य ठाकुर गोत्र भारद्वाज पंजाब जिला पठानकोट गांव अंदोई)

 #मेवाड़_के_इतिहास_का_भाग_2(जयपुर) सहित राजस्थान के प्रमुख भागों के प्रारंभिक शासक थे पुस्तक 'संस्कृति और भारत जातियों क...
10/04/2023

#मेवाड़_के_इतिहास_का_भाग_2

(जयपुर) सहित राजस्थान के प्रमुख भागों के प्रारंभिक शासक थे पुस्तक 'संस्कृति और भारत जातियों की एकता द्वारा कहा गया है कि राजपूतों के समान एक क्षत्रिय जाति के रूप में मानी जाती है प्राचीन समय में राजस्थान मे वंश के रजाओ का शासन कहा जाता था।

राजस्थान के दक्षिण - पश्चिम भाग पर गुहिलों का शासन था "नैणसी री ख्यात" में गुहिलों की 24 शाखाओं का वर्णन मिलता है जिनमें मेवाड़, बागड़ और प्रताप शाखा ज्यादा प्रसिद्ध हुई। इन तीनो शाखाओं में मेवाड़ शाखा अधिक महत्वपूर्ण थी। मेवाड़ के प्राचीन नाम शिवि,प्राग्वाट व मेदपाट रहे हैं।

क्रम मेवाड़ के शासकों के नाम टिप्पणी
1गुहिल 566 ई० गुहिल राजवंश की स्थापना गुहिल राजा गुहादित्य ने 566 ई० में की। गुहिल के वंशज नागादित्य को 727 ई० में मीणाओ ने मार डाला।

2काल भोज (काल भोज) 734 ई० "रावल राजवंश का संस्थापक नागादित्य के पुत्र कालभोज ने 727 ई० में गुहिल राजवंश की कमान संभाली बप्पा रावल उसकी उपाधि थी यह उपाधि भीलों ने दी थी बप्पा रावल एक अत्यंत प्रतापी शासक थे जिन पर देवीय शक्ति थी बप्पा और उनके गुरु हारित ऋषि के बारे में कई लोक दन्त कथाएं और मान्यताएं प्रचलित है माना जाता हकी बप्पा रावल ने अपनी किशोरावस्था में हारित ऋषि की काफी सेवा की थी उनकी सेवा से प्रसन्न होकर स्वर्ग लोग में प्रस्थान के समय हारित ऋषि ने बप्पा के मुंह मे पान थूकने का प्रयास किया परन्तु बाप्पा ने घृणा स्वरूप मुहफेर लिया। को थूक बाप्पा के पैरों की जमीन पर पड़ा ऋषि ने कहाँ अगर ये पान तेरे मुंह मे चला जाता तो तू अमर हो जाता पर चूंकि अब यह तेरे पैरों की भूमि पर पड़ा है तो इस भूमि को तुझसे ओर तेरे वंशजो से कोई नही छीन सकेगा।

इस वरदान के बाद बप्पा ने चित्तोड़ के शासक मानमोरी की और सब अरबी आक्रमणों का निष्फल कर दिया और मानमोरी से चित्तौड़ का किला अधिकार में ले लिया बप्पा परम् शिव(एकलिंगनाथ) भक्त थे तथा इस्लाम के कट्टर दुश्मन इन्होंने अरबो को सिंध व अफ़ग़ानिस्तान से भी खदेड़ दिया पाकिस्तान के रावल पिंडी शहर का नाम बाप्पा की शौर्यता व बोलबाले का दर्शता है धन्य है ये धरा जिसमे ऐसे वीरो ने जन्म लिया।।

3 सुमित सिऺह 753 ई०
4 रजत सिऺह 773 – 793 ई०
5 चेतन सिऺह 793 – 813 ई०
6 रावल सिंह 813 – 828 ई०
7 खुमाण सिंह द्वितीय 828 – 853 ई०
8 महायक 853 – 878 ई०
9 खुमाण तृतीय – 878 – 903 ई०
10 भर्तभट्ट द्वितीय – 903 – 951 ई०
11 अल्लट – 951 – 971 ई० इन्होंने हूण राजकुमारी हरिया देवी से शादी की और मेवाड़ मे सर्वप्रथम नोकरशाही को लागू किया इसने दूसरी राजधानी आहड़(उदयपुर) बनायी।
12 नरवाहन – 971 – 973 ई०
13 शालिवाहन – 973 – 977 ई०
14 शक्ति कुमार – 977 – 993 ई०
15 अम्बा प्रसाद – 993 – 1007 ई०
16 शुची वरमा – 1007 1021 ई०
17 नर वर्मा – 1021 – 1035 ई०
18 कीर्ति वर्मा – 1035 – 1051 ई०
19 योगराज – 1051 – 1068 ई०
20 वैरठ – 1068 – 1088 ई०
21 हंस पाल – 1088 – 1103 ई०
22 वैरी सिंह – 1103 – 1107 ई०
23 विजय सिंह – 1107 – 1127 ई०
24 अरि सिंह – 1127 – 1138 ई०
25 चौड सिंह – 1138 – 1148 ई०
26 विक्रम सिंह – 1148 – 1158 ई०
27 रण सिंह ( कर्ण सिंह ) – 1158 – 1168 ई०
28 क्षेम सिंह – 1168 – 1172 ई०
29 सामंत सिंह – 1172 – 1179 ई० (क्षेम सिंह के दो पुत्र सामंत और कुमार सिंह ज्येष्ठ पुत्र सामंत मेवाड की गद्दी पर सात वर्ष रहे क्योंकि जालौर के कीतू चौहान मेवाड पर अधिकार कर लिया सामंत सिंह अहाड की पहाडियों पर चले गये इन्होने बडौदे पर आक्रमण कर वहां का राज्य हस्तगत कर लिया लेकिन इसी समय इनके भाई कुमार सिंह पुनः मेवाड पर अधिकार कर लिया। )
30 कुमार सिंह – 1179 – 1191 ई०
31 मंथन सिंह – 1191 – 1211 ई०
32 पद्म सिंह – 1211 – 1213 ई०
33 जैत्र सिंह – 1213 – 1250 ई० भुताला का युद्ध जीता। चितौड़ को नयी राजधानी बनायीं।
34 तेज सिंह -1261 – 1273 ई० 2. MEWAR FIRST PICTURIZED BOOK WRITTEN BY KAMALCHANFD - SHRAWAK-PRATIKAMAN- SUTRA CHURNI
UMAPATIWARLABDH KI UDADHI MILI
35 समर सिंह – 1273 – 1301 ई० (समर सिंह का एक पुत्र रतन सिंह मेवाड राज्य का उत्तराधिकारी हुआ और दूसरा पुत्र कुम्भकरण नेपाल चला गया। नेपाल के राज वंश के शासक कुम्भकरण के ही वंशज हैं। )

36 रतन सिंह ( 1302-1303 ई० ) इनके कार्यकाल में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौडगढ पर अधिकार कर लिया। प्रथम जौहर पदमिनी रानी ने सैकडों महिलाओं के साथ किया। गोरा – बादल का प्रतिरोध और युद्ध भी प्रसिद्ध रहा।

37. अजय सिंह ( 1303 – 1326 ई० ) हमीर राज्य के उत्तराधिकारी थे किन्तु अवयस्क थे। इसलिए अजय सिंह गद्दी पर बैठे.

38. महाराणा हमीर सिंह ( 1326 – 1364 ई० ) हमीर ने अपनी शौर्य, पराक्रम एवं कूटनीति से मेवाड राज्य को बनवीर सोनगरा जो खिलजियो द्वारा नियुक्त था से छीन कर उसकी खोई प्रतिष्ठा पुनः स्थापित की और अपना नाम अमर किया महाराणा की उपाधि धारण की। इसी समय से ही मेवाड नरेश महाराणा उपाधि धारण करते आ रहे हैं।

39. महाराणा क्षेत्र सिंह ( 1364 – 1382 ई० )

40 महाराणा लाखासिंह ( 1382 – 1421 ई० ) योग्य शासक तथा राज्य के विस्तार करने में अहम योगदान। इनके पक्ष में ज्येष्ठ पुत्र चुडा ने स्वय व उसके वंशजो द्वारा राजगद्दी त्यागने की भीष्म प्रतिज्ञा की और पिता से हुई संतान मोकल को राज्य का उत्तराधिकारी मानकर जीवन भर उसकी रक्षा की।

41. महाराणा मोकल ( 1421 – 1433 ई० )

42 महाराणा कुम्भा ( 1433 – 1468 ई० ) इन्होने न केवल अपने राज्य का विस्तार किया बल्कि योग्य प्रशासक, सहिष्णु, किलों और मन्दिरों के निर्माण के रूप में ही जाने जाते हैं। कुम्भलगढ़ इन्ही की देन है. इनके पुत्र उदा ने इनकी हत्या करके मेवाड के गद्दी पर अधिकार जमा लिया।

43. महाराणा उदा ( उदय सिंह ) ( 1468 – 1473 ई० ) महाराणा कुम्भा के द्वितीय पुत्र रायमल, जो ईडर में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे थे, आक्रमण करके उदय सिंह को पराजित कर सिंहासन की प्रतिष्ठा बचा ली। अन्यथा उदा पांच वर्षों तक मेवाड का विनाश करता रहा।

44. महाराणा रायमल ( 1473 – 1509 ई० ) सबसे पहले महाराणा रायमल के मांडू के सुल्तान गयासुद्दीन को पराजित किया और पानगढ, चित्तौड्गढ और कुम्भलगढ किलों पर पुनः अधिकार कर लिया पूरे मेवाड को पुनर्स्थापित कर लिया। इसे इतना शक्तिशाली बना दिया कि कुछ समय के लिये बाह्य आक्रमण के लिये सुरक्षित हो गया। लेकिन इनके पुत्र संग्राम सिंह, पृथ्वीराज और जयमल में उत्तराधिकारी हेतु कलह हुआ और अंततः दो पुत्र मारे गये। अन्त में संग्राम सिंह गद्दी पर गये।

45. महाराणा सांगा ( संग्राम सिंह ) ( 1509 – 1527 ई० ) महाराणा सांगा उन मेवाडी महाराणाओं में एक था जिसका नाम मेवाड के ही वही, भारत के इतिहास में गौरव के साथ लिया जाता है। महाराणा सांगा एक साम्राज्यवादी व महत्वाकांक्षी शासक थे, जो संपूर्ण भारत पर अपना अधिकार करना चाहते थे। इनके समय में मेवाड की सीमा का दूर – दूर तक विस्तार हुआ। महाराणा हिन्दु रक्षक, भारतीय संस्कृति के रखवाले, अद्वितीय योद्धा, कर्मठ, राजनीतीज्ञ, कुश्ल शासक, शरणागत रक्षक, मातृभूमि के प्रति समर्पित, शूरवीर, दूरदर्शी थे। इनका इतिहास स्वर्णिम है। जिसके कारण आज मेवाड के उच्चतम शिरोमणि शासकों में इन्हे जाना जाता है।

46. महाराणा रतन सिंह ( 1528 – 1531 ई० )

47. महाराणा विक्रमादित्य ( 1531 – 1536 ई० ) यह अयोग्य सिद्ध हुआ और गुजरात के बहादुर शाह ने दो बार आक्रमण कर मेवाड को नुकसान पहुंचाया इस दौरान 1300 महारानियों के साथ कर्मावती सती हो गई। विक्रमादित्य की हत्या दासीपुत्र बनवीर ने करके 1534 – 1537 तक मेवाड पर शासन किया। लेकिन इसे मान्यता नहीं मिली। इसी समय सिसोदिया वंश के उदय सिंह को पन्नाधाय ने अपने पुत्र की जान देकर भी बचा लिया और मेवाड के इतिहास में प्रसिद्ध हो गई।

48. महाराणा उदय सिंह ( 1537 – 1572 ई० ) मेवाड़ की राजधानी चित्तोड़गढ़ से उदयपुर लेकर आये. गिर्वा की पहाड़ियों के बीच उदयपुर शहर इन्ही की देन है. इन्होने अपने जीते जी गद्दी छोटे पुत्र जगमाल को दे दी, किन्तु उसे सरदारों ने नहीं माना, फलस्वरूप जेष्ट बेटे प्रताप को गद्दी मिली.

49. महाराणा प्रताप ( 1572 -1597 ई० ) राज्य की बागडोर संभालते समय उनके पास न राजधानी थी न राजा का वैभव, बस था तो स्वाभिमान, गौरव, साहस और पुरुषार्थ। उन्होने तय किया कि सोने चांदी की थाली में नहीं खाऐंगे, कोमल शैया पर नही सोयेंगे, अर्थात हर तरह विलासिता का त्याग करेंगें। धीरे–धीरे प्रताप ने अपनी स्थिति सुधारना प्रारम्भ किया। इस दौरान मान सिंह अकबर का संधि प्रस्ताव लेकर आये जिसमें उन्हे प्रताप के द्वारा अपमानित होना पडा। परिणाम यह हुआ कि 21 जून 1576 ई० को हल्दीघाटी नामक स्थान पर अकबर और प्रताप का भीषण युद्ध हुआ। जिसमें 14 हजार राजपूत मारे गये , इस युद्ध में भोमट के राजा राणा पूंजा भील ने महाराणा प्रताप का साथ दिया । इस युद्ध का परिणाम यह हुआ कि वर्षों प्रताप जंगल की खाक छानते रहे, जहां घास की रोटी खाई और निरन्तर अकबर सैनिको का आक्रमण झेला, लेकिन हार नहीं मानी। ऐसे समय भीलों ने इनकी बहुत सहायता की।अन्त में भामा शाह ने अपने जीवन में अर्जित पूरी सम्पत्ति प्रताप को देदी। जिसकी सहायता से प्रताप चित्तौडगढ को छोडकर अपने सारे किले 1588 ई० में मुगलों से छिन लिया। 19 जनवरी 1597 में चावंड में 57 वर्ष की आयु में एक सख्त धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाते समय अंदरूनी चोट लग जाने से प्रताप का निधन हो गया। कहते है कि राणा प्रताप की मृत्यु की खबर सुनकर अकबर के भी आंखों में आंसू आ गए। महाराणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार ना करते हुए जंगलों में घूमते घास की रोटी खाई महाराणा प्रताप ने बूंदी राज्य के शासक राव सुरतन सिंह के अन्याय से बूंदी की प्रजा को बचाने के लिए सखा वीर का वेश धारण किया 29जनवरी 1597 मे भारत माता के वीर सपूत ज्योति ज्योत समा गया बोलो हिंदू पति महाराणा प्रताप की जय महाराणा प्रताप ने अपने पिताजी के साहित्य संस्थान से युद्ध कर उसे अफगानी शम्स खान को परास्त किया था और अपने किले पर मेवाड़ ध्वज लहराया था अब अफगानि ध्वज को हटाकर हां प्रताप ने अपनी पूरी जिंदगी दोस्तों के लिए संघर्ष करके खत्म कर दी इसलिए आज मैं परम पूज्य महाराणा प्रताप राष्ट्र गौरव महाराणा प्रताप है जय हिंद जय भारत सभी बोलो हिंदू पति महाराणा प्रताप की जय संपादन करता महाराणा प्रताप का भक्त चेतन नकुम जय हिंद जय मेवाड़ जय भारत हर हर भगवा घर घर भगवा गाम्र चान्देर तेहसील देपालपुर मे रहने वाले चेतन नकुम

50. महाराणा अमर सिंह (1597 – 1620 ई० ) प्रारम्भ में मुगल सेना के आक्रमण न होने से अमर सिंह ने राज्य में सुव्यवस्था बनाया। जहांगीर के द्वारा करवाये गयें कई आक्रमण विफ़ल हुए। अंत में खुर्रम ने मेवाड पर अधिकार कर लिया। हारकर बाद में इन्होनें अपमानजनक संधि की जो उनके चरित्र पर बहुत बडा दाग है। वे मेवाड के अंतिम स्वतन्त्र शासक है।

51. महाराणा कर्ण सिंह ( 1620 – 1628 ई० ) इन्होनें मुगल शासकों से संबंध बनाये रखा और आन्तरिक व्यवस्था सुधारने तथा निर्माण पर ध्यान दिया।

52 महाराणा जगत सिंह ( 1628 – 1652 ई० )

53. महाराणा राजसिंह ( 1652 – 1680 ई० ) यह मेवाड के उत्थान का काल था। इन्होने औरंगजेब से कई बार लोहा लेकर युद्ध में मात दी। इनका शौर्य पराक्रम और स्वाभिमान महाराणा प्रताप जैसे था। इनकों राजस्थान के राजपूतों का एक गठबंधन, राजनितिक एवं सामाजिक स्तर पर बनाने में सफ़लता अर्जित हुई। जिससे मुगल संगठित लोहा लिया जा सके। महाराणा के प्रयास से अंबेर, मारवाड और मेवाड में गठबंधन बन गया। वे मानते हैं कि बिना सामाजिक गठबंधन के राजनीतिक गठबंधन अपूर्ण और अधूरा रहेगा। अतः इन्होने मारवाह और आमेर से खानपान एवं वैवाहिक संबंध जोडने का निर्णय ले लिया। राजसमन्द झील एवं राजनगर इन्होने ही बसाया.

54. महाराणा जय सिंह ( 1680 – 1698 ई० ) जयसमंद झील का निर्माण करवाया.

55. महाराणा अमर सिंह द्वितीय ( 1698 – 1710 ई० ) इसके समय मेवाड की प्रतिष्ठा बढी और उन्होनें कृषि पर ध्यान देकर किसानों को सम्पन्न बना दिया।

56. महाराणा संग्राम सिंह ( 1710 – 1734 ई० ) महाराणा संग्राम सिंह दृढ और अडिग, न्यायप्रिय, निष्पक्ष, सिद्धांतप्रिय, अनुशासित, आदर्शवादी थे। इन्होने 18 बार युद्ध किया तथा मेवाड राज्य की प्रतिष्ठा और सीमाओं को न केवल सुरक्षित रखा वरन उनमें वृध्दि भी की।

57. महाराणा जगत सिंह द्वितीय ( 1734 – 1751 ई० ) ये एक अदूरदर्शी और विलासी शासक थे। इन्होने जलमहल बनवाया।

58. महाराणा प्रताप सिंह द्वितीय ( 1751 – 1754 ई० )

59. महाराणा राजसिंह द्वितीय ( 1754 – 1761 ई० )

60 महाराणा अरिसिंह द्वितीय ( 1761 – 1773 ई० )

61. महाराणा हमीर सिंह द्वितीय ( 1773 – 1778 ई० ) इनके कार्यकाल में सिंधिया और होल्कर ने मेवाड राज्य को लूटपाट करके तहस – नहस कर दिया।

62. महाराणा भीमसिंह ( 1778 – 1828 ई० ) इनके कार्यकाल में भी मेवाड आपसी गृहकलह से दुर्बल होता चला गया। 13 जनवरी 1818 को ईस्ट इंडिया कम्पनी और मेवाड राज्य में समझौता हो गया। अर्थात मेवाड राज्य ईस्ट इंडिया के साथ चला गया। मेवाड के पूर्वजों की पीढी में बप्पारावल, कुम्भा, महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप जैसे तेजस्वी, वीर पुरुषों का प्रशासन मेवाड राज्य को मिल चुका था। प्रताप के बाद अधिकांश पीढियों में वह क्षमता नहीं थी जिसकी अपेक्षा मेवाड को थी। महाराजा भीमसिंह योग्य व्यक्ति थे निर्णय भी अच्छा लेते थे परन्तु उनके क्रियान्वयन पर ध्यान नही देते थे। इनमें व्यवहारिकता का आभाव था।ब्रिटिश एजेन्ट के मार्गदर्शन, निर्देशन एवं सघन पर्यवेक्षण से मेवाड राज्य प्रगति पथ पर अग्रसर होता चला गया।

63 महाराणा जवान सिंह ( 1828 – 1838 ई० ) निःसन्तान। सरदार सिंह को गोद लिया।

64. महाराणा सरदार सिंह ( 1838 – 1842 ई० ) निःसन्तान। भाई स्वरुप सिंह को गद्दी दी.

65. महाराणा स्वरुप सिंह ( 1842 – 1861 ई० ) इनके समय 1857 की क्रान्ति हुई। इन्होने विद्रोह कुचलने में अंग्रेजों की मदद की।

66 महाराणा शंभू सिंह ( 1861 – 1874 ई० ) 1868 में घोर अकाल पडा। अंग्रेजों का हस्तक्षेप बढा।

67 . महाराणा सज्जन सिंह ( 1874 – 1884 ई० ) बागोर के महाराज शक्ति सिंह के कुंवर सज्जन सिंह को महाराणा का उत्तराधिकार मिला। इन्होनें राज्य की दशा सुधारनें में उल्लेखनीय योगदान दिया।

68. महाराणा फ़तह सिंह ( 1883 – 1930 ई० ) सज्जन सिंह के निधन पर शिवरति शाखा के गजसिंह के अनुज एवं दत्तक पुत्र फ़तेहसिंह को महाराणा बनाया गया। फ़तहसिंह कुटनीतिज्ञ, साहसी स्वाभिमानी और दूरदर्शी थे। संत प्रवृति के व्यक्तित्व थे. इनके कार्यकाल में ही किंग जार्ज पंचम ने दिल्ली को देश की राजधानी घोषित करके दिल्ली दरबार लगाया. महाराणा दरबार में नहीं गए .

69. महाराणा भूपाल सिंह (1930 – 1955 ई० ) इनके समय में भारत को स्वतन्त्रता मिली और भारत या पाक मिलने की स्वतंत्रता। भोपाल के नवाब और जोधपुर के महाराज हनुवंत सिंह पाक में मिलना चाहते थे और मेवाड को भी उसमें मिलाना चाहते थे। इस पर उन्होनें कहा कि मेवाड भारत के साथ था और अब भी वहीं रहेगा। यह कह कर वे इतिहास में अमर हो गये। स्वतंत्र भारत के वृहद राजस्थान संघ के भूपाल सिंह प्रमुख बनाये गये| महाराणा भोपाल सिंह जी ने भोपलसागर बसाया और वहा एक विशाल तालाब का निर्माण भी करवाया।

70. महाराणा भगवत सिंह ( 1955 – 1984 ई० )

71. श्रीजी अरविन्दसिंह एवं महाराणा महेन्द्र सिंह (1984 ई० से निरंतर..) इस तरह 556 ई० में जिस गुहिल वंश की स्थापना हुई बाद में वही सिसोदिया वंश के नाम से जाना गया। जिसमें कई प्रतापी राजा हुए, जिन्होने इस वंश की मानमर्यादा, इज्जत और सम्मान को न केवल बढाया बल्कि इतिहास के गौरवशाली अध्याय में अपना नाम जोडा।  आज राजस्थान का इतिहास इन्ही वीरो की शहादत का पर्याय बन गया है।
लख्श्य्राज सिंह मेवाड़

(पोस्ट लेखक _: रॉयल राजपूत अज्य ठाकुर गोत्र भारद्वाज पंजाब जिला पठानकोट गांव अंदोई)

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